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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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सीमा रंगा इन्द्रा जी की रचनाएँ।

कंकड़ की सब्जी।

Kmsraj51 की कलम से…..

Table of Contents

  • Kmsraj51 की कलम से…..
    • ♦ कंकड़ की सब्जी। ♦
      • आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
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♦ कंकड़ की सब्जी। ♦

अरे! रोशनी आज मीरा को तू अपने साथ ले जाना। मैं आज देर से आऊंगी, शाम को आते वक्त अपने साथ लेकर आना परंतु मालकिन मेरे घर कैसे, जाते हुए विद्या ने बोला अरे! बस आज की ही बात है और साहब भी बाहर गए हैं। फिर दिन में मीरा अकेली कैसे रहेगी परंतु मालकिन विद्या ने बात काटते हुए कहा परंतु वरंतू कुछ नहीं तू ले जा और हां दिन में कुछ खिला देना गरम-गरम बनाकर।

अगर इधर से बनाकर लेकर जाएगी तो ठंडा हो जाएगा। जी मालकिन रोशनी ने सिर हिलाते हुए कहा, मन ही मन बहुत बेचैनी थी और बुड़बुड़ा रही थी। मैं अपने घर कैसे लेकर जाऊं मीरा को। यह पूरा दिन उस छोटे से कमरे में कैसी रहेगी? अनेक सवाल करते-करते काम कर रही थी। काम खत्म करके रोशनी अपने साथ मीरा को लेकर चल पड़ी। बाई जी मेरे तो पैर दर्द करने लगे और कितनी दूर है आपका घर, बस बेटा पास ही है।

पास-पास करते कितने दूर तो ले आए आप। मम्मी की तरह एक गाड़ी क्यों नहीं लेती? रे बेटा हम कहां से लें और मुझे तो चलानी भी नहीं आती। रोशनी ने कहा आप मम्मी से सीख लो, हां सही बोल रहे हैं आप। लो बेटा हमारा घर आ गया है। यह घर यह तो झोपड़ी है। हां बेटा हमारे पास इतने पैसे नहीं है कि बड़ा घर बना ले।

घर में मीरा के 5 बच्चे खेल रहे थे। रोशनी ने कहा आप इनके साथ खेलों, मैं काम करती हूं। जी बाई जी मीरा ने कहा। थोड़ी देर बाद रोशनी ने खाना बना दिया। सभी खाना खाने लगे। मीरा बोली बाई जी मुझे भी खाना खाना है। रोशनी अपने पति की तरफ देखते हुए बोली कुछ पैसे हैं तो मीरा के लिए बाहर से खाना ला दो ना। अरे!रोशनी तुझे तो पता है पिछले 10 दिन से मुझे कुछ काम नहीं मिला। मेरे पास तो एक रूपया भी नहीं है।

तु मैम साहब से क्यों नहीं मांग कर लाई। किस मुंह से मांगती, पहले ही एडवांस पगार लेकर खा चुके हैं। चलो ऐसा करो यही खाना दे दो मीरा को। कैसी बात करते हो मीरा तो टेबल-कुर्सी पर बैठकर 10 तरह के पकवान खाती है। यह कैसे खाएंगी, कोई नहीं अब उसे भूख लगी है तो यही दे दो। ठीक है रोशनी ने कहा। मीरा लो बेटा खाना खा लो। मीरा खाना खाने लगी जैसे ही उसने सब्जी को मुंह में डाला मीरा बोली यह कैसी सब्जी है दांत से कट ही नहीं रही।

रोशनी की बेटी ने कहा मीरा तू पानी में रोटी लगाकर खाओ और सब्जी चूस कर प्लेट में रख दो। यह सब्जी है मैंने तो आज तक नहीं खाई और बाई जी तो हमारे घर में कभी नहीं बनाती है ऐसी सब्जी। रोशनी की बेटी नंदिनी ने कहा, परंतु हम तो हर रोज यही सब्जी खाते हैं। हम रोड़ से कंकड़ उठा कर, तभी रोशनी ने डाटंते हुए कहा चुपचाप खाना खाओ। नंदनी चुपचाप खाना खाने लगी।

