Kmsraj51 की कलम से…..
Aam Janta Ko Kab Milega Usaka Hak | आम जनता को कब मिलेगा उसका हक।
शहरातीयत की धक्कम-पेल, ठेलम-ठेल, रेलम-रेल और तिकड़मबाजी तो आज से पहले खूब देखी और सुनी थी पर हस्पताल में भी ऐसा परिदृश्य होता होगा कभी सोचा नहीं था। हर कोई बस इसी जद में लगा है कि मेरा नम्बर पहले लगना चाहिए, मेरा नम्बर पहले लगना चाहिए। सब्र रखने का शायद किसी को वक्त ही नहीं है। बहुत से लोग स्वार्थ और अमानवीयता को यहां भी नहीं छोड़ते और बहुत से ऐसे भी लोग हैं जो इंसानियत की मिसाल पेश करते हैं। बाहर रेहड़ी – फहड़ी तथा रेस्टोरेंट जैसी श्रेणी का खाना बनाने वाले ढाबे व सरकारी कैंटीन आदि वाले खाने-पीने के सामान में जहां मोल भाव करते हैं, वहीं कई लोग गरीबों और मरीजों तथा उनके परिजनों को निशुल्क भंडारा भी तो लगाते हैं।
इस कला में प्रवीण सिख धर्म के लोगों के हुनर को भला कौन नहीं जानता। ये भंडारा लगाने वाले लोग पकड़-पकड़ कर सभी को भंडारा मुफ्त में खिलाते हैं, चाय पिलाते हैं, उनके जूठे बर्तन धोते हैं और भी सेवाएं निशुल्क प्रदान करते हैं। तब लगता है कि दुनियां में दया और धर्म खत्म कहां हुआ है। वह तो आज भी जिंदा है। पर जब दवा और शल्य चिकित्सा के सामानों के दामों को एक दूसरे दुकानदारों के साथ तुलना करके देखते हैं तो लगता है कि दुनियां में चोर बाजारी बहुत है। सच क्या है झूठ क्या है? कुछ कहते नहीं बनता।
उस रोज रात 2:00 बजे जब हम मेरे बेटे को अति संवेदनशील हालत में पी जी आई चंडीगढ़ में लेकर पहुंचे तो वहां के आपातकालीन विभाग का परिदृश्य कोलकाता के मछली बाजार से कम नहीं था। कोई आ रहा था तो कोई जा रहा था। कोई सांस ले रहा था तो कोई साथ छोड़ रहा था। कुछ लोग तो प्राण छोड़ कर के ही इस संसार को हमारी आंखों के सामने अलविदा कह गए थे। खैर, जन्म और मरण तो इस संसार के सनातन सत्य है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में यूं ही उपदेश नहीं दिया कि अर्जुन इस संसार में जो आया है वह एक दिन जाएगा जरूर। पर राहत प्रदान करने वाली जगह भी किसी के दिल को इतना आहत करेगी, कभी सोचा भी नहीं था।
मेरे बेटे को मैंनेनजाइंटिस नामक दिमागी बीमारी ने अचानक बुरी तरह से जकड़ रखा था। मेरे जिले के स्थानीय अस्पताल में उस बीमारी का इलाज संभव ना होने के कारण चिकित्सक लोगों के द्वारा हमें पी जी आई चंडीगढ़ रेफर किया गया। रास्ते में जब हम एंबुलेंस में आ रहे थे तो सांसे गले में आकर अटकती जा रही थी कि न जाने कब और क्या घटना घट जाए ? शायद मैं अपने बेटे को खो न बैठूं। बाप जो हूं, ऐसे उल जलूल ख्यालात आना कोई नई बात नहीं थी। भगवान का शुक्र है कि हम सही सलामत पी जी आई पहुंच गए। उस भीड़ भड़ाके के बीच में रात 2:00 बजे बेटे की हालत को देखकर आपातकालीन विभाग ने दाखिला दे दिया था और सुबह 6:00 बजे तक सभी प्रकार की जांचें द्रुत गति से आपातकालीन विभाग के चिकित्सकों ने करवा ली थी।
