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♦ बसंत पंचमी। ♦
बसन्त पंचमी भारत का प्रमुख पर्व है हर साल माघ के महीने के पांचवें दिन (पंचमी) को हिन्दू कलेण्डर के अनुसार मानते है। हिंदी भाषा मे ” बसंत” बसन्त का अर्थ है बसंत और ” पंचमी” का अर्थ है, पांचवे दिन इस दिन माँ सरस्वती की पूजा की जाती है जो सबको कला बुद्धि और विद्या का आशीर्वाद देती है। इस दिन देवी सरस्वती का जन्म दिन भी होता है।
शीत ऋतु के बाद बसंत का आगमन होता है इस मौसम में प्रकृति खिल उठती है। खेतो में सरसों के पीले-पीले फूल खिल जाते है इसलिए देवी की पूजा में पीले वस्त्र पहनकर पूजा करने का विधान है, पीले फूल देवी पर अर्पित करते है। इस दिन सभी कलाकार किसी भी वर्ग के हो सब अपने उपकरण का पूजन करते है माँ से आशीर्वाद मांगते है। इसके साथ ही कुछ प्राचीन कहानी भी जुड़ी है।
ब्रह्मा जी के विनती पर देवी सरस्वती ने वीणा बजायी सारे संसार को वाणी की प्राप्ति हुई इसी कारण देवी सरस्वती को वीणा की देवी कहा, ये सब बसन्त पंचमी वाले दिन हुआ।
रावण के द्वारा सीताजी के हरण के बाद श्री राम जी दक्षिण की ओर बढे सीताजी की खोज में चलते चलते वो दण्डकारण्य स्थान पर पहुंचे। वही शबरी भीलनी भी रहती थी, वो श्रीराम की परम भक्त थी जब रामजी उनकी कुटिया में पधारे तो वह अपनी सुधि बुधि भूल गयी और चख चख कर श्रीरामजी की मीठे बेर खिलाने लगी।
दंडकारण्य स्थान गुजरात और मध्यप्रदेश में आता है गुजरात के डॉग जिले का वह स्थान है जहाँ शबरी माँ का आश्रम था बसन्त पंचमी वाले दिन श्रीराम जी उनके आश्रम में आये थे, वो शिला आज भी पूजी जाती है जहाँ श्री रामजी विराजे थे वहीं शबरी माँ का मंदिर भी है।
बसन्त का रंग पीला होता है जो सभी को बहुत लुभावना लगता है पीले रंग से प्रकृति अपना सिंगार करती है बसन्त सबके जीवन में उत्साह और प्रेम भरता है।
♦ पूनम गुप्ता जी – भोपाल, मध्य प्रदेश ♦
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- “पूनम गुप्ता जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — बसन्त पंचमी भारत का प्रमुख पर्व है। बसन्त पंचमी के महत्व, और बसन्त पंचमी के दिन क्या क्या हुआ था इस बारे में विस्तार से बताया है। ज्ञान और बुद्धि के बिना ये जीवन किसी काम का नहीं। ज्ञान, बुद्धि की देवी अपनी कृपा व करुणा का संचार कर हम पर, हे माँ तुम्हारी करुणा बड़ी अपरम्पार है। मां शारदे की महिमा से अछूता न कोई मनुष्य है, मां के रूपों में ही छुपा हुआ पूर्ण जग संसार है। उन्हीं के चरणों में ज्ञान का भंडार है, विद्यादायिनी मां से आज रज है हमारी। मां शारदे वर दे तू अपने ही रंग में रंग दे। जो नकारात्मक प्रवृतियों से सकारात्मकता का कराए सदैव भान, पुस्तक ही बस एक नाम। जो निरस जीवन में सरसता का, रंग भरती, वीणा ही वो सरगम। स्फटिक माला दर्शाती वैराग्य और ध्यान बिन, न मिलता संपूर्णता का है भाव। अपनाने के लिए तो बहुत है मगर, कल्याणकारी अपनाने की कला हंस है सिखलाता। कीचड़ में ही कमल है खिलता, अर्थात: सर्व विघ्न से न्यारे व पवित्र, कोमलता और सुंदरता का क्या अनुपम सार है। वीणापाणी मां के सर्वस्व संरचना में, सबक बहुत बेहिसाब है। आओ हम सब मिलकर सच्चे मन से माँ की वंदना करे।
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यह लेख (बसंत पंचमी।) “पूनम गुप्ता जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
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