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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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हिन्दी-कविता

ब्रह्मचारिणी माता।

Kmsraj51 की कलम से…..

Table of Contents

  • Kmsraj51 की कलम से…..
    • Brahmacharini Mata | ब्रह्मचारिणी माता।
      • “ब्रह्मचारिणी”
      • — Conclusion —
      • ज़रूर पढ़ें — प्रातः उठ हरि हर को भज।
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    • आप सभी का प्रिय दोस्त
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      • “सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

Brahmacharini Mata | ब्रह्मचारिणी माता।

“ब्रह्मचारिणी”

लाल रंग अति प्रिय माता को,
चीनी का भोग लगाते हैं।
तप की चारणी ब्रह्मचारिणी में
तप से ध्यान लगाए हैं॥

शास्त्र ज्ञान सर्वज्ञ संपन्न मां,
गुड़हल – कमल दल चढ़ाते हैं।
दूध युक्त चीजों का भोग,
घी – कपूर से दीपक जलाते हैं॥

श्रद्धा सुमन अर्पित करते,
ब्रह्मचारिणी की आरती पढ़ते हैं।
वर्षों शिव भक्ति में लगे,
विल्व पत्र केवल मां खाती थी॥

आंधी गर्मी बहुत थी झेलीं,
तप में मां का कोई न शानी है।
श्वेत वस्त्र में लपेट शरीर को
सृष्टि में सक्षम ऊर्जा भरती हैं॥

एक हाथ में अष्टदल माला,
दूजे में कमंडल धारण करती हैं।
आंतरिक शक्ति विस्तार करती,
पथ विचलित नहीं करने वाली हैं॥

जो शक्ति आराधना करे मन से,
उसके कठिन काम बन जाते हैं।
माता से कृपा आशीष मिलने पर,
बड़े संकट दूर भाग जाते हैं॥

नारद जी के उपदेश से माता,
कठिन तपस्या खुद कर डाली थी।
तप से मिलेंगे भोला शंकर,
मिलने वाली उसने मन में ठानी थी॥

पूर्व जन्म में दक्ष की पुत्री,
हवन कुंड में कूद शरीर गवाई हैं।
दूजे जन्म में ब्रह्मचारिणी रूप,
धर कर माता शक्ति स्वरूपा आई है॥

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

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— Conclusion —

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — माँ दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता। माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। प्रात: स्नान के बाद मां ब्रह्मचारिणी की मूर्ति स्थापित करें। फिर उनकी पूजा करें, मां ब्रह्मचारिणी को अक्षत्, फूल, कुमकुम, गंध, धूप, दीप, नैवेद्य, फल आदि चढ़ाते हैं। यदि संभव हो तो आप उनको चमेली के फूलों की माला अर्पित करें।

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sukhmangal-singh-ji-kmsraj51.png

यह कविता (ब्रह्मचारिणी माता।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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हमारा बिहार।

Kmsraj51 की कलम से…..

Table of Contents

  • Kmsraj51 की कलम से…..
    • Our Bihar | हमारा बिहार।
      • आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
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      • “सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

Our Bihar | हमारा बिहार।

आर्यावर्त की जान,
जो है हिंद की पहचान,
आर्यभट्ट की धरती पर, बस एक ही नाम,
बिहार बिहार बिहार, हमारा बिहार।

कुंवर से जिनकी शान,
मुजफ्फरपुर की लीची, जिनकी पहचान।
मां जानकी की नगरी से बढ़ता, राज्य का सम्मान,
बिहार बिहार बिहार, हमारा बिहार।

जहां बुद्ध ने पाया ज्ञान,
जिनपर हमें है अभिमान।
शिक्षा का गौरव नालंदा, देश की पहचान,
वही है मेरा बिहार, वो हमारा बिहार,
बिहार बिहार बिहार, हमारा बिहार।

प्रथम गणराज्य की छवि महान,
वो वैशाली ही एक नाम।
जिनकी अमिट पहचान,
वो हमारा बिहार,
बिहार बिहार बिहार, हमारा बिहार।

पशुओं के मेले सोनपुर से बढ़ता, वैभव और सम्मान,
जैनों के पहले तीर्थंकर, महावीर भगवान।
ये है मेरा बिहार ये हमारा बिहार,
बिहार बिहार बिहार, ये है हमारा बिहार।

