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नारी : इच्छा शक्ति ज्ञान शक्ति कर्म शक्ति।

Kmsraj51 की कलम से…..

Table of Contents

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  • Kmsraj51 की कलम से…..
    • ♦ नारी : इच्छा शक्ति ज्ञान शक्ति कर्म शक्ति। ♦
      • सार —
      • परिचय —
      • इच्छाशक्ति — Willpower
      • ज्ञान शक्ति — Knowledge Power
      • कर्म शक्ति — Karmic Force / Work Power
      • सकारात्मक अभिप्रेरणा —
      • निष्कर्ष — Conclusion
      • आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
      • ग्रंथानुक्रमणिका —
    • Please share your comments.
    • आप सभी का प्रिय दोस्त
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♦ नारी : इच्छा शक्ति ज्ञान शक्ति कर्म शक्ति। ♦

सार —

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
या देवी सर्वभूतेषु सृष्टि-रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

नारी अपने आप में शक्ति है। वह चाहे किसी भी प्रकार की हो जैसे सृजन शक्ति, सहन शक्ति, इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति, वैराग्य शक्ति, श्रृंगार शक्ति, समर्पण शक्ति, श्रद्धा, भक्ति, त्याग शक्ति, आसक्ति, प्रेम, समर्पण और इन सब को यथार्थ रूप प्रदान करने के लिए सबसे बड़ी शक्ति, “कर्म शक्ति”।

शिव और शक्ति की कथा के बारे में कौन नहीं जानता? हमारे भारतवर्ष में “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवता” इस उक्ति का पालन अनादि काल से ही होता चला आ रहा है। नारी का एक माँ का रूप सबसे सुंदर, आकर्षक, प्रेममय और अनुकरणीय होता है। मेरा ऐसा मानना है कि नारी केवल एक माँ बनकर ही पूर्णता को प्राप्त कर लेती है।

नारी केवल मनुष्य रूप में ही पूजनीय नहीं है अपितु संपूर्ण नारी जाति चाहे वह धरती मां हो या किसी अन्य प्रजाति की भी, सदैव ही अग्रगण्य होती है क्योंकि वह जन्म और पालन पोषण में अपना सर्वस्व त्याग देती है। हमारा पूरा जीवन ही स्त्री जाति पर निर्भर करता है, एक माँ के विभिन्न स्वरूपों पर निर्भर करता है, यदि हम यह कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

हमारी सृष्टि का प्रारंभ शक्ति से होता है, हमारे अस्तित्व से यानी जन्म से होता है। जन्म एक माँ ही दे सकती है ( हालांकि बीज तत्व, पुरुषत्व की भूमिका को नकारा नही जा सकता ) उसके बाद भरण पोषण का कार्य धरती मां पर निर्भर करता है, अन्नपूर्णा द्वारा किया जाता है, विद्या की देवी और अन्य सभी कलाओं की देवी भी स्त्री जाति यानी सरस्वती मां है, और पूरा जीवन लक्ष्मी मां की कृपा से चलता है तथा मृत्यु के बाद मां गंगा या पुन: धरती मां की गोद में ही हम समा जाते हैं।

यानी
“जीवन से पहले, जीवनपर्यंत और जीवन उपरांत”

तीनों ही स्थितियों में मां की भूमिका, नारी जाति की भूमिका अग्रगण्य है, वंदनीय है, अनुकरणीय है, अभिनंदनीय है। परंतु यह भी सत्य है कि बिना पुरुष के हर नारी अधूरी है। उसे जीवन के हर मोड़ पर पुरुष की आवश्यकता है, उसके आलंबन की आवश्यकता है, इस शाश्वत सत्य को नकारा नहीं जा सकता।

परिचय —

नारी इस चराचर जगत की धुरी है या यूं कहा जाए कि यह जगत जिस पर आश्रित है वह आधार, वह आलंबन स्वयं धरती मां ही है जो नारी का ही एक स्वरूप है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

