Kmsraj51 की कलम से…..
=> समय रूपी अमूल्य उपहार का एक क्षण भी आलस्य और प्रमाद में नष्ट न करें।
=> निर्धनता मनुष्य के लिए बेइज्जती का कारण नहीं हो सकती। यदि उसके पास वह सम्पत्ति मौजूद हो, जिसे ‘सदाचार्’ कहते है।
=> कर्मयोग का अर्थ है – लोकमंगल के उच्च स्तरीय प्रयोजनों में पुरुषार्थ को नियोजित किए रहना।
=> मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है; परन्तु इनके परिणामों में चुनाव की कोई सुविधा नहीं।
=> वही अनशन, तप, श्रेष्ठ है जिससे कि मन अमंगल न सोचे, इन्द्रियों की क्षति न हो और नित्य प्रति की योग धर्म क्रियाओं में विघ्न न आए।
=> ईश्वर पाप से बहुत कुढ़ता है और हमारी चौकीदारी के लिए अदृश्य रूप से हर घडी़ साथ रहता है।
=> भगवान् उन्हें ही सर्वाधिक प्यार करते हैं, जो तप- साधना की आत्म- प्रवंचना में न डूबे रहकर सेवा- साधना को सर्वोपरि मानते हैं।
=> दूसरों की सहायता वे ही लोग कर सकते हैं, जिनके पास अपना वैभव और पराक्रम हो।
=> मनन और चिंतन के बिना न आत्म- साक्षात्कार होता है और न ईश्वर ही मिलता है।
=> “नारी” परिवार को श्रेष्ठता से अभिपूरित, धरती को स्वर्ग बनाती है।
=> सच्चाई के अनुयायी एक हजार हाथियों की ताकत है.
The follower of truth has the strength of a thousand elephants.
=> शुभ काम दिखावे के लिए न करें।
=> मनुष्य जैसा सोचता है ठीक वैसा ही बनता जाता है।
=> सच्चे उपदेशक वाणी से नहीं, जीवन से सिखाते हैं।
=> भाग्य बदलने की एकमात्र शर्त है- उन्नति के लिए सच्चा और निरन्तर संघर्ष।
=> अध्यात्मवाद वह महाविज्ञान है, जिसकी जानकारी के बिना भूतल के समस्त वैभव निरर्थक हैं और जिसकेथोडा़– सा भी प्राप्त होने पर जीवन आनन्द से ओतप्रोत हो जाते है।
Note::-
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“तू ना हो निराश कभी मन से”
“अपने लक्ष्य को इतना महान बना दो, की व्यर्थ के लीये समय ही ना बचे” -Kmsraj51
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