Kmsraj51 की कलम से…..
♦ भूलने के लिए सौ जनम तो चाहिए। ♦
सुरमयी शाम कब की विदा हो गई,
न भूल पाये चंपई गंध को हम सारे।
भूलने के लिये सौ जनम तो चाहिए,
नैन संबंध जुड़े क्षण भर को हमारे।
प्रभात किरणों की गुलाबी-गुलाबी छुअन,
निद्रा के भ्रमरंगों को स्वप्न दे गई।
निशा को देकर शबनमी से रतजगे,
खिलखिला कर मोहित मन को कर गई।
याद करते रहे थरथराते अधर,
सौगंध हृदय की आरक्त हो गये हमारे।
उठती प्रभात से नीली साँझ तक,
तपिस सहते रहे प्राण सलिलज से।
बदन जलाती रही धूमिल बदलियाँ,
अंग-अंग सुलगते रहे उजयाली रैन से।
अनछुई चाहतों को न छोड़ पाए हम,
खंड-खंड कर गई आसक्त आबंध हमारे।
सरगम गाती मुस्कुराती हुई परी,
देखते – देखते अनजान हो गई।
मृदुल पलकों में जलते चराग सो गये,
झिलमिलाती हुई ज्योति खो गई।
लहरों सी चली अश्रुओं की मचलती तरंगिणी,
बड़े योग से बँधे मन के गुबार तोड़े तटबंध हमारे।
♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦
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यह कविता (भूलने के लिए सौ जनम तो चाहिए।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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