हमारा अस्तित्व, हमारे जन्म से आरंभ होता है। जीवन होगा तो सब बातें होंगी। यदि अस्तित्व और जीवन ही नहीं होगा तो कुछ भी संभव नहीं है। तो हम आरंभ से ही आरंभ करते हैं, यानी सृजन, निर्माण से यानि जन्म से। जन्म के लिए मां यानी नारी का होना अपरिहार्य है। जैसे कि पहले भी कहा जा चुका है कि नारी का पूर्ण रूप एक मां का होता है और जन्म प्रक्रिया में हम बीज तत्व यानि “पुरुषत्व” को नकार नहीं सकते। यहाँ मैं स्वरचित कविता की दो पंक्तियां कहना चाहूंगी —

“मां है तो कृष्ण है, राम है, बलराम भी है, क्योंकि मां के बिना असंभव, इंसान तो क्या भगवान भी है।”

इस पृथ्वी पर अवतरित होने के लिए स्वयं सृष्टि के रचयिता विष्णु भगवान को भी माँ के गर्भ की आवश्यकता हुई क्योंकि जन्म प्रक्रिया बिना माँ के असम्भव है। भगवान के बाद नारी वो शक्ति है जो —

“मौत की गोद में जाकर जिंदगी को जन्म देती है”।

आज नारी हर क्षेत्र में कामयाब है। पौराणिक काल से लेकर आज तक हमारे पास इतने जीवंत उदाहरण हैं कि हम इस सत्य को नकार नहीं सकते।

इच्छाशक्ति — Willpower

जब तक नारी अपने मन में किसी बात का संकल्प नहीं लेती तो – उसे कोई भी अपने स्वार्थ हेतु झुका सकता है। परंतु एक बार जब उसने अपनी इच्छा शक्ति को जागृत कर लिया और कोई काम करने की ठान ली, कोई संकल्प ले लिया तो संसार की कोई भी ताकत उसे अपने फैसले से हटा नहीं सकती।

इसी इच्छा शक्ति के बल पर सभी कार्यों की रूपरेखा तैयार की जाती है, जैसे कोई भी कार्य “मनसा, वाचा, कर्मणा” के आधार पर पूर्ण माना जाता है अर्थात किसी भी कार्य को करने के लिए पहले मन में विचार आता है, फिर उस कार्य को करने की ‘इच्छा शक्ति’ जागृत होती है। फिर वाणी से उसे संसार के सामने रखा जाता है और अंत में कार्यक्रम ‘कर्मशक्ति’ के द्वारा उसे यथार्थ का रूप प्रदान किया जाता है।

इच्छा हमारी शक्ति का केंद्र बिंदु है। इसी को आधार मानकर बछेंद्री पाल, अनीता कुंडू, संतोष यादव आदि ने एवरेस्ट की चोटी को भी झुका दिया। उन्होंने दुनिया को यह दिखा दिया कि यदि नारी चाहे तो उसके हौसले पर्वतों से भी बुलंद और तटस्थ होते हैं। इन्हीं बुलंद इरादों को लेकर ये विश्व में अपना नाम रोशन करती आ रही हैं।

ज्ञान शक्ति — Knowledge Power

ज्ञानशक्ति को इच्छा शक्ति का दूसरा पड़ाव माना जा सकता है क्योंकि जब तक कुछ सीखने की इच्छा मन में नहीं होगी तो किसी भी प्रकार का ज्ञान हासिल नही किया जा सकता।

साहित्य और कला के क्षेत्र में भारतीय नारी ने ज्ञान और कला की शक्ति को सजीव प्रमाण प्रदान किया है, जिनमें प्रमुख हैं – लता मंगेशकर,आशा भोंसले, मधुबाला, वैजन्ती माला, अरुंधति राय, सरोजिनी नायडू, महादेवी वर्मा, गिरिजा देवी, परवीन सुल्ताना, नालिनी कामलिनी, आदि ऐसी कितनी ही बड़ी हस्तियां हैं जिन्होंने साहित्य और कला के क्षेत्र में विश्व में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है।

कोई भी कला तो बिन नारी के पूर्ण हो ही नही सकती, यदि यूं कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि साहित्य में, कला में, चित्रों में, नृत्य में, गीत में, संगीत में, अभिनय में, भक्ति में, प्रेम में, त्याग में, समर्पण आदि, इन सब में यदि “नारी” को हटा दिया जाए तो हमारे पास कुछ भी नहीं बचेगा।

