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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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सुशीला देवी जी की रचनाएँ।

भावनाओं से खिलवाड़ करते विज्ञापन।

Kmsraj51 की कलम से…..

Table of Contents

  • Kmsraj51 की कलम से…..
    • ♦ भावनाओं से खिलवाड़ करते विज्ञापन। ♦
      • आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
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      • “सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

♦ भावनाओं से खिलवाड़ करते विज्ञापन। ♦

विज्ञापन जो किसी भी चीज के गुण को दर्शा कर उसकी बिक्री का साधन बनते थे। आज के कुछ विज्ञापन क्या सिखाना चाह रहे हैं ये पता ही नही लग पा रहा है। चंद पैसों की खातिर पता नही इन विज्ञापनों में क्या-क्या परोसा जा रहा है। जिनमें न तो भावी पीढ़ी के लिए संस्कार झलकते हैं और न ही कुछ ऐसा दर्शा पाते हैं जो किसी भी प्रकार से उपयोगी हो।

एक बीमे के विज्ञापन में भी एक औरत के हाल को इस प्रकार दर्शाया जाता है कि उसे बाइक पर बैठाकर ले जाया जा रहा है और वह गर्भवती है। उसका गर्भवती होना एक तरबूज से दर्शाया जा रहा है और एकदम से वो तरबूज गिराया जाता है। उसी समय फोन पे से बीमा एकदम कर दिया जाता है।

इस विज्ञापन को देखते हुए मुझें ये समझ नही आता कि क्या इस प्रकार के प्रदर्शन से इसकी सार्थकता कहाँ तक सिद्ध हो रही हैं।

इस प्रकार के विज्ञापन जो कि एक औरत के उस अनमोल लम्हें के प्रति खिलवाड़ करती है। जो उसे इस संसार में मातृत्व का सुख प्रदान करता है, और इस प्रकार से तरबूज के माध्यम से उसका गिरना न केवल उस औरत की मनोदशा पर आघात करता है जो इस प्रकार के दुखदायी समय से गुजरती है।

दूसरी बात भावी पीढ़ी में उस अवगुण को जाने-अनजाने दे जाती है जो उन्हें झूठ को अपनाकर अपने कार्य को सिद्धि प्रदान करते है।

एक उस औरत के दिल के मर्म को जानने की कोशिश मात्र से ही इन आँखों के कोर गीले हो जायेगे जिसने विवाह के कई साल तक इस मातृत्व का सुख न पाया हो।

इस प्रकार के विज्ञापन में तरबूज का गिरना भी शून्यहीन भावों को भर देता है जब मुस्कराना दिखाया जाता है। पहले तो इसमें एक गर्भवती के दुख को देखकर सब मदद को आयेंगे लेकिन दृश्य कुछ और ही होता है जब उस गर्भ रूपी तरबूज को गिराकर मुस्कराया जाता है।

कितना भाव-विहीन ये दृश्य लगता है क्योंकि असलियत में जब किसी भी कारण से किसी महिला को इन परिस्थितियों से गुजरना पड़े तो उसके दुख का सहज ही अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। गर्भपात इस प्रकार सरेआम सड़क पर किसी कारण से होता है तो उस महिला की पीड़ा को केवल वो और उसका सहयोग करने वाले ही समझ सकते हैं।

क्या इस सारे वृतांत को हटाकर इस विज्ञापन को दिखाते तो क्या इस बीमे की सार्थकता कम हो जाती?

आखिरकार इन विज्ञापनों के जरिये क्या परोसा जा रहा है। कुछ विचार कुछ चिंतन इन विषयों पर भी होना चाहिए कि हमें कुछ दिखाने के बहाने न जाने क्या-क्या दिखाया जा रहा। बहुत ही विचारणीय विषय है आओं मिलकर सभी विचार करें।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — विज्ञापन के नाम पर कुछ भी उलूल – जुलूल दिखाया जाता है, जिसका दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं होती है उस विषय से। आखिर क्यों उलूल – जुलूल विज्ञापन के माध्यम से नकारात्मक माहौल बनाया जाता हैं। एक उस औरत के दिल के मर्म को जानने की कोशिश मात्र से ही इन आँखों के कोर गीले हो जायेगे जिसने विवाह के कई साल तक इस मातृत्व का सुख न पाया हो।

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यह लेख (भावनाओं से खिलवाड़ करते विज्ञापन।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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बारिश का सबसे अलग और अद्भुत रूप।

Kmsraj51 की कलम से…..

