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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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भोला शरण प्रसाद जी की रचनाएँ।

अहंकार विनाश की जननी।

Kmsraj51 की कलम से…..

Table of Contents

  • Kmsraj51 की कलम से…..
    • ♦ अहंकार विनाश की जननी। ♦
      • ⇒ प्रेम और सम्मान का आधार विश्वास है।
      • ⇒ ज्ञान और ज्ञानी के कारण ही मानव सर्वश्रेष्ठ प्राणी।
      • ⇒ हर मुसीबत में अन्तरात्मा की आवाज सुनने वाले।
      • ⇒ ईर्ष्या का भूत।
      • ⇒ क्रोध का लक्ष्य हानी करना होता है।
      • आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
    • Please share your comments.
    • आप सभी का प्रिय दोस्त
      • ———– © Best of Luck ® ———–
    • Note:-
      • “सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

♦ अहंकार विनाश की जननी। ♦

पद, प्रतिष्ठा, दौलत, शक्ति, अहंकार की जननी है। अहंकार विनाश की पहली सीढ़ी है। रावण बहुत ज्ञानी था, अगर वास्तव में ज्ञानी होता तो आज पूज्य होता। ज्ञानी का अहंकारी होना, दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं अपितु, उसे विनाशकारी बना देता है। इतिहास गवाह है- सुन्दर स्त्री बाद में शूर्पनखा निकली, सोने का हिरण बाद में मारीच निकला और भिक्षा मांगने वाला साधु रावण निकला, सभी रुप बदलने की कला में निपुण थे। कला-ज्ञान का गलत उद्देश्य एंव उपयोग करने के कारण समाज में नफरत की दृष्टि से देखे जाते हैं- हर जगह भ्रम, शंका और अविश्वास पैदा करने वाले कभी सम्मान नहीं पा सकते।

⇒ प्रेम और सम्मान का आधार विश्वास है।

प्रेम और सम्मान का आधार विश्वास है, अशोक वाटिका में सीता मां राम नाम की मुद्रिका मिलने पर विश्वास कर लेती है। उन्हें प्रभु राम पर इतना विश्वास है। रामायण विश्वास करना ही तो सिखाती है। माँ कठोर हुई लेकिन विश्वास नहीं छूटा, परिस्थितियाँ विषम हुई लेकिन विश्वास बना रहा, लक्ष्मण को मरणासन्न देखा लेकिन धैर्य और विश्वास बना रहा, वानर और रीछ की सेना थी लेकिन विजय अवश्य मिलेगी, ये विश्वास बना रहा, प्रेम की परीक्षा हुई लेकिन विश्वास नहीं टूटा चाहे भरत का विश्वास हो, शबरी का हो, विभीषण का हो, जामवंत का हो, या किसी भी सहयोगी का हो-विश्वास ही नहीं, अगाध विश्वास था। हर इंसान का जीवन शंका भ्रम, निराशा असफलता, दुःख और रावण जैसे पापियों से भरा है, केवल विश्वास की नौका ही इस भवसागर से पार कर सकती है।

⇒ ज्ञान और ज्ञानी के कारण ही मानव सर्वश्रेष्ठ प्राणी।

आज ज्ञान और ज्ञानी के कारण ही मानव सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना जाता है। महर्षि वाल्मिकी, महर्षि वेद व्यास, महर्षि दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द, गुरु नानक जी, गौतम बुद्ध, महर्षि महेश योगी, महर्षि योगानन्द अपने ज्ञान एंव अनुभव से प्रभु से निकटता का मार्ग बताकर मानव समाज को सुखशांति से जीने का रास्ता दिखाया। अंधविश्वास के पर्द को हटाया। किसी गुरु ने स्वंय की पूजा करने की वकालत नहीं की। श्रद्धा और प्रेम से उनके बताए मार्ग पर चलना ही उनकी भक्ति एंव उनके प्रति सम्मान है।

⇒ हर मुसीबत में अन्तरात्मा की आवाज सुनने वाले।

जब उल्टी दृष्टि से कोई दुनिया को देखेगा तो हर वस्तु उल्टी दिखाई देगी। यदि अंधेरे कमरे में अपने को बन्द कर लें तो समस्त ब्रह्माण्ड अंन्धकार से भरा दिखाई देगा और प्रकाश में हर चीज स्पष्ट एंव चमकती हुई दिखाई देगी, हर इन्सान ईश्वर के हाथ का खिलौना है जो खुद ईश्वर बन बैठेगा उसकी हालत रावण और कंश जैसी होगी, संसार के सभी जीव जन्तुओं को परमात्मा भाव से देखो, अपने को सेवक समझ कर, स्वामी बनकर नहीं। हर मुसीबत में अन्तरात्मा की आवाज सुनने वाले, परमात्मा के करीब होने का अनुभव करते हैं, पूर्ण शांति उनके कदमों को चूमती है।

⇒ ईर्ष्या का भूत।

ईर्ष्या का भूत मानसिक तनाव उत्पन्न करने में मुख्यरुप से अपनी भूमिका अदा करता है। पराई उन्नति देखकर जलना ज्ञानी का नहीं, अज्ञानी का स्वभाव है। सीख ग्रहण करना ज्ञानी को महाज्ञानी बना देता है। शिष्ट, सहृदय, निष्कपट और मित्रता पूर्ण व्यवहार ही प्रसन्न बने रहने, तनाव मुक्त होने के लिए पर्याप्त है। महाज्ञानी वैज्ञानिक, चिकित्सक, इंजिनियर, शिक्षक संयमित रहते हुए मानव समाज के कल्याण के लिए सदा तत्पर रहते है। क्रोध और अभिमान से कोसों दूर, मानसिक शक्ति की कमी हो जाने पर क्रोध का वेग विवेक से नहीं रुकता। क्रोध आने पर विवेक दूर भाग जाता है।

⇒ क्रोध का लक्ष्य हानी करना होता है।

जब उन्मत्त हाथी जंजीर तोड़ लेता है तो महावत दूर भाग जाता है। क्रोध का लक्ष्य हानी करना होता है। हानी होने के बाद मनुष्य अपने को कोसने लगता है, निराशावादी बन जाता है। चतुराई स्वंय खत्म हो जाती है। क्रोध का निराकरण विरक्ति और प्रेम से होता है। संसार के प्रति अमोह का व्यवहार तथा सभी प्राणियों के प्रति मैत्री भावना रखने पर, क्रोध की स्थिति में अविवेक युक्त काम करने से रोक देता है।

अगर दुर्योधन मैत्री भाव रखता तो “महाभारत” नहीं होता, युद्ध से केवल विनाश होता है। प्रेम से निर्माण होता है। स्वार्थ और सर्वोच्च होने का अभिमान मानव समाज को खोखला कर देता है। सेवाभाव, “वसुधैव कुटुम्बकम” का भाव ही मानव समाज की रक्षा कर सकता है। अगर प्राचीन काल में सभी विद्यायों को गुप्त न रखकर सार्वनिक किया जाता तो, प्राचीन भारत का ज्ञान जो अद्धितीय था, वह आज भी होता, गुप्त रखने के कारण आज लुप्त हो गया।

“कद्रदानों के लिए कद्रदान हूँ मैं,
बेरहम नहीं, मेहरबान हूँ मैं।
भरोसा है जिहें मुझ पर
उनके के लिए कभी दोस्त, कभी इन्सान हूँ मैं॥”

♦ भोला शरण प्रसाद जी – सेक्टर – 150/नोएडा – उत्तर प्रदेश ♦

—————

  • “भोला शरण प्रसाद जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — अहंकार विनाश की पहली सीढ़ी है। ज्ञानी का अहंकारी होना, दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं अपितु, उसे विनाशकारी बना देता है। कला-ज्ञान का गलत उद्देश्य एंव उपयोग करने के कारण समाज में नफरत की दृष्टि से देखे जाते हैं- हर जगह भ्रम, शंका और अविश्वास पैदा करने वाले कभी सम्मान नहीं पा सकते। हर इंसान का जीवन शंका भ्रम, निराशा असफलता, दुःख और रावण जैसे पापियों से भरा है, केवल विश्वास की नौका ही इस भवसागर से पार कर सकती है। किसी गुरु ने स्वंय की पूजा करने की वकालत नहीं की। श्रद्धा और प्रेम से उनके बताए मार्ग पर चलना ही उनकी भक्ति एंव उनके प्रति सम्मान है। हर मुसीबत में अन्तरात्मा की आवाज सुनने वाले, परमात्मा के करीब होने का अनुभव करते हैं, पूर्ण शांति उनके कदमों को चूमती है। क्रोध का लक्ष्य हानी करना होता है। हानी होने के बाद मनुष्य अपने को कोसने लगता है, निराशावादी बन जाता है। चतुराई स्वंय खत्म हो जाती है। क्रोध का निराकरण विरक्ति और प्रेम से होता है। अगर प्राचीन काल में सभी विद्यायों को गुप्त न रखकर सार्वनिक किया जाता तो, प्राचीन भारत का ज्ञान जो अद्धितीय था, वह आज भी होता, गुप्त रखने के कारण आज लुप्त हो गया।