लिट्टी चोखा व्यंजन, अपने में है खास,
मधुबनी की पेंटिंग का, नहीं है कोई काट।
सिल्क सिटी का पहनावा, आता सबको रास,
ये है मेरा बिहार, ये हमारा बिहार,
बिहार बिहार बिहार हमारा बिहार।

प्रथम नागरिक बने, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद,
चंपारण से बापू ने किया, आंदोलन शुरुआत।
दशरथ मांझी के सामने, पहाड़ भी हुआ निढ़ाल,
ऐसा मेरा बिहार,
बिहार बिहार बिहार हमारा बिहार।

आरक्षण ने दिलाया, बराबर का अधिकार,
महिलाओं में आया, सबलता का एहसास।
ये है हमारा बिहार, ये हमारा बिहार,
बिहार बिहार बिहार, हमारा बिहार।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

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• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — बिहार राज्य प्राचीन काल से ही ज्ञान, धर्म व शिक्षा का केंद्र रहा है, ये बुद्ध की भूमि हैं, यहाँ से ज्ञान व शिक्षा पूरी दुनिया को मिलता आया है। बिहार दिवस (भोजपुरी: 𑂥𑂱𑂯𑂰𑂩 𑂠𑂱𑂫𑂮) हर साल २२ मार्च को मनाया जाता है। यह बिहार राज्य के गठन को चिह्नित करता है। इसी दिन अंग्रेजों ने १९१२ में बंगाल से बिहार को अलग कर एक राज्य बनाया था। इस दिन बिहार में सार्वजनिक अवकाश होता है। बिहार भारत के राज्यों में से एक राज्य है। बिहार को राजनीति तथा सांस्कृतिक का एक केंद्र बिंदु कहा जाता है। बिहार राज्य में गंगा नदी और उनकी अन्य सहायक नदियों का स्थान बसा है।

—————

यह कविता (हमारा बिहार।) “विवेक कुमार जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं एक शिक्षक हूं। मुजफ्फरपुर जिला, बिहार राज्य का निवासी हूं। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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शहीद दिवस।

Kmsraj51 की कलम से…..

Shaheed Diwas | शहीद दिवस।

सुखदेव, राजगुरु और भगत सिंह को फंदे पर लटकाया था।
23 मार्च के दिन को इसी लिए ही शहीद दिवस मनाया था।

भारत मां के इन लालों ने, अंग्रेजों के नाकों चना चबाया था।
भारत को आजाद करवाने हेतु अपना बलिदान चढ़ाया था।

मेरा रंग दे बसंती चोला माए, कह कर जो फंदे पर झूल गए।
दुख होता है आज कि हम उनको, क्यों और कैसे भूल गए?

जब लुटती रहती बहु – बेटियां और बच्चे – बूढ़े पीटते जाते।
दावे से कहता हूं कि ऐसे में, इन वीरों को कोई भूल न पाते।

हैरान हूं जग की रीत को, सुख दिलाने वालों को भुलाया है।
महता उसको देते हैं, जो हाल में ही, हमारे जीवन में आया है।

खुश रहो पर याद रखो कि, यह आजादी पुरखों की थाती है।
खून बहाया है पुरखों ने, जिस पर नव पीढ़ी हक जताती है।

इसे सहेजना न कि गढ़े मुर्दों को कुरेदना, हमारी जिम्मेवारी है।
पर हमे तो मौज मस्ती में खो कर, हो गई भूलने की बीमारी है।

चलो जी कहें तो क्या कहें? आज हमारे हाथों में सरदारी है।
जमाने का प्रभाव है यह सब या कि, हमारी सोच नकारी है?

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — कितने दुःख की बात है की हमसब देशभक्त भारत माता के असली पुत्रों (सुखदेव, राजगुरु और भगत सिंह) को भूल कर, फालतू लोगो को याद रखते हैं। ये भूल ना जाना की आज जो तुम्हे आज़ादी हैं ये इन्हीं की दें है, जो इनके बलिदान से ही मिला है। जान हथेली पर लेकर सभी दुश्मन का चीर सीना दिया। फिर से वीर भारत माँ के शहीद (सुखदेव, राजगुरु और भगत सिंह) हो गए । याद करेगा तुमको ये भारत सदैव और वंदे मातरम् गायेगा। फिर से वीर भारत माँ के शहीद हो गए।

—————

यह कविता (शहीद दिवस।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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Filed Under: 2023-KMSRAJ51 की कलम से, हिंदी कविता, हिन्दी-कविता Tagged With: hemraj thakur, hemraj thakur poems, Hindi Kavita, poem on shaheed diwas in hindi, जोश भर देने वाली देशभक्ति कविता, देशभक्ति क्रांतिकारी कविता, देशभक्ति जोशीला कविता, प्रेरणा देने वाली कविता, वीरता का संदेश देने वाली कविता, वीरों पर कविता, शहीद दिवस, शहीद दिवस - हेमराज ठाकुर, शहीद दिवस पर कविता हिंदी में, हेमराज ठाकुर, हेमराज ठाकुर जी की कविताएं

स्वागत विक्रम संवत 2080

Kmsraj51 की कलम से…..

Table of Contents

  • Kmsraj51 की कलम से…..
    • Welcome Vikram Samvat 2080 | स्वागत विक्रम संवत 2080
      • आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
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Welcome Vikram Samvat 2080 | स्वागत विक्रम संवत 2080

भगवान चित्रगुप्त अवतरित हुए आज ही के दिन,
चित्र से बना चैत्र, बदला साल वो दिन।
नए साल में प्रवेश करने जा रहे हैं,
पुरानी यादों को दिल में जकड़े हुए,
नए वर्ष, चैत्र प्रतिपदा का स्वागत करने जा रहे हैं।

फिर से नए वर्ष में प्रवेश करने जा रहे हैं,
बुरी यादों को भूलाकर,
लेके संकल्प कामयाबी का।
कलम की ताकत आजमाने जा रहे हैं,
एक नए वर्ष में प्रवेश करने जा रहे हैं।

सिखा बहुत कुछ पुराने वर्षों से,
टूटा नहीं हौसला, दिल में है उमंग।
फिर नए वर्ष का अभिनंदन करने जा रहे हैं,
हम नए वर्ष में प्रवेश करने जा रहे हैं।

नया सवेरा लाएगा, नया साथी,
नए सपने, नई राहें, सब कुछ होगा नया – नया।
अब न निकलेंगी आहें,
हर नव प्रभात में होगी, खुशियों की बौछारें।
उस प्रभात का दीदार करने जा रहे हैं,
हम सभी नए साल में प्रवेश करने जा रहे हैं।

माता के जयकारा से गूंज रहा सारा घर द्वार,
ऐसा दिन बार – बार आए, लाए खुशियां अपार।
सिंह पर सवार मैया को हर घर में बुला रहे हैं,
फिर नए साल में प्रवेश करने जा रहे हैं।

♦ भोला शरण प्रसाद जी – सेक्टर – 150 / नोएडा – उत्तर प्रदेश ♦

—————

  • “भोला शरण प्रसाद जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — आत्मिक प्रेम, निस्वार्थ स्नेह, करुणा व मानवता का पवित्र महापर्व ‘विक्रम संवत’ हैं। विक्रम-संवत के अनुसार नव वर्ष का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। ‘विक्रम संवत’ अत्यंत प्राचीन संवत है। भारत के सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से सर्वाधिक लोकप्रिय राष्ट्रीय संवत ‘विक्रम संवत’ ही है। ‘विक्रम संवत’ के उद्भव एवं प्रयोग के विषय में विद्वानों में मतभेद है। मान्यता है कि सम्राट विक्रमादित्य ने ईसा पूर्व ५७ में इसका प्रचलन आरम्भ कराया था। फ़ारसी ग्रंथ ‘कलितौ दिमनः’ में पंचतंत्र का एक पद्य ‘शशिदिवाकरयोर्ग्रहपीडनम्’ का भाव उद्धृत है। विद्वानों ने सामान्यतः ‘कृत संवत’ को ‘विक्रम संवत’ का पूर्ववर्ती माना है। विक्रम संवत :​​ विक्रम संवत में सभी का समावेश है।

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यह कविता (स्वागत विक्रम संवत 2080) “भोला शरण प्रसाद जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं भोला शरण प्रसाद बी. एस. सी. (बायो), एम. ए. अंग्रेजी, एम. एड. हूं। पहले केन्द्रीय विघालय में कार्यरत था। मेरी कई रचनाऍं विघालय पत्रिका एंव बाहर की भी पत्रिका में छप चूकी है। मैं अंग्रेजी एंव हिन्दी दोनों में अपनी रचनाऍं एंव कविताऍं लिखना पसन्द करता हूं। देश भक्ति की कविताऍं अधिक लिखता हूं। मैं कोलकाता संतजेवियर कालेज से बी. एड. किया एंव महर्षि दयानन्द विश्वविघालय रोहतक से एम. एड. किया। मैं उर्दू भी जानता हूं। मैं मैट्रीकुलेशन मुजफ्फरपुर से, आई. एस. सी. एंव बी. एस. सी. हाजीपुर (बिहार विश्वविघालय) बी. ए. (अंग्रेजी), एम. ए. (अंग्रेजी) बिहार विश्वविघालय मुजफ्फरपुर से किया। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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नव संवत्सर आया है।

Kmsraj51 की कलम से…..

Nav Sanvatsar Aaya Hai | नव संवत्सर आया है।

आओ रे भैया, आओ री बहना, नव संवत्सर आया है।
हमारे पुरखों ने भारत में, नया साल यहीं से मनाया है।

ब्रह्मा ने सृष्टि रची, राम, युधिष्ठिर राज्याभिषेक कराया है।
अंगददेव और संत झूलेलाल, इसी दिन जग में आया है।

चैत्र नवरात्र का शुभारम्भ है भाई, नव संवत्सर मनाया है।
विक्रमादित्य ने विक्रमी संवत को, इसी दिन से चलाया है।

दयानन्द ने इसी दिन ही, आर्य समाज स्थापित कराया है।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के हेडगेवार, आज जग में आया है।

भूल न जाए नई पीढ़ी, निज संस्कृति को याद करवाया है।
हमारे पुरखों ने सदियों से, नया साल आज से ही मनाया है।

रक्त में रवानगी, मौसम में दिवानगी, ले कर यह पर्व आया है।
चारो ओर को हरियाली ही हरियाली का आलम छाया है।

फैसले है लहलाती, तरु है फूले, वन पांखी कुल चहचाया है।
कुदरत के कण – कण ने मानो, आज नव संवत्सर मनाया है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — विक्रम-संवत के अनुसार नव वर्ष का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। ‘विक्रम संवत’ अत्यंत प्राचीन संवत है। भारत के सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से सर्वाधिक लोकप्रिय राष्ट्रीय संवत ‘विक्रम संवत’ ही है। ‘विक्रम संवत’ के उद्भव एवं प्रयोग के विषय में विद्वानों में मतभेद है। मान्यता है कि सम्राट विक्रमादित्य ने ईसा पूर्व ५७ में इसका प्रचलन आरम्भ कराया था। फ़ारसी ग्रंथ ‘कलितौ दिमनः’ में पंचतंत्र का एक पद्य ‘शशिदिवाकरयोर्ग्रहपीडनम्’ का भाव उद्धृत है। विद्वानों ने सामान्यतः ‘कृत संवत’ को ‘विक्रम संवत’ का पूर्ववर्ती माना है। विक्रम संवत :​​ विक्रम संवत में सभी का समावेश है।

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यह कविता (नव संवत्सर आया है।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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वैरागी जीवन।

Kmsraj51 की कलम से…..

Vairagi Jeevan | वैरागी जीवन।

बोये थे मैनें संदल के बन,
काँटे बिखरे राहों में बने बबूल।
घायल करते पग-पग पर,
बिखरे हुए बिसैले शूल।

दूर-दूर तक फैले स्याह मनोहर,
घन मिले मेघ शीतल साये से।
ऐसी बद्दुआ लगी थी कोई,
हर इक ने प्राण जलाये से।
मेरे जीवन को श्राप दे गई,
भोले बैरागी मन की चंचल भूल।

शिशिर पहने आये पतझड़,
हरे-भरे मेरे आँगन में।
वीरानों सी ख़ामोशी रहती,
अंत:पुर के शून्य गगन में।
छिद्रित हुए हृदय में शूल,
मेरे अँजुल में स्वप्नों की धूल।

नहीं पता मुझको कब किसके,
हृदय पंख नोचे मैनें।
उड़ान से पहले ही मर जाते,
संकल्प सलोने जो भी मैं बुनता।
अपने आँगना बोये थे हमने,
खिले मिले किसी और के घर फूल।

इस बैरागी के जीवन में,
होती सुबह-शाम कहाँ?
जन्मों का अभिशाप लिये चला,
इस युग का संताप कहाँ?
पग-पग पर थी ठोकर हरदम,
इक पल भी आराम कहाँ?
ये जीवन तो बना बस धूल का फूल,
खंडित हृदय तन रुधित मन रहा कूल।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (वैरागी जीवन।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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मेरी कविता।

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Meri Kavita | मेरी कविता।

हर अक्षरों में रचा-बसा लेखन का धाता,
हर शब्दों की परिभाषा सृजन का दाता।
मैं कवि हूँ और तुम मेरी कविता,
वीरान मरुस्थल-सा जीवन मेरा,
उसमें तुम कल-निनाद करती सरिता।

हिय में कारुण्य अनुराग भरा,
अधरों में मधुर पराग झरा।
स्वर्णिम सौंदर्य निखरा-निखरा,
आलिंगन करती कृष्णा चोले से,
जैसे रुखड़े से लिपटी कोमल लता।

प्राणो की रम्य ‘परिमल’-सुंदरता,
साक्षात् सुघर प्रसंग की अनुपमता।
हृदय में खिलती कारुण्य मृदुता,
शर्वरी के आर्द्र बेला में,
अंतस् में भर देती मादकता।

राह दिखाती नैनों की ज्योति,
उर में बसते चाहत के मोती।
आँचल में तृप्त थकन सोती,
रैना में तनु सित ज्योत्स्ना-सी,
तनुरूहों में भरती शीतलता।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (मेरी कविता।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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प्रकृति के रंग।

Kmsraj51 की कलम से…..

Table of Contents

  • Kmsraj51 की कलम से…..
    • Prakriti Ke Rang | प्रकृति के रंग।
      • आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
    • Please share your comments.
    • आप सभी का प्रिय दोस्त
      • ———– © Best of Luck ®———–
    • Note:-
      • “सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

Prakriti Ke Rang | प्रकृति के रंग।

फिर से वही मौसम आया,
जिसने प्रकृति को खुशनुमा बनाया।

सतरंगी रंगों की छटा बिखेरी है इस कदर,
जिसे देख नई नवेली दुल्हन भी शर्माए।

कहीं पर खेतों में गेहूं की दुधिया बाली,
पवन संग इठलाती झूम~झूम जाए।

कहीं पर दिखाई दे पत्तों से ज्यादा फूल,
अपनी खुशबू की बाहें फैलाए।

आम के पेड़ तो हरे~हरे बौर से,
धरती को गले मिलने आए।

कोयल भी अब तैयार होकर,
मस्त कुहू ~कुहू के स्वर सुनाए।

चिड़िया भी भोर होने से पहले ही,
ची~ची करती मधुर सुर सजाए।

जिधर देखो उधर ही इस बसंत ने,
अपने खूबसूरत पांव है फैलाए।

हर पेड़ की डाली पर नई कोपलें,
पेड़ से निकल दुनिया देखना चाहे।

धरा भी वही आसमां भी वही है,
प्रकृति भी बसंत में अपना रूप दिखाए।

इस प्रकृति में छिपे हैं वो रंग हजार,
जिसे अपनाकर इंसान हर पल मुस्कराए।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — वसंत ऋतु फूलों और त्योहारों का मौसम है, इस प्रकार यह बहुत सी खुशियाँ और आनंद लाता है। रंग-बिरंगे और सुन्दर फूल पूरी तरह से दिल जीत लेते हैं और हरी घास हमें टहलने के लिए अच्छा मैदान देती है। सुबह या शाम को सुन्दर तितलियाँ प्रायः हमारे ध्यान को खिंचती है। दिन और रात दोनों ही बहुत सुहावने और ठंडे होते हैं। ऐसा लगता है आम के पेड़ तो हरे~हरे बौर से, धरती को गले मिलने आए। कोयल भी अब तैयार होकर, मस्त कुहू ~कुहू के स्वर सुनाए।चिड़िया भी भोर होने से पहले ही, ची~ची करती मधुर सुर सजाए। जैसे पेड़ों पर पतझड़ आता है उसी तरह इंसान के जीवन में भी बहुत उतार – चढ़ाव आता है, अगर दुःख है तो, बहुत जल्द ही सुखी समय भी आएगा।

