Kmsraj51 की कलम से…..
Barkha Bahar | बरखा बहार।
बीत रहे पलछिन के तौर तरीके,
आने वाले आज की पहली फुलबहारें।
घटा छटा घिर-घिर आ रही,
मन की चंचलता को प्रतिपल बढ़ा रही है।
पुरवा पवन की दुहाई है,
पछवा बयार की अब विदाई है।
अंब पावस का गली-गली डंका बज रहा,
शम्पाओं का शोर है सुदामन का जोर है।
पयोजन्मा की वाहिनी आगे-आगे है,
श्वेत – श्याम और काले-काले हैं।
रिझते हैं कहीं-कहीं और कहीं निराले हैं,
कहीं क्षत्रप की तरह छा जाते।
एक टुकड़ी आती गरज-बरस कर जाती,
दूसरी वाहिनी बना छावनी गोले अंब का बरसाती।
आते जाते फिर घूम कर चले आते,
सिंगार सजा चंचला दामिनी का।
निहार-निहार विहार कर देखते सूने आँगन का,
चलती जैसे पवन की परछाँईं।
अक्षित करते पुष्कर ताल तलैईया के,
मेघराज गरज – गरज कर धरणि का।
पल-पल अपने आभा का रूप दिखला कर
बदली में फिर कहीं छुप जाते।
हँसकर मुँह चिढ़ाते तपन की,
इठलाते हर्षाते दूर क्षितिज पर।
कभी कुम्हलाते कभी खिल-खिल जाते,
ये बरखा के बादल पल भर में,
उमस गर्मी को दूर भगाते।
नवयौवना से मचल कर चलते,
अँगड़ाई ले-लेकर मन की अगन बढ़ाते।
♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦
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यह कविता (बरखा बहार।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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