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  • Kmsraj51 की कलम से…..
    • ♦ बारिश का सबसे अलग और अद्भुत रूप। ♦
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♦ बारिश का सबसे अलग और अद्भुत रूप। ♦

सावन के आते ही सबको बारिश का सुहाना रूप याद आता है जो मन में छुपे हुए प्रेम के उदगार, विरह की तपिश, बचपन के लड़कपन को उजागर करता है। प्रकृति भी हर ओर से पुकार करती नजर आती है। सब जीवों के नव संचार के लिए ये धरती पर अवतरित होती है। पर इस सुहाने और जीवनदायी मौसम के पीछे एक शब्द का कड़वा सच छिपा है जो उच्चवर्ग को छोड़ बाकी हम सभी ने बहुत नजदीक से देखा है और इसके दुख भी सहा है।

बारिश के आते ही टप-टप टपकती बूंदों से तड़-तड़ की आवाज़ से तेज होना सबको अच्छा लगता है। क्योंकि प्यासी धरती की प्यास बुझती है और सारी हरी-भरी वनस्पति नहाई हुई अति सुंदर लगती है, पर जब यही बरसना लगातार दो या तीन दिन हो तो आम आदमी के लिए ये बाहर तो क्या घर में ही एक माहौल ले आता है जब दिन-रात इसकी आहट से ही दिल घबराहट से भर जाता है जी।

और जब ये आता है तो अकेले बिल्कुल नही आता साथ में अपने परिवार को ले आता है जैसे कई पीढ़ियों का आगमन हम सब के घर में हो गया।

अब तो आप सभी को उसकी आहट आ ही गयी होगी। जी बिल्कुल सही पहचान गए आप सभी। क्योंकि हम सभी इसके दुख से भली-भांति परिचित है। क्योंकि हमारी चैन की नींद को न जाने कितनी बार इसने खराब किया है। कितनी बार इस टपके ने हमारे बाहर पहनने के कपड़ों पर भी बदनुमा दाग दिया।

कितनी बार इससे बचने के लिए रसोई के सारे छोटे-बड़े बर्तन कमरे में आये।कितनी बार इसने भरी बारिश में हम छत पर चढ़ाए।

एक बार तो ऐसा भी वर्ष आया था जब इतनी बारिश हुई कि कच्ची पक्की छतों ने सबने एक सुर में ही टपकना शुरू कर दिया था। अब तो सभी ने इस टपके का दर्द महसूस किया।

इस टपके का दर्द किसी भी दुख से बड़ा।
इसका आना तो ऐसे लगे जैसे कोई डंडा लेकर पीछे हो पड़ा॥

लगातार बारिश का ये रूप अनोखा और घर के अंदर ही दुख ऐसा देने वाला जो हर वर्ष बारिश के आने से पहले स्वतः ही अपना रूप दिखा जाता है। एक बात तो बारिश का हर रूप अपने आप में ही अलग ही है।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — सावन की बारिश जब भी आती सब तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ ले आती। सावन के आते ही सबको बारिश का सुहाना रूप याद आता है जो मन में छुपे हुए प्रेम के उदगार, विरह की तपिश, बचपन के लड़कपन को उजागर करता है। प्रकृति भी हर ओर से पुकार करती नजर आती है। सब जीवों के नव संचार के लिए ये धरती पर अवतरित होती है। पर इस सुहाने और जीवनदायी मौसम के पीछे एक शब्द का कड़वा सच छिपा है जो उच्चवर्ग को छोड़ बाकी हम सभी ने बहुत नजदीक से देखा है और इसके दुख भी सहा है। बारिश के आते ही टप-टप टपकती बूंदों से तड़-तड़ की आवाज़ से तेज होना सबको अच्छा लगता है। पर जब यही बरसना लगातार दो या तीन दिन हो तो आम आदमी के लिए ये बाहर तो क्या घर में ही एक माहौल ले आता है जब दिन-रात इसकी आहट से ही दिल घबराहट से भर जाता है जी।

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यह लेख (बारिश का सबसे अलग और अद्भुत रूप।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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दोहरी मानसिकता।

Kmsraj51 की कलम से…..