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यह लेख (अहंकार विनाश की जननी।) “भोला शरण प्रसाद जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं भोला शरण प्रसाद बी. एस. सी. (बायो), एम. ए. अंग्रेजी, एम. एड. हूं। पहले केन्द्रीय विघालय में कार्यरत था। मेरी कई रचनाऍं विघालय पत्रिका एंव बाहर की भी पत्रिका में छप चूकी है। मैं अंग्रेजी एंव हिन्दी दोनों में अपनी रचनाऍं एंव कविताऍं लिखना पसन्द करता हूं। देश भक्ति की कविताऍं अधिक लिखता हूं। मैं कोलकाता संतजेवियर कालेज से बी. एड. किया एंव महर्षि दयानन्द विश्वविघालय रोहतक से एम. एड. किया। मैं उर्दू भी जानता हूं। मैं मैट्रीकुलेशन मुजफ्फरपुर से, आई. एस. सी. एंव बी. एस. सी. हाजीपुर (बिहार विश्वविघालय) बी. ए. (अंग्रेजी), एम. ए. (अंग्रेजी) बिहार विश्वविघालय मुजफ्फरपुर से किया। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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नैतिक शिक्षा।

Kmsraj51 की कलम से…..

Table of Contents

  • Kmsraj51 की कलम से…..
    • ♦ नैतिक शिक्षा। ♦
      • नैतिक मूल्यों का ह्रास —
      • चारित्रिक पतन को रोकने के लिए…
      • आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
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♦ नैतिक शिक्षा। ♦

नैतिक मूल्यों का ह्रास —

सच्चाई से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता जीवन के हर क्षेत्र में नैतिक मूल्यों का ह्रास दृष्टिगोचर हो रहा है। राजनीति हो, व्यव्साय हो, समाज हो, कार्यालय हो या विद्यालय, हर जगह मानवीय मूल्यों में गिरावट परिलक्षित हो रही है वर्त्तमान समय में मानव इतना स्वार्थान्ध हो गया है कि उसे अपने स्वार्थ के अलावा, कुछ दिखाई नहीं देता। सिध्दान्तों, आदर्शों एंव मान्यताओं का विचार केवल किताब के पन्नों में सिमट कर रह गया है।

परमार्थ का चिन्तन व्यर्थ समझा जाने लगा हर इन्सान यह साबित करने में लगा है कि उससे अच्छा, ईमानदार कोई नहीं, फिर इतना अपराध, अन्याय कौन कर रहा है। समाज एंव देश का चारित्रिक पतन क्यों हो रहा है। हर आदमी दूसरे को दोषी मानता है, सुधार चाहता है लेकिन स्वंय को छोड़कर, यह उत्तरदायित्व केवल विद्यालय का
नहीं है। कोई भी विघालय व्देष, घृणा, हिंसा, धूसखोरी, मिलावट, धोखा एंव भ्रष्टाचार की शिक्षा नहीं देता है।

चारित्रिक पतन को रोकने के लिए…

गाय हमेशा शुध्द दूध देती है लेकिन पानी मिलाने वालों की कमी नहीं है। सुगन्धित फूलों को बचाने के लिए जहरीले पौधों को हटाना ही होगा। जब तक नैतिक शिक्षा, ईमानदारी, भाईचारा, देश प्रेम का भाव नहीं होगा तब तक भ्रष्टाचार खत्म नहीं होगा। नैतिक शिक्षा द्वारा मनुष्य के जीवन में सुख, शांति, प्रेम, भाईचारा, त्याग, सौहार्द एंव विश्ववंधुत्व की भावना जागृत होती है। जब तक चारित्रिक उत्थान न हो तब तक सामजिक, राजनीतिक, आर्थिक एंव वैज्ञानिक प्रगति व्यर्थ है। इच्छा शक्ति, दृढ संकल्य एंव ईमानदारी ही सभी कार्यों को सफल बनाता है। नैतिक शिक्षा-धर्म, भाषा, वर्ण, लिंग, जाति, ऊँच-नीच आदि की भावना समाप्त कर निष्पक्ष रुप से विचार करने
एंव व्यव्हार करने की प्रवृति जागृत करता है। चारित्रिक पतन को रोकने के लिए समाज का शिक्षित होना अति आवश्यक है।

सही शिक्षा-योग्य, कुलीन, अनुभवी, चरित्रवान, शिक्षक ही दे सकते हैं हर क्षेत्र में, हर व्यक्ति में, हर संस्था में सुधार की जरुरत है- नए समाज एंव देश के निर्माण के लिए।
भ्रष्टाचार तभी खत्म होगा जब कोई भ्रष्ट न हो।

“येंषा न विघा न तपो न दान
झानं न शीलं न गुणो न धर्म ।
ते मर्त्यलोके भूवि भारभूतां
मनुष्य रुपेण मृगाश्चरन्ति ।।”

शिक्षा ही अस्त्र एंव शस्त्र दोनों है। सर्प को देखकर मनुष्य खौफ खाता है लेकिन चन्दन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। शिक्षा और योग्य शिक्षक ही इन्सान को चन्दन बनाते है। जो अपनी सुगन्ध, त्याग, नम्रता, बुद्धि, से देश का नाम रौशन करते हैं। इन्सान किसी को दोषी ठहराने के लिए अंगुली उठाता है तो तीन अंगुली उसके स्वंय के तरफ इशारा करती है।

“प्रेम की मीनार उठाएं,
नफरत की दीवार गिराएं।
झूठ की बाढ़ को बांध न सकें तो,
सच की राह में रोड़ा भी न बने॥”

♦ भोला शरण प्रसाद जी – सेक्टर – 150/नोएडा – उत्तर प्रदेश ♦

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  • “भोला शरण प्रसाद जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — सही शिक्षा-योग्य, कुलीन, अनुभवी, चरित्रवान, शिक्षक ही दे सकते हैं हर क्षेत्र में, हर व्यक्ति में, हर संस्था में सुधार की जरुरत है- नए समाज एंव देश के निर्माण के लिए। भ्रष्टाचार तभी खत्म होगा जब कोई भ्रष्ट न हो। नैतिक शिक्षा। शिक्षा ही अस्त्र एंव शस्त्र दोनों है। सर्प को देखकर मनुष्य खौफ खाता है लेकिन चन्दन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। शिक्षा और योग्य शिक्षक ही इन्सान को चन्दन बनाते है। जो अपनी सुगन्ध, त्याग, नम्रता, बुद्धि, से देश का नाम रौशन करते हैं। इन्सान किसी को दोषी ठहराने के लिए अंगुली उठाता है तो तीन अंगुली उसके स्वंय के तरफ इशारा करती है।

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यह लेख (नैतिक शिक्षा।) “भोला शरण प्रसाद जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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सफल जीवन।

Kmsraj51 की कलम से…..

Table of Contents

  • Kmsraj51 की कलम से…..
    • ♦ सफल जीवन। ♦
      • • पाप-पुण्य का फल •
      • • अच्छे व बुरे विचार •
      • • हर कर्म धर्मानुसार •
      • ⇒ ज्ञानी कौन ?
      • आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
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♦ सफल जीवन। ♦

इस संसार में कहीं भी, कोई भी, कभी भी किसी के भी साथ हमेशा नहीं रह सकता। यह एक कटु सत्य है। जो भी आपस में जुड़े हुए हैं, आज न कल उन्हें एक-दूसरे से बिछड़ना ही पड़ेगा। रिश्ता चाहे पत्नी का हो, पुत्र का हो, पुत्री का हो, धन का हो, मकान का हो, अपने शरीर का हो, एक दिन छोड़कर जाना ही पड़ेगा। माया, मोह, भ्रम में इन्सान सत्य से भटक जाता है।

एक ही अन्न खाकर बच्चा जवान होता है, वही अन्न खाकर जवान बूढ़ा होता होता है, और बूढ़ा व्यक्ति धीरे-धीरे मौत के मुँह में चला जाता है— आखिर क्यों ?

