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बीते काल की थकन।

Kmsraj51 की कलम से…..

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    • ♦ बीते काल की थकन। ♦
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♦ बीते काल की थकन। ♦

तू चल नये आगाज,
मिटा अपने तन-मन की थकन;
कर कथन अपने मन,
क्षुधा लिप्सा को कर अंतर्मन।
रे पंछी! न परवाज कर,
छोड़ अपने नीड़-चमन।

इस सृष्टि का कहीं न अन्त,
तू विश्राम कर आना – जाना।
पंखों को ले अपने समेट,
थकन तू अपनी ले मिटा।
रे तरंग! न सहला चल,
तू गुदगुदाते अपने पन्थ।

दिखे सब में प्रीति नेह विश्वास,
तटनी की भूल भुला दे।
वो कौन एक है जो,
छोड़े अपने शीलपन।
रे पवन! न हहर चल तू,
मौन हो संग-संग।

जग द्रोह से है भरा,
मोह तू छोड़ जरा।
ज्ञान-विज्ञान के लिये लड़ा,
क्यूँ जीवन – प्राण से भिड़ा।
प्रचंड प्रज्वलित रहा,
खुद में आनंद प्रसन्न रहा।
रे अंतस्! न विलासी तू,
तापस अंग को सुसुप्त कर।

जीवन का सकल आसय,
न ढो अब भ्रमित भाव से।
निष्कर्ष तू निकाल अभी,
मन को न तोल हार-जीत से।
अनगन न कर,
महा-वृन्त तू बन।
रे स्वरूप! न बिगाड़ तू,
संवार निरता का कर सृजन।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

—————

यह कविता (बीते काल की थकन।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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