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Archives for August 2013
TU NA HO NIRASH KABHI MAN SE ~ KABHI BHEE HAR MANKAR BAITH NA JAO….
खुशियां ….. Posted By kmsraj51
खुशियां …..
By kmsraj51
मुझे थोड़ी सी खुशियां मिलती हैं
और मैं वापस आ जाता हूं काम पर
जबकि पानी की खुशियों से घास उभरने लगती है
और नदियां भरी हों, तो नाव चल पड़ती है दूर-दूर तक।
वहीं सुखद आवाजें तालियों की
प्रेरित करती है नर्तक को मोहक मुद्राओं में थिरकने को
और चांद सबसे खूबसूरत दिखाई देता है
करवां चौथ के दिन चुनरी से सजी सुहागनों को
हर शादी पर घोड़े भी दूल्हे बन जाते हैं
और बड़ा भाई बेहद खुश होता है
छोटे को अपनी कमीज पहने नाचते देखकर
एक थके हुए आदमी को खुशी देती है उसकी पत्नी
घर के दरवाजे के बाहर इंतजार करती हुई
और वैसी हर चीज हमें खुशी देती है
जिसे स्वीकारते हैं हम प्यार से।
एक कक्षा में जो पढ़ाई होती है उसे हर विद्यार्थी अलग-अलग तरीके से अपने दिमाग में बैठाता है। By ~ kmsraj51
एक कक्षा में जो पढ़ाई होती है उसे हर विद्यार्थी अलग-अलग तरीके से अपने दिमाग में बैठाता है। यानि अगर एक पाठ्यक्रम को पढ़ाने के बाद छात्रों से कहा जाए कि वे पढ़ाए गए पाठ के विषय में लिखे तो हर छात्र के उत्तर अलग-अलग होंगे। किसी में बतायी गयी सारी बातों का उल्लेख होगा तो किसी में आधी तो कई बहुत थोड़ा-सा ही लिख पायेंगे। सिर्फ इस एक तरह की परीक्षा से ही उनके उत्तर देखकर सारे विद्यार्थियों की वर्तमान स्थिति का पता आसानी से लग जाता है और उन सब के लायक लाभकारी सलाहें उन्हें दी जा सकती है। साथ ही शिक्षक अपने पढ़ाने के तरीके में बदलाव कर सकते हैं, ताकि कमजोर छात्र भी उनकी पढ़ाई को अच्छी तरह से समझ सके।
भाग्य रेखा … By kmsraj51……….
भाग्य रेखा
नीले आकाश के बीच
बादलों ने खींची है
मेरी भाग्य रेखा
बादलों से झॉंकते हैं
टिमटिमाते तारे
जिनमें बसी हैं
मेरी शुभ और अशुभ घडिय़ॉं
तिनका हूं अभी मैं
हवा में उड़ता हुआ
धूल हूं पृथ्वी की
क्या पता कल बन जाऊँ
माथे का तिलक किसी का
फिर भी तो ऐ मिट्टी
तेरी ही अंश हूं
न जाने कब
पॉंव तले रौंद दिया जाऊँ ।
कुछ बातें … Posted By kmsraj51
कुछ बातें
एक कोयल कूंकती होगी सिर्फ अपने लिए
लेकिन उसकी आवाज सबको सुनाई देती है।
रास्तों में चलो तो
अपनी निगाहें पेड़ों पर कर लो
क्योंकि ये सारी धूल अपने मस्तक पर लगा लेते हैं।
पहचान बनाओ इतनी कि
वो हमेशा के लिए मौजूद रहे।
यूं ही कभी किसी भूले को याद कर लो
कि पक्षी उड़ते हुए आकाश से निकल गए।
अनगिनत हाथों से छुए हुए सिक्के
तुम्हारे हाथों में
फिर घृणा किसी से क्यों
कि रात घोलती है अमृत
जागो या सोये रहो सबको मिलेगा