• पाप-पुण्य का फल •

हर इन्सान अकेले पैदा होता है, अकेले दर्द का एहसास करता है और अकेले ही मरता भी है। पाप-पुण्य का फल अकेले ही भोगता है। अधर्म की कमाई से परिवार का पालन-पोषण करने वाले अकेले ही पाप की गठरी सिर पर लादकर घोर नरक में जाते है। दर्द में कोई दवा दे सकता है लेकिन अनुभव स्वंय ही करनी पड़ती है।

सदगुणों की शुरुआत स्वंय से ही करनी होती है। जब तक खुद की उंगली पर कुमकुम नहीं लगेगा तब तक दूसरे के ललाट पर तिलक नहीं लगा सकते। सारे सुख एंव दुःख का कारण मन है। मन की बात न सुनकर आत्मा की आवाज सुनने पर, दुःख और सुख का अनुभव स्वतः समाप्त हो जायेगा। यदि खेत में बीज न डाला जाए तो घास-फूस अपने आप निकल जाते हैं।

• अच्छे व बुरे विचार •

दिमाग में अगर अच्छे विचार न भरे जाऍं तो बुरे विचार अपने आप जगह बनाकर इन्सान की जिन्दगी को बर्बाद कर देगें, भोजन, न पचने पर रोग बढ़ता है, पैसा न पचने पर व्यभिचार और दिखावा बढ़ता है, बात न पचने पर चुगली बढ़ती है, प्रशंसा न पचने पर, अहंकार बढ़ता है, निंदा न पचने पर, दुश्मनी बढ़ती है, दुःख न पचने पर निराशा बढ़ती है, सुख न पचने पर, पाप बढ़ता है, दौलत न पचने पर, खतरा बढ़ता है।

जवानी, धन-संम्पत्ति, सत्ता, मूर्खता, अहंकार, शक्ति, व्यक्ति को मार्ग से भटका देती है। व्यक्ति बुराइयों में फॅंसकर, डूब जाता है और अपने साथ-साथ दूसरे का भी जीवन नष्ट कर देता है। अच्छे कर्म ही इन्सान को बुराइयों से दूर रख सकता है।

• हर कर्म धर्मानुसार •

भगवान शिव, भोला, शंकर, औघर दानी की आराधना के पवित्र सावन महीने में शिव जी की सवारी नंदी बैल जो हमेशा साथ रहता है, आखिर क्यों ? यह धर्म का स्वरुप है। बैल की सवारी का मतलब हर कर्म धर्मानुसार करना। जिस मानव के जीवन में धर्म ही नहीं हो वह साधन सम्पन्न होने के बावजूद भी उसका जीवन दुःखों से भरा रहेगा।

प्रसन्नता भीतर की स्थिति है। धर्म के मार्ग पर चलने से नव संकल्पों का सृजन होता है और आत्मा तृप्त रहती है। शिव को देवों के देव महादेव कहते हैं उनके पास धर्म रुपी साधना है, सुख धन से नहीं धर्म से प्राप्त होता है। विष पीने के बाद भी, औघर दानी है, वो राजा नहीं है लेकिन सर्वप्रिय और पूज्य है त्याग की मूर्ति हैं। आदि काल से भगवान शिव की पूजा होती आ रही है।

• ढाई अक्षर में ही सारी दुनिया निहित है —

ढाई अक्षर की महिमा जो समझ लिया, वो वास्तव में झानी और महापुरुष हो गया…

ढाई अक्षर के ब्रहमा, ढाई अक्षर की सृष्टि,
ढाई अक्षर के विष्णु, ढाई अक्षर की कान्ता (राधा),
ढाई अक्षर की दुर्गा, ढाई अक्षर की शक्ति,
ढाई अक्षर की श्रध्दा, ढाई अक्षर की भक्ति
ढाई अक्षर का ध्यान, ढाई अक्षर का त्याग,
ढाई अक्षर का धर्म, ढाई अक्षर का कर्म,
ढाई अक्षर का ग्रन्थ, ढाई अक्षर का सन्त,
ढाई अक्षर का मन्त्र, ढाई अक्षर का यन्त्र,
ढाई अक्षर का जन्म, ढाई अक्षर की अस्थि,
ढाई अक्षर की अर्थी,
ढाई अक्षर में ही सारी दुनिया निहित है, जो समझ लिया वो स्वामी विवेकानन्द।

महर्षि महेश योगी, महर्षि में ही, परमहंस योगानन्द, महर्षि दयानंद, गुरु नानक, श्री अरविन्दो धोष हो गये, ‘राम’ में दो अर्थ व्यंजित हैं- दुःख में हे राम, पीड़ा में अरे राम, लज्जा में हाय राम, अशुभ में अरे राम-शम, अभिवादन में राम-राम, शपथ में राम दुहाई, अझानता में राम जाने, अनिश्चितता में राम भरोसे, अचूकता के लिए रामबाण, मृत्यु के लिए राम नाम सत्य, सुशासन के लिए राम राज्य, निर्बल के बल राम। हमारे अन्दर जो कुछ अनुकरणिय है वह राम है, शाश्वत है।

⇒ ज्ञानी कौन ?

इन्सान मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, इत्यादि में जाता है। तीर्थ स्थल में जाकर सदबुध्दि के लिए प्रार्थना करता है। जब भगवान के दरबार में सर्प, मोर, चूहा, शेर, बैल एक साथ रह सकते हैं तो अपने को सबसे उत्तम और ज्ञानी कहने वाला मनुष्य क्यों नहीं ? अज्ञानी सर्प, मोर, चूहा, बैल, शेर, एक जगह शांति पूर्वक महादेव की शरण में रहते हैं, लेकिन मनुष्य अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष, जलन के कारण विनाश का कारण बन
जाता है। सुख-शांति से दूर दर्द भरी जिन्दगी जीने के लिए मजबूर हो जाता है।

सही ज्ञान धर्म के मार्ग पर चलकर ही सच्चा सुख व शांति मिलता है। सही ज्ञान ही “सफल-जीवन” की कुन्जी है।

“न जीवन न मृत्यु, क्या है तेरे हाथ,
गले से गले लगाओ, जीलो कुछ दिन साथ”

⇒ अमरत्व प्राप्त करने के लिए धर्म के मार्ग पर चले…

भगवान शिव, राम, कृष्ण, चित्रगुप्त, ब्रह्मा, विष्णु ने अपने नाम के आगे सिंह, शर्मा, दुबे, प्रसाद नहीं लगाया, भगवान महावीर ने जैन नहीं लगाया क्योंकि वो किसी जाति के नहीं है, वो सर्वव्यापी, सर्वप्रिय, सर्वज्ञानी हैं वो कण-कण में हैं, सभी उनकी पूजा करते हैं। जब तक इन्सान अपने-आप को पूरे मानव समाज के लिए समर्पित नहीं करेगा, त्यागी नहीं बनेगा, जीवन सुखमय एंव सफल नहीं बनेगा। अपनी पहचान बनाते-बनाते धरती छोड़ देता है फिर भी पहचान खुद-ब-खुद मिट जाती है। अमरत्व प्राप्त करने के लिए धर्म के मार्ग पर ही चलना होगा।

♦ भोला शरण प्रसाद जी – सेक्टर – 150/नोएडा – उत्तर प्रदेश ♦

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  • “भोला शरण प्रसाद जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — प्रसन्नता भीतर की स्थिति है। धर्म के मार्ग पर चलने से नव संकल्पों का सृजन होता है और आत्मा तृप्त रहती है। शिव को देवों के देव महादेव कहते हैं उनके पास धर्म रुपी साधना है, सुख धन से नहीं धर्म से प्राप्त होता है। विष पीने के बाद भी, औघर दानी है, वो राजा नहीं है लेकिन सर्वप्रिय और पूज्य है त्याग की मूर्ति हैं। दिमाग में अगर अच्छे विचार न भरे जाऍं तो बुरे विचार अपने आप जगह बनाकर इन्सान की जिन्दगी को बर्बाद कर देगें। हर इन्सान अकेले पैदा होता है, अकेले दर्द का एहसास करता है और अकेले ही मरता भी है। पाप-पुण्य का फल अकेले ही भोगता है। इस संसार में कहीं भी, कोई भी, कभी भी किसी के भी साथ हमेशा नहीं रह सकता। यह एक कटु सत्य है।

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यह लेख (सफल जीवन।) “भोला शरण प्रसाद जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं भोला शरण प्रसाद बी. एस. सी. (बायो), एम. ए. अंग्रेजी, एम. एड. हूं। पहले केन्द्रीय विघालय में कार्यरत था। मेरी कई रचनाऍं विघालय पत्रिका एंव बाहर की भी पत्रिका में छप चूकी है। मैं अंग्रेजी एंव हिन्दी दोनों में अपनी रचनाऍं एंव कविताऍं लिखना पसन्द करता हूं। देश भक्ति की कविताऍं अधिक लिखता हूं। मैं कोलकाता संतजेवियर कालेज से बी. एड. किया एंव महर्षि दयानन्द विश्वविघालय रोहतक से एम. एड. किया। मैं उर्दू भी जानता हूं। मैं मैट्रीकुलेशन मुजफ्फरपुर से, आई. एस. सी. एंव बी. एस. सी. हाजीपुर (बिहार विश्वविघालय) बी. ए. (अंग्रेजी), एम. ए. (अंग्रेजी) बिहार विश्वविघालय मुजफ्फरपुर से किया। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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कर्मों का फल।

Kmsraj51 की कलम से…..