बेटे को दर्द बहुत था। सर फटा जा रहा था। क्योंकि सर में दिमागी इंफेक्शन हो गया था। इस भीड़ को देखकर जो मेरे भीतर बेटे की उस पीड़ा को लेकर के एक अजीबोगरीब पीड़ा थी वह सहसा शान्त होती जा रही थी। चारों तरफ स्ट्रेचर पर ट्रॉलियों के ऊपर हर उम्र के छोटे – बड़े और हर प्रकार के मरीज चीख – चिल्ला रहे थे। अब मुझे औरों का दुख घना और अपना हल्का लग रहा था। यह बात जरूर है कि मेरा बेटा दिमागी रूप से बहुत परेशान था। उससे कोई बात नहीं हो पा रही थी और वह अपना दिमागी संतुलन पूर्ण रूप से खो चुका था। पर फिर भी उस चीर-फाड़ भरे मंजर को देखकर, छोटे – बड़े हर रोगियों की चीख-पुकार को सुनकर तथा प्राणों के संघर्ष को हारते हुए अपनी जीवन यात्रा का सफर इस दुनिया से उस दुनिया की ओर करते हुए लोगों को देखकर मेरी आंखें नम हुए जा रही थी।
ऐसा नहीं है कि मैं पहले अस्पताल में कभी नहीं आया था। मैंने दादी मां, छोटे ताया श्री, मंझले भैया तथा दोनों चाचाओं, बड़े तय – ताई के साथ-साथ अपनी सगी बहन को अपनी आंखों के सामने संसार छोड़ते देखा था। कई बार अस्पताल आ चुका था। भीड़ भी कई बार देख चुका हूं। पर जिस तरह की भीड़ और चीख-पुकार मैंने इस बार पी जी आई की आपातकालीन सेवा में देखी थी, वह अति भयानक परिदृश्य था।
आम अस्पतालों में चिकित्सकों को बार-बार हिदायत देते हुए सुना है कि ऐसे खुले वातावरण में ऑपरेशन किए हुए रोगी को या गंभीर हालत के रोगी को कभी नहीं रखना चाहिए। इंफेक्शन का डर रहता है। पर यह क्या? यहां तो हर कोई मरीज बिना बेड के बाहर स्ट्रेचर पर ही लेटे – लेटे अपना पूरा इलाज कर लेता है और यहीं से घर चला जाता है। जिन्हे जीना हो, वे तो जी जाते हैं पर जिन्हें संसार छोड़ना है वे भी यहीं पर अपने प्राण त्याग देते हैं।
हस्पताल की आलीशान पथरीली दीवारों से अपना हाड – मांस का माथा बार – बार टकराता हूं और भगवान से प्रार्थना करता हूं कि हे प्रभु! सबका भला करना। सबका पहले और मेरा पीछे। दिल की पीड़ा जितनी अपने बेटे के लिए सता रही थी, उससे कहीं ज्यादा आस – पास शल्य चिकित्सा से चीर – फाड किए हुए सरों वाले छोटे छोटे बच्चों को देखकर हो रही थी। सोचता हूं कि इन बच्चों ने इस छोटी सी उम्र में ऐसा क्या कर लिया कि ये इतनी गम्भीर दिमागी बीमारी के मरीज हो गए। खैर यह दुनियां है।फिर हस्पताल की दुनियां। जहां एक ओर बच्चों को जनने वालों की खुशी झलकती है तो दूसरी ओर से देह त्यागने वालों के परिजनों की पीड़ा दिखती है। सचमुच किसी ने ठीक ही कहा है कि यह संसार बड़ा रंगीन है।
फिर भीतर ही भीतर व्यवस्था और सत्ता के प्रति गहरी रोष उमड़ती है कि आजादी के 75 साल बीत गए पर हमारे हुक्मरान और अफसरान अभी तक आम और सर्वहारा वर्ग को स्वास्थ्य, शिक्षा और न्याय जैसी मूलभूत सुविधाओं को निशुल्क और अच्छी व्यवस्था के साथ क्यों नहीं मुहैया करवा पाए? देश के पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई जी की उस बात का ख्याल मस्तिष्क में पुनः गूंजता है “देश की जनता को कुछ भी मुफ़्त नहीं देना चाहिए। इससे जनता की आदत बिगड़ती है और देश कभी प्रगति नहीं करता। मुफ़्त यदि कुछ मिलना चाहिए तो वह है, स्वास्थ्य व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था और न्याय व्यवस्था।” कोई कुछ भी कहे बात सोलह आने सही है। आज के दौर में यदि जेब में पैसा न हो तो उपरोक्त तीनों मूलभूत सुविधाओं से आदमी को हाथ धोने पढ़ सकते हैं।
