Kmsraj51 की कलम से…..
♦ भारतीय शिक्षा का प्राचीन स्वरूप : एक विवेचन। ♦
भारतीय शिक्षा पद्धति, भारतीय ज्ञान-विज्ञान, भारतीय भाषाएं सदैव विश्व को ज्ञान देती आई है एवं हर दृष्टि से अग्रणी रही है। इसका प्रमाण हमें कई जगह पर दिखाई देता है। परंतु हमारी शिक्षा पद्धति लॉर्ड मैकाले की नीतियों पर ही आधारित है। आजादी के इतने वर्षों बाद भी हम अपने ज्ञान को अपनी भाषा में स्थापित नहीं कर पाए हैं। परंतु यह सत्य है कि जितना ज्ञान, जितनी तकनीकी हमारे ग्रंथों में, हमारे उपनिषदों में है उतना किसी भी विदेशी भाषाओं में हो ही नहीं सकता।
हमारे चारों वेदों में दुनिया का ऐसा कोई विषय नहीं है जिसके बारे में इन में वर्णन ना मिलता हो। परंतु हम इस सत्य को स्वीकार नहीं करते हैं और यह ज्ञान सार्वजनिक ना होने के कारण हमारी युवा पीढ़ी यह समझती है कि विज्ञान और तकनीकी में विदेशी हमसे आगे हैं जबकि सत्य कुछ और है।
इसी का यह प्रमाण मैं साझा करना चाह रही हूं कि मैकाले के भारत आगमन के पूर्व अपने देश में विश्वविद्यालय और गुरुकुलों की व्यवस्था इतनी थी कि प्रत्येक जनपद में कम से कम एक गुरुकुल था। लगभग साढे सात लाख गुरुकुल देश में थे। मॉनिटोरियल सिस्टम से अध्यापन होता था और विदेशों से भी लोग पढ़ने के लिए भारत आते थे।
उस समय में भारत में लगभग 13 विश्वविद्यालय थे जिन की जानकारी इतिहास में उपलब्ध होती है यह 13 ज्ञात विश्वविद्यालय हैं…
प्राचीन भारत के 13 विश्वविद्यालय, जहां पढ़ने आते थे दुनियाभर के छात्र। तुर्की मुगल आक्रमण ने सब जला दिया। बहुत हिन्दू मंदिर लुटे गये। नहीं तो मेगस्थनीज अलविरुनी इउ एन सांग के ग्रंथों में अति समृद्ध भारत के वर्णन है।
वैदिक काल से ही भारत में शिक्षा को बहुत महत्व दिया गया है। इसलिए उस काल से ही गुरुकुल और आश्रमों के रूप में शिक्षा केंद्र खोले जाने लगे थे। वैदिक काल के बाद जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता गया। भारत की शिक्षा पद्धति भी और ज्यादा पल्लवित होती गई। गुरुकुल और आश्रमों से शुरू हुआ शिक्षा का सफर उन्नति करते हुए विश्वविद्यालयों में तब्दील होता गया। पूरे भारत में प्राचीन काल में 13 बड़े विश्वविद्यालयों या शिक्षण केंद्रों की स्थापना हुई।
भारत पूरे विश्व में शिक्षा का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध केंद्र था।
8 वी शताब्दी से 12 वी शताब्दी के बीच भारत पूरे विश्व में शिक्षा का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध केंद्र था। गणित, ज्योतिष, भूगोल, चिकित्सा विज्ञान के साथ ही अन्य विषयों की शिक्षा देने में भारतीय विश्वविद्यालयों का कोई सानी नहीं था।
हालांकि आजकल अधिकतर लोग सिर्फ दो ही प्राचीन विश्वविद्यालयों के बारे में जानते हैं पहला नालंदा और दूसरी तक्षशिला। ये दोनों ही विश्वविद्यालय बहुत प्रसिद्ध थे। इसलिए आज भी सामान्यत: लोग इन्हीं के बारे में जानते हैं, लेकिन इनके अलावा भी ग्यारह ऐसे विश्वविद्यालय थे जो उस समय शिक्षा के मंदिर थे। आइए आज जानते हैं प्राचीन विश्वविद्यालयों और उनसे जुड़ी कुछ खास बातों को…
1. नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University)
Nalanda University History in Hindi
