Kmsraj51 की कलम से…..
♦ अब सोने दो। ♦
केशों में निशा की सवारी है अभी,
पिधान में तेज धारी है अभी।
सुरमयी रंग पे न गया कोई निखार,
विभावरी तो मधु – कुँवारी है अभी।
कौमूदी के पथ पर साथ तुम हो ना,
प्रीति हमारी युगों तक अमर होगी ना।
चाहे विष पिला देना तुम कल मुझको,
पर अमृततरंगिणी में प्रेम की बात होगी ना।
क्या सारंगों के इशारे हैं उस पर गौर करो,
कह रही बसंत बयार क्या जरा ध्यान दो।
जीवन तृषित खड़ी है चौखट पर तुम्हारे,
आज मिलन का पर्व प्रीति का दान दो।
कोमल केश लहरायें मचल-मचल कर,
गहन पलक लजा कर तनिक उठ गई।
जैसे किसी कामिनी कुँज की अब्धि पैठ पर,
घटायें झुक-झुक गई झूम कर छा गई।
झूम लिया सुप्तविग्रही श्वांसों को स्थिर करने दो,
अब तक गुमनाम था थोड़ा गुमराह होने दो।
आज छाई आँखों की पलकों पर छाँह छबीली,
चिर-निद्रित इन अँखियों को अब सोने दो।
♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦
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यह कविता (अब सोने दो।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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