Kmsraj51 की कलम से…..

मेरी माँ !(मिसाइल मैन अब्दुल कलाम)
समंदर की लहरें,
सुनहरी रेत,
श्रद्धानत तीर्थयात्री,
रामेश्वरम् द्वीप की वह छोटी-पूरी दुनिया।
सबमें तू निहित,
सब तुझमें समाहित।
तेरी बाँहों में पला मैं,
मेरी कायनात रही तू।
जब छिड़ा विश्वयुद्ध, छोटा सा मैं
जीवन बना था चुनौती, जिंदगी अमानत
मीलों चलते थे हम
पहुँचते किरणों से पहले।
तेरी उँगलियों ने
निथारा था दर्द मेरे बालों से,
और भरी थी मुझमें
अपने विश्वास की शक्ति-
निर्भय हो जीने की, जीतने की।
जिया मैं
मेरी माँ !
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