यह प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था। यह विश्वविद्यालय वर्तमान बिहार के पटना शहर से 88.5 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व और राजगीर से 11.5 किलोमीटर में स्थित था। इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज करा देते हैं।
सातवीं शताब्दी में भारत भ्रमण के लिए आए चीनी यात्री ह्वेनसांग और इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में जानकारी मिलती है। यहां 10,000 छात्रों को पढ़ाने के लिए 2,000 शिक्षक थे। इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम 450-470 को प्राप्त है। गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा। इसे महान सम्राट हर्षवर्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी यहां शिक्षा ग्रहण करने आते थे।
अंतरर्राष्ट्रीय ख्याति
इस विश्वविद्यालय की नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक अंतरर्राष्ट्रीय ख्याति रही थी। सुनियोजित ढंग से और विस्तृत क्षेत्र में बना हुआ यह विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना था। इसका पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था। जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर थे। मंदिरों में बुद्ध भगवान की सुन्दर मूर्तियां स्थापित थीं। केन्द्रीय विद्यालय में सात बड़े कक्ष थे और इसके अलावा तीन सौ अन्य कमरे थे।
इनमें व्याख्यान हुआ करते थे। अभी तक खुदाई में तेरह मठ मिले हैं। वैसे इससे भी अधिक मठों के होने ही संभावना है। मठ एक से अधिक मंजिल के होते थे। कमरे में सोने के लिए पत्थर की चौकी होती थी। दीपक, पुस्तक आदि रखने के लिए खास जगह बनी हुई है। हर मठ के आंगन में एक कुआं बना था। आठ विशाल भवन, दस मंदिर, अनेक प्रार्थना कक्ष और अध्ययन कक्ष के अलावा इस परिसर में सुंदर बगीचे व झीलें भी थी। नालंदा में सैकड़ों विद्यार्थियों और आचार्यों के अध्ययन के लिए, नौ तल का एक विराट पुस्तकालय था। जिसमें लाखों पुस्तकें थी।
2. तक्षशिला विश्वविद्यालय (Takshashila University)
Takshashila University Story in Hindi
तक्षशिला विश्वविद्यालय की स्थापना लगभग 2700 साल पहले की गई थी। इस विश्विद्यालय में लगभग 10500 विद्यार्थी पढ़ाई करते थे। इनमें से कई विद्यार्थी अलग-अलग देशों से ताल्लुुक रखते थे। वहां का अनुशासन बहुत कठोर था। राजाओं के लड़के भी यदि कोई गलती करते तो पीटे जा सकते थे। तक्षशिला राजनीति और शस्त्रविद्या की शिक्षा का विश्वस्तरीय केंद्र थी। वहां के एक शस्त्रविद्यालय में विभिन्न राज्यों के 103 राजकुमार पढ़ते थे।
आयुर्वेद और विधिशास्त्र के इसमे विशेष विद्यालय थे। कोसलराज प्रसेनजित, मल्ल सरदार बंधुल, लिच्छवि महालि, शल्यक जीवक और लुटेरे अंगुलिमाल के अलावा चाणक्य और पाणिनि जैसे लोग इसी विश्वविद्यालय के विद्यार्थी थे। कुछ इतिहासकारों ने बताया है कि तक्षशिला विश्विद्यालय नालंदा विश्वविद्यालय की तरह भव्य नहीं था। इसमें अलग-अलग छोटे-छोटे गुरुकुल होते थे। इन गुरुकुलों में व्यक्तिगत रूप से विभिन्न विषयों के आचार्य विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करते थे।
3. विक्रमशिला विश्वविद्यालय (Vikramshila University)
Vikramshila University in Hindi
विक्रमशीला विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के राजा धर्म पाल ने की थी। 8 वी शताब्दी से 12 वी शताब्दी के अंंत तक यह विश्वविद्यालय भारत के प्रमुख शिक्षा केंद्रों में से एक था। भारत के वर्तमान नक्शे के अनुसार यह विश्वविद्यालय बिहार के भागलपुर शहर के आसपास रहा होगा।
