क्यों झाँकना नज़र में ये, नक़ाब जैसा है…
मिला जब वो प्यार से, तो गुलाब जैसा है
आँखों में जब उतर गया, शराब जैसा है
खामोशियाँ उसकी मगर, हसीन लग गईं
कहने पे जब वो आया तो, अज़ाब जैसा है
करके नज़ारा चाँद का, वो ख़ुश बहुत हुआ
ख़बर उसे कहाँ वो, आफ़ताब जैसा है
करते रहो तुम बस्तियाँ, आबाद हर जगह
इन्सां यहाँ इक छोटा सा, हबाब जैसा है
कुछ दोस्ती, कुछ प्यार, कुछ वफ़ा छुपा लिया
क्यों झाँकना नज़र में ये, नक़ाब जैसा है
अज़ाब=ख़ुदा का क़हर या नाराज़गी
आफ़ताब = सूरज
हबाब=बुलबुला
Leave a Reply