Kmsraj51 की कलम से…..
♦ बहारों के दिन आ गये। ♦
देखो रे! बहारों के दिन आ गये,
कलिका बालाओं के रदों पर मधुकर गीत छाये।
अबोध वल्लरियों सार पनघट पर,
ले तरुणाई अंतर्घट हर्षित अंतर।
हँस रही अँखियों में अलसाई मधुल अनुराग भाये,
विपिन अमरी की रोमलताओं सी।
आनंदित हो उठी पर्ववल्ली दल इंदिरा श्री,
मीहिका कनों के धंधला कितने श्रम धूलिका लहराये।
कोरक कुंतल ने विभु लालसा से,
‘परिमल’ प्रसिद्ध प्रीति लज्जा से।
सौंदर्यांचल में मनोहर धुलि से मुक्तामणि बिखराये,
देखो रे! बहारों के दिन आ गये।
♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦
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- “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — प्रकृति की सुंदरता देखते ही बनती है हरी-भरी प्रकृति के कारण ही हमारा जीवन इतना अच्छा सरल सुन्दर है। सदैव रंग बदलती यह प्रकृति हर पल मन को भाए, नभ में कभी बादल तो कभी नीला आसमां हो जाए, जो मन को भाये, रूप तेरा (प्रकृति) देख कर हर किसी का मन मोहित हो जाए। प्रकृति हमें सब से प्रेम करना सिखाए। सुन्दर पक्षियों की मधुर आवाज मन को सदैव ही प्रफुल्लित कर जाये।
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यह कविता (बहारों के दिन आ गये।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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