खाना खाकर बच्चे खेलने लगे और रोशनी अपना घर का काम करने लगी। जब तक शाम हो गई थी रोशनी मीरा को लेकर मालकिन के घर चली गई। मीरा की मां ने आते ही रोशनी से कहा जल्दी से खाना लगा दो बहुत भूख लगी है। मां आज पता है आपको मैंने चूस कर फेंकने वाली सब्जी खाई और मैं पूरा दिन बहुत खेली। मेरे पांच दोस्त बन गए। कौन सी सब्जी बनाई थी जरा मुझे भी तो बताना।

मैं-मैं क्या कर रही है बता ना। मैं हर रोज कंकड़ रोड़ से उठाकर लाते हैं और उन्हें धोकर साफ करके उसकी सब्जी बना लेते हैं। यह क्या बोल रही है रोशनी तू, विद्या ने आश्चर्य से कहा। हमारे पास पैसे नहीं है और उनका काम भी कभी-कभी लगता।

घर में 5 बच्चे हैं। पर तूने बताया क्यों नहीं कभी। पहले आप इतना कुछ दे देती हो मालकिन, खाने की तरफ देख कर आज विद्या का मन खाना खाने को नहीं किया। बिना खाए उठ गई। क्या हुआ मेम साहब, खाना अच्छा नहीं बना था क्या आज।

अरे नहीं थक गई हूं ना इसलिए बोल कर अपने कमरे के अंदर जाते हुए कुछ पैसे रोशनी के हाथ में थमा कर बोली जाते समय राशन ले जाना। मालकिन मैं तो पहले ही पगार ले चुकी। चुप रह तू और हां ये सारा खाना घर ले जाना और बच्चों को खिला देना। जी मालकिन, अब तुम जाओ रात ज्यादा हो गई है और हां कल से तेरे पति को भी साथ में लेकर आना काम पर।

जी मालकिन रोशनी अपनी मालकिन का शुक्रिया अदा करते-करते घर चली गई।

♦ सीमा रंगा इन्द्रा जी – हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कहानी के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — दिल का साफ़ इंसान भले ही पैसे से गरीब होता है लेकिन एक अमीर दिल का मालिक होता हैं। सच्चे दिल वाला गरीब इंसान शर्म के कारण मांगता नहीं है, जल्दी कभी किसी से। वह रुखा सूखा खुद और अपने परिवार को खिला लेगा लेकिन जल्दी कभी भी किसी से मांगता नहीं। खास करके घर में काम करने वाली बाई। जो नेक दिल वाले मालिक और मालकिन होते है वह सत्य जानने के बाद उनको दिल से मदद करते है, जैसा की इस कहानी में विद्या ने रोशनी के साथ किया।

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यह कहानी (कंकड़ की सब्जी।) “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें व कहानी सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं, कहानी और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम सीमा रंगा इंद्रा है। मेरी शिक्षा बी एड, एम. हिंदी। व्यवसाय – लेखिका, प्रेरक वक्ता व कवयित्री। प्रकाशन – सतरंगी कविताएं, देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं व लेख, दैनिक भास्कर, दैनिक भास्कर बाल पत्रिका, अमर उजाला, संडे रिपोर्टर, दिव्य शक्ति टाइम्स ऑफ़ डेजर्ट, कोल्डफीरर, प्रवासी संदेश, वूमेन एक्सप्रेस, इंदौर समाचार लोकांतर, वूमेन एक्सप्रेस सीमांत रक्षक युगपक्ष, रेड हैंडेड, मालवा हेराल्ड, टीम मंथन, उत्कर्ष मेल काव्य संगम पत्रिका, मातृत्व पत्रिका, कोलकाता से प्रकाशित दैनिक पत्रिका, सुभाषित पत्रिका शब्दों की आत्मा पत्रिका, अकोदिया सम्राट दिव्या पंचायत, खबर वाहिनी, समतावादी मासिक पत्रिका, सर्वण दर्पण पत्रिका, मेरी कलम पूजा पत्रिका, सुवासित पत्रिका, 249 कविता के लेखक कहानियां प्रकाशित देश के अलग-अलग समाचार पत्रों में समय-समय पर।

सम्मान पत्र -180 ऑनलाइन सम्मान पत्र, चार बार BSF से सम्मानित, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सोसायटी से सम्मानित, नेहरू युवा केंद्र बाड़मेर से सम्मानित, शुभम संस्थान और विश्वास सेवा संस्थान द्वारा सम्मानित, प्रज्ञा क्लासेस बाड़मेर द्वारा, आकाशवाणी से लगातार काव्य पाठ, सम्मानित, बीएसएफ में वेलफेयर के कार्यों को सुचारु रुप से चलाने हेतु सम्मानित। गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड, प्रेसिडेंट ग्लोबल चेकर अवार्ड।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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पर्यावरण दिवस मनाने का औचित्य।

Kmsraj51 की कलम से…..