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    • ♦ दोहरी मानसिकता। ♦
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♦ दोहरी मानसिकता। ♦

आज के युग में एक ऐसी दोहरी मानसिकता ने बहुत इंसानों के दिल में इस प्रकार से घर कर लिया है ऐसा लगता है मानों ये इसी प्रकार से इस धरती पर जन्में हो, और ये प्रवृति इंसान समय मिलते ही दिखाने लगते हैं। इसका जीता जागता उदाहरण हमें अपने बच्चों के मुख से भी सुनने को मिल जाता है जब वो बोलते है कि मेरा भाई प्राइवेट स्कूल में है और हम बहनें सरकारी स्कूल में।

जब अभिभावक-अध्यापक मीटिंग में उनसे इस बारें में कोई चर्चा होती है तो वो हँसते हुए इस बात को कहते है कि जी एक लड़का है इसलिए वहाँ पर पढ़ा रहें हैं और जब हम पूछते है कि आपकी बेटियों की पढ़ाई यहाँ पर कैसी है तब वो कहते हैं कि बहुत अच्छी पढ़ाई होती है यहाँ भी। आजकल तो सरकारी स्कूलों में अच्छी पढ़ाई होती है। कई बार तो वो तुलनात्मक स्थिति में ये भी कह देते है कि बेटियाँ अच्छा काम कर रही है।

फिर समझ में नही आता कि फिर भी माता-पिता का ये भेदभाव क्यूँ।

घर में एक साथ रहने वाले बेटा-बेटी के साथ ये अलगाव की स्थिति घर से ही पैदा हो जाती है। जो लड़कियों के बालमन पर कई बार ऐसी छाप छोड़ देती है जो चाह कर भी जिंदगी भर दूर नही होती। क्योंकि हमें अक्सर इस प्रकार के बच्चों के कोमल दिल से ऐसे भाव देखने सुनने को मिलते है जो हम शिक्षकों को भी दुख देने में पीछे नही रह पाते।

खासकर वो पूरा वर्ष पढ़ाई संबंधी चीजें कॉपी, पेंसिल, रबड़ व नए बैग, टिफ़िन और बोतल के लिए झूझते दिखाई देते है जैसे भाई की ही पुरानी बोतल में पूरा साल काम चलाना या कॉपी के पिछले पन्नों पर लिखा मिटाकर काम करना। इस प्रकार की बहुत सी बातें हमें अपनी कक्षाओं में देखने को मिलती है जिससे माता-पिता की दोहरी मानसिकता दिखाई दे जाती। इसका सबसे ज्यादा उदाहरण हमारे सरकारी विद्यालयों में मिलता है जो कि एक कड़वा सच है। आखिरी में दसवीं, बारहवीं तक आते-आते लड़कियाँ ही टॉप करती है हर वर्ष।

क्योंकि एक सरकारी अध्यापक के लिए तो कक्षा का हर छात्र-छात्रा एक समान है। इसलिए उनमें किसी प्रकार भेदभाव किए बिना ही उनको एक समान शिक्षा मिलती है।

अंत में वे बेटियाँ ही माता-पिता की शान बनती है जिनको सरकारी विद्यालयों में ये सोच कर दाखिला दिलवाते है कि इन पर पैसा तो खर्च करना नहीं होगा बल्कि कुछ न कुछ इनसे हासिल ही होता है। पर ये अपनी योग्यता से हर बार सिद्ध कर ही देती है कि लड़कियाँ कभी भी पीछे नही रही बल्कि उन्होंने हर जगह ही सफलता का परचम लहराया। सही तो सार्थक कथन इन बेटियों के लिये:—

हम हर हाल में अपने माता-पिता का नाम रोशन कर जाएगी।
देखोगे जिधर भी बेटियाँ ही सफलता का परचम लहराएगी।।
एक शिक्षिका की कलम से…
(श्रीमती सुशीला देवी – जे.बी.टी.अध्यापिका करनाल हरियाणा)

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — आखिर कब तक समाज में ये दोहरी मानसिकता चलता रहेगा लड़कियों के लिए। आखिर क्यों लड़कियों को लड़को के बराबर सबकुछ नहीं दिया जा रहा है, क्यों उनको दोयम दर्जे का प्यार और सबकुछ दिया जा रहा है आज भी समाज में, क्या यही मानसिक विकास है? प्राचीन समय में भारत के हर स्थान की नारी स्वतंत्र थी, महिलाओं पर किसी भी प्रकार का कोई प्रतिबन्ध नहीं था। महिलाएं यज्ञों और अनुष्ठानों में भी भाग लेती थी। मध्य युग में धीरे-धीरे समय बदलने के साथ पुरुष ने अपने अहम भाव के कारण नारी को निम्न स्थान दिया। आज फिर से नारी समाज में प्रतिष्ठित और सम्मानित हो रही है अपने अद्भुद समझ व अच्छे ज्ञान व प्रतिभा के प्रदर्शन के दम पर। अक्सर यह देखा गया है— अंत में वे बेटियाँ ही माता-पिता की शान बनती है जिनको सरकारी विद्यालयों में ये सोच कर दाखिला दिलवाते है कि इन पर पैसा तो खर्च करना नहीं होगा बल्कि कुछ न कुछ इनसे हासिल ही होता है। पर ये अपनी योग्यता से हर बार सिद्ध कर ही देती है कि लड़कियाँ कभी भी पीछे नही रही बल्कि उन्होंने हर जगह ही सफलता का परचम लहराया।

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यह लेख (दोहरी मानसिकता।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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यदि आपके पास हिंदी या अंग्रेजी में कोई Article, Inspirational Story, Poetry, Quotes, Shayari Etc. या जानकारी है जो आप हमारे साथ Share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी ID है: kmsraj51@hotmail.com पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks!!