Table of Contents

  • Kmsraj51 की कलम से…..
    • ♦ कर्मों का फल। ♦
      • आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
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    • Note:-
      • “सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

♦ कर्मों का फल। ♦

मनुष्य का जीवन एक खेत की तरह है, जिसमें उसके कर्म बोए जाते हैं और मनुष्य अपने कर्मों के अच्छे व बुरे फल काटते हैं। बुरे कर्म करने वाले बुराई की दल-दल में फंस कर बुराई बटोरता रहता है; आम बोने वाला आम खाता है, बबूल बोने वाले के नसीब में कांटा ही कांटा होता है।

बबूल बोकर आम प्राप्त करने की कामना, प्रकृति के नियम के विरुध्द है, असंभव है, उसी प्रकार बुराई के बीज बोकर भलाई की उम्मीद करना, मृत इन्सान को जिन्दा देखने के समान है।

इतिहास गवाह है; कार्य कभी कारण रहित नहीं होते और कोई भी परिणाम अकारण नहीं होता। जो परीक्षा ही नहीं देगा उसका परिणाम कैसे निकलेगा। परिणाम हमेशा व्यक्ति के कर्मों की कलम से लिखी जाती है।

भाग्य का निर्माण कर्म से ही होता है। समाज, राष्ट्र या व्यक्ति कभी बुराई से नहीं पनपता। जीवन के हर क्षण का लेखा-जोखा भगवान चित्रगुप्त के पास होता है, कोई प्राणी बुरा कर्म करके बच नहीं सकता। जल कीचड़ से बहेगा, सड़े हुए चीज में दुर्गंध होगी, गंदे नाले का पानी पेय होगा-यह मात्र भ्रम है। सच्चाई से कोई वास्ता नहीं, ठीक उसी प्रकार बुरे कर्म, धोखे की असफलताएँ “पतन” और अपयश को जन्म देती है, कर्म फल अकाट्य है।

कल की सुबह का पता नहीं, लेकिन योजना लम्बी बनाने वाले, अंहकार में चूर इन्सान, दूसरे के विनाश की सोच रखने वाले, गरीबों का खून चूसने वाले, अपने कर्म की परवाह न करने वाले, अमावस्या की रात को चांदनी की कल्पना करते है जो कभी संभव नहीं है।

जैसा अन्न वैसा मन, अगर एक लड़के का चप्पल समुद्र में चला जाए तो वह समुद्र को चोर कहेगा, अगर किसी को मोती मिल जाए तो वह दानी कहेगा, जैसा अन्ना, वैसा मन, जैसी भावना, वैसा विचार। जिसे तुम अच्छा मानते हो, यदि उसे अपने व्यवहार में नहीं लाते, तो यह तुम्हारी कायरता है। अगर भय तुम्हें ऐसा करने से रोकता है तो न तो तुम्हारा चरित्र उठेगा और ना हीं तुम्हें प्रतिष्ठा मिलेगी।

मन की इच्छा को बार-बार दबाना, अपने विचारों को खुलकर व्यक्त नहीं करना, आत्महत्या करने के समान है। यदि ऐसा करके कोई किसी लाभ की उम्मीद करके बैठा है तो वह बहुत बड़े धोखे में है, बिन बादल बरसात की आश में है।

मनुष्य का जीवन दुःखों से भरा है, शारीरिक, आर्थिक, मानसिक, सामाजिक, चाहे कुछ भी हो, हर इन्सान इससे निजात पाने के लिए, सुख की प्राप्ति के लिए हर संभव प्रयास करता है; परन्तु विडंबना यह है कि कुछ ही लोगों को सुख की प्राप्ति होती है। अधिकतर लोगों की झोली में असफलता, असंतोष, अभाव, अतृप्ति एंव दुःख ही मिलता है। लोग भटकते हैं सुख की प्राप्ति के लिए, लेकिन मिलता है दुःख, अपमान, यही पीड़ा और वेदना है हर इन्सान की।

सुख ढूढ़ने वाले ये भूल जाते हैं कि दुःख कहीं बाहर से नहीं आता, दुःखों का मूल हमारे भीतर होता है। बाहर ढूढ़ने के कारण तो हजारों हो सकते हैं लेकिन समाधान कहीं नहीं मिल सकता। दुःखों से मुक्ति पाने के लिए दृष्टिकोण में बदलाव लाते हुए, दिल की गहराई में आत्मसात करना होगा।

जिम्मेदार कोई और नहीं- “केवल मैं खुद हूँ” ये हमारे ही द्वारा किए गए कर्मों का परिणाम है। बाहर दिखने वाली हर चीज अन्दर की छाया है। सुख हो या दुःख, आनंद हो या विषाद, सम्मान हो या अपमान – ये सभी अपने कर्मों का ही फल है। स्वंय पर जिम्मेदारी लेने के बाद ही दृष्टिकोण में बदलाव संभव है। क्रांन्ति उन्हीं के जीवन में घटती है जो जिम्मेदारी लेना जानते हैं। जो अपनी गलतियों के लिए दूसरों को दोषी ठहराते हैं वो अपने अन्दर बदलाव कभी नहीं ला सकते।

दुःख का कारण अपने अंदर तलाशने वाले ही समाधान ढूढ़ सकते हैं। किसी इन्सान को यह पता नहीं, वह कब तक जिन्दा रहेगा। अगर किसी को यह पता चल जाए कि कल उसकी मौत निश्चित है; तो क्या उसका व्यवहार वही रहेगा जो वह प्रतिदिन रखता है। निश्चित रुप से उसके व्यवहार में बदलाव आ जाएगा, किसी का दिल नहीं दुखाएगा, अंहकार त्याग देगा, विनम्र भाव से पेश आएगा, हर गलत कर्मों के लिए माफी मांगेगा, माया-मोह के बंधन से मुक्त होने की कोशिश करेगा। जब यही सत्य है कि जीवन अपने हाथ में नहीं तो अपने कर्मों को सुधार कर क्यूं न अच्छा मनुष्य बने।

किसी को दोष देने से बेहतर है खुद को दोषी मानें; यही सत्य है।

“जिन्दगी है बहुत छोटी, इसका न कोई ठिकाना।
किसके लिए बना रहे हो, ये महल, ये आशियाना॥”

♦ भोला शरण प्रसाद जी – सेक्टर – 150/नोएडा – उत्तर प्रदेश ♦

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  • “भोला शरण प्रसाद जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — देर हो सकता है लेकिन अंधेर नहीं होता हैं; कर्मो का फल एक न एक दिन जरूर मिलता हैं। अगर किसी को यह पता चल जाए कि कल उसकी मौत निश्चित है; तो क्या उसका व्यवहार वही रहेगा जो वह प्रतिदिन रखता है। निश्चित रुप से उसके व्यवहार में बदलाव आ जाएगा, किसी का दिल नहीं दुखाएगा, अंहकार त्याग देगा, विनम्र भाव से पेश आएगा, हर गलत कर्मों के लिए माफी मांगेगा, माया-मोह के बंधन से मुक्त होने की कोशिश करेगा। जब यही सत्य है कि जीवन अपने हाथ में नहीं तो अपने कर्मों को सुधार कर क्यूं न अच्छा मनुष्य बने। इतिहास गवाह है; कार्य कभी कारण रहित नहीं होते और कोई भी परिणाम अकारण नहीं होता। जो परीक्षा ही नहीं देगा उसका परिणाम कैसे निकलेगा। परिणाम हमेशा व्यक्ति के कर्मों की कलम से लिखी जाती है।

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यह लेख (कर्मों का फल।) “भोला शरण प्रसाद जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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मैं भोला शरण प्रसाद बी. एस. सी. (बायो), एम. ए. अंग्रेजी, एम. एड. हूं। पहले केन्द्रीय विघालय में कार्यरत था। मेरी कई रचनाऍं विघालय पत्रिका एंव बाहर की भी पत्रिका में छप चूकी है। मैं अंग्रेजी एंव हिन्दी दोनों में अपनी रचनाऍं एंव कविताऍं लिखना पसन्द करता हूं। देश भक्ति की कविताऍं अधिक लिखता हूं। मैं कोलकाता संतजेवियर कालेज से बी. एड. किया एंव महर्षि दयानन्द विश्वविघालय रोहतक से एम. एड. किया। मैं उर्दू भी जानता हूं। मैं मैट्रीकुलेशन मुजफ्फरपुर से, आई. एस. सी. एंव बी. एस. सी. हाजीपुर (बिहार विश्वविघालय) बी. ए. (अंग्रेजी), एम. ए. (अंग्रेजी) बिहार विश्वविघालय मुजफ्फरपुर से किया। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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अंधविश्वास।

Kmsraj51 की कलम से…..