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    • ♦ पर्यावरण दिवस मनाने का औचित्य। ♦
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♦ पर्यावरण दिवस मनाने का औचित्य। ♦

जब हम नियमित पेड़-पौधे लगाएंगे, प्रदूषण को कम करेंगे तभी पर्यावरण दिवस मनाने का फायदा होगा।

पर्यावरण दिवस मनाने का औचित्य तभी पूरा होगा जब हम सचमुच में अपने आप को पर्यावरण के प्रति समर्पित करेंगे। सभी पेड़-पौधे लगाएंगे, पर्यावरण के प्रति सजग हो जाएंगे, साफ-सफाई रखेंगे और सबसे बड़ी समस्या प्रदूषण है; जिसका सभी को ध्यान रखना होगा।

क्योंकि प्रदूषण प्रकृति नहीं फैला रही, प्रदूषण हमारे द्वारा, हमारे वाहनों द्वारा, हमारी दैनिक क्रियाओं द्वारा हम धरती को प्रदूषित कर रहे हैं। जब तक प्रदूषण जारी रहेगा हमारा पर्यावरण दिवस मनाने का कोई फायदा नहीं होगा।

पर्यावरण को सुंदर बनाए रखना और प्रदूषण से रहित बनाए रखना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। जिससे हमारा देश तरक्की करेगा; प्रदूषण ने अपने पैर चारों तरफ फैला लिए हैं।

बड़े-बड़े महानगरों में ऐसे हालात है कि सांस लेने में भी तकलीफ होती है। सूरज जल्दी छिप जाता है। इसलिए हमें दैनिक कार्यों में गाड़ियों का प्रयोग जितना हो सके उतना कम करें। प्रकृति को बचाने के लिए कार्य करें ।

बहुत सारे लोगों ने अपने दैनिक जीवन में पेड़-पौधे लगाने का कार्य जारी रखा है और पर्यावरण के प्रति बहुत ही सजग हैं और अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे हैं।हमें जीवन में प्रतिदिन पेड़-पौधों को अपने साथ लेकर चलना होगा।

जैसे हम खाने के बिना नहीं रह सकते। वैसे ही पेड़-पौधे के बिना भी हमारा जीवन अधूरा है। जैसे हमें जीवित रहने के लिए भोजन-पानी की आवश्यकता है वैसे ही प्रकृति को जिंदा रखने के लिए पेड़-पौधे, साफ-सफाई, प्रदूषण रहित धरा बनाने की आवश्यकता है।

जलवायु प्रदूषण को रोकना होगा और वृक्षों की कटाई रोकनी होगी। कटाई की जगह वृक्षों को लगाना होगा जिससे कि प्राकृतिक आपदा से हम बच सकें। पर्यावरण को बचाना, प्रकृति को बचाना हमारे हाथ में है।

अगर हम कम दूरी के लिए साइकिल का प्रयोग करें तो इससे प्रदूषण तो कम होगा ही साथ में पैसों की बचत भी होगी। बाकी आप अपने हाथ से बीज लगाकर और उसे बड़ा होते देख। प्रतिदिन उसकी देखभाल कर पानी देते हैं। जैसे-जैसे पत्ते आएंगे आपका प्रसन्नता 4 गुना होगी और प्रतिदिन आप उठ कर देखेंगे कितने बड़े हो गए हैं पत्ते और कितने न आ गए हैं। जब वही पौधा बड़ा हो जाएगा तकरीबन 1 वर्ष या 2 का होने पर जब उसके फल लगने लग जाएंगे।

उस खुशी का कोई ठिकाना नहीं होता। जब आप फल खाएंगे तो, जो स्वाद आपको आएगा। लाखों रुपए के फल खरीद के भी नहीं मिल सकता। मैंने भी बहुत पेड़-पौधे लगाए हैं जब मैं फल तोड़ती हूं उस खुशी को मैं बयां नहीं कर सकती? मेरे पास शब्द नहीं होते, उस खुशी को लिखने के लिए। जब हम ऐसे कार्य करते हैं तो हमें देख कर दूसरे भी वैसा ही कार्य करते हैं।

