Kmsraj51 की कलम से…..
Vyavastha Hi Huee Ab Langadi Hai | व्यवस्था ही हुई अब लंगड़ी है।
चोरों की करते शिकायत जिनसे,
वे खुद भी चोरों से मिले हुए हैं।
माजरा समझ में आने लगा है कि,
चोरों के चेहरे क्यों खिले हुए हैं?
शिकायत जो करते हैं वे सच कहते हैं,
पर शिकायत सुनने वाले कहां सुनते हैं?
जिनकी की है शिकायत दुखियारे ने,
उनका झूठ भी सच जैसा ही सुनते हैं।
शिकायत करें तो करें पर कहां करें?
शिकायत सुनने वाला ही कोई नहीं।
यहां तो उल्टा चोर कोतवाल को डांटे,
कौन है ऐसा, जिसकी आत्मा सोई नहीं?
क्या सही है? सब जानते हैं सच सारा ,
देख कर भी सब अनदेखा सा करते हैं।
कानों सुन कर भी अनसुना सा करना,
सच्चे लोग तभी तो आत्महत्या से मरते हैं।
अंधा हुआ है हर आदमी आजकल क्या?
क्या बहरा हुआ हर छोटा – बड़ा कान है?
पैसा और पहुंच है जिनके पास माकूल तो,
उनके लिए न कोई कानून न ही विधान है।
न्याय दिलाना है तो जीते जी ही दिलाओ,
मरने के बाद की संवेदनाएं तो मंजूर नहीं।
गुनहगारों को बचाना बेकसूरों को फंसाना,
यह तो न्याय व्यवस्था का कोई दस्तूर नहीं।
प्राधिकरण के पांव में मोच है आई क्या,
या फिर व्यवस्था ही हुई अब लंगड़ी है?
वे सुनते क्यों नहीं सच्चे पक्के लोगों की,
मजबूरी है या फिर सोच ही इनकी संगड़ी है।
♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦
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- “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — यह कविता समाज और न्याय व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार और अनदेखी पर तीखा प्रहार करती है। कवि कहता है कि जिससे लोग चोरों की शिकायत करते हैं, वे स्वयं भी कहीं न कहीं उन्हीं से मिले होते हैं, यही कारण है कि अपराधियों के चेहरे खिले हुए नजर आते हैं। शिकायत करने वाले सच्चाई कहते हैं, लेकिन सुनने वाले उनकी बातों पर ध्यान नहीं देते। जिन लोगों की शिकायत की जाती है, उनका झूठ भी सच मान लिया जाता है। इस व्यवस्था में पीड़ितों को न्याय मिलना कठिन हो गया है, क्योंकि यहां “उल्टा चोर कोतवाल को डांटे” वाली स्थिति बनी हुई है। कवि यह भी दर्शाता है कि समाज में अन्याय देखकर भी लोग अनदेखा कर देते हैं और सुनकर भी अनसुना कर देते हैं। यही कारण है कि सच्चे और ईमानदार लोग हताश होकर आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं। आजकल हर व्यक्ति स्वार्थ में अंधा और बहरा हो गया है, जिससे पैसे और सत्ता वालों को कानून और नियमों की कोई परवाह नहीं। कवि समाज से अपील करता है कि न्याय जीवित अवस्था में ही दिया जाना चाहिए, मरने के बाद की संवेदनाएँ व्यर्थ हैं। अगर दोषियों को बचाया जाएगा और निर्दोषों को फंसाया जाएगा, तो यह न्याय व्यवस्था का अपमान है। अंत में, कवि सवाल उठाता है कि क्या प्राधिकरण (अधिकार प्राप्त संस्थाएँ) निष्क्रिय हो गई हैं या फिर न्याय व्यवस्था ही पंगु हो चुकी है। यह कविता एक कटु सत्य को उजागर करती है और न्याय प्रणाली की निष्क्रियता पर सवाल खड़े करती है।
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यह कविता (व्यवस्था ही हुई अब लंगड़ी है।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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