यूं तो कहते हैं कि आदमी के आगे पैसा कुछ भी नहीं है। कुछ हद तक यह सत्य भी है। आदमी ही जिंदा नहीं रहेगा तो पैसों का क्या अचार डालोगे? पर जब इस तरह की गंभीर बीमारी के चक्कर में निम्न मध्य वर्ग और उच्च मध्यवर्ग के साथ-साथ गरीब व्यक्ति फंसता है तो यही पैसे बहुत काम आते हैं। खैर जैसे ही मेरे बेटे की बीमारी की खबर मेरे इष्ट मित्रों और रिश्तेदारों में पहुंची। वैसे ही सभी ने उनके लिए ईश्वर से दुआ की। कहते हैं दवा से बड़ी दुआ होती है। शायद यह असर उन सबकी दुआओं का ही था कि आज मेरा बेटा उस भयानक बीमारी के जीवन नाशक खतरे से लगभग बाहर है। सबकी दुआ में असर होता है और भगवान उस सामूहिक पुकार को सुनता है।शायद परमात्मा ने सबकी सुनी और मानी।
हैरत इस बात की है कि देश को सबसे अधिक कर देने वाली और सबसे अधिक परिश्रम देकर उन्नत करने वाली इतनी बड़ी जमात को सरकार इस तरह से गैलरियों और बरामदों में जीने – मरने के लिए क्यों छोड़ देती है? पी जी आई की आपातकालीन सेवाओं की हर वार्ड में भीड़ इतनी है कि वार्डों में तो जगह ही नहीं होती पर गैलरियों में भी भीड़ इस तरह से लबालब भरी मिलती है मानो कोलकाता का मछली बाजार लग गया हो। बेड के नाम पर नाममात्र की सुविधा। अधिकतर रोगियों को ट्रालियों पर ही लेटे-लेटे अपना इलाज संपन्न करना पड़ता है। बेड तो बहुत ही मुश्किल से किसी भाग्यवान के हिस्से आता है। वह भाग्यवान भी वही व्यक्ति होता है जो जिंदगी और मौत की जंग से बिल्कुल समीप से लड़ रहा होता है। बाकी सब ट्रालियों पर ही होता है। ये ट्रालिया भी अलग-अलग धार्मिक संगठनों और सामाजिक संगठनों की भेंट की हुई है शायद।
सोचता हूं क्या मेरे देश की सरकार इतनी गरीब है कि चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू – कश्मीर तथा आंशिक रूप से राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे बड़े भू भाग के गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों का इलाज करने वाले इस हस्पताल की आपातकालीन सेवा को अभी तक वह उन्नत ही नहीं कर पाई। माना कि देश की जनसंख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। पर इसका मतलब यह तो नहीं है कि जो ढांचा आज से वर्षों पहले खड़ा कर दिया गया था, बस उसी को ही बनाए रखें।
क्या सरकारें सिर्फ एक दूसरे पर इल्जाम ही लगाती रहेगी? आजादी के बाद आज तक सभी दलों ने केंद्र में राज किया है। क्या यह सभी दलों की सामूहिक जिम्मेवारी नहीं बनती है कि पी जी आई चंडीगढ़ के ट्रामा सेंटर और आपातकालीन सेवा के भवन को और उन्नत और विकसित किया जाए। वहां हर इमरजेंसी वार्ड में कम से कम 3 से 4 सौ बिस्तरों का आधुनिक तकनीकी सुविधाओं के साथ प्रबंध वर्तमान में सरकार को नहीं करना चाहिए ? क्या बड़े – बड़े लोग फोर्टिस और अपोलो जैसे हॉस्पिटल में अपना इलाज करते हैं, इसलिए इस गरीब और सर्वहारा तथा निम्न मध्य वर्ग के आश्रय स्थल की ओर कोई ध्यान नहीं देता?