अपने बगीचे में गिलोय को लगाया हुआ है तो प्रतिदिन 5 से 10 लोग गिलोय लेने के लिए आते हैं। बड़ा अच्छा लगता है कि हमारे लगाए पौधे किसी के कुछ काम आ रहे हैं। कोई पपीते के पत्ते, कोई पुदीना, ऐसे ही बहुत सारे पेड़-पौधे मेरे पास लेने के लिए आते हैं।

मन प्रसन्न हो जाता है। हम किसी के काम आ रहे हैं। अगर हम सांस ले रहे हैं तो हमारा फर्ज बनता है कि प्रकृति को बदले में पेड़ और साफ सफाई दें ताकि आने वाली पीढ़ी हमें याद रखें कि उनके लगाए पेड़ के फल खा रहे हैं।

लकड़ी मिल रही है। छांव मिल रही है। सबसे बड़ी बात उस खुशी को मैं बयां नहीं कर सकती। चिड़िया, कोयल, कबूतर, तोता, गिलहरी आते हैं। पक्षियों की ची-ची से वातावरण में मधुर संगीत गूंजने लगता है।

गर्मियों के मौसम में कुछ पल पेड़ के नीचे शुद्ध हवा का आनंद लेने में जो मजा है, वह आनन्द हमें किसी एसी (AC) से नहीं मिल सकता। आओ हमसब मिलकर ये संकल्प ले की हमसब खुद प्रत्येक दिन पेड़-पौधे लगाएंगे और सभी को पेड़-पौधे लगाने के लिए जागरूक करेंगे।

♦ सीमा रंगा इन्द्रा जी – हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है। जिसकी शुरुआत का उद्देश्य हमारे वातावरण को स्वच्छ व शुद्ध रखना है। जैसे हम खाने के बिना नहीं रह सकते। वैसे ही पेड़-पौधे के बिना भी हमारा जीवन अधूरा है। जैसे हमें जीवित रहने के लिए भोजन-पानी की आवश्यकता है वैसे ही प्रकृति को जिंदा रखने के लिए पेड़-पौधे, साफ-सफाई, प्रदूषण रहित धरा बनाने की आवश्यकता है। जलवायु प्रदूषण को रोकना होगा और वृक्षों की कटाई रोकनी होगी। कटाई की जगह वृक्षों को लगाना होगा जिससे कि प्राकृतिक आपदा से हम बच सकें। पर्यावरण को बचाना, प्रकृति को बचाना हमारे हाथ में है। आओ हमसब मिलकर ये संकल्प ले की हमसब खुद प्रत्येक दिन पेड़-पौधे लगाएंगे और सभी को पेड़-पौधे लगाने के लिए जागरूक करेंगे।

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यह लेख (पर्यावरण दिवस मनाने का औचित्य।) “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें व कहानी सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं, कहानी और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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हम पुस्तकें पढ़ेंगे तो ही बच्चे पढ़ेंगे।

Kmsraj51 की कलम से…..

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    • ♦ हम पुस्तकें पढ़ेंगे तो ही बच्चे पढ़ेंगे। ♦
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♦ हम पुस्तकें पढ़ेंगे तो ही बच्चे पढ़ेंगे। ♦

आप सभी ने सुना होगा कि बच्चे देख कर ही सीखते हैं। जैसा हम करते हैं बच्चे भी हमारा अनुकरण करते हैं। इस आधुनिक युग में जब से फोन ने सबकी जिंदगी में कदम रखा है पुस्तकों का महत्व ही खत्म होता जा रहा है। परंतु कुछ समय पहले ऐसा नहीं था।

सबको पुस्तकों से लगाव था। घर में पुस्तक रखी रहती थी। धार्मिक पुस्तकें भी पढ़ाई की पुस्तकें भी। परंतु आजकल तो यह खत्म ही होता जा रहा है। फोन पर ही किताबें पढ़ी जाती है। इसलिए बच्चे भी आजकल जिद्दी हो गए हैं उनको भी फोन चाहिए। अगर हम घर में मात-पिता ही पुस्तक नहीं पढ़ेगें तो बच्चों से कैसे उम्मीद लगा सकते हैं कि वे पढ़ें। जरूरी नहीं है कि आप पढ़ाई कर रहे हो तभी किसी पुस्तक को पढ़े।

जब भी आपको शाम को खाली समय मिले तो जिस भी पुस्तक में आपकी रुचि है उसे लेकर आप बैठ जाइए। एक घंटा पढ़ेंगे भी तो बच्चे आपको देख कर खुद ब खुद किताब उठाकर पढ़ने लग जाएंगे। इससे एक पंथ दो काज हो जाएंगे आपको बोलना भी नहीं पड़ेगा और बच्चो के अंदर भी अच्छे संस्कार जागृत होंगे।

अगर पुस्तक नहीं पढ़ सकते तो अखबार तो पढ़ सकते हैं। एक दो घंटा अखबार लेकर बैठेंगे तो बच्चे आपको देख कर खुद ब खुद पढ़ने बैठ जाएंगे। आज के इस डिजिटल युग में सारे काम फोन से हो जाते हैं।

अच्छा भी है काम तुरंत हो जाते हैं। परंतु पुस्तक पढ़ने भी तो बहुत जरूरी है। अभी लॉकडाउन में सबको पता लग गया होगा कि पढ़ाई का महत्व स्कूल वाली पढ़ाई का ज्यादा महत्व है या फोन वाली पढ़ाई का।

अध्यापक के साथ बैठकर बच्चे किताब से पढ़ते हैं। उसका ज्यादा महत्व है। आपको देखकर उसकी भी आदत में शामिल हो जाएगा पढ़ना। आपको पता भी नहीं चलेगा कब आपने संस्कार का बीज बोया और वह कब फल बनकर तैयार हो जाएगा । “यह एक ऐसी क्रिया है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती जाएगी।”

जरूरी नहीं है किसी विषय की ही पुस्तक पढ़ी जाए। आप कोई भी किताब पढ़ लो जो आपको अच्छी लगे। या बच्चों की पाठ्यक्रम की पुस्तक भी पढ़ सकते हैं, पाठ्यक्रम की पुस्तकें बहुत ही ज्ञानवर्धक होती हैं।

उससे दो काम एक साथ में हो जाएंगे। बच्चे को भी पढ़ा दोगे। साथ में बच्चों को पढ़कर सुना सकते हैं खेल – खेल में बच्चों का पाठ भी हो जाएगा और आपका समय पास हो जाएगा। और अपने बच्चे के साथ अच्छा समय भी बिता पाओगे।

♦ सीमा रंगा इन्द्रा जी – हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — पुस्तकें किसी भी इंसान की सबसे अच्छी व सच्ची मित्र है, “कोई ज्ञान कभी भी बुरा नहीं होता हां इंसान बुरे हो सकते है,” इसलिए जहां से भी हो सके ज्ञान अर्जित करने में शर्माना नहीं चाहिए कभी भी। जैसा हम करते हैं बच्चे भी हमारा अनुकरण करते हैं। इस आधुनिक युग में जब से फोन आया है तब से सबकी जिंदगी में पुस्तकों का महत्व ही खत्म होता जा रहा है। जब हम पुस्तकें पढ़ेंगे तो ही तो बच्चे भी पढ़ेंगे। आज भी जितने विद्वान् लोग है या बड़े बिजनेसमैन है सभी नियमित किताब पढ़ते हैं। जीवन के हर क्षेत्र में अगर आगे बढ़ना है तो पुस्तकें पढ़ना शुरू कर दे। आपको पढ़ता देखकर बच्चे भी पढ़ने लगेंगे। आओ हमसब मिलकर ये संकल्प ले की हमसब खुद भी पुस्तकें पढ़ेंगे और बच्चों के साथ-साथ सभी को पुस्तकें पढ़ने के लिए जागरूक करेंगे।

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यह लेख (हम पुस्तकें पढ़ेंगे तो ही बच्चे पढ़ेंगे।) “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें व कहानी सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं, कहानी और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम सीमा रंगा इंद्रा है। मेरी शिक्षा बी एड, एम. हिंदी। व्यवसाय – लेखिका, प्रेरक वक्ता व कवयित्री। प्रकाशन – सतरंगी कविताएं, देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं व लेख, दैनिक भास्कर, दैनिक भास्कर बाल पत्रिका, अमर उजाला, संडे रिपोर्टर, दिव्य शक्ति टाइम्स ऑफ़ डेजर्ट, कोल्डफीरर, प्रवासी संदेश, वूमेन एक्सप्रेस, इंदौर समाचार लोकांतर, वूमेन एक्सप्रेस सीमांत रक्षक युगपक्ष, रेड हैंडेड, मालवा हेराल्ड, टीम मंथन, उत्कर्ष मेल काव्य संगम पत्रिका, मातृत्व पत्रिका, कोलकाता से प्रकाशित दैनिक पत्रिका, सुभाषित पत्रिका शब्दों की आत्मा पत्रिका, अकोदिया सम्राट दिव्या पंचायत, खबर वाहिनी, समतावादी मासिक पत्रिका, सर्वण दर्पण पत्रिका, मेरी कलम पूजा पत्रिका, सुवासित पत्रिका, 249 कविता के लेखक कहानियां प्रकाशित देश के अलग-अलग समाचार पत्रों में समय-समय पर।