Table of Contents

  • Kmsraj51 की कलम से…..
    • ♦ अंधविश्वास। ♦
      • • अंधविश्वास का बोलबाला •
      • • बिल्ली एक, अंधविश्वास अनेक •
      • • वैज्ञानिक युग में भी लोगों का विचार पुर्ववत •
      • • इविल आई •
      • • टोटका या अंधविश्वास •
      • —♥—
      • आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
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      • “सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

♦ अंधविश्वास। ♦

मानव समाज युगों-युगों से अंधविश्वास की कड़ियों में जकड़ा हुआ है। धर्म की आड़ में इन्सान के सोचने की शक्ति खत्म हो जाती है। इस धरती पर कई महापुरुष, ज्ञानी, संत, अवतरित हुए, समाज में प्रचलित अंधविश्वास, कुरीतियों को दूर करने के लिए। श्री राजाराम मोहन राय, श्री स्वामी विवेकानन्द, श्री महर्षि महेश योगी, श्री परमहंस योगानन्द जी, श्री महर्षि दयानन्द सरस्वती, श्री गुरु नानक देव जी वगैरह ने मानव समाज को अंधविश्वास से मुक्ति दिलाने का प्रयास किया।

• अंधविश्वास का बोलबाला •

आज भी समाज में अंधविश्वास का बोलबाला है चाहे इन्सान कितना भी शिक्षित हो जाए, किसी भी धर्म का अनुयायी हो; अंधविश्वास उसका पीछा कभी नहीं छोड़ता। कुछ ऐसे बंधन हैं जो इन्सान को कभी मुक्त नहीं होने देता।

स्वार्थ एंव वर्चस्व की लड़ाई में जघन्य अपराध का समर्थन करते हैं, बच्चों की बलि देना, जानवरों की बलि देना, अपने ही समाज के कमजोर महिला को लाक्षंन लगाकर अपमानित करना, श्राध्द के नाम पर शोषण करना, अंधविश्वास के प्रमाण हैं।

भूत-प्रेत, डायन, काली-बिल्ली, विधवा औरत का अलग ही महत्व है। पूरी दुनिया में अंधविश्वास फैलाने में बिल्लियों का बड़ा योगदान है। क्या आप जानते हैं- “काली बिल्ली के प्रति अंधविश्वास” भारतवर्ष में शादी से पहले काली बिल्ली देखना खुशनसीबी मानी जाती है।

• बिल्ली एक, अंधविश्वास अनेक •

स्काटलैण्ड में अगर काली बिल्ली बरामदे में धूमती नजर आती है, इसका मतलब कोई मुसीबत आने वाली है। इग्लैण्ड में अगर काली बिल्ली अपने कान के पीछे सफाई करती नजर आए तो बारिश जरुर होगी। आयरलैण्ड में अगर बिल्ली चन्द्रमा की रौशनी में रास्ता काट दे तो किसी की मौत महामारी से होगी।

फ्रांस में यदि बिल्ली दिखाई दे नदी के पास, तो लोग पानी में नहीं जाते। तुर्की में यदि काली बिल्ली दिखाई दे तो लोग अपने बालों को पकड़ लेते हैं, अन्यथा बदनसीबी आ जायेगी। अमेरिका में यदि एक ऑंख की काली बिल्ली दिखाई पड़ती है तो लोग अपने एक हाथ के अंगूठे को दूसरे हथेली पर कसकर दबाते हैं और मुराद मांगते हैं। बिल्ली एक, अंधविश्वास अनेक।

• वैज्ञानिक युग में भी लोगों का विचार पुर्ववत •

इस वैज्ञानिक युग में भी लोगों का विचार पुर्ववत, भिन्न-भिन्न हैं। विद्वता, शिक्षा का कोई प्रभाव नहीं। जापान में लोग आमदनी बढाने के लिए अपने पर्स में सांप की केचुली रखते हैं और अंक चार शुभ माना जाता हैं।

ताइवान में सुबह-सुबह काला कौआ देखना अशुभ माना जाता हैं। तुर्की में दो व्यक्ति यदि एक नाम वाले एक साथ खड़े हों तो उनके बीच में खड़े होने से मन्नत पूरी होती हैं। वेनेजुएला में लोग रुमाल का उपहार नहीं लेते। कोरिया में लोग परीक्षा के दिन बाल नहीं धोते, चीन में दीवाल घड़ी तोहफा में नहीं लेते।

रुस में यदि कुछ लेने के लिए लौटते हैं तो बिना आईना देखे घर से वापस नहीं जाते। चाहे कोई भी देश कितना भी विकसित हो, अंधविश्वास को मानने वाले की कभी नहीं हैं। विधवा औरत को शादी के रस्म से दूर रखा जाता हैं।

जन्म और मृत्यु किसी भी दिन, किसी भी मुहुर्त्त में होती हैं फिर भी इंसान शुभ मुहुर्त्त के पीछे जीवन भर भागता हैं। शादी शुभ मुहुर्त्त में विद्वान पंडित करवाते हैं सभी बड़े आशीर्वाद देते हैं फिर भी औरत विधवा हो जाती हैं और पुरुष विधुर। जिम्मेदार कौन है- कोई नहीं। अगर लड़की पैदा होती है या शादी के बाद लड़की के ससुराल में किसी की मृत्यु हो जाती है तो लड़की (दुल्हन) अशुभ मानी जाती हैं।

अगर गंगा में नहाने से पाप धूल जाता तो गंगा पुत्र भीष्म वाण की शैया पर प्राण नहीं त्यागते। मछली और अन्य जीव-जन्तु को मोक्ष मिलता। गंगा की कोई जिम्मेदारी नहीं हैं। वह तो सब कुछ समुद्र को दे देती हैं। समुद्र वाष्प बनाकर आसमान में भेज देती हैं फिर बादल बनकर धरती पर पानी के रुप में आ जाता है।

• इविल आई •

गंगा स्नान से पाप धूल जाएगा यह आग लगने पर स्वतः बरसात हो जाएगी, के समान हैं। काला टीका लगाकर नजर उतारी जाती हैं। मिश्र में काटों की ऑंख का लाकेट पहनने से देखने वाली हर बुरी निगाह का उल्टा असर होता है। मिश्र एंव तुर्की से आई “इविल आई” का सारी दुनिया में प्रचलन है।

• टोटका या अंधविश्वास •

समाज में कुछ लोग वहम, टोटका या अंधविश्वास को हवा देते रहते हैं। आज के वैज्ञानिक युग में सच्चाई में ही विश्वास करना चाहिए, न कि अंधविश्वास में। अंधविश्वास हमें पूर्वजों से विरासत में मिली है।

वक्त के साथ जब हम पोशाक बदल रहे हैं, नई-नई प्रथाऍं समाज में स्वतः अपनायी जा रही है तो फिर अंधविश्वास में विश्वास क्यों, हर शिक्षित व जागरुक व्यक्ति का यह धर्म है कि वह समाज को अंधविश्वास से मुक्त करे।

अंधविश्वास के जंजीर को तोड़ना ही, विज्ञान की उपलब्धि होगी। श्री राजा राम मोहन राय अपशब्द सुनकर भी भारतीय समाज को सती प्रथा से मुक्त किया। इन्हीं की प्रेरणा से वैशाली जिले के महनार तहसील के जहॉंजीरपुर शाम में कुछ बुध्दिजीवियों ने गॉंव को अंधविश्वास से मुक्त किया, आज सभी खुशहाल हैं।

—♥—

दुःख में सब को सिखाए मुस्कुराना,
अंधविश्वास तो धोखा है, सत्य ही अपनाना।
चाहे दुनिया कुछ भी कहे, मुझे आवाज लगाना,
अगर देर हो गई, गुजर जाएगा जमाना।

जिन लोगों ने समाज सेवा के साथ साथ,
अंधविश्वास के खिलाफ लोगों को,
जागृत किया, उन्हें गॉंव के लोग,
बच्चा-बच्चा उनके अच्छे कर्मों के,
लिए आज भी याद करता है।