और मैं तलाशता रहा अंतहीन भूमि
यह ही मेरी सबसे बड़ी आस थी
मनुष्य नहीं हैं वहां फिर भी
धरती का तिनका भी
कितना अपना लगता है यहां
प्रेम से मेरी ओर उडक़र आता हुआ जैसे
और यह प्रेम मेरा कितना है
और तुम तक भी इसकी आवाज जाती हुई।
बच्चे – Man ke Sacche ….. By kmsraj51
बच्चे…
बच्चे लाइन में चलना नहीं चाहते
बच्चे नहीं जानते यह सुरक्षा का नियम है
बच्चे लाइनें तोड़ देते हैं
वे खेलना चाहते हैं मनपसंद बच्चों के साथ।
बच्चों के लिए कोई थकान नहीं,
न ही कोई दूरी है
दायरा है दूर-दूर तक देखने का
वे खेलते समय पाठ याद नहीं रखते
भूल जाते हैं पढ़ाई भी कुछ होती है
बच्चे मासूम उगते हुए अंकुर या छोटे से वृक्ष
अभी इतने कच्चे कि हवा से लथ-पथ
इनके चेहरे याद नहीं रहते
जैसे सभी अपने हों और एक जैसे
और उनकी खुशियां समां लेने के लिए
कितना छोटा पड़ जाता है यह भूखंड।
जाड़े के फूलों को देखकर … By kmsraj51
जाड़े के फूलों को देखकर by kmsraj51
वे सुन्दर घने फूल हंस पड़े
मुझे पास आते देखकर
इतने पास की चारों और वे रंगों से भरे हुए
हल्की हवा से हिलते-डोलते
जैसे बिना किसी आधार के हों
बस मेरे पास आना चाह रहे हों
वे इसी तरह से, मैं भी इसी तरह से
फर्क इतना कि वे रहेंगे मौजूद वहीं पर
मैं वापस लौट जाऊंगा
वो भी इतने सारे फूलों को छोडक़र
इनकी इतनी घनी कतार
इन्हें गिन भी नहीं सकता मैं
सभी एक ही दृष्टि से मेरी और मुख किये हुए
और उनके प्यार से द्रवित होता जा रहा हूं।
छूट गया था वो रास्ता … By kmsraj51
छूट गया था वो रास्ता
By ~ kmsraj51
छूट गया था वो रास्ता हमारी गलती से
और दूसरे रास्तों से भी गुजर कर
कुछ हासिल नहीं कर पाये हम
दौड़ते रहे हम यहां से वहां तक
जैसे यह ही सही हो सकती थी
हमारे लिए जगह,
बेहद उतावलापन था
कि दौड़े और छू लेंगे वह छोटी सी दूरी
लेकिन सभी जगहों पर
सभी चीजों का हल नहीं था
कहीं आंख बंद तो कहीं कान बहरे
और अंत में हम पसर गए
परेशानी भरी उधेड़बुन में
उस समय लगा वह पहली भूमि ही सबसे सही थी
वहां सब कुछ था
बस हाथ आने के लिए थोड़ा सा धैर्य चाहिए था
थोड़ा सा और विश्वास रखते
मिल गयी होती हमें सही जगह पहले ही।
हरा रंग ….. By kmsraj51
हरा रंग
By ~ kmsraj51
पक्षियों को हरा रंग लगता है सबसे अधिक प्यारा
और मुझे भी सब कुछ सूना-सूना
बिना पेड़ों के।
पत्ते झड़ जाएँ तो रात जैसा लगता है
जैसे आंखों से हरा रंग ही फीका होने लगा
और सोचता हूं मैं नित्
अगर हरियाली को न देखूं
भूल ही जाऊं वे सारे सौन्दर्य स्थल पूर्व के।
मिलता है हमें जो रंग परिचित हर दिन
जुड़ा हुआ हमारे पुराने रंगों से
यादें मजबूत कर देता है हमारी पुरानी
और बचे रह जाते हैं
हमारे सपने सारे इसी तरह से।