“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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एक नजर इन पर भी।

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♦ एक नजर इन पर भी। ♦

प्रकृति प्रेमियों के चेहरे पर खुशी झलकती है मानसून के आते ही। क्योंकि इसके आते ही उनका पौधा रोपण का कार्य शुरू हो जाता है।

अति प्रेरणादायी बात होती है जब सभी पौधा-रोपण पर कार्य शुरू हो जाता है। लेकिन इस मानसून से पहले एक विशेष बात पर ध्यान देना चाहिए वो है सड़क के दोनों ओर लगे हुए पेड़ों का सूखा होना।

अगर हम किसी भी सड़क पर चल रहें हैं तो हम सब अगर ध्यानपूर्वक देखे तो अगर सौ पेड़ लगे हो तो उसमें कम से कम पांच या दस पेड़ लगभग इस प्रकार होते है जो या तो पूरी तरह से दीमक लगने से या अन्य किसी कारण से सूख चुके होते हैं कि हल्की हवा से ही वो गिर कर सड़क के रास्ते अवरोधक बन जाते हैं।

कई बार तो आँधी आने पर इतने बड़े हादसे को अंजाम दे देते है कि इनका गिरना इंसान की जान पर जोखिम बन सकता है। तो मानसून के आने से पहले या समय-समय पर इनकी कटाई को सुनिश्चित करना होगा ताकि इनके गिरने से कोई भी जान-माल की हानि न हो।

अगर इन सूखे और खोखले पेड़ों को समय पर हटा दिया जाए तो एक तो बड़े हादसों से बचा जा सकता है और दूसरा उनके स्थान पर नया पौधा रोपण किया जा सके।

सूखे और खोखले पेड़ न बने हादसे का कारण कोई।
समयानुसार कटाई कर उनकी जगह नई पौध बोई।

मानसून के बाद तो इनकी जड़ो की मिट्टी स्वतः ही जगह छोड़ देती है, और कहीं सड़क पर अवरोधक के रूप में कहीं पर बिजली की तारों को तोड़ते दिखाई देते हैं। इसलिए समय रहते ही इनके प्रति जागरूकता प्रशासन और आम व्यक्ति को भी दिखानी होगी, ताकि इनसे होने वाली अनहोनी को टाला जा सके।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — वर्षा ऋतू के समय सड़क के किनारे पेड़ लगाए जरूर, लेकिन पेड़ लगाना ही काफी नहीं है। उसका अच्छे से देखरेख व कटाई-छटाई मानसून आने से पहले हो जाये तो कोई भी अनहोनी न हो, किसी तरह का कोई हादसा (दुर्घटना) न हो। इस कार्य के लिए इससे जुड़े सरकारी विभाग व समाज के लोगों को जागरूक रहना होगा, और जिससे जितना हो सके सभी को मदद भी करना चाहिए। हम सभी भलीभांति जानते है की पेड़ भी धरती माता के बेटे हैं और हम इंसानो के सच्चे व अच्छे मित्र भी हैं। वृक्षों से हमें फल, सब्जियां, बीज, लकड़ियां, इत्यादि प्राप्त होते है। लकड़ी से हमे फर्नीचर, कागज़, गोंद, इत्यादि वस्तुएँ प्राप्त हो जाती हैं। इसके अलावा अनेको पेड़ों व पौधों से बहुत सारी औषधियां तैयार की जाती है, जो हमारे शरीर से संबंधित कई प्रकार के हानिकारक रोगों का उपचार करने में हमारी मदद करती है।

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यह लेख (एक नजर इन पर भी।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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बारिश के नए – नए रूप।

Kmsraj51 की कलम से…..