डा. शम्भु शरण अपने अच्छे कार्यो,
के लिए अमर हो गए, गॉंव का हर
व्यक्ति अपने में सुधार लाने की,
प्रतिज्ञा करता हैं, समाज उन लोगों
का ऋणी होता है जो समाज के उत्थान,
के लिए अपने को समर्पित कर देते हैं।

आज इस गॉंव में साक्षरता बढ़ गई,
आज हर सपना साकार होता हुआ नजर आता हैं।
“जब तक अंधविश्वास रहेगा,
इन्सान भय त्रस्त और परेशान रहेगा।

पहले घर में करो उजाला,
फिर मंदिर में दीप जलाओ।
मानव-मानव में भेद नहीं,
सब को अपने गले लगाओ।

जैसे किसी के द्वारा प्रार्थना किए,
बिना ही सूर्य कमल-समूह को,
विकसित करता हैं, जैसे चन्द्रमा,
कैरव-समूह को प्रफुल्लित करता हैं।

तथा जिस प्रकार मेघ बिना मांगे,
ही प्राणियों को जल देता हैं।
उसी प्रकार महापुरुष स्वाभाविक,
स्वंय ही परहित में लगे रहते हैं,
ताकि समाज की बुराइयां,
स्वतः दूर हो जाए।

“कोपरनिकस” ने कहा पृथ्वी गोल हैं,
यह वैज्ञानिक खोज धार्मिक तथ्यों से,
अलग होने के कारण, कोपरनिकस को
मौत मिली, अंधविश्वास से मुक्ति
तभी मिलेगी जब सोच वैझानिक हो।

♦ भोला शरण प्रसाद जी – सेक्टर – 150/नोएडा – उत्तर प्रदेश ♦

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  • “भोला शरण प्रसाद जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — वक्त के साथ जब हम पोशाक बदल रहे हैं, नई-नई प्रथाऍं समाज में स्वतः अपनायी जा रही है तो फिर अंधविश्वास में विश्वास क्यों, हर शिक्षित व जागरुक व्यक्ति का यह धर्म है कि वह समाज को अंधविश्वास से मुक्त करे। अंधविश्वास के जंजीर को तोड़ना ही, विज्ञान की उपलब्धि होगी।

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यह लेख (अंधविश्वास।) “भोला शरण प्रसाद जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं भोला शरण प्रसाद बी. एस. सी. (बायो), एम. ए. अंग्रेजी, एम. एड. हूं। पहले केन्द्रीय विघालय में कार्यरत था। मेरी कई रचनाऍं विघालय पत्रिका एंव बाहर की भी पत्रिका में छप चूकी है। मैं अंग्रेजी एंव हिन्दी दोनों में अपनी रचनाऍं एंव कविताऍं लिखना पसन्द करता हूं। देश भक्ति की कविताऍं अधिक लिखता हूं। मैं कोलकाता संतजेवियर कालेज से बी. एड. किया एंव महर्षि दयानन्द विश्वविघालय रोहतक से एम. एड. किया। मैं उर्दू भी जानता हूं। मैं मैट्रीकुलेशन मुजफ्फरपुर से, आई. एस. सी. एंव बी. एस. सी. हाजीपुर (बिहार विश्वविघालय) बी. ए. (अंग्रेजी), एम. ए. (अंग्रेजी) बिहार विश्वविघालय मुजफ्फरपुर से किया। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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सत्य का ज्ञान।

Kmsraj51 की कलम से…..

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  • Kmsraj51 की कलम से…..
    • ♦ सत्य का ज्ञान। ♦
      • वेद स्वतः प्रमाण है।
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      • “सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

♦ सत्य का ज्ञान। ♦

दीपक में केवल तेल, घी, और बाती होने से रौशनी नहीं मिलती, जब तक घने अंधकार में उसे प्रज्वलित न की जाए। तेल, बाती, अंधकार, अग्नि और इच्छा के बिना रौशनी की कल्पना नहीं की जा सकती। अंधकार से लड़ने की क्षमता केवल रोशनी में है। मनुष्य के अंधकारमय जीवन को सत्य का ज्ञान ही प्रकाश में ला सकता है।

बिना गुरु के सत्य का ज्ञान असम्भव, अकल्पनीय है, प्राचीन समय से शिक्षित, ज्ञानी, परमात्मा को जानने वाले, कलम एंव बुद्धि के धनी, समाज को सत्य के मार्ग पर अग्रसर करने वाले, रक्षा करने वाले, अंधकार से प्रकाश में लाने वाले, सही शिक्षा एंव संस्कार पर समान बल देने वाले, मनुष्य को अपने ज्ञान के माध्यम से न्याय के मार्ग पर चलते हुए, परमात्मा से जुड़ने का मार्ग गुरुओं ने बताया है —

“बिना गुरु ज्ञान कहाँ, जहॉं गुरु हर धाम वहां”

संस्कार मनुष्य को आत्मसंयमी, त्यागी एंव अहंकार रहित बना देता है। सही ज्ञान के अभाव में मनुष्य का जीवन कष्टों से घिर गया है, खुशी, शांति लुप्त हो गई। आज मनुष्य के भीतर संवेदना, प्रेम, त्याग, भाइचारे की कमी देखी जाती है। अमानवीय कार्य करने में थोड़ी भी झिझक नहीं होती। एक दूसरे का शोषण करना, अपना जन्म सिध्द अधिकार समझते हैं। यह दोष गलत शिक्षा, गलत परिवेश एंव गलत संस्कार का है।

दूसरे की निन्दा करना, कृतघ्नता, दूसरों के गुप्त भेद को खोलना, निष्ठुरता दिखाना, निर्दयी होना, परायी स्त्री का सेवन करना, दूसरों का धन हड़प लेना, अपवित्र रहना, धूर्त्त बनकर मनुष्य को ठगना, मनुष्यों के प्राण लेना, पद के अहंकार में अंधा हो जाना, किसी को दुःख देकर आनन्दित होना, गलत शिक्षा देकर दूसरे को भ्रमित करना, आजकल मनुष्य की प्रवृति बन गई, क्योंकि वर्त्तमान समय में इंसान वेद के उपदेशों को भूल गया।

वेद में बताए गये मार्ग को कुछ स्वार्थी, अयोग्य लोगों ने गलत ढंग से प्रस्तुत किया, षडयंत्र के तहत, लोग भ्रमित होते चले गये, शिक्षा का मतलब ही बदल गया। जब बीज ही खराब हो तो फसल कैसी होगी। सही शिक्षा लुप्त होती गई, मनुष्य के बीच ऊँच-नीच, बड़े-छोटे, छूआ-छूत का दरार पैदा हो गया। वेद को पढ़ने से वंचित कर दिया गया। सत्य को दबाकर, असत्य का प्रसार होने लगा। विद्वानों की अनदेखी होने लगी।

कुछ लोग ठेकेदार बन गए, लेकिन समय का चक्र बदलता है। महर्षि दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द, श्री अरविन्द घोष, महर्षि महेश योगी, श्री परमहंस योगानन्द जी, श्री ठाकुर अनुकूल चन्द्र जी, गुरु नानक जी, सम्पूर्ण मानव जाति को विनाश से बचाने के लिए एक सूत्र में बॉंधकर सही मार्ग दिखाने का कार्य किया।

वेद स्वतः प्रमाण है।

वेद स्वतः प्रमाण है— ऐसी दृष्टि रखना, गुरु श्रेष्ठ, देवता, ऋषि, महात्माओं, माता-पिता एंव बड़ों का सत्कार करना, अच्छे कर्मों का अभ्यास करना, सब के प्रति मित्र भाव रखना। लेकिन आज के परिवेश में ये सभी चीजें विलुप्त होती जा रही है। इंसान कुत्ते को गोद में बिठाकर प्यार करता नजर आता है लेकिन इंसान से, अपनों से, छूआछूत एंव नफरत का भाव रखता है। अहंकार में दूरी बनाकर रखने में शान समझता है। कोई भी धर्म छूआछूत या नफरत फैलाने की इजाजत नहीं देता।

कोई भी पवित्र, स्वच्छ इंसान किसी भी धर्मस्थल पर जाने का अधिकारी है। “रोको मत, जाने दो, रोको, मत जाने दो।” इन दोनों वाक्यों में जो फर्क है, वही फर्क कुछ लोगों ने पैदा किया, समाज को बॉंटने के लिए, अपनी जीविका चलाने के लिए, अपनी रोटी सेंकने के लिए, नफरत की बीज बोने के लिए। नींव की ईंट कभी दिखाई नहीं पड़ती। गुनाहगार हमेशा पर्दे के पीछे रहना चाहता है, सत्य का ज्ञान नहीं होने के कारण लोग निर्दोष को ही गुनहगार मान लेते हैं।