एक बार आप कल्पना करके देखें कि मीराबाई, अहिल्याबाई, राधा, देवकी मां, यशोदा मां, कौशल्या, सुमित्रा, केकई, सीता, उर्मिला इत्यादि इन नारी पात्रों को यदि अपने इतिहास से, अपने साहित्य से निकाल दिया जाए तो न हीं कृष्ण कथा का सौंदर्य बचेगा और ना ही राम काव्य का ही स्वरुप कायम रह पायेगा।

यानि जिस प्रकार एक घर, एक परिवार नारी के बिना पूर्ण नहीं हो सकता, एक मां के बिना पूर्ण नहीं हो सकता, क्योंकि नारी जब मां बनती है तभी वह पूर्ण होती है, तथा परिवार का निर्माण भी तभी होता है, जब घर में संतान का जन्म होता है। इस के संदर्भ में पुन: स्वरचित कविता की दो पंक्तियां कहना चाहूंगी कि —

“मां है तो परिवार है, संस्कार है, क्योंकि माँ में ही तो ममता है, प्यार है दुलार है।”

इच्छा शक्ति, प्राण शक्ति है। इसी इच्छा शक्ति को अपना आलंबन बनाकर सावित्री अपने सतीत्व के बल पर अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से भी वापस ले आई थी। एक नारी के धर्म में, उसकी निष्ठा में, उसके प्रेम में बहुत अधिक ताकत होती है। सती अनुसूया ने इसी बल को ढाल बनाकर सूर्य को भी उदय होने से रोक दिया था।

कर्म शक्ति — Karmic Force / Work Power

इच्छा शक्ति और ज्ञान शक्ति को जहां यथार्थ रूप प्राप्त होता है उसे कर्म शक्ति कहते हैं। इसी के आधार पर सभी कार्यों में सफलता प्राप्त की जा सकती है। कर्म शक्ति में तो नारी का कोई सानी ही नही है। वह अकेली ही माँ दुर्गा की भांति एक ही समय में दस काम कर सकती है।

नारी हर रूप में एक शक्ति है। वह पुरुष को जन्म देती है, उसका पालन करती है (एक मां के रूप में) आजीवन उसका साथ देती है (एक पत्नी के रुपमें) जिम्मेदार बनाती है, सोचने का नजरिया बदलती है, (एक बेटी के रूप में) और जीवन को आलंबन देती है (पुत्र वधू के रूप में)।

— यानी जीवन के हर पड़ाव में, हर रिश्ते में वह सशक्त है।

जब हम समाज निर्माण की बात कर रहे हैं, भारतवर्ष की बात कर रहे हैं, स्त्रियों के शौर्य की बात कर रहे हैं तो भारतीय इतिहास में स्वतंत्रता आंदोलन में नारियों की भूमिका की बात को कैसे छोड़ा जा सकता है। इस आंदोलन में रानी लक्ष्मीबाई, चेनम्मा, सावित्रीबाई फुले, अरुणा आसफ अली, दुर्गाबाई, सुचेता कृपलानी, विजयलक्ष्मी पंडित इन सबके नाम स्वर्ण अक्षरों से अंकित है। इन सब नारियों ने न केवल स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया अपितु समाज के उत्थान के लिए भी उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया।

समाज हम सब लोगों से ही मिलकर बना है, और जिसमें हमें ऐसे कार्य करने चाहिए कि अधिक से अधिक जन कल्याण हो सके, चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हो शिक्षा के, स्वास्थ्य के, खेलों के, सांस्कृतिक आदि।

यानी समाज को हर दृष्टि से सक्षम और सफल बनाना है तो उसमें उसके सभी क्षेत्रों में बराबर उन्नति करनी होगी। लोगों को आम जनता को ऊपर उठाने की बात करनी होगी। यदि हम लोगों में मानवीय गुणों, सांस्कृतिक चेतना मातृभूमि के प्रति प्रेम, समर्पण आदि के भाव जागृत कर पाते हैं तो यह एक उत्कृष्ट कृत्य बन जाता है क्योंकि एक व्यक्ति से ही समाज का निर्माण होता है।