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ज्ञान अहमियत रखता है ना की अंक।

Kmsraj51 की कलम से…..

Table of Contents

  • Kmsraj51 की कलम से…..
    • ♦ ज्ञान अहमियत रखता है ना की अंक। ♦
      • आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
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    • आप सभी का प्रिय दोस्त
      • ———– © Best of Luck ®———–
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      • “सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

♦ ज्ञान अहमियत रखता है ना की अंक। ♦

आजकल परीक्षा में ज्यादा अंक लाने की प्रवृत्ति दिन – प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अभिभावक चाहते हैं कि मेरे बच्चे पूरे के पूरे परीक्षा में अंक लाएं। चारों तरफ बस होड़ लगी हुई है एक – दूसरे से ज्यादा अंक लाने की। इस बात पर जोर क्यों नहीं दिया जाता कि अंको की अहमियत तभी है जब हमें पूरे पाठ्यक्रम का ज्ञान होगा। कई बार ऐसा होता है, आप लोगों ने सुना भी होगा और देखा भी है, कम अंक लाने वाला विद्यार्थी जीवन में सफल हो जाता है और हमेशा कक्षा में अव्वल रहने वाला विद्यार्थी कई बार पीछे छूट जाता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि दोनों ने पढ़ाई नहीं की दोनों ने पढ़ाई की होती है परंतु कई बार बच्चे सिर्फ किताबों तक ही सीमित रह जाते हैं। वास्तविकता से उन्हें कोई लेना – देना नहीं होता।

बच्चों को किताबी कीड़ा बनाने की बजाए शिक्षा के साथ-साथ उन्हें खेलकूद के क्षेत्र में भी योगदान देने की कहे। ताकि बच्चे हर क्षेत्र में अपने हाथ आजमा ले और जीवन में तनाव की स्थिति पैदा ना हो क्योंकि ज्यादा अंक प्राप्त करने की स्थिति में बच्चे चिड़चिड़े और हठी हो जाते हैं। कई बार बच्चे अवसाद से ग्रसित होकर छोटी सी उम्र में ही परेशान रहने लगते हैं।

किसी का कहना नहीं मानते और कई बार तो बच्चे मौत को भी गले लगा रहे हैं, क्योंकि ज्यादा अंक लाने की प्रवृत्ति उनके अंदर इतना घर कर चुकी होती है कि उनको ज्यादा अंकों के सिवा कुछ नहीं दिखाई देता। अगर कई बार परीक्षा में बच्चे का पेपर अच्छा नहीं होता तो बच्चा सोचता है अब मेरे अभिभावक क्या बोलेंगे? हमारे पड़ोसी क्या बोलेंगे?

जिससे वह तनाव में आकर यह कदम उठा लेता है। बच्चों को सिर्फ ज्यादा अंक लाने के लिए दबाव न डालें उन्हें अपनी मर्जी से अपने विषय लेने दे और उन्हें ज्यादा अंक लाने की बजाय यह समझाएं कि आपको अच्छे से पढ़ना है अंक चाहे जितने भी आ जाए। पहले हमारे समय में बच्चे के ऊपर इतना दबाव नहीं होता था। पहले पढ़ाई के साथ – साथ बच्चे खेलकूद, घरेलू कार्यों में अपना योगदान देते थे। दादा – दादी, नाना – नानी के पास बैठते थे। जो आज बिल्कुल खत्म होता जा रहा है।

