Kmsraj51 की कलम से…..
ϒ भेदभाव…। ϒ
⇒ Discrimination
🙂 भेदभाव …
जब जन्म दिया मुझको माँ ने,
लोगो की खुशी अवशान हुई।
पुत्री का जन्म हुआ घर में,
यह खुशी नही अपमान हुई॥
कुछ समय कटा तन्हाई में,
फिर पुत्र प्राप्ति संयोग बना।
लोगों की खुशी चरम पर थी,
जैसे ईश्वर का योग बना॥
फिर बड़ा हुए हम दोनो ही,
नित भेदभाव ही होता था।
भाई को मिलता था सबकुछ,
पुत्री के लिये जग सोता था॥
वह जिद करती गर लोगो से,
तो नित ही पीटी जाती थी।
पर पुत्र अगर जिद करता था,
वह चीज तुरत ही आती थी॥
जब और बड़े हो गये दोनों,
स्कूल मे नाम लिखाया था।
बच्ची का नाम सरकारी मे,
पर पुत्र को टॉप बनाया था॥
पुत्र को पुरा समय दिया,
पुत्री पर भार ओढाया था।
जैसे वो काम के लिये बनी,
इतना उसको उलझाया था॥
इसके भी बाद पुत्री ने –
अपने स्टेट को टॉप किया।
पर पुत्र फैल हुआ एकदम,
सब पैसा सुविधा नास किया॥
अब भी वो जिल्लत ना छूटी,
पुत्री की सादी होती है।
पुत्री अपने घर जाती है,
अपने किस्मत पर रोती है॥
कुछ समय बिता घर वाले,
एक बहू को घर मे लाये थे।
अब पुत्र बहू को परिवार,
अपने सिने से लगाये थे॥
पर समय बितते देर नही,
जब पुत्र बहू रंग दिखलाये।
बूढ़े माँ बाप को वो दोनो,
अपने जीवन से ठुकराए॥
यह घटना इतनी निर्मम थी,
जो पुत्र ने यु ही कर डाला।
जिस पुत्र को अपना मानते थे,
उसने ही बेघर कर डाला॥
जब पता चला यह पुत्री को,
आंसू की नदी प्रवाह हुई।
चल दी माँ बाप को लेने को,
लेकर घर को प्रस्थान हुई॥
यह प्रेम देखकर पुत्री का,
मां बाप ने गले लगाया था।
अपनी गलती पर रोये थे,
जो पुत्री को तडपाया था॥
क्यों भेद भाव हम करते है,
पुत्री का कोई मोल नही।
वह रत्न ही ऐसी अवनी पर,
जो होती है अनमोल सही॥
©- अशोक सिह, – आजमगढ़, उत्तर प्रदेश। ∇
हम दिल से आभारी हैं अशोक सिह जी के प्रेरणादायक हिन्दी कविता “भेदभाव।” साझा करने के लिए।
About Ashok Singh – अशोक जी के शब्दाें में – अभी मैं IAS की तैयारी कर रहा हूँ। दिल मे समाज सेवा की लौ जलाये हुए कुछ बेहतर करने को प्रयासरत हूँ और अपना सत प्रतिशत देने को तत्पर। मेरा HOBBY कविताएं लिखना, दक्षिण भारत की फिल्में देखना, क्रिकेट खेलना, समाज से जुङे रहना, संगीत सुनना(खासकर पुराने) शामिल है।
अशोक सिह जी के लिए मेरे विचार:
♣ “अशोक सिह जी” ने कविता के माध्यम से लड़कियों के प्रति आज के मानव के मन में उठने वाले विचार और साेच का बखूबी अतिसुन्दर वर्णन किया हैं। जाे हर एक शब्द पर विचार सागर-मंथन कर हृदयसात करने योग्य हैं। कविताऐं छोटी और सरल शब्दाे में हाेते हुँये भी हृदयसात करने योग्य हैं। जाे भी इंसान इन कविताओं काे गहराई(हर शब्दाे का सार) से समझकर आत्मसात करें, उसका जीवन धन्य हाे जायें।
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