सकारात्मक अभिप्रेरणा —

यदि प्रत्येक व्यक्ति और भावी पीढ़ी यदि सही सोच वाली है, अच्छे विचारों वाली है, सकारात्मक अभिप्रेरणा से प्रेरित है तो वह समाज प्रगति के पथ पर सदैव अग्रसर बना रहता है, और इन सब में एक नारी की भूमिका सर्वोपरि है क्योंकि एक परिवार को बनाने में नारी का स्थान सर्वोच्च है और परिवार समाज की प्राथमिक इकाई है।

जब इतने महान कार्य नारी द्वारा किए जा सकते हैं तो नारी उत्थान की संकल्पना अनिवार्य तत्व बन जाती है और वर्तमान परिदृश्य में इनका मूल्यांकन इन आधारों पर किया जा सकता है कि इतने महान कार्य करने वाली नारी राष्ट्र निर्माण का कार्य बखूबी कर सकती है एवं राष्ट्र निर्माण में सक्रिय सार्थक भूमिका अवश्यंभावी रूप से निभा सकती है और निभाती ही चली आ रही है।

यहां हम कमला नेहरु, श्रीमती इंदिरा गांधी, शीला दीक्षित, सुषमा स्वराज, स्मृति इरानी, मीरा कुमार, वसुंधरा राजे, सुमित्रा महाजन, निर्मला सीतारमण आदि इन सबका नाम ले सकते हैं। यहाँ हमने केवल भारतीय नारी की बात की है इसके अतिरिक्त पूरे विश्व में तो ऐसे अनगिनत उदाहरण मौजूद हैं। ये सब कर्म शक्ति का उदाहरण कहे जा सकते हैं।

निष्कर्ष — Conclusion

निष्कर्षत: यही कहा जा सकता है कि इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति, कर्म शक्ति के द्वारा समाज निर्माण में नारी की भूमिका सर्वोपरि है। वह निर्माण, पालन और मुक्ति तीनों की हेतु भूता सनातनी देवी के समान है।

एक तरह से वह ‘त्रिदेव’ यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का कार्य अकेले ही करती है क्योंकि जिस प्रकार ब्रह्माजी सृष्टि के ‘रचयिता’ माने गए हैं (नारी सृजनकर्ता है) विष्णु जी पालनहार (नारी और धरती माँ ही हम सबका भरण, पोषण करती है) और शिवजी विनाशक या संहारक। [(यहां हम विनाश के स्थान पर मुक्ति का प्रयोग कर रहे हैं माँ गंगा मुक्ती प्रदान करती है) क्योंकि मां कभी भी विनाशक नहीं हो सकती। एक पुत्र कुपुत्र हो सकता है परंतु एक माता कभी कुमाता नहीं हो सकती।]

“कुपुत्रो जायते क्वचिदपि कुमाता न भवति।”
— (श्री दुर्गा सप्तशती)

इस प्रकार जीवन का कोई भी क्षेत्र हो वहां नारी जाति ने अपना लोहा मनवाया ही है। वर्तमान युग में भी ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां स्त्रियों की सक्रिय, सार्थक भागीदारी ना हो और वह सफल ना हुई हो।

इतिहास में भी किसी भी क्षेत्र में नारी की सफलता पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता। और वास्तव में ही ‘नारी नारायणी’ है। उसका पूरा जीवन चुनौतियों से भरा होने के बावजूद वो तटस्थ खड़ी है एक और आने वाली चुनौती का सामना करने के लिए।

फिर भी मुस्कुरा कर अपना जीवन व्यतीत करती है तथा सबके लिए अपने अरमानों का हमेशा से ही बलिदान करती आयी है। इस पृथ्वी पर ऐसा कोई जीव नही जिसका संघर्ष जीवन से पहले यानि जन्म लेने से पहले ही आरंभ हो जाता हो या यूं कहें कि जन्म के लिए संघर्ष शुरू हो जाता हो एक माँ के लिए भी और एक बेटी के लिए भी ( दोनो ही नारी जाति )।