बचपन अच्छे से जीते थे, आजकल तो बच्चों ने पढ़ना शुरू किया नहीं कि मां-बाप खींचना शुरू कर देते हैं कि तुझे अच्छे नंबर लाने हैं सबसे ज्यादा नंबर लाने है। बस इसी की दौड़ में लगे रहते हैं। कई बार तो ऐसा होता है सोसाइटी के दूसरे बच्चे और उनके दोस्त के बच्चे अच्छे नंबर ला रहे। तो अभिभावक चाहते हैं उनके बच्चे भी ऐसे ही नंबर लाए। अपना नाम ऊपर करने के लिए या दिखावा करने के लिए लोगों के सामने यह बोलते हैं हमारे बच्चे के कितने नंबर आए।

एक बच्चे का दूसरे बच्चे के साथ तुलना करते हैं जो बिल्कुल गलत है। क्योंकि सब बच्चों में अलग-अलग प्रतिभाएं होती हैं। क्या हमारे अभिभावकों ने कभी ऐसा किया था? जो आज हम अपने बच्चों के साथ कर रहे हैं।

फूल से मासूम है,
जी लेने दो उन्हें बचपन।
हंसने दो, खेलने दो, मुस्कुराने दो,
खुली हवा में सांस लेने दो।
एक बार आता है बचपन,
चला गया, लौट कर कभी नहीं आएगा।

♦ सीमा रंगा इन्द्रा जी – हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — आप कोई भी कार्य करे, हर कार्य में प्रैक्टिकल ज्ञान ही मुख्य होता, अगर आपको प्रैक्टिकल कार्य की जानकारी नहीं है तो आप कभी भी उस कार्य को अच्छे से नहीं कर पाएंगे। इसलिए ज्ञान अहमियत रखता है ना की अंक। फंडामेंटल प्रैक्टिकल ज्ञान पर फोकस करे और जितना हो सके अपने आपको उतना अच्छा व्यावहारिक प्रैक्टिकल ज्ञान पर ध्यान दे तभी आप कोई भी कार्य अच्छे से कर पाएंगे। इस संसार में आप जिधर भी नज़र घुमाएं आपको बहुत सारे ऐसे लोग मिल जायेंगे जिनके पास अच्छा नंबर और डिग्री नहीं है लेकिन वो आज के समय में अच्छा पैसा कमा रहे है, लेकिन जिनके पास अच्छा नंबर भी था और अच्छा डिग्री भी लेकिन आज भी बहुत मुश्किल से अपना जीवन यापन कर रहे हैं। इसलिए अपने बच्चो पर कभी भी ये दबाव ना बनाये की अच्छा नंबर लाओ, इसकी जगह अपने बच्चो को समझाए की अच्छे से फंडामेंटल प्रैक्टिकल ज्ञान पर फोकस करे, और किसी भी विषय को प्रैक्टिकल रूप से अच्छे से समझे, जो उसे जीवन पर्यन्त लाभ पहुँचाये।

—————

यह लेख (ज्ञान अहमियत रखता है ना की अंक।) “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें व कहानी सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं, कहानी और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम सीमा रंगा इंद्रा है। मेरी शिक्षा बी एड, एम. हिंदी। व्यवसाय – लेखिका, प्रेरक वक्ता व कवयित्री। प्रकाशन – सतरंगी कविताएं, देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं व लेख, दैनिक भास्कर, दैनिक भास्कर बाल पत्रिका, अमर उजाला, संडे रिपोर्टर, दिव्य शक्ति टाइम्स ऑफ़ डेजर्ट, कोल्डफीरर, प्रवासी संदेश, वूमेन एक्सप्रेस, इंदौर समाचार लोकांतर, वूमेन एक्सप्रेस सीमांत रक्षक युगपक्ष, रेड हैंडेड, मालवा हेराल्ड, टीम मंथन, उत्कर्ष मेल काव्य संगम पत्रिका, मातृत्व पत्रिका, कोलकाता से प्रकाशित दैनिक पत्रिका, सुभाषित पत्रिका शब्दों की आत्मा पत्रिका, अकोदिया सम्राट दिव्या पंचायत, खबर वाहिनी, समतावादी मासिक पत्रिका, सर्वण दर्पण पत्रिका, मेरी कलम पूजा पत्रिका, सुवासित पत्रिका, 249 कविता के लेखक कहानियां प्रकाशित देश के अलग-अलग समाचार पत्रों में समय-समय पर।

