– कृष्ण मोहन सिंह
एक अध्यापिका अपना अस्सीवां जन्मदिन मना रही थीं। उन्होंने अनेक वर्ष एक विद्यालय में अध्यापन कार्य किया था। उनसे मिलने से पहले, उस विद्यालय के अनेक छात्र गैर सामाजिक गतिविधियों में लगे हुए थे। पर जब उस अध्यापिका ने वहां पढ़ाना शुरू किया, तो लोगों ने महसूस किया कि उन शिष्यों के व्यवहार में बदलाव आने लगा। धीरे-धीरे उन सब में गहन परिवर्तन हुआ। उनमें से कई शिष्य बड़े होकर अच्छे नागरिक बने। कई बाद में चिकित्सक, वकील, अध्यापक, अच्छे तकनीशियन और व्यापारी बने। लोगों ने देखा कि उस अध्यापिका ने अनेक बिगड़े हुए बच्चों की जिंदगी संवार दी।
स्वाभाविक था कि उनके अस्सीवें जन्मदिन पर उन्हें आदर- सम्मान देने के लिए और जो कुछ उन्होंने किया था, उसके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने के लिए उनके भूतपूर्व शिष्य बड़ी संख्या में उनके पास पहुंचे। उनमें से अनेक छात्र अपने परिवार के साथ आए। देखते-देखते वहां गणमान्य व्यक्तियों की काफी बड़ी भीड़ एकत्र हो गई। वह एक भव्य आयोजन में बदल गया। अखबार वालों ने इस विशाल जन्मदिन पार्टी के बारे में सुना, तो वे भी आ पहुंचे। कुछ पत्रकारों ने उस अध्यापिका का साक्षात्कार लिया। उन्होंने पूछा, ‘एक अध्यापक के रूप में आपके सफल होने का रहस्य क्या है?’
अध्यापिका ने उत्तर दिया, ‘जब मैं अपने चारों ओर आज के युवा अध्यापकों को देखती हूं, जिन्होंने बच्चों को पढ़ाने की ट्रेनिंग ली है और बीएड किया है, तो पाती हूं कि वे प्रशिक्षित हैं और पढ़ाने की बारीकियों पर ध्यान दे सकते हैं, वे बच्चों को सचमुच कुछ सिखा सकते हैं। पर पीछे देखती हूं तो महसूस करती हूं कि जब मैंने पढ़ाना शुरू किया, तब मेरे पास देने के लिए सिर्फ प्यार था।’ उस अध्यापिका के इस सादे से वाक्य में, हमें सभी युगों के सत्गुरुओं की सफलता का रहस्य मिलता है। इस कहानी की अध्यापिका के अंदर, जीवन को बदल देने की शक्ति थी। उन्होंने ऐसे छात्रों को पढ़ाया, जिनमें सदाचार की कमी थी और उनको सदाचारी व्यक्तियों में बदल दिया। यही काम एक सत्गुरु करते हैं। वे काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार से भरे दुखी मनुष्यों को अपनाते हैं और उनको ऐसे इन्सानों में बदल देते हैं, जो अहिंसा, पवित्रता, नम्रता, सचाई और प्रेम से भरे हों। वे ऐसा कैसे करते हैं? वे यह सब दिव्य-प्रेम की शक्तियों से करते हैं।
अगर हमें कठोरता पूर्वक आदेश दे कर यह कहा जाए कि क्या करना है, तो शायद हम में से कुछ ही व्यक्ति उसका पालन करेंगे। पर अगर हम किसी से प्रेम करते हैं और जानते हैं कि वह भी हमसे प्रेम करता है, तो हम उसके आदेश सुनते हैं, उसका आदर करते हैं। माता-पिता के प्रेम के द्वारा एक बच्चा बोलना और चलना सीखता है। एक अध्यापक के प्रेम के द्वारा बच्चा पढ़ना-लिखना सीखता है। एक प्रशिक्षक के प्रेम के द्वारा हम कोई हुनर सीखते हैं। एक आध्यात्मिक गुरु के दिव्य-प्रेम से हम स्वयं भी आध्यात्मिक बन जाते हैं। हम महान संतों के जीवन में देख चुके हैं कि वे कितने दयावान थे। इसीलिए जो भी उनसे मिले, उनके जीवन को उन्होंने सकारात्मक रूप से बदल दिया। प्रेम में सर्वाधिक रूपांतरकारी शक्ति होती है।
– कृष्ण मोहन सिंह
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