—————

यह कविता (प्रकृति के रंग।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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फिर भी चलती साथ-साथ वो हमेशा।

Kmsraj51 की कलम से…..

Phir Bhi Chalti Saath-Saath Wo Hamesha | फिर भी चलती साथ-साथ वो हमेशा।

गुथे हुए हैं प्राणों से कुछ,
निर्वाक वैरागी से पतझड़।
खलती हैं मुझको तुम्हारी यादें,
फिर भी चलती साथ-साथ वो हमेशा।

राहों का सहचर सूनापन है,
आँसू और अकेलापन है।
वियोगिनी-सी दिल की धड़कन है,
निर्जन वन-कानन में चलते-चलते।
कामना थकी पर पाँव न थके मेरे,
फिर भी चलती साथ-साथ वो हमेशा।

जगी-जगी हैं दीप्तिपूर्ण रातें,
सुबकती है झम-झम बरसातें।
खोयी-खोयी सी अनंत सौगातें,
जल-जलकर बुझी हैं अभिलाषाएं।
दग्धित रही अँगारों-सी जिंदगी,
फिर भी चलती साथ-साथ वो हमेशा।

खानाबदोशों जैसी भटकन है,
रेगिस्तानों जैसा अंतर्मन है।
आकुल आशा घर आँगन है,
घायल हो श्रापित-सी जिंदगी।
रह-रहकर दुख रही चोटिल अंगों-सी,
फिर भी चलती साथ-साथ वो हमेशा।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (फिर भी चलती साथ-साथ वो हमेशा।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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यह डूबती सांझ।

Kmsraj51 की कलम से…..

Yah Doobati Sanjh | यह डूबती सांझ।

यह डूबती सांझ देखो, लेके, घना अंधेरा आएगी।
दिन भर की आपाधापी से, हमे मुक्ति दिलाएगी।

यह बात सच है कि यह, दैनिक प्रकाश छुपाएगी।
यह भी तो सच है कि, यह अपनी गोद में सुलाएगी।

मुमकिन है यह कि रात अंधेरी, हर दृश्य छुपाएगी।
पर यह भी वाजिब है कि, यह स्वप्न भी दिखाएगी।

कौन कहता है कि हर सांझ, दिवस को ही खाएगी?
मालूम है जग को यह भी कि, फिर नई भोर आएगी।

नाउम्मीदी में जीने से तो हमेशा, निराशा ही छाएगी।
सांझ ही तो रात को ला कर, सब थकान मिटाएगी।

आशावान को तो यह सांझ, पास मंजिल सी भाएगी।
निराशावान के लिए तो उसका, सारा संसार खाएगी।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — हम सब ये जानते है की सूर्यास्त के बाद शाम होगी ही और शाम होगी तभी रात भी होगा और इंसान दिन भर के कार्य से थका हारा आराम की नींद, ले पाता है जिससे उसकी सारी थकावट दूर होती है। आशावान को तो सदैव ही यह सांझ, पास मंजिल सी भाएगी, लेकिन निराशावान के लिए तो उसका, सारा संसार खाएगी। क्योकि आशावान जनता है की फिर भोर होगी और सूर्य उदय होगा। इसी तरह से जीवन में भी जब चारों तरफ से मुसीबत आ जाए तो घबराना नहीं चाहिए, क्योंकि कोई भी समय लंबे वक्त तक नहीं रहेगा, उसके बाद अच्छा समय भी आएगा। इसलिए सदैव ही आशावान बने रहे और अच्छे कार्य करते चले जीवन में, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो।

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यह कविता (यह डूबती सांझ।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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