आज मंदिर, गुरुद्वारा, जैन मंदिर, बौद्ध मंदिर, संतसंग, चर्चे हर जगह है, संख्या में काफी वृद्धि हो गई लेकिन गलत विचार के कारण गुनाहगारों की संख्या बढ़ती जा रही है। धार्मिक स्थल पर जाने के बाद बहुत शकुन, शांति मिलती है क्योंकि वहां विचार पवित्र हो जाता है।

अगर सत्य का ज्ञान हो तो घर में अकेले बैठकर आंख बंद कर लेने के बाद जो शांति मिलती है वह कहीं नहीं मिलेगी। भगवान तो दिल में है, हर इंसान भगवान का ही अंश है, हम सभी परमपिता परमेश्वर की संतान है, यह कैसी बिडम्बना है कि जिस भगवान ने इंसान को पैदा किया, वही इंसान भगवान पैदा करे, यह असंभव ही नहीं, अनुचित प्रतीत होता है, यह एक विचार है। भगवान तो सर्वप्रिय, सर्वमान्य हैं, उनके बिना इच्छा, एक पत्ता भी नहीं हिल सकता, वह सर्वशक्तिमान है। प्राण डालने का अधिकार केवल भगवान को है, इंसान, प्राण नहीं डाल सकता। जन्म और मृत्यु केवल भगवान के हाथ में है।

हर सम्प्रदाय या कुछ गुरु केवल अपनी बात थोपने का प्रयास करते हैं। खुद को ही भगवान घोषित कर देते हैं। शिक्षित, अशिक्षित सभी पूजने लगते है, इंसान कभी भगवान हो ही नहीं सकता। अच्छा बनने के लिए, बुराई को त्यागना पड़ता है। कोई भी इंसान धर्म का सही पालन करेगा, वह स्वतः बुराइयों से दूर हो जायेगा।

धरती पर लाखों धर्म स्थल हैं, लोगों की बहुत आस्था है फिर व्यभिचार, चोरी, बेईमानी, ईर्ष्या, जलन, कत्ल दंगे, फसाद क्यों, भगवान शिव, कृष्ण, मॉं दुर्गा, चित्रगुप्त, भगवान महावीर, बौद्ध, गुरु नानक, गुरु गोविंद सिंह के उपासक, आराधना करने वाले खुद ही संयमित होकर परोपकार करते हुए जीवन व्यतीत करने लगेंगे। लेकिन अशिक्षा और अज्ञानता के कारण लोग मार्ग से भटक गये हैं।

जो करना है, वह नहीं करते, जो नहीं करना है वो अवश्य करते हैं। सही कुलीन गुरु, सही मार्ग दर्शन देने वाले, भटके हुए को सही रास्ते पर लाने वाले, वेद का सही अर्थ समझाने वाले, आडम्बर से दूर रहने की सलाह देने वाले, शोषण से मुक्त रहने की प्रेरणा देने वाले गुरु ही सत्य का ज्ञान दे सकते हैं। सभी गुरुजनों को कोटी-कोटी नमन, सत्य को जाने, असत्य नरक का द्वार खोलता है। चूहा-सांप, मोर-बैल, शेर सभी एक साथ एक दूसरे का दुश्मन होते हुए भी, एक साथ शिव परिवार में रहते हैं। प्रभु चरण में समर्पित होने के बाद, अहंकार स्वतः गायब हो जाता हैं। जहाँ प्रेम, वहाँ भय कैसा, ये है सत्य का ज्ञान।

♦ भोला शरण प्रसाद जी – सेक्टर – 150/नोएडा – उत्तर प्रदेश ♦

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  • “भोला शरण प्रसाद जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — ज्ञान, ध्यान और योग किसी भी इंसान के जीवन में सदैव ही खुशियाँ ले आती है। वेद, पुराण, श्रीमद भागवत गीता, रामायण, रामचरित मानस, का पाठ करना जरूरी है। गुरु के बिना ज्ञान नहीं मिलता, समय-समय पर धर्म की रक्षा के लिए, महान आत्माये धरती पर आती रहती है, और धर्म का रक्षा करती हैं। अपने बच्चों को बचपन से ही धर्म और शास्त्र का ज्ञान दे, अच्छा संस्कार दे, तभी आपका बच्चा आगे चलकर, देश और समाज का भला करेगा।

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यह लेख (सत्य का ज्ञान।) “भोला शरण प्रसाद जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं भोला शरण प्रसाद बी. एस. सी. (बायो), एम. ए. अंग्रेजी, एम. एड. हूं। पहले केन्द्रीय विघालय में कार्यरत था। मेरी कई रचनाऍं विघालय पत्रिका एंव बाहर की भी पत्रिका में छप चूकी है। मैं अंग्रेजी एंव हिन्दी दोनों में अपनी रचनाऍं एंव कविताऍं लिखना पसन्द करता हूं। देश भक्ति की कविताऍं अधिक लिखता हूं। मैं कोलकाता संतजेवियर कालेज से बी. एड. किया एंव महर्षि दयानन्द विश्वविघालय रोहतक से एम. एड. किया। मैं उर्दू भी जानता हूं। मैं मैट्रीकुलेशन मुजफ्फरपुर से, आई. एस. सी. एंव बी. एस. सी. हाजीपुर (बिहार विश्वविघालय) बी. ए. (अंग्रेजी), एम. ए. (अंग्रेजी) बिहार विश्वविघालय मुजफ्फरपुर से किया। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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दीक्षा बिना अधूरी शिक्षा।

Kmsraj51 की कलम से…..

Table of Contents

  • Kmsraj51 की कलम से…..
    • ♦ दीक्षा बिना अधूरी शिक्षा। ♦
      • आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
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    • Note:-
      • “सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

♦ दीक्षा बिना अधूरी शिक्षा। ♦

जिस तरह जीवन के लिए जल, वायु एंव भोजन आवश्यक है, ठीक उसी प्रकार सुखमय एंव तृप्त जीवन हेतु शिक्षा, दीक्षा एंव संस्कार का संबंध अटूट है, अकल्पनीय है। प्राचीन समय से शिक्षित, ज्ञानी, परमात्मा को जानने वाले, कलम एंव बुद्धि के धनी, समाज को सत्य के मार्ग पर अग्रसर करने वाले, रक्षा करने वाले, अंधकार से प्रकाश में लाने वाले गुरु शिक्षा एंव दीक्षा पर समान बल देते हुए मनुष्य को ज्ञान देकर शिक्षा के माध्यम से परमात्मा से जुड़ने का मार्ग बताया, बिना गुरु ज्ञान कहाँ-जहाँ गुरु हर धाम वहाँ।

शिक्षा का अर्थ सिखना है। प्राचीनकाल में जब विनीत भाव से गुरु चरणों में बैठकर ज्ञान ग्रहण किया जाता था उसे ही दीक्षा कहा जाता था। राम- कृष्ण जिन्हें भगवान मानते हैं वे भी गुरु से शिक्षा एंव दीक्षा लिए, गोत्र गुरु की पहचान हैः

गुरु गृह गए पढ़न रघुराई।
अल्पकाल विद्या सब पाई॥

गुरु वशिष्ठ एवं गुरु शांडिल्य — राम और कृष्ण के गुरु थे समय के साथ दीक्षा की परम्परा ही लुप्त हो गई। वर्तमान परिवेश में गुरु की परिभाषा ही बदल गई। किसी भी व्यक्ति के जीवन को बनाने में, चरित्र निर्माण में गुरु का अहम योगदान होता है लेकिन आज गुरु का महत्व ही खत्म हो गया। अब तो दीक्षांत समारोह में डिग्री प्रदान की जाती है अगर उच्च शिक्षा, उज्ज्वल भविष्य की जननी है तो दीक्षा जीवन मूल्यों का आधार प्रदान करती है।

रावण प्रकांड पंडित जरुर था अंहकार और गुरुर चरम सीमा पर था क्योंकि दीक्षा मनुष्य को आत्मसंयमी, त्यागी एंव अंहकार रहित बना देता है। रावण के विनाश का कारण दीक्षा का अभाव होना ही था। जब से दीक्षा की परम्परा लुप्त हुई, मनुष्य का जीवन कष्टों से घिर गया। खुशी – शांति लुप्त हो गई आज मनुष्य के भीतर संवेदना, प्रेम, भाईचारे की कमी देखी जाती है अमानवीय कार्य करने में थोड़ी भी झिझक नहीं। चश्मे से वही देख सकता है जिसके ऑंख में क्षमता है – कोई ऐसी चश्मा नहीं है जिससे अंधो को दिखाई दे।