इससे अधिक और क्या कहना है कि सब जानते हुए भी नारी ने अपना वर्चस्व कायम रखा है तथा विश्व में तो क्या अंतरिक्ष में भी अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित कर इतिहास बनाया है।

और आगे भविष्य में भी ऐसी ही उम्मीद की जा सकती है क्योंकि —

” माना कि पुरुष बलशाली है, पर जीतती हमेशा नारी है,
सांवरिया के छप्पन भोग पर सिर्फ एक तुलसी भारी है”।

हमारा साहित्य समाज को न केवल ज्ञान, बोध और मूल्य प्रदान करता है अपितु एक चिंतन की दिशा भी प्रदान करता है ताकि हम सभी यथासंभव प्रयास कर सके जिससे कि भारतीय मूल्य, भारतीय सभ्यता एवम संस्कृति, भारतीय साहित्य का विश्व में सदैव उच्चस्थ स्थान बना रहे तथा भारत पुन: “जगदगुरु” (विश्वगुरु) की उपाधि ग्रहण करे वो भी अपने अक्षय साहित्य, विशुद्ध सभ्यता एवं अलौकिक संस्कृति के बल पर।

इन्ही शुभकामनाओं के साथ — शुभमस्तु।

ज़रूर पढ़ें — साहित्य समाज और संस्कृति।

♦ डॉ विदुषी शर्मा जी – नई दिल्ली ♦

—————

  • ” लेखिका डॉ विदुषी शर्मा जी“ ने अपने इस लेख से, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है — नारी अपने आप में शक्ति है। वह चाहे किसी भी प्रकार की हो जैसे सृजन शक्ति, सहन शक्ति, इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति, वैराग्य शक्ति, श्रृंगार शक्ति, समर्पण शक्ति, श्रद्धा, भक्ति, त्याग शक्ति, आसक्ति, प्रेम, समर्पण और इन सब को यथार्थ रूप प्रदान करने के लिए सबसे बड़ी शक्ति, “कर्म शक्ति”।

—————

यह लेख (नारी : इच्छा शक्ति ज्ञान शक्ति कर्म शक्ति।) “डॉ विदुषी शर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख / कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम डॉ विदुषी शर्मा, (वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर) है। अकादमिक काउंसलर, IGNOU OSD (Officer on Special Duty), NIOS (National Institute of Open Schooling) विशेषज्ञ, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, उच्चतर शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।

ग्रंथानुक्रमणिका —

  1. डॉ राधेश्याम द्विवेदी — भारतीय संस्कृति।
  2. प्राचीन भारत की सभ्यता और संस्कृति — दामोदर धर्मानंद कोसांबी।
  3. आधुनिक भारत — सुमित सरकार।
  4. प्राचीन भारत — प्रशांत गौरव।
  5. प्राचीन भारत — राधा कुमुद मुखर्जी।
  6. सभ्यता, संस्कृति, विज्ञान और आध्यात्मिक प्रगति — श्री आनंदमूर्ति।
  7. भारतीय मूल्य एवं सभ्यता तथा संस्कृति — स्वामी अवधेशानंद गिरी (प्रवचन)।
  8. नवभारत टाइम्स — स्पीकिंग ट्री।
  9. इंटरनेट साइट्स।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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Reader Interactions

Comments

  1. सुख मंगल सिंह says

    August 31, 2021 at 9:21 pm

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति हार्दिक बधाई

    Reply
  2. सुख मंगल सिंह says

    August 31, 2021 at 9:21 pm

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति हार्दिक बधाई

    Reply
  3. Vijay laxmi says

    September 1, 2021 at 6:02 am

    बहुत सुंदर लेखनी से अति सुन्दर भाव प्रकट किए गए हैं।

    Reply
  4. वेदस्मृति कृती says

    September 1, 2021 at 7:25 pm

    बहुत सटीक उदाहरणों सहित नारी की सक्षमता एवं महत्ता पर प्रकाश डालता लेख।बधाई।

    Reply

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