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बहू या बेटी।

Kmsraj51 की कलम से…..

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    • ♦ बहू या बेटी। ♦
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♦ बहू या बेटी। ♦

बहू को बेटी समझा जाये,
तो क्या इसमें गलत है।
जब माँ पिता के घर से आई,
वह एक अंजान घर में।

आकर वों नये लोंगो के,
बीच आकर जीवन की,
नयी शुरुआत करती है।
सारे परिवार की पसंद,
नापसंद का ख्याल रखती है।

किसको कब किस चीज,
की जरूरत या तकलीफ है।
सबके लिए वो त्याग करती है,
फिर हम उसको बहू मानते है।

बहू को अगर बेटी मान ले,
तो उसको कभी अपने घर,
की कभी याद नहीं आएगी।
और उसका मान भी बढ़ेगा।

उसको भी अहसास होगा,
वो भी गर्व से कह सकती है,
मैं घर की बहू नहीं बेटी हूँ।
बहू को बेटी समझा जाये,
यह रीति भी नयी होंगी।

तुम पराये घर से आयीं हो,
क्या समझोगी हमारा दुख।
यह कहकर चुप कराया जाता है।
बहु को बेटी समझ कर देखो,
वो भी किसी की बेटी है।

हम उसको माँ सा प्रेम देगें,
वो भी आपको माँ मानेगी।
आपका कहना भी सुनेंगी,
बहु से बेटी बनने में देर न लगेगी।

आपके मान सम्मान को रखेगी,
बहु को भी बेटी सा प्रेम मिले।
फिर क्यो पीहर की याद करें,
जो भी परेशानी हो उसको,
सासू माँ को ही बताएगी।

♦ पूनम गुप्ता जी – भोपाल, मध्य प्रदेश ♦

—————

  • “पूनम गुप्ता जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — बहू को बेटी समझा जाये, तो क्या इसमें गलत है। विवाह के बाद जब माँ पिता के घर से आई, वह एक अंजान घर में। सभी नये लोंगो के बीच आकर जीवन की नयी शुरुआत करती है वह, परिवार के सभी सदस्यों के पसंद – नापसंद का सदैव ही ख्याल रखती है वह। सभी के सुख के लिए तकलीफ सहती त्याग करती वह। बहू को जब हम बेटी मान ले, तो उसको कभी भी अपने घर की याद नहीं आएगी, और उसका मन भी लगा रहेगा। उसको भी अच्छा लगेगा, वो भी गर्व से कह सकती है, मैं इस घर की बहू नहीं बेटी हूँ। जब हम उसको माँ सा प्रेम देगें, वो भी आपको माँ मानेगी। आपका कहना भी सुनेंगी, बहु से बेटी बनने में देर न लगेगी। सदैव ही आपके मान सम्मान का ख्याल रखेगी, बहु को भी बेटी सा प्रेम जब मिले, फिर क्यो पीहर की याद करें। जो भी परेशानी हो उसको, सासू माँ को ही बताएगी।

—————

यह कविता (बहू या बेटी।) “पूनम गुप्ता जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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