अंधा भी देख सकता है अगर प्रभु कृपा से षष्टी इंद्रिय जागृत हो जाए – यह वगैर गुरु – दीक्षा संभव नहीं है अगर नरेंद्र दत्त श्री रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में नहीं आते तो वह स्वामी विवेकानंद नहीं बनते। स्वामी विवेकानंद ने गुरु के बताए रास्ते पर चलकर जो उन्होंने मान – सम्मान, नाम – शोहरत दिया, वह एक सच्चा शिक्षित एंव दीक्षा प्राप्त शिष्य ही कर सकता है।

श्री केशवचन्द सेन बहुत बड़े विद्वान थे लेकिन आज उनको कितने लोग जानते है। उन्हें गुरु का आशीर्वाद प्राप्त नहीं था। श्री रामकृष्ण परमहंस ने पहले ही कह दिया था तुम बहुत बड़े विद्वान हो लेकिन स्वामी विवेकानंद की जगह तुम कभी नहीं ले सकते। दीक्षा इंसान को अंहकार मुक्त, जाति के बंधन से मुक्त कर देता है।

मनुष्य जन्म लेते ही स्वतः जाति एंव धर्म से जुड़ जाता है। लेकिन दीक्षा प्राप्त करने के बाद मनुष्य हर बंधन से मुक्त होकर पूरे विश्व एंव मानव समाज के कल्याण हेतु अपने को समर्पित कर देता है। जब स्वामी विवेकानंद से उनकी जाति पूछी गई तो उन्होने बड़ा ही हदय स्पर्शी जबाव दिया “मेरा तन जन्म से कायस्थ है लेकिन यह तो नश्वर है, दिल – दिमाग दीक्षा लेने के बाद गुरु कृपा से पूरे ब्रह्मांड की धरोहर है।”

मानव कल्याण ही मेरे जीवन का उद्देश्य है, दीक्षा ने उन्हें अमर बना दिया। एक ऐसी ज्योति जो कभी नहीं बुझेगी। इस धरती पर बहुत सारे गुरु हैं, जब योग्य एंव कुलीन गुरु – योग्य शिष्य को दीक्षा देता है तभी फलीभूत होता है। कोई किसी गुरु का अनुयायी हो, उनके बताए मार्ग पर चलने से परमात्मा की प्राति होगी – दिखावा करना स्वंय को ठगना है और गुरु का अनादर है।

आज श्री ठाकुर अनुकूलचन्द्र जी (देवघर), श्री महर्षि मेंही (भागलपुर) श्री रामचन्द्र जी महाराज (शाहजहॉंपुर), श्री लाला चतुर्मुज सहाय (टूण्डला), महर्षि महेश योगी, श्री अरविन्दधोष, श्री परमहंस योगानन्द जी, के लाखों शिष्य हैं – श्री रामकृष्ण मिशन की शाखाऍं पूरे विश्व में है – केवल स्वामी विवेकानंद जैसे शिष्य के कारण – गुरु के आशीर्वाद के कारण, दीक्षा में जितने शब्द हैं उसे तो जान लें …….

—

  • द – का अर्थ दमन अर्थात इंद्रिय, निग्रह
  • ई – का अर्थ ईश्वर की उपासना
  • क्ष – का अर्थ वासनाओं का क्षय
  • आ – का अर्थ आनन्द

दीक्षा का मतलब अपने अंदर परमात्मा का दर्शन कर लेना। जैसे दिव्य चेतना का प्रकाश उभरता है, ब्रह्म के साथ तारतम्य स्थापित होने लगता है। बिना दीक्षा, संस्कार सम्भव नहीं है गुरु नानक देव महाराज, भगवान महावीर, स्वामी दयानन्द सरस्वती मनुष्यों के लिए प्रेरणा के श्रोत हैं। दीक्षा की शुरुआत ही इंद्रिय निग्रह से है। मन को मारना नहीं है अपितु लगाम लगाना जरुरी है, नहीं तो मन भटकता रहेगा।

जब शिष्य गुरु के साथ मन के तार जोड़कर गुरु के बताए रास्ते पर शुद्ध मन से चलता है, विघा ग्रहण करता है तो स्वतः संस्कार एंव आस्था का उदय होने लगता है। खारे जल से कभी प्यास नहीं बुझती। गुरुओं ने बड़े ही सरल तरीके से अपने शिष्यों को दीक्षा, जप, तप एंव इष्टवृति (दान) का महत्व समझा दिया है। बिना जप, तप एंव दान का दीक्षा पूर्ण नहीं हो सकता।

जप तीन प्रकार से होता है जिह्वा से, होठ से और कंठ से। सबसे उत्तम कंठ से माना गया है। गुरु मंत्र का जप हमेशा कंठ से ही करना चाहिए। शरीर के सारे तंत्र (स्नायु) सक्रिय हो जाते है जो आध्यात्मिक उर्जा पैदा करते हैं, तप का मतलब इच्छाओं, भावनाओं, द्वेष, जलन, ईर्ष्या को समाप्त कर, अहंकार मुक्त होकर ध्यान करना ही तप है।

जब तक मन केन्द्रित नहीं होगा तब तक कुछ की सम्भव नहीं है। इष्टवृति (दान) के बिना दीक्षा अधूरी है। दान का मतलब – गुप्त दान, दान अहंकार की जननी है। किसने दान किया, किसको दिया, कितना दिया – यह किसी को पता नहीं होना चाहिए।

पुस्तकालय में बैठने से कोई ज्ञानी नहीं हो सकता, जब तक की वह किताबों का अध्ययन न करे। ठीक उसी तरह किसी गुरु का शिष्य बनने से कुछ नहीं होगा, जब तक पूरी आस्था के साथ, समर्पण के साथ उनके बताए मार्ग पर न चले। जप, तप, ध्यान, दान (ईष्टवृति) को पूर्णतः अपने जीवन में उतारने, नियमानुसार अनुकरण करने के बाद ही – गुरु कृपा की बरसात होगी।

पहले “कृ” यानी कर्म तब “पा”। संत्संग से जुड़ जाना, स्वामी विवेकानंद, महर्षि महेश योगी, श्री परमंहस योगानन्द जी महाराज, श्री अरविन्द घोष, श्री ठाकुर अनुकूल चन्द्र जैसे गुरु की छत्रछाया में नए जीवन की शुरुआत ही मुक्ति का मार्ग है। माया मोह, अहंकार, लोभ स्वतः गायब हो जाएगा। गुरु वंदना में एक छोटी सी मेरी कविताः …….

गुरु – शिष्य का नाता देखो।
पिता – पुत्र से कहीं महान।
कली से जब फूल बनोगे।
महक उठेगा हिन्दुस्तान॥

गुरु का आदर करना सीखो।
ग़र बनना है तुझे महान।
इक दिन शीश झुकाएगा।
तुझपे सारा हिन्दुस्तान॥

घोषणा: ये मेरी अप्रकाशित रचना है।

♦ भोला शरण प्रसाद जी – नोएडा – उत्तर प्रदेश ♦

—————

  • “भोला शरण प्रसाद जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — शिक्षा अर्थात इस संसार का व सभी सजीव एवं निर्जीव वस्तुओं, जीवों का ज्ञान, जबकि दीक्षा का मतलब है संस्कार, क्योकि संस्कार के बिना ज्ञान अधूरा हैं, संस्कार विहीन ज्ञान सदैव ही विनाश का कारण बनता है। इसी कारण दीक्षा बिना अधूरी होती हैं शिक्षा। आजकल ना ही पहले जैसा गुरु शिष्य का रिश्ता है और ना ही वैसी शिक्षा – दीक्षा है, जिस कारण आजकल के बच्चें संस्कार विहीन हैं और अपना विनाश खुद ही कर रहे हैं।

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यह लेख (दीक्षा बिना अधूरी शिक्षा।) “भोला शरण प्रसाद जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं भोला शरण प्रसाद बी. एस. सी. (बायो), एम. ए. अंग्रेजी, एम. एड. हूं। पहले केन्द्रीय विघालय में कार्यरत था। मेरी कई रचनाऍं विघालय पत्रिका एंव बाहर की भी पत्रिका में छप चूकी है। मैं अंग्रेजी एंव हिन्दी दोनों में अपनी रचनाऍं एंव कविताऍं लिखना पसन्द करता हूं। देश भक्ति की कविताऍं अधिक लिखता हूं। मैं कोलकाता संतजेवियर कालेज से बी. एड. किया एंव महर्षि दयानन्द विश्वविघालय रोहतक से एम. एड. किया। मैं उर्दू भी जानता हूं। मैं मैट्रीकुलेशन मुजफ्फरपुर से, आई. एस. सी. एंव बी. एस. सी. हाजीपुर (बिहार विश्वविघालय) बी. ए. (अंग्रेजी), एम. ए. (अंग्रेजी) बिहार विश्वविघालय मुजफ्फरपुर से किया। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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