Kmsraj51 की कलम से…..
♦ बस लिखना है। ♦
मैं कवि हूं कविताएं लिखता हूं, सुनाता हूँ,
मेरी लेखनी बेबाक कुछ न कुछ कह जाएगी।
लोगों की सम्पत्ति संजोकर भी ढह जाएगी,
मेरी लेखनी की ज़ुबान थाती बन कर रह जाएगी।
लोग लगे हैं सब धन दौलत ही बटोरने,
मैं भाव, कल्पना और शब्द बटोरता हूं।
लोग लगे हैं औलादों को विरासत छोड़ने,
मैं सदियों दर सदियों भाव छोड़ता हूं।
बिकती है इस दुनियां में राख भी आज,
लकड़ियों के मुकम्मल जल जाने के बाद।
पर विडम्बना देखिए इस दुनियां में जनाब,
बिकती नहीं तो सिर्फ कवियों की किताब।
मैं निराश नहीं हूं खुद की बदहाली के ख्याल से,
मुझे समाज के भटक जाने का डर सता रहा है।
है नहीं मेरा कोई खून का रिश्ता इस दुनियां से,
फिर भी मुझे इसकी चिन्ता का घुन खा रहा है।
है नहीं याद यहां अपनी चौथी पीढ़ी के पुरखे किसी को,
फिर भी आदमी भगवान के होने पर सवाल उठा रहा है।
निकम्मी सोच की दात देनी होगी, है याद नहीं पुरखे ही,
तो क्या फिर तुम्हारा खानदान हवाओं से ही आ रहा है।
यकीन मानिए साहब भूल जाएगी बाप को भी दुनियां,
गर जीने का और आगे बढ़ने का यही… तरीका रहा।
मैं रहूं या न रहूं इस दुनियां में तब ए मेरे अजीज दोस्तो,
मेरी ओर से निशानी हर अल्फाज मेरा तुम्हें लिखा रहा।
सिर्फ बुद्धि – धन के बल पर ही इठलाना इतना,
ए जमाने! खुद ही बता कि जायज कितना है?
हवा में उड़ने वाले हर परिंदे को भी तो आखिर में,
थक हार कर किसी न किसी शाख पर टिकना है।
पड़ता नहीं है कोई फर्क मुझे किसी के सुनने,
या न सुनने से, मुझे कौन सा महान दिखना है?
कवि हूं मैं प्रत्यक्ष द्रष्टा समाज की हर घटना का,
इसी लिहाज से ही तो मुझे सच बस लिखना है।
♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦
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- “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — एक कवि व लेखक सदैव ही सत्य को लिखने की कोशिश करता है वह भी बिना किसी दबाव के। इस संसार के लोग तो धन संपत्ति को इकट्ठा करने में ही सारा जीवन बिता देते है और अंत समय में उनके साथ कुछ भी नहीं जाता है। माना की एक कवि व लेखक के पास धन संपत्ति कम होती है दुनिया की नज़र में, लेकिन एक कवि / लेखक की लेखनी (मेरी लेखनी की ज़ुबान थाती बन कर रह जाएगी।) सदैव के लिए उसे अमर कर जाएगी। विडम्बना तो देखिये की आजकल के लोग लगे हैं सब धन दौलत ही बटोरने में। मैं भाव, कल्पना और शब्द बटोरता हूं। लोग लगे हैं औलादों को विरासत छोड़ने में, आने वाली पीढ़ी के लिए, मैं सदियों दर सदियों भाव छोड़ता हूं। “आजकल की पीढ़ी को नहीं याद यहां अपनी चौथी पीढ़ी के पुरखे किसी को, फिर भी आदमी भगवान के होने पर सवाल उठा रहा है। निकम्मी सोच की दात देनी होगी, है याद नहीं पुरखे ही, तो क्या फिर तुम्हारा खानदान हवाओं से ही आ रहा है।” आजकल की पीढ़ी आधुनिकता के नाम पर भूलते जा रहे है अपनी ही प्राचीन संस्कृति, संस्कार व सभ्यता को। याद रखें- हवा में उड़ने वाले हर परिंदे को भी तो आखिर में, थक हार कर किसी न किसी शाख पर टिकना है।
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यह कविता (बस लिखना है।) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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