Kmsraj51 की कलम से…..
♦ अहंकार विनाश की जननी। ♦
पद, प्रतिष्ठा, दौलत, शक्ति, अहंकार की जननी है। अहंकार विनाश की पहली सीढ़ी है। रावण बहुत ज्ञानी था, अगर वास्तव में ज्ञानी होता तो आज पूज्य होता। ज्ञानी का अहंकारी होना, दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं अपितु, उसे विनाशकारी बना देता है। इतिहास गवाह है- सुन्दर स्त्री बाद में शूर्पनखा निकली, सोने का हिरण बाद में मारीच निकला और भिक्षा मांगने वाला साधु रावण निकला, सभी रुप बदलने की कला में निपुण थे। कला-ज्ञान का गलत उद्देश्य एंव उपयोग करने के कारण समाज में नफरत की दृष्टि से देखे जाते हैं- हर जगह भ्रम, शंका और अविश्वास पैदा करने वाले कभी सम्मान नहीं पा सकते।
⇒ प्रेम और सम्मान का आधार विश्वास है।
प्रेम और सम्मान का आधार विश्वास है, अशोक वाटिका में सीता मां राम नाम की मुद्रिका मिलने पर विश्वास कर लेती है। उन्हें प्रभु राम पर इतना विश्वास है। रामायण विश्वास करना ही तो सिखाती है। माँ कठोर हुई लेकिन विश्वास नहीं छूटा, परिस्थितियाँ विषम हुई लेकिन विश्वास बना रहा, लक्ष्मण को मरणासन्न देखा लेकिन धैर्य और विश्वास बना रहा, वानर और रीछ की सेना थी लेकिन विजय अवश्य मिलेगी, ये विश्वास बना रहा, प्रेम की परीक्षा हुई लेकिन विश्वास नहीं टूटा चाहे भरत का विश्वास हो, शबरी का हो, विभीषण का हो, जामवंत का हो, या किसी भी सहयोगी का हो-विश्वास ही नहीं, अगाध विश्वास था। हर इंसान का जीवन शंका भ्रम, निराशा असफलता, दुःख और रावण जैसे पापियों से भरा है, केवल विश्वास की नौका ही इस भवसागर से पार कर सकती है।
⇒ ज्ञान और ज्ञानी के कारण ही मानव सर्वश्रेष्ठ प्राणी।
आज ज्ञान और ज्ञानी के कारण ही मानव सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना जाता है। महर्षि वाल्मिकी, महर्षि वेद व्यास, महर्षि दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द, गुरु नानक जी, गौतम बुद्ध, महर्षि महेश योगी, महर्षि योगानन्द अपने ज्ञान एंव अनुभव से प्रभु से निकटता का मार्ग बताकर मानव समाज को सुखशांति से जीने का रास्ता दिखाया। अंधविश्वास के पर्द को हटाया। किसी गुरु ने स्वंय की पूजा करने की वकालत नहीं की। श्रद्धा और प्रेम से उनके बताए मार्ग पर चलना ही उनकी भक्ति एंव उनके प्रति सम्मान है।
⇒ हर मुसीबत में अन्तरात्मा की आवाज सुनने वाले।
जब उल्टी दृष्टि से कोई दुनिया को देखेगा तो हर वस्तु उल्टी दिखाई देगी। यदि अंधेरे कमरे में अपने को बन्द कर लें तो समस्त ब्रह्माण्ड अंन्धकार से भरा दिखाई देगा और प्रकाश में हर चीज स्पष्ट एंव चमकती हुई दिखाई देगी, हर इन्सान ईश्वर के हाथ का खिलौना है जो खुद ईश्वर बन बैठेगा उसकी हालत रावण और कंश जैसी होगी, संसार के सभी जीव जन्तुओं को परमात्मा भाव से देखो, अपने को सेवक समझ कर, स्वामी बनकर नहीं। हर मुसीबत में अन्तरात्मा की आवाज सुनने वाले, परमात्मा के करीब होने का अनुभव करते हैं, पूर्ण शांति उनके कदमों को चूमती है।
⇒ ईर्ष्या का भूत।
ईर्ष्या का भूत मानसिक तनाव उत्पन्न करने में मुख्यरुप से अपनी भूमिका अदा करता है। पराई उन्नति देखकर जलना ज्ञानी का नहीं, अज्ञानी का स्वभाव है। सीख ग्रहण करना ज्ञानी को महाज्ञानी बना देता है। शिष्ट, सहृदय, निष्कपट और मित्रता पूर्ण व्यवहार ही प्रसन्न बने रहने, तनाव मुक्त होने के लिए पर्याप्त है। महाज्ञानी वैज्ञानिक, चिकित्सक, इंजिनियर, शिक्षक संयमित रहते हुए मानव समाज के कल्याण के लिए सदा तत्पर रहते है। क्रोध और अभिमान से कोसों दूर, मानसिक शक्ति की कमी हो जाने पर क्रोध का वेग विवेक से नहीं रुकता। क्रोध आने पर विवेक दूर भाग जाता है।