सम्मान पत्र -180 ऑनलाइन सम्मान पत्र, चार बार BSF से सम्मानित, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सोसायटी से सम्मानित, नेहरू युवा केंद्र बाड़मेर से सम्मानित, शुभम संस्थान और विश्वास सेवा संस्थान द्वारा सम्मानित, प्रज्ञा क्लासेस बाड़मेर द्वारा, आकाशवाणी से लगातार काव्य पाठ, सम्मानित, बीएसएफ में वेलफेयर के कार्यों को सुचारु रुप से चलाने हेतु सम्मानित। गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड, प्रेसिडेंट ग्लोबल चेकर अवार्ड।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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पक्षियों की समझदारी।

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    • ♦ पक्षियों की समझदारी। ♦
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♦ पक्षियों की समझदारी। ♦

अरे ! तोता, कबूतर, मैना सुना क्या तुमने आज। बड़ी चिड़िया आई मेरे घोसलें के पास मुझे गिरा कर खुद बैठ गई और बोली यह घर मेरा है। भाग जा यहां से। अच्छा बहन यह तो बहुत बुरा हुआ। हमने देखा था तूने कितनी मेहनत लगन से घोंसला बनाया था। हां इसी बात का तो रोना है पर हम छोटी चिड़िया कुछ कर भी तो नहीं सकते। उस बड़ी चिड़िया के सामने तोता, मैना, कबूतर सब ने कहा क्यों नहीं कर सकते हम मिलकर कोई तरकीब ढूंढते हैं। सभी मिलकर बड़ी चिड़िया को काली चिड़िया के घोसलें से निकालने की तरकीब सोचने लगे। फिर कबूतर को एक आईडिया आया। हम सब जैसे ही बड़ी चिड़िया तेरे घोंसले आएगी उसे देखकर बातें करेंगे कि अच्छा हुआ काली बहन जो तू इस घोसलें से निकल गई।

वरना आज तो। हां-हां क्यों नहीं मैं यह जरूर काम आएगा। कुछ समय पश्चात जैसे बड़ी चिड़िया घोंसले में आई। तोता, मैना, कबूतर चिड़िया जोर-जोर से बातें करने लगे काली चिड़िया अच्छा हुआ जो समय रहते घोसलें को छोड़ दिया। नहीं तो आज! इतना बोल कर सभी चुप हो गए। तभी बड़ी चिड़िया बोली नहीं तो क्या। कुछ नहीं बड़ी चिड़िया हम तो बस ऐसे ही। ऐसे ही क्या बोल रहे हो! खुल कर बोलो। नहीं तो तुम सब को मारकर खा जाऊंगी। हां हां हां बड़ी चिड़िया अभी बताते हैं।

हमने क्या देखा अभी कुछ समय पहले ही सांप आया था उसने घोंसले के चारो ओर देखा और देख कर बोला कोई नहीं चिड़िया अब तू घोसले में नहीं है जैसे ही आएगी उसे खा जाऊंगा। यह देखो सांप की केचूंली भी है। दिखाओ दिखाओ किधर किधर डर के मारे बड़ी चिड़िया का बुरा हाल हो रहा था। देखो हां हां ये तो सांप की केचूंली है।

सभी मन ही मन हंस रहे थे क्योंकि उन्होंने कहीं जंगल से केचूंली को लाकर रख दिया था। और वह भी टूटी-फूटी परंतु बड़ी चिड़िया ने तो डर के मारे देखा भी नहीं की कितनी पुरानी है और टूटी हुई भी है केचूंली।

देखते ही फुर से उड़ गई और सभी पक्षियों को बोली तुम भी भाग जाओ वरना सब के सब मारे जाओगे। सांप सब को खा जाएगा। सभी जोर-जोर से हंस रहे थे और बड़ी चिड़िया का मजाक बना रहे थे। परंतु सब की समझदारी से काली चिड़िया का घोंसला बच गया।

♦ सीमा रंगा इन्द्रा जी – हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कहानी के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — हसमझदारी और सूझबूझ से हर समस्या का समाधान किया जा सकता है। इसलिए जब भी जीवन में कोई समस्या आये तो घबराये नहीं, समझदारी और सूझबूझ से उस समस्या का समाधान निकाले। इस पृथ्वी पर एक भी ऐसी समस्या नहीं जिसका समाधान न हो, इसलिए धैर्य के साथ समझदारी और सूझबूझ से हर समस्या का समाधान करे। शांत मन से विचार करे आपको समाधान जरूर मिलेगा।

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यह कहानी (पक्षियों की समझदारी।) “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें व कहानी सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं, कहानी और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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