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  • Kmsraj51 की कलम से…..
    • ♦ बारिश के नए – नए रूप। ♦
      • आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
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      • “सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

♦ बारिश के नए – नए रूप। ♦

बारिश के नए नए रूप … बारिश का नाम लेते ही उन ठंडी फुहारों की अकस्मात याद आ जाती है तो टप-टप करके काले आसमान से गिरना प्रारंभ करती है और कुछ देर में ही सब जगह पानी से वातावरण को इस कदर खुशनुमा बना देती है; जैसे अभी-अभी प्रकृति नहा कर आई हो।

लेकिन आजकल तो कुछ अलग ही नजारा होता है बारिश का।

थोड़ी सी बारिश ने अपना रंग दिखाया नही की सब तरफ पानी ही पानी हो जाता है। स्वच्छता और सफाई में अव्वल आने वाले शहरों का गलियों और सड़कों पर भी पानी इस कदर जमा हो जाता है जैसे ये कोई जगह नही बल्कि गंदे नाले या जोहड़ हैं।

फिर बारिश की उन प्यारी बूंदों को ही हम कोसने लगते है जिनके बगैर इस धरा पर जीवन का कोई भी अस्तित्व नही है।

जब बारिश से प्राकृतिक आपदा आती है तो, वो तो अपने हाथ नही। लेकिन जब नगरों और महानगरों में थोड़ी सी बारिश पर सब लबालब हो जाता है, तो इसमें बारिश का कोई कुसूर नही। बल्कि हम सबका ही कुसूर है कि इस पानी की निकासी का समुचित प्रबंध नही किया जाता और जो वर्षा-जल-संचय के लिए प्रबंध होते है वो सब खानापूर्ति करते ही नजर आते है।

इन सभी छोटी-छोटी बातों की ओर हम सभी नागरिकों का सहयोग प्रशासन के साथ हो और प्रशासन को भी इन सभी बातों के लिए मानसून आने से पहले ही उचित कदम उठाने होंगे; ताकि बारिश के आते ही उसका ये रूप कहीं भी न दिखाई दे और प्रकृति के इस अनमोल उपहार का पूरा आनंद ले सके।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — जब बारिश के पानी का निकासी सही तरीके से व सही जगह पर हो तब जाकर जल जमाव की समस्या समाप्त हो। मात्र बोलने भर से ही कभी भी किसी समस्या का समाधान नहीं होता हैं, इसलिए जो इसके लिए जिम्मेवार है वर्षा से पहले ही पानी के निकासी का सही प्रबंध करें। जब बारिश से प्राकृतिक आपदा आती है तो, वो तो अपने हाथ नही। लेकिन जब नगरों और महानगरों में थोड़ी सी बारिश पर सब लबालब हो जाता है, तो इसमें बारिश का कोई कुसूर नही। बल्कि हम सबका ही कुसूर है कि इस पानी की निकासी का समुचित प्रबंध नही किया जाता और जो वर्षा-जल-संचय के लिए प्रबंध होते है वो सब खानापूर्ति करते ही नजर आते है।

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यह लेख (बारिश के नए – नए रूप।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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अमृतमयी जीवन देता गुरु।

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    • ♦ अमृतमयी जीवन देता गुरु ♦
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♦ अमृतमयी जीवन देता गुरु ♦

ये तो हम सभी जानते हैं कि गुरु शब्द ही अपने आप में इतना सार्थकता लिए हुए है कि इस शब्द के मानव-जीवन में आगमन से ही उजाला सर्वत्र फैलता दिखाई देता है।

गुरु शब्द स्वयं में ही अज्ञानता से ज्ञान का मार्ग प्रशस्त करता है। गुरु स्वयं ही शिष्य के मार्ग को अमृतमयी बनाकर उसका नाम इस संसार में रोशन करता है। गुरु के अस्तित्व में ही त्रिदेवों को समाहित माना गया है और इस पूरे ब्रह्मांड में गुरु के नाम का सदैव ही शंखनाद हुआ है जिन्होंने सदैव सत्य के दिये से अपने शिष्यों के पथ को प्रकाशवान किया है।

ये पंक्तियां कुछ अपने शब्दों से गुरु की महिमा व्यक्त करती है:

गुरु के प्रति मनुष्य की आस्था के शून्य हो गए भाव।
तभी से मानव-जीवन में शांति-सुख का हो गया अभाव॥

मनुष्य के जीवन में जीवन-पर्यन्त न जाने कितनी ऐसी बाधायें आई है जब इंसान को कोई रास्ता नही दिखाई देता। तब गुरु ही वो मांझी बनता है जो मानव की नैया को पार लगाता है। उसके जीवन में ज्ञान का उजाला कर देता है।

अब वो समय आ गया है जब गुरु को केवल फल-फूल, दान-दक्षिणा की ही जरूरत नही बल्कि गुरुओं की दी गयी शिक्षाओं और उपदेशों को जीवन में धारण करें और इस अनमोल मानव-जीवन का मिलना इस संसार में सार्थक बनायें।

गुरु-पूर्णिमा की सभी को हार्दिक बधाई! क्योंकि गुरु-पूर्णिमा का विशेष दिन भी इस संसार को ज्ञान के उजाले से प्रकाशवान करता है।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — गुरु शब्द स्वयं में ही अज्ञानता से ज्ञान का मार्ग प्रशस्त करता है। गुरु स्वयं ही शिष्य के मार्ग को अमृतमयी बनाकर उसका नाम इस संसार में रोशन करता है। 2,500 साल से भी अधिक पहले, बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया और बोधगया से सारनाथ, उत्तर प्रदेश गए। वहां उन्होंने पूर्णिमा के दिन उपदेश दिया, जिसे आज गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा वह दिन भी है जो महान भारतीय महाकाव्य महाभारत के लेखक महर्षि वेद व्यास की जयंती का प्रतीक है । इस दिन को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। गुरु पूर्णिमा छात्रों और शिक्षकों के बीच संबंधों का प्रतीक है।

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यह लेख (अमृतमयी जीवन देता गुरु।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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अब प्याज भी रुलाएगा।

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  • Kmsraj51 की कलम से…..
    • ♦ अब प्याज भी रुलाएगा। ♦
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♦ अब प्याज भी रुलाएगा। ♦

हम सब के भोजन में अभी तक कही न कही और किसी न किसी रूप में प्याज का प्रयोग हो रहा है। कच्चे प्याज के लाभों को देखकर तो पहले लगभग हर घर में कच्चे प्याज को खाया जाता था चाहे हर रोज सिलबट्टे पर प्याज की चटनी ही क्यों न बनानी पड़े। लेकिन धीरे-धीरे इसका प्रयोग केवल पका ही किया जाने लगा।

हाल ये है कि बच्चें अब घर के खाने में प्याज आने से नाक-भौ सिकोड़ते है वहीं पर हॉट डॉग व बर्गर में सड़क पर चाव से खाते है। चलो कोई बात नही ये मान लेते है कि चलो कोई तो प्याज का गुण इनके शरीर में जा रहा होगा।

लेकिन अब प्याज के गुणों का एक नई जगह ही प्रयोग हो रहा है। हम सभी हर रोज देखते भी हैं।

क्या हुआ सोच में पड़ गए। अरे हां आप सभी सही समझे वो है प्याज शैम्पू।

इस प्याज शैम्पू की तो इस तरह से बाढ़ आ गयी है, ऐसे लग रहा कि बालों की हर बीमारी का इलाज प्याज में ही छिपा है। आज लगभग हर शैम्पू अब प्याज शैम्पू बन गया।

अब तो अमीरों की डाइनिंग टेबल पर जहाँ फलों की टोकरी होती थी वहाँ पर अब प्याज भर-भरकर टोकरी रखी होती है। ऐसा लगता है बस सभी पैसों वालों को बालों की बीमारी लगी है और फिर सैलून में जाकर प्याज वाले शैम्पू से हर समस्या का इलाज मिनटों में हो जाता है।

अब जो गरीब तबका और मध्यमवर्गीय लोग प्याज के साथ अपने भोजन को अच्छे से खा लेते थे। अब उसमें से प्याज भी धीरे-धीरे निकल जायेगा ऐसा लगता है।

पर इसमें एक विचारणीय विषय जरूर है कि शायद इसके गुणों को भूल गए थे और कच्चा प्याज किसी भी रूप में खाना छोड़ दिया। अब वही दूसरे रूप में इस्तेमाल होने लगा है।

अब एक ही विचारणीय विषय है बस अगर हम इसको खाते तो शायद इसको लगाने की नौबत इस कदर नही आती।

क्योंकि ये बेशकीमती प्याज हम सबके शरीर में अपने अच्छे गुणों को छोड़ता और अनेक बीमारियों से हमें स्वतः ही बचा लेता। चाहे वो बालों की ही समस्या क्यों न हो।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — प्याज (Raw Onion Benefits) को सेहत के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है। प्याज (Onion Benefits) में एंटी-एलर्जिक, एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-कार्सिनोजेनिक गुण होते हैं। इसके अलावा प्याज में भरपूर मात्रा में विटामिन ए, बी6, बी-कॉम्प्लेक्स और सी भी पाया जाता है। प्याज के सेवन से शरीर को इंफेक्शन के खतरे से बचाया जा सकता है। प्याज के रस बालों और स्कैल्प को पोषण देता है। प्याज के रस में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं। इस कारण यह स्कैल्प पर होने वाले किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचाव कर बालों को झड़ने से रोक सकता है। इसमें प्रचुर मात्रा में सल्फर होता है, जो स्कैल्प के ब्लड सर्कुलेशन में भी सुधार लाकर नए बालों को जड़ से मजबूत बनाने में मदद करता हैं।

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यह लेख (अब प्याज भी रुलाएगा।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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ये कैसी भिक्षावृत्ति।

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    • ♦ ये कैसी भिक्षावृत्ति। ♦
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♦ ये कैसी भिक्षावृत्ति। ♦

प्राचीनकाल में केवल वही लोग द्वार-द्वार जाकर भिक्षा मांगते थे जो लोग संन्यास धारण करते थे या समाज की भलाई के लिए तप करते थे। तब उनके शिष्य ही केवल भिक्षा में केवल इतना मांग कर ले जाते थे जितना उनका सुबह या शाम के भोजन का कार्य चलता था।

धीरे-धीरे ये प्रचलन इतना बढ़ता चला गया कि धार्मिक स्थानों पर इनकी इतनी भीड़ एकत्रित होने लगी कि उन स्थानों के दर्शन करने भी दुर्लभ हो गए।

अब ये भिक्षावृति ने एक अलग से नया रूप धारण किया कि विकलांगों, अनाथों और गऊ शालाओं के नाम पर अब घर की घंटी बजाकर कोई दान नही बल्कि रुपयों की पर्ची काटते हैं।

अगर इनसे कोई भी उस पर्ची के बारे में कुछ भी सवाल पूछा जाए तो वो आना कानी करके अगले घर की ओर बढ़ जाते है। सबसे बड़ी हैरानी की बात तो ये होती है कि वो शारारिक रूप से बिल्कुल हट्टे-कट्टे होते है कमाने के लायक।

अब हमें ये समझना होगा कि इस प्रकार के पात्र दान के काबिल है या नही। हम इनको रुपयों का दान न देकर बल्कि किसी भी अनाथालय या किसी भी आश्रम में कोई भी दान देना हो तो हम स्वयं जाकर उनकी जरूरत का सामान और गौशाला में अपने हाथों से हरा चारा देकर दान की सार्थकता को सिद्ध कर सकते है।

इससे एक तो हमारी आत्मसंतुष्टि होती है दूसरा किया गया दान सुपात्र को जाता है। इस प्रकार की भिक्षावृत्ति को रोकने में एक सभ्य नागरिक की एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते है।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — जब भी दान दे पात्र को देखकर दे वो भी जरूरत का सामान ना की पैसा। किसी भी अनाथालय या किसी भी आश्रम में कोई भी दान देना हो तो हम स्वयं जाकर उनकी जरूरत का सामान और गौशाला में अपने हाथों से हरा चारा देकर दान की सार्थकता को सिद्ध कर सकते है।

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यह लेख (ये कैसी भिक्षावृत्ति।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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छाया चित्रों की भरमार।

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    • ♦ छाया चित्रों की भरमार। ♦
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♦ छाया चित्रों की भरमार। ♦

इस डिजिटल जमाने में जो सबसे ज्यादा हुआ है वो है फ़ोटो खींचने का चलन। क्योंकि ये किसी भी बात का मजबूत प्रमाण बनते हैं। सब जगह देखों तो सेल्फी या फ़ोटो लेने का जमाना ही रह गया। कई बार ऐसा लगता है कि इस दिखावे के पीछे असलियत छिपती जा रही है। झूठ ने इस फोटो के सच का पहनावा पहन लिया है।

अभी हम सब ने विश्व पर्यावरण दिवस मनाया। तो उसमें जहाँ पर भी देखो इस प्रकार के छाया चित्रों की भरमार थी जैसे एक नन्हें से पौधे को लगाकर उसके साथ तीन से लगभग आठ व्यक्तियों का खड़ा होना, और ऐसा लग रहा था मानो जैसे नन्हा पौधा पुकार कर रहा हो कि अरे दूर हटो मुझें भी तो फ़ोटो में आने दो!

निस्वार्थ भाव से की गई हर चीज फलदायी होती है। इस बात को सदैव ही हम अपने दिल में धारण कर रखें। कुछ भी सिर्फ फ़ोटो के लिए न करके दिल से उस कार्य को आत्मसात करें। तभी हमारा, समाज का, देश का व पूरे विश्व का कल्याण है।

निस्वार्थ भाव व नेक कर्म से कार्य करें और छाया चित्र भी लीजिये। लेकिन हर हाल में वास्तविकता दर्शाती हुई होनी चाहिए। कहीं ऐसा न हो इन फ़ोटो की अधिकता में उस कार्य का अस्तित्व ही खतरे में आ जाये, जिसके लिए हमने कर्म किया।

निःस्वार्थ भाव से हर कर्म हम करते जाए।
छायाचित्र में कर्म का अस्तित्व न छिप जाए॥
परोपकार की भावना सदैव दिल में बसाए।
पर्यावरण की रक्षा कर खुद पर कर्म कमाए॥

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — प्रकृति संतुलन बनाए उसके लिए हम सभी दिल से प्रत्येक इंसान प्रत्येक वर्ष एक पेड़ जरूर लगाए और उस पेड़ का देखरेख तब तक करे, जब तक वह पेड़ जमीन से अपना ख़ुराक खुद न लेने लगे। निस्वार्थ भाव से की गई हर चीज फलदायी होती है। इस बात को सदैव ही हम अपने दिल में धारण कर रखें। कुछ भी सिर्फ फ़ोटो के लिए न करके दिल से उस कार्य को आत्मसात करें। तभी हमारा, समाज का, देश का व पूरे विश्व का कल्याण है।

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यह लेख (छाया चित्रों की भरमार।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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दिवस मनाने की होड़।

Kmsraj51 की कलम से…..

Table of Contents

  • Kmsraj51 की कलम से…..
    • ♦ दिवस मनाने की होड़। ♦
      • आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
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      • “सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

♦ दिवस मनाने की होड़। ♦

आज कल भारत में भी दिवसों को मनाने की होड़ लगी हुई है। एक विशेष दिवस को मनाने की बात समझ में आती थी जैसे शिक्षक दिवस, चिकित्सक दिवस। लेकिन ये क्या अब ये दिवस मनाने में रिश्तें भी पीछे नही रहे। जैसे मातृ-पितृ दिवस।

ये रिश्ता तो इस पृथ्वी पर इतना अहमियत रखता है जिसके आगे देव भी नमन करते हैं। आओं विचार करे कि इन दिवसों को मनाने की जरूरत है या नही। क्योंकि हमारी भारतीय संस्कृति में तो पुराने जमाने में सबसे पहले घर में बने भोजन का भी घर के बड़ों को ही परोसा जाता था। तो ये उनको पूजने जैसा ही तो था, क्योंकि इस कार्य में उनका आदर-मान होता था।

फिर ये दिवस मनाने की जरूरत क्यों आई?
क्या एक ही दिन ही हमें इनको खुश रखना हैं?

पहले हमारे भारत में अनाथ आश्रम तो थे। लेकिन वृद्धाश्रम नही थे। आज वृद्धाश्रम की अधिकता हो गयी। क्योंकि आधुनिकता की दौड़ में घरों के बुजुर्गों का मान सम्मान केवल दिवसों में सिमट कर रह गया है।

मात-पिता का तो हर दिन होता है क्योंकि इनके बिना हम सबका कोई अस्तित्व नही है, तो बस एक ही बात इस दिनों को मनाने को सार्थक कर सकती है जब हम हर अपने मात-पिता का आदर करे।

हमारे माता-पिता हमारे घरों के अंदर हम सब के मध्य ही मुस्कराए। अपने बच्चों को भी हम भारतीय संस्कृति के गुणों को आत्मसात कर बड़ों का दिल से आदर करना सिखाए, क्योंकि बच्चें बड़ों को देखकर ही ज्यादा सीखते है।

तो आओं हम सब अपने माता-पिता का दिलों से सम्मान कर भावी पीढ़ी में भी ये गुण भर दे। ताकि किसी के घर का कोई भी बुज़ुर्ग सड़क पर या वृद्धाश्रम में न हो।

दिवस मनाने की सार्थकता तो तभी है जब…

जब अपनों के मध्य ही इनके चेहरे खिले रहे।
जब तक जीये ये हमारे घरों की ढाल बने रहे॥

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — स्त्री ईश्वर की वह सुन्दर रचना है जिसमें त्याग, स्नेह, भावनाओं और समर्पण भरपूर होता है। स्त्री अनेक भूमिकाओं को बखूबी निभाती है। वैसे – माता और पिता दिवस ताे हर मनुष्य काे अपने अंतिम श्वास तक मनाना चाहिये। एक सच्चा पिता सदैव ही अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिये दिन-रात अनवरत (continuously) कार्य करता हैं। जहा माता अपने बच्चों के स्वास्थ्य का ध्यान रखती हैं ताे वही पिता उन्हे सही ज्ञान और समझ देते हैं। जहा प्रथम गुरु माँ हैं ताे वही पिता गुरु हाेने के साथ-साथ सच्चा संरक्षक भी हाेता हैं।

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यह लेख (दिवस मनाने की होड़।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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