⇒ क्रोध का लक्ष्य हानी करना होता है।
जब उन्मत्त हाथी जंजीर तोड़ लेता है तो महावत दूर भाग जाता है। क्रोध का लक्ष्य हानी करना होता है। हानी होने के बाद मनुष्य अपने को कोसने लगता है, निराशावादी बन जाता है। चतुराई स्वंय खत्म हो जाती है। क्रोध का निराकरण विरक्ति और प्रेम से होता है। संसार के प्रति अमोह का व्यवहार तथा सभी प्राणियों के प्रति मैत्री भावना रखने पर, क्रोध की स्थिति में अविवेक युक्त काम करने से रोक देता है।
अगर दुर्योधन मैत्री भाव रखता तो “महाभारत” नहीं होता, युद्ध से केवल विनाश होता है। प्रेम से निर्माण होता है। स्वार्थ और सर्वोच्च होने का अभिमान मानव समाज को खोखला कर देता है। सेवाभाव, “वसुधैव कुटुम्बकम” का भाव ही मानव समाज की रक्षा कर सकता है। अगर प्राचीन काल में सभी विद्यायों को गुप्त न रखकर सार्वनिक किया जाता तो, प्राचीन भारत का ज्ञान जो अद्धितीय था, वह आज भी होता, गुप्त रखने के कारण आज लुप्त हो गया।
“कद्रदानों के लिए कद्रदान हूँ मैं,
बेरहम नहीं, मेहरबान हूँ मैं।
भरोसा है जिहें मुझ पर
उनके के लिए कभी दोस्त, कभी इन्सान हूँ मैं॥”
♦ भोला शरण प्रसाद जी – सेक्टर – 150/नोएडा – उत्तर प्रदेश ♦
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- “भोला शरण प्रसाद जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — अहंकार विनाश की पहली सीढ़ी है। ज्ञानी का अहंकारी होना, दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं अपितु, उसे विनाशकारी बना देता है। कला-ज्ञान का गलत उद्देश्य एंव उपयोग करने के कारण समाज में नफरत की दृष्टि से देखे जाते हैं- हर जगह भ्रम, शंका और अविश्वास पैदा करने वाले कभी सम्मान नहीं पा सकते। हर इंसान का जीवन शंका भ्रम, निराशा असफलता, दुःख और रावण जैसे पापियों से भरा है, केवल विश्वास की नौका ही इस भवसागर से पार कर सकती है। किसी गुरु ने स्वंय की पूजा करने की वकालत नहीं की। श्रद्धा और प्रेम से उनके बताए मार्ग पर चलना ही उनकी भक्ति एंव उनके प्रति सम्मान है। हर मुसीबत में अन्तरात्मा की आवाज सुनने वाले, परमात्मा के करीब होने का अनुभव करते हैं, पूर्ण शांति उनके कदमों को चूमती है। क्रोध का लक्ष्य हानी करना होता है। हानी होने के बाद मनुष्य अपने को कोसने लगता है, निराशावादी बन जाता है। चतुराई स्वंय खत्म हो जाती है। क्रोध का निराकरण विरक्ति और प्रेम से होता है। अगर प्राचीन काल में सभी विद्यायों को गुप्त न रखकर सार्वनिक किया जाता तो, प्राचीन भारत का ज्ञान जो अद्धितीय था, वह आज भी होता, गुप्त रखने के कारण आज लुप्त हो गया।
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यह लेख (अहंकार विनाश की जननी।) “भोला शरण प्रसाद जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
मैं भोला शरण प्रसाद बी. एस. सी. (बायो), एम. ए. अंग्रेजी, एम. एड. हूं। पहले केन्द्रीय विघालय में कार्यरत था। मेरी कई रचनाऍं विघालय पत्रिका एंव बाहर की भी पत्रिका में छप चूकी है। मैं अंग्रेजी एंव हिन्दी दोनों में अपनी रचनाऍं एंव कविताऍं लिखना पसन्द करता हूं। देश भक्ति की कविताऍं अधिक लिखता हूं। मैं कोलकाता संतजेवियर कालेज से बी. एड. किया एंव महर्षि दयानन्द विश्वविघालय रोहतक से एम. एड. किया। मैं उर्दू भी जानता हूं। मैं मैट्रीकुलेशन मुजफ्फरपुर से, आई. एस. सी. एंव बी. एस. सी. हाजीपुर (बिहार विश्वविघालय) बी. ए. (अंग्रेजी), एम. ए. (अंग्रेजी) बिहार विश्वविघालय मुजफ्फरपुर से किया। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।
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