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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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सुशीला देवी जी की कविताएं।

कोहरे का प्रकोप।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ कोहरे का प्रकोप। ♦

उत्तरी भारत में सर्दी से मुख ऐसा मोड़ा सुनहरी धूप ने,
ठंडक में ढल गया दिन, रात सिर्फ एक ही रूप में।

अभी कुछ दिन से ही ठंडक ने अहसास कराया,
आसमां से लेकर धरा तक सफेद धुंध की चादर को फैलाया।

सर्दी ने अपना वो रंग कुछ झटके में ही दिखा डाला,
नब्जों में खून ही जमा दिया पड़ा जो धुंध से पाला।

सड़कों पर वाहनों की रफ्तार हो ही जानी चाहिए कम,
फिर इस भागदौड़ की जिंदगी में किसी की आंखें न हो नम।

क्यों रक्तरंजित हो उठी है ये सड़कें इन शहर, नगरों की,
अंधाधुंध वाहