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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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हेमराज ठाकुर जी की कविताएं।

तुलसी पूजन और क्रिसमस डे।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ तुलसी पूजन और क्रिसमस डे। ♦

यहां तुलसी पूजन, वहां क्रिसमस डे,
दिन एक पर धारणाएं लहदी – लहदी है।
यह जाड़े का शुष्क पतझड़ का मौसम,
तुलसी तो इस मौसम की परमौषधि है।

बनावट का हर सजोसामान कहां देगा?
राहत सर्दी – गर्मी और आधी व्याधि से।
चन्द लोगों के पर्व मानना कोई दोष नहीं,
वे हमारे न मनाए, है धोखा घनी आबादी से।

क्यों लगाए बैठे हैं आस कि पौधा,
प्लास्टिक का ऑक्सीजन छोड़ेगा।
वह तो तुलसी में ही क्षमता है साहेब,
जो रोग, शोक, दुख संताप को तोड़ेगा।

अपनी संस्कृति और सभ्यता तो यारो,
आखिर अपनी है और अपनी ही होती है।
क्रिसमस के फेर में भूल के पूजा तुलसी की,
यह भारत की सनातनी सभ्यता कहां खोती है?

अब हो गया दौर बहुतेरा भूलभुल्या का,
अपनी रीत पर फिर से लौट के आना होगा।
जो जागे हैं आज, वे तो जागते ही रहना,
पर जो सोए हैं, उन्हे भी जागना होगा।

हो गई दरिया दिली बहुतेरी है आज तक,
अब संस्कृति सभ्यता का गुण गाना होगा।
धर्म निर्पेक्षता के सुन्दर लिवास में हमको,
अपने धर्म की हर रसम को निभाना होगा।

कहीं भूल न जाए हमारी औलादें सब कुछ,
इतना भी पछुआ अंधानुकरण भला नहीं है।
बस सुरक्षित रहे हमारा भी सनातन जग में,
बाकी हमे किसी का कुछ भी खला नहीं है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — आज यानी 25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। सनातन धर्म में तुलसी पूजा का अत्यधिक महत्व होता है। तुलसी की पूजा करने से घर में सुख-शांति का वास होता है। सनातन धर्म में तुलसी के पौधे को पवित्र माना गया है। इसलिए तुलसी पूजा का विशेष महत्व है। लेकिन आजकल लोग अपने प्राचीन संस्कृति को भूलकर क्रिसमस डे मना रहे है आखिर क्यों? अब भी समय है अपने अद्भुत गरिमामयी संस्कृति के अनुसार चले और सारे कार्य करें।

—————

यह कविता (तुलसी पूजन और क्रिसमस डे।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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सुगंध भी सुलभ न होगा।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ सुगंध भी सुलभ न होगा। ♦

अगर न जागे आज दोस्तो,
कल को फिर से अंधेरा होगा।
पराधीनी में था किसने धकेला?
सवाल यह मेरा – तेरा होगा।

अपनी संस्कृति सभ्यता का शायद,
फिर सुगंध भी सुलभ न होगा।
कहीं आ न जाए फिर दौर वही,
जो सैंतालीस से पहले था भोगा।

यह पछुआ बयार कहीं ले ही न डूबे,
फिर से भारत के गौरव को।
आओ मिलकर पलवित पुष्पित करते हैं,
अपनी संस्कृति सभ्यता के सौरभ को।

उदासीनता भली नहीं है राष्ट्र धर्म में,
अपनी रीत तो अपनी ही होती है।
परिणाम कभी न अच्छा है होता,
जब देश की जनता सोती है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — अब भी समय है संभल जाओ, वर्ना अपनी संस्कृति सभ्यता का शायद फिर सुगंध भी सुलभ न होगा। कहीं आ न जाए फिर दौर वही, जो सैंतालीस से पहले था भोगा सभी ने। यह पछुआ बयार कहीं ले ही न डूबे, फिर से भारत के गौरव को। आओ मिलकर पलवित पुष्पित करते हैं, अपनी प्राचीन सभ्य संस्कृति सभ्यता के सौरभ को।

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यह कविता (सुगंध भी सुलभ न होगा।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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वीरों की सदा से जाया है।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ वीरों की सदा से जाया है। ♦

यह धरा नहीं है अधीरों की,
यह वीरों की सदा से जाया है।
टीका नहीं है कोई इस धरा पर सदा,
हमने संघर्षों से सबको हटाया है।

आए कई और गए कई है,
सदियों से यहां आतताई हैं।
हम लड़े – भिड़े छल छद्म हटाया,
आज भी पछुआ से हमारी लड़ाई है।

दया धर्म को हटाने चले जो,
हमने उनको सबक सिखाना है।
जो इठला रहे हैं फूहड़ कामयाबी पर अपनी,
उन्हे औंधे मुंह गिराना है।

आओ मिलकर प्रयत्न करे हम,
संस्कृति विभंजकों को सबक सिखाना है।
पछुआ जीत का परचम फहराने वालों को,
हर हाल में धूल चटाना है।

भारत के खोए गौरव को फिर से,
विश्व पटल पर स्थापित करवाना है।
अभिभूत होकर के सब कह उठे कि,
चलो, भारत दर्शन को हमने जाना है।

कोई खून खराबा नहीं चाहते हैं हम,
बस कागज पर कलम चलाना है।
पछुआ ज्ञान को हटा कर भारत का,
मूल ज्ञान सबके सामने लाना है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — यह भारतभूमि सदा से ही वीरों की भूमि रही है भारत मां के वीर सपूतों ने इतिहास में स्वर्णिम अध्याय रचा है ये सभी अपनी मातृभूमि को स्वर्ग से भी अधिक महान और पवित्र मानने वाले देश के ऐसे सपूत हैं जिन पर पूरा देश सदैव ही गर्व करता है। वर्तमान में भी वीरता की इस परंपरा को बरकरार रखते हुए हमारे बहादुर सैनिक बॉर्डर पर अपना फर्ज बखूबी निभाते हैं।

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यह कविता (वीरों की सदा से जाया है।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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पुरुष बेचारा बिसारा गया।

Kmsraj51 की कलम से…..

Table of Contents

  • Kmsraj51 की कलम से…..
    • ♦ पुरुष बेचारा बिसारा गया। ♦
      • Must Read : क्या लिव इन रिलेशनशिप ठीक है?
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♦ पुरुष बेचारा बिसारा गया। ♦

औरत की पीड़ा तो सबने लिखी पर,
जाने क्यों, पुरुष बेचारा बिसारा गया?
औरत पर दया कर लेते हैं सब कोई,
गृहस्थी में पुरुष बेचारा मारा गया।

जोरू की सुने तो मां है कहती,
‘है बेटा ही हाथ से निकल गया।’
मां की सुने तो जोरू है रुसती,
करेगा, कौन बेचारे पर है जी दया?

घर वालों की सुने तो ससुराल है रुस्ता,
ससुराल की सुनने पर रूठतें हैं घर वाले।
शादी के बाद होती हैं ज्यों काली रातें,
मुश्किल ही होते हैं जीवन में उजाले।

बजुर्गों का दायित्व और बच्चों की चिन्ता,
किस बात को कैसे और कब तक निभाएं?
चेहरे पर मुस्कान और दिल में है हर पीड़ा ,
किसको बताएं और किस किससे छुपाएं?

चाहता है बताना कभी चाह कर किसी से,
उससे पहले ही, सुनने वाले अपनी सुनाएं।
इस नर पुराण में हैं नर की कई दुविधाएं,
नारी को यह सब कोई क्यों कर समझाएं?

पुरुष बेचारा हर गम को ले छाती में,
घुट-घुट है पिसता और मर है जाता।
कर दफ़न हर राज वह अपने ही साथ,
दिल की बात को न कभी सामने लाता।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

Must Read : क्या लिव इन रिलेशनशिप ठीक है?

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — पुरुष बेचारा अपने मन की पीड़ा किससे कहे, आखिर उसकी भी तो अपनी भावनायें व स्वप्न है, आखिर उसे क्यों नहीं समझते है लोग। इस संसार में पुरुष व स्त्री एक दूसरे के पूरक है। अब महिलाएँ घर की चहारदीवारी लाँघकर प्रत्येक क्षेत्र में कार्य कर रही हैं। इस बदलाव का मुख्य कारण है पुरुषों की सोच में समय के साथ बदलाव, उनकी मानसिकता में भी बदलाव। पुरुष सही मायने में प्रेम की परिभाषा को समझा और महिला को जीवन पथ पर उन्नति की तरफ़ जाने की प्रेरणा दी। वो पिता, भाई, पति, दोस्त कोई भी रूप में साथ देते रहते है। पुरुषों को भी अपने हक़ का पूरा प्यार व सम्मान मिलना चाहिए। पुरुष किसी से कह नहीं पाता है, लेकिन इसका ये मतलब बिलकुल भी नहीं की उनकी भावनावों को सम्मान ना दिया जाये। उन्हें भी समझे और उनका ख्याल रखें।

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यह कविता (पुरुष बेचारा बिसारा गया।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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आज न होगा।

Kmsraj51 की कलम से…..

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    • ♦ आज न होगा। ♦
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♦ आज न होगा। ♦

आज न होगा कोई मंगल गान प्रिये,
विपदा में व्यथित जो समूची धरती है।
नफरत के शोलों से विदीर्ण हर वक्ष आज है,
मानवता तिल – तिल कर आज यहां मरती है।

दर्द का दरिया बह रहा है दिल में,
हृदय की जमीन हो गई अब परती है।
मानस कल्पना की लहरों से भी अब तो,
आक्रोश – कटाक्ष की आग ही झड़ती है।

अतृप्त लालसाओं ने जग को है घेरा,
स्वार्थ बेड़ियों ने रूह ही मानो जकड़ी है।
अब उठती ही कहां है कोमल भावनाएं मन में?
हृदय भाव की गति भौतिकता ने जो जकड़ी है।

होता न आदर आज गांव के गलियारों में,
शहरों में तो पहले से ही रही आपाधापी है।
आज न नातों – रिश्तों की कद्र है कहीं पर,
मानव रूप में पाश्विक सभ्यता देखो आती है।

गांव की गुड्डी को गभरू बहन यहां कहते थे,
आज नव जवान देहाती भी खुराफाती है।
महफूज कहां रही अब अस्मत बहू – बेटी की?
वह अपनों के ही हाथों आज लूटी जाती है।

पढ़े-लिखे आदिमानव हो चले हैं हम क्या?
अर्धनग्न घूमते हैं और मद्य – मांस ही खाते हैं।
पशु सी करते हैं करतूतें सब उन्मादी में,
फिर खुद को सभ्य – सुसंस्कृत मानव बताते हैं।

हाय – हाय री! फैशन लाचारी और मानव दुर्दशे,
सच में आज विद्रूपता है जीती और हम है हारे।
शहर – शहर और गांव – गांव में देखो आज तुम,
हर कोई फिरते हैं फैशन के पीछे मारे – मारे।

आज न होगा कोई मंगल गान प्रिये,
इन सब घटनाओं से भीतर भारी पीड़ा है।
मानव समाज में विकृतियों आते देख को,
सोचता हूं, यह विधि की कैसी क्रीड़ा है?

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — समस्त संसार का एक ही मूलमंत्र होना चाहिए, वो है जीवमात्र पर दया करना। यह दया भाव मनुष्य का मनुष्य के प्रति या मनुष्य का अन्य जीवों के प्रति होती है। जीवमात्र पर दया करना ही मानवता है। पृथ्वी पर मनुष्य सबसे उत्तम और सर्वश्रेष्ठ प्रजाति है। पर आजकल हो क्या रहा है? इसके बिलकुल उलट – सबकुछ हो रहा है आज का मानव शैतान व राक्षस हो गया है, शराब पीना, मांस खाना, बलात्कार करना, काम वासना व नशे में चूर होकर बड़े से बड़ा विकर्म करने से भी जरा भी नही डरता, क्यों ? पूर्ण रूप से शैतान व राक्षस बन गया है आज का मानव पढ़-लिखकर भी ऐसे कुकर्म करने से पहले एक बार भी नहीं सोचता की आने वाली पीढ़ी के लिए हम क्या सीख दे रहे हैं, हद हैं तेरी रे मानव क्या से क्या हो गया तू !

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यह कविता (आज न होगा।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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♦ दो बातें। ♦

आंखे प्यासी है आज भी प्रिये,
तेरे उस सादे सहज दीदार की।
जमाना बीत गया है किए हुए,
दो बातें तुमसे शालीन प्यार की।

किससे कहूं और क्या कहूं, कि सब कुछ?
नहीं होता है प्यार में किसी को पा जाना?
प्रेम अन्त है, वासनाएं अतृप्त है, चाहत है,
नाम बस एक दूसरे की याद में खो जाना।

जाती हैं दूर तलक वो यादें और वादे,
मुश्किल होता है जिन्हे करके निभाना।
छुप – छुप कर मिलना और फिर बिछुड़ना,
सदियों से प्यार का दुश्मन रहा है जमाना।

वे अन्दर ही अन्दर कई बातों को छुपाना,
बड़ा मुश्किल होता था उन्हे जुबां पर लाना।
वे आंखों ही आंखों की बेबाक सी बातें,
मुश्किल होता था जिन्हे इशारों में समझना।

आज भी हसरत है सीने में, है वही मुहब्बत,
मुश्किल होता है इश्क मुश्क को दफनाना।
जाने क्या रखा है लिव इन रिलेशनशिप में?
क्यों नहीं समझाता है आज इन्हे यह जमाना?

हमने किया नहीं इजहार – ए – इश्क कभी भी था,
रह गया होकर भी प्यार भीतर ही भीतर बेगाना।
तुम हो गए थे उनके पल भर में देखते ही देखते,
हमने सहर्ष देखा था सब, तनिक भी बुरा न माना।

होता कुछ इस कदर का नई पीढ़ी के साथ तो शायद,
खैर ! छोड़िए, सब्र करें, हो गया प्रेम प्रलाप है बहुतेरा,
हो न सका किस्मत से गर दैहिक मिलन तो क्या हुआ?
बस होता रहे रूहों से रूहों का मिलन यूं ही तेरा मेरा।

जालिम जमाने की भीड़ में मुश्किल है जी ढूंढ पाना,
एक दूसरे को, यहां छाया है जी बस अंधेरा ही अंधेरा।
यहां होती नहीं है कभी भी सुबह रात गुजर जाने पर,
यहां का दस्तूर है कि जब जाग जाए तो समझो सवेरा।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

Must Read : क्या लिव इन रिलेशनशिप ठीक है?

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — सच्चा प्रेम क्या है? क्या जिस्मानी भूख ही सच्चा प्रेम है? सच्चा प्रेम – सच्चे प्रेम में जिस्म की भूख नहीं होती है। सच्चे प्रेम में दो दिलों का आत्मिक प्रेम होता है यह प्रेम ज़िस्म के प्रेम से बिलकुल ही अलग होता है। जहां पर जिस्मानी भूख हो वह प्रेम कभी भी नहीं हो सकता, उसे प्रेम की संज्ञा नहीं दे सकते। क्योंकि हमारी सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था इतनी मजबूत और पवित्र है कि उसमें दम्पति से ले कर बच्चे और बूढ़े तक सुरक्षित है। यदि लिव इन रिलेशनशिप का कानून भारत में स्थान प्राप्त करता है तो भारतीय समाज हवस का शिकार हो जाएगा। न ही तो रिश्तों नातों की अहमियत रहेगी और न ही नारी जाति का सम्मान रहेगा।भविष्य की नई पीढ़ी और वृद्ध लोग असहज और असुरक्षित होंगे। आखिर क्या जरूरत है बिना शादी के लड़का – लड़की को सांसारिक व्यवहार में रहने की? हमारी भारतीय संस्कृति की व्यवस्था के मुताबिक 25 वर्ष तक का समय पढ़ने – लिखने का है और उस बीच दो लड़का – लड़की में प्रेम भी हो जाता है तो कोई गुनाह नहीं है। शर्त यह है कि वह प्रेमी जोड़ा विवाह पूर्व शारीरिक संबंध स्थापित न करें। हमारी संस्कृति के नौजवान अधिकांश भले ही सामाजिक लाज लपेट के चलते ही सही; इस नियम का पालन भी करते आए हैं। उसके पश्चात विवाह घर वालों की सहमति से करते हैं और सांसारिक जीवन का आनंद लेते हैं।

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यह कविता (दो बातें।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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बलिदानी क्या सोचेंगे?

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ बलिदानी क्या सोचेंगे? ♦

ओ पदवी के सब चाहवानों! अब तो पदवी का मोह छोड़ो।
अपनी गलती का ठीकरा प्यारो, दूसरों के सर पर न फोड़ों।

देश हमारा, हम सब हैं इसके, ध्रुवीकरण से इसे मत तोड़ो।
खैर जो चाहते हैं गर अपनी तो, जर्रा – जर्रा देश का जोड़ो।

रोप के पौधा आजादी का, पल्वित पुष्पित कर जो चले गए।
क्या बीतेगी दिल पर उनके? देखे सपने जो उनके छले गए।

जाति धर्म की बाट कहां जोही? समता ही जिनका स्वप्न रहा।
विषमता विश्व से मिटाने के खातिर, निरंतर कड़ा संघर्ष सहा।

वे बलिदानी क्या सोचेंगे? जब हमको लड़ता भिड़ता देखेंगे।
“बेकार हुई सब मेहनत हमारी,” हम पर तो लानत ही फेंकेंगे।

राष्ट्र बड़ा है स्वार्थ से पगलो, कभी कुछ तो खुद पे शर्म करो।
सत्ता के महल की नीव में यारो, ईमान – धर्म की कंक्रीट भरो।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — ओ पदवी के सब चाहने वालो, अब तो अपने पदवी का मोह छोड़ो और अपनी गलती का ठीकरा प्यारो, दूसरों के सर पर न फोड़ों। ये देश हमारा व हम सब हैं इसके, ध्रुवीकरण से इसे मत तोड़ो, अपनी सलामत अगर चाहते हैं तो, जर्रा – जर्रा देश का जोड़ो। रोप के पौधा आजादी का, पल्वित पुष्पित करके जो महानायक देशभक्त चले गए, जरा सोचों क्या बीतेगी दिल पर उनके? देखे सपने जो उनके छले गए तुम्हारे अपने निजी स्वार्थ के कारण। जाति धर्म से ऊपर उठकर सदैव समता ही जिनका स्वप्न रहा। नफ़रत को विश्व से मिटाने व आज़ादी के खातिर, निरंतर कड़ा संघर्ष सहा। कभी सोचा है की वे बलिदानी क्या सोचेंगे? जब हमको लड़ता भिड़ता देखेंगे। “बेकार हुई सब मेहनत हमारी,” हम पर तो लानत ही फेंकेंगे। एक बात याद रखना राष्ट्र बड़ा है स्वार्थ से पगलो, कभी कुछ तो खुद पे शर्म करो। अब तो सत्ता के महल की नीव में यारो, ईमान – धर्म की कंक्रीट भरो।

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हिन्दी का हित चाहने वालों को।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ हिन्दी का हित चाहने वालों को। ♦

राष्ट्र का गौरव शोभित करने को,
फिर से हमको क्या लड़ना होगा?
राष्ट्र भाषा के सम्मानित पद पर,
शासित हिन्दी को करना होगा।

अमृत महोत्सव आजादी का भी,
मनाकर क्यों हम बस शर्मिंदा हैं?
दिला न सके जो न्याय मां को तो,
फिर हम बेटे भी काहे को जिन्दा है?

जुर्म हुए हैं और जलालत सही है,
दशकों से भारत में मां हिन्दी ने।
कभी अफगानी अंग्रेजी ने कुचला,
कभी अपमानित किया है सिंधी ने।

जापान में जापानी, चीन में चीनी,
तो भारत में हिन्दी राष्ट्र की भाषा हो।
भारत बने फिर विश्वगुरु, जो सोचा है,
हिन्दी ही पूर्ण करेगी इस आशा को।

मशाल जलाते हैं मिलकर के आओ,
हिन्दी के सम्मान, प्रचार – प्रसार की।
राष्ट्र भाषा का दर्जा दिलाने के खातिर,
आओ कुछ मदद लेते है सरकार की।

हिन्दी का हित चाहने वालों को अब,
मिलकर एक तो यारों होना ही होगा।
नहीं तो विदेशी भाषाओं का भार हमें,
सदियों तक यूं ही निरंतर ढोना होगा।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — कवि हम सभी से पूछते हैं: राष्ट्र का गौरव शोभित करने को, फिर से हमको क्या लड़ना होगा? राष्ट्र भाषा के सम्मानित पद पर, शासित हिन्दी को करना होगा। अमृत महोत्सव आजादी का भी, मनाकर क्यों हम बस शर्मिंदा हैं? दिला न सके जो न्याय मां को तो, फिर हम बेटे भी काहे को जिन्दा है? जापान में जापानी, चीन में चीनी, तो भारत में हिन्दी राष्ट्र की भाषा हो। तब भारत बने फिर विश्वगुरु, जो सोचा है, हिन्दी ही पूर्ण करेगी इस आशा को। हिन्दी का हित चाहने वाले सभी उम्र के साथियों से आग्रह है की “मशाल जलाते हैं मिलकर के आओ, हिन्दी के सम्मान, प्रचार – प्रसार की। राष्ट्र भाषा का दर्जा दिलाने के खातिर, आओ कुछ मदद लेते है सरकार की। विशेषताओं से भरे भाषा का, प्रसार जो होना चाहिए हुआ नहीं। आओ हमसब मिलकर करें प्रचार, हिंदी का करें खूब विस्तार। तब मिलेगा इसे वाजिब हक और सम्मान, हिंदी मेरी जान, हम इस पर कुर्बान।

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यह कविता (हिन्दी का हित चाहने वालों को।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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पर्वत है कहता।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ पर्वत है कहता। ♦

मैं क्यों न ढहूँ? मुझे बताओ, सब कुछ कुरेदा मुझसे तुमने।
अंधा विकास कर चले हो तुम, सुरंग भी छेदा मुझसे तुमने।

मैं रोया या हंसा, तुम्हे क्या?, तुम्हे तो विकास करवाना था।
मैं कमजोर होऊं, तुम्हे क्या?, तुम्हे तो मुझे बस कटवाना था।

बड़ी बड़ी मशीनें, प्रोजेक्ट व सड़के, काट के मुझे बनवाए हैं।
दोहन करके मेरा ही तुमने, ये ईंट- गैरों के महल बनवाए हैं।

आज मैं ढहा हूं, बादल फट बहा हूं, यह मेरी भी मजबूरी है।
प्रहार बरसात का झेलने खातिर, मुझमें मजबूती जरुरी है।

मुझसे तुमने, बहुत कुछ लुटा, मेरे लिए कुछ किया है क्या?
मैंने तुमको सदियों से दिया, मुझे तुमने कुछ दिया है क्या?

क्यों कोस रहे हैं सरकारों को? बादल फटने और बाढ़ों को?
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, सुधारों अपने व्यवहारों को।

पर्वत है कहता, “मैं कुदरत का बेटा’, मेरी किसने मानी है?
नुकसान पहुंचा कर मुझको पगलो, तुम्हारी ही तो हानि है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — प्राचीन काल से ही पर्वत का हम सभी के जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है, पर्वत ताज़ा पानी, स्वच्छ ऊर्जा, भोजन और मनोरंजन के साधन मुहैया कराते हैं। दुनिया भर में पहाड़ी इलाक़ों में रहने वाले समुदायों की युवा आबादी का भविष्य उज्ज्वल बनाने के लिए शिक्षा के प्रसार, प्रशिक्षण, रोज़गार और आधुनिकतम तकनीक मुहैया कराने से बड़ी मदद मिल सकती है। पहाड़ कैसे उपयोगी होते हैं? इस बात को बारीकी से समझने की जरूरत है हम सभी को, पर्वत जल के भण्डार हैं । पहाड़ों के पानी का उपयोग सिंचाई और पनबिजली उत्पादन के लिए भी किया जाता है। नदी घाटियाँ और पर्वत छतें फसलों की खेती के लिए आदर्श हैं। पहाड़ों में वनस्पतियों और जीवों की एक समृद्ध विविधता है। इनके साथ खिलवाड़ करना, इंसान को प्राकृतिक आपदा के रूप में झेलना पड़ता हैं। अब भी समय है संभल जायें और इनका अंधाधुन गलत तरीके से दोहन करना छोड़ दे, वर्ना परिणाम और भी भयानक होगा।

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यह कविता (पर्वत है कहता।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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कातिल बरसात।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ कातिल बरसात। ♦

सूरज डूबा फिर शाम ढली, अंधेरा छाया और हो गई थी रात।
रोजमर्रा के माफिक खाना खा कर, सो गए सारे थे उस रात।

घना अंधेरा था, कोहरा घनेरा था, घने थे बादल और बरसात।
सुबह आई थी खबर कि आठ को, लील गई कातिल बरसात।

मां से लिपटे बच्चे मिले थे, मलबे में दबे पड़े थे सब मां बाप।
चार थे बच्चे तीन बड़े थे, मेहमान ससुर भी दब गए थे साथ।

वह नव प्रधान था काशन का, थी पंचायत भी नव सौगात।
बूढ़े मां, बाप, भाई घर में न थे, खा गई कुल कातिल बरसात।

उल्टी गंगा बहती यह होती है, मां – बाप हुए हैं आज अनाथ।
छाती पीट रोते हैं बेचारे, देख आठ अर्थियां उठाती एक साथ।

दरक उठी थी पहाड़ी ही सारी, नींद में लेटे थे सारे अर्ध रात।
ढह गया था घर ही सारा तो, करता ही कौन बचाने की बात?

दबे पांव मौत ही थी आई, कर गई बरसात में हाथ थी साफ।
जिन्दा बचा एक बेटा था घर का, बस दो बचे बूढ़े मां – बाप।

वह भयानक मंजर जिसने भी देखा, रह गया था वह बेबाक।
चेहरों पर थे आंसू ही आंसू , भूल न पाएंगे वह कातिल रात।

नोट: यह कविता सत्य घटना पर आधारित है और बहुत ही दुःखद घटना है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — दिल दहला देने वाली बहुत ही दुःखद घटना है ये। उन मासूम बेचारो को तो भागने का भी समय नहीं मिला। अत्यंत ही दुःखद अचानक से काल का रूप लिए ये कातिल बरसात आई और पुरे कुल को अपने में समा ले गई। बूढ़े माता-पिता और भाई को परमात्मा शक्ति दे इस विपदा की घड़ी में संभलने की और काल के गाल में गए हुए आत्मा को शांति देना प्रभु। ॐ शांति ! ॐ शांति ! ॐ शांति ! ॐ शांति ! ॐ शांति !

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