इतना ही नहीं, गंभीर समस्याओं से जूझ रहे रोगियों के साथ इनकी देखभाल करने के लिए आए हुए तीमारदारों को भी रात में बाहर खुले में सड़क किनारे सोना पड़ता है। क्या आजादी के 75 साल बाद आजाद हिंदुस्तान में यह बात शोभा देती है? आखिर क्यों नहीं सोचती है सरकार इस दिशा में? कौन करेगा इन गरीबों की और आम जनमानस के हितों की बात? क्या इन सभी लोगों को सुविधा नहीं मिलनी चाहिए? सवाल अनगिनत है और जवाब अपेक्षित।
मैं चाहता हूं यह बात देश की संसद तक पहुंचे ताकि देश की आम जनता को न्याय मिल सके और सुविधा मिल सके। देश में कोई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा नहीं बनेगा तो शायद इतनी ज्यादा क्षति नहीं होगी जितनी ज्यादा क्षति इन गरीब एवं आम जनमानस के पीड़ित होने से देश को होगी। देश का मेहनतकश किसान, मजदूर सर्वहारा वर्ग जब जिंदगी और मौत की जंग से इसी प्रकार से खुले में अपने कठिन समय में लड़ता रहेगा तो वह देश की समस्याओं के साथ शायद उस ताकत से नहीं लड़ पाएगा जिससे उसे लड़ना चाहिए।
पर फिर भी देश की उन्नति और समृद्धि के लिए इस गरीब मजदूर और किसान वर्ग ने तथा निम्न मध्य वर्ग के कर्मचारी वर्ग ने अपनी एड़ी – चोटी का जोर लगा कर के भारत का नाम विश्व में रौशन किया है। इसलिए कुछ तो दायित्व देश को चलाने वाली सरकारों का भी बनता है कि और न सही तो मानवीय पहलुओं से सही, इस दृष्टि से जरूर विचार करें। सड़क नहीं बनेगी कोई बात नहीं, रेलमार्ग नहीं बनेगा तो भी चलेगा। किसी को सब्सिडी नहीं मिलेगी तो वह भी जी जाएगा। परन्तु सुविधा के अभाव में हस्पताल में किसी की जान चली जाए, यह तो बिल्कुल नहीं चलेगा।
यह हालत किसी एक हस्पताल की नहीं है। खबरों में ऐसे कई खुलासे हर राज्य से होते रहते हैं, जहां कहीं व्यवस्था के नाम पर तो कहीं प्रबंधन और प्रशासन के नाम पर बट्टा लगता रहता है। पर पी जी आई चंडीगढ़ का स्टॉफ पूरी मुस्तैदी के साथ सीमित सुविधाओं में भी लोगों को उचित सेवाएं देता है। कमी है तो वह है आपातकालीन विभाग में बिस्तर तथा भवन संबधी प्रबंधनों की। इस प्रकार की खामियां सरकारी स्कूलों और न्याय व्यवस्था में भी मौजूद है, जो आजाद देश की आजाद जनता के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ है। फिर से मन में सवाल उठता है कि आखिर देश की आम जनता को उसके हिस्से का हक कब और कैसे मिलेगा?
♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦
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- “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — पुरे देश में बड़े सरकारी पी जी आई हस्पताल में सीमित सुविधाओं में लोगों का समय से उचित इलाज का ना होना। आपातकालीन विभाग में बिस्तर तथा भवन संबधी प्रबंधनों की कमी। इस प्रकार की खामियां सरकारी स्कूलों और न्याय व्यवस्था में भी मौजूद है, जो आजाद देश की आजाद जनता के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ है। फिर से मन में सवाल उठता है कि आखिर देश की आम जनता को उसके हिस्से का हक कब और कैसे मिलेगा? जय हिन्द – जय भारत।
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यह लेख (आम जनता को कब मिलेगा उसका हक।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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