Kmsraj51 की कलम से…..
♦ बाती सा जलता जीवन।♦
काव्य : तड़प।
हृदय में वेदना पसीजती है,
अँखियों में पुष्कर उफनती हैं।
बूँदें आसूँ की मन जैसी निर्मल है,
पर ये जीवन बाती-सा जलता है।
शापित हारे हुए प्राणों को,
हिमालय ने अटल विश्वास दिये।
घायल – व्याकुल अधरों को,
मंजुल मधुरता का ऋतुराज दिये।
मेरी जीवंतता ही गिरिराज-का बोध ले,
अंतस् जंगुल-ज्वाल पी-पीकर पिघलता है।
बोये मैंने संदल के बीज कानन,
कंटक बबूल कहाँ से उग आये।
रह-रहकर चुभते हैं पलकों पर,
सुगंधित सुख – सपनों के फूलों से।
बँधे हुए शिशिर के आँचल में जीवन,
पर मुझको हर ऋतुऐं क्यों छलती हैं।
पर संकल्प मेरे शिखर गगन छूने वाले,
गली-कूंचे-राहों में पंख-विहीन हो गये।
निश्चय-विश्वासों ने लिया काट हमें,
आसमानों के छोरों को अब कौन छुये।
चिर-आकुल आशायें वियोगिनी – सी,
पिपासा में पली – बढ़ी विकलता हैं।
पिये हँस – हँसकर हमने घूँट जहर के,
हो – हल्ला भरे निहंग वीरानों में।
ढूढोंगे तो तुम्हें भी मिल जायेगा विष,
मेरी नम – नम ठहाकों में।
अब तो हर जख़्म सुलगता है,
सोच-सोचकर नस-नस में लोहू उबलता हैं।
क्यों छलती है तू रे मुझको,
सुख – समृद्धि की दीवानी।
खाकों में पड़ी जिन्दगानी मेरी,
पल – पल आहों में मरती है।
मन नीर कणों सा निर्मल है,
फिर भी जीवन बाती-सा जलता हैं।
♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦
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यह कविता (बाती सा जलता जीवन।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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