कहा जाता है कि यह उस समय नालंदा विश्वविद्यालय का सबसे बड़ा प्रतिस्पर्धी था। यहां 1000 विद्यार्थीयों पर लगभग 100 शिक्षक थे। यह विश्वविद्यालय तंत्र शास्त्र की पढ़ाई के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता था। इस विषय का सबसे मशहूर विद्यार्थी अतीसा दीपनकरा था, जो की बाद में तिब्बत जाकर बौद्ध हो गया।
4. वल्लभी विश्वविद्यालय (Vallabhi University)
Vallabhi University History in Hindi
वल्लभी विश्वविद्यालय सौराष्ट्र (गुजरात) में स्थित था। छठी शताब्दी से लेकर 12 वी शताब्दी तक लगभग 600 साल इसकी प्रसिद्धि चरम पर थी। चायनीज यात्री ईत- सिंग ने लिखा है कि यह विश्वविद्यालय 7 वी शताब्दी में गुनामति और स्थिरमति नाम की विद्याओं का सबसे मुख्य केंद्र था। यह विश्वविद्यालय धर्म निरपेक्ष विषयों की शिक्षा के लिए भी जाना जाता था। यही कारण था कि इस शिक्षा केंद्र पर पढ़ने के लिए पूरी दुनिया से विद्यार्थी आते थे।
5. उदात्त पुरी विश्वविद्यालय (Odantapuri University)
Odantapuri University History in Hindi
उदात्तपुरी विश्वविद्यालय मगध यानी वर्तमान बिहार में स्थापित किया गया था। इसकी स्थापना पाल वंश के राजाओं ने की थी। आठवी शताब्दी के अंत से 12 वी शताब्दी तक लगभग 400 सालों तक इसका विकास चरम पर था। इस विश्वविद्यालय में लगभग 12000 विद्यार्थी थे।
6. सोमपुरा विश्वविद्यालय (Somapura Mahavihara)
Somapura Mahavihara History in Hindi
सोमपुरा विश्वविद्यालय की स्थापना भी पाल वंश के राजाओं ने की थी। इसे सोमपुरा महाविहार के नाम से पुकारा जाता था। आठवीं शताब्दी से 12 वी शताब्दी के बीच 400 साल तक यह विश्वविद्यालय बहुत प्रसिद्ध था। यह भव्य विश्वविद्यालय लगभग 27 एकड़ में फैला था। उस समय पूरे विश्व में बौद्ध धर्म की शिक्षा देने वाला सबसे अच्छा शिक्षा केंद्र था।
7. पुष्पगिरी विश्वविद्यालय (Pushpagiri University)
Pushpagiri University History in Hindi
पुष्पगिरी विश्वविद्यालय वर्तमान भारत के उड़ीसा में स्थित था। इसकी स्थापना तीसरी शताब्दी में कलिंग राजाओं ने की थी। अगले 800 साल तक यानी 11 वी शताब्दी तक इस विश्वविद्यालय का विकास अपने चरम पर था। इस विश्वविद्यालय का परिसर तीन पहाड़ों ललित गिरी, रत्न गिरी और उदयगिरी पर फैला हुआ था।
नालंदा, तशक्षिला और विक्रमशीला के बाद ये विश्वविद्यालय शिक्षा का सबसे प्रमुख केंद्र था। चायनीज यात्री एक्ज्युन जेंग ने इसे बौद्ध शिक्षा का सबसे प्राचीन केंद्र माना। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि इस विश्ववविद्यालय की स्थापना राजा अशोक ने करवाई थी।
अन्य विश्वविद्यालय (Other Universities)
प्राचीन भारत में इन विश्वविद्यालयों के अलावा जितने भी अन्य विश्वविद्यालय थे। उनकी शिक्षा प्रणाली भी इन्हीं विश्वविद्यालयों से प्रभावित थी। इतिहास में मिले वर्णन के अनुसार शिक्षा और शिक्षा केंद्रों की स्थापना को सबसे ज्यादा बढ़ावा पाल वंश के शासको ने दिया।
8. जगददला विश्वविद्यालय (Jagaddala University)
पश्चिम बंगाल में पाल राजाओं के समय से भारत में अरबों के आने तक।
9. नागार्जुनकोंडा विश्वविद्यालय (Nagarjunakonda University)
आंध्र प्रदेश में।
10. वाराणसी विश्वविद्यालय (Varanasi University)
उत्तर प्रदेश में आठवीं सदी से आधुनिक काल तक।
11. कांचीपुरम विश्वविद्यालय (Kancheepuram University)
तमिलनाडु में।
12. मणिखेत विश्वविद्यालय (Manikhet University)
कर्नाटक में।
13. शारदा पीठ (Sharda Peeth)
कश्मीर में।
महर्षि वैदिक सेवा संस्थानम्
गीता भवन मन्दिर, पुण्डरीक तीर्थ पुण्डरी।
यह केवल 13 ही विश्वविद्यालयों की जानकारी है। इसके अतिरिक्त हमारे देश में इतना कुछ है वह हम एक जीवन में भी नहीं समझ पाएंगे। हमारा ज्ञान, हमारी संपदा, हमारी भाषाएं, हमारी बोलियां, हमारी आंचलिक सभ्यता-संस्कृति, हमारे संस्कार, हमारे मूल्य, हमारी नैतिकता हमारी धरोहर हैं जो दुनिया की किसी भी देश में नहीं पाई जा सकती। इसीलिए भारत सदैव अग्रगण्य रहा है और भविष्य में भी अग्रगण्य रहेगा।
अब तो सभी को भविष्य सामने नजर आ ही रहा है कि पूरे विश्व के सामने जिस तरह सभ्यता, संस्कृति, हमारे धर्म का प्रचार हमारी सरकार द्वारा किया जा रहा है, वह सराहनीय है। अपने मूल्यों को, अपनी पहचान को हम दुनिया के सामने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ ला रहे हैं। यह हम सभी भारत वासियों के लिए गर्व की बात है। इसलिए हमें अपने भारतवासी होने पर गर्व होना चाहिए।
जयतु संस्कृतम्, जयतु भारतम्।
संकलन एवं विश्लेषण।
हर हर महादेव…….हर हर महादेव
इन्ही शुभकामनाओं के साथ — शुभमस्तु।
♦ डॉ विदुषी शर्मा जी – नई दिल्ली ♦
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- ” लेखिका डॉ विदुषी शर्मा जी“ ने अपने इस लेख से, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है — यह केवल 13 ही विश्वविद्यालयों की जानकारी है। इसके अतिरिक्त हमारे देश में इतना कुछ है वह हम एक जीवन में भी नहीं समझ पाएंगे। हमारा ज्ञान, हमारी संपदा, हमारी भाषाएं, हमारी बोलियां, हमारी आंचलिक सभ्यता-संस्कृति, हमारे संस्कार, हमारे मूल्य, हमारी नैतिकता हमारी धरोहर हैं जो दुनिया की किसी भी देश में नहीं पाई जा सकती। इसीलिए भारत सदैव अग्रगण्य रहा है और भविष्य में भी अग्रगण्य रहेगा।
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यह लेख (भारतीय शिक्षा का प्राचीन स्वरूप : एक विवेचन।) “डॉ विदुषी शर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख / कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
मेरा नाम डॉ विदुषी शर्मा, (डबल वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर) है। अकादमिक काउंसलर, IGNOU OSD (Officer on Special Duty), NIOS (National Institute of Open Schooling) विशेषज्ञ, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, उच्चतर शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।
ग्रंथानुक्रमणिका —
- डॉ राधेश्याम द्विवेदी — भारतीय संस्कृति।
- प्राचीन भारत की सभ्यता और संस्कृति — दामोदर धर्मानंद कोसांबी।
- आधुनिक भारत — सुमित सरकार।
- प्राचीन भारत — प्रशांत गौरव।
- प्राचीन भारत — राधा कुमुद मुखर्जी।
- सभ्यता, संस्कृति, विज्ञान और आध्यात्मिक प्रगति — श्री आनंदमूर्ति।
- भारतीय मूल्य एवं सभ्यता तथा संस्कृति — स्वामी अवधेशानंद गिरी (प्रवचन)।
- नवभारत टाइम्स — स्पीकिंग ट्री।
- इंटरनेट साइट्स।
ज़रूर पढ़ें — साहित्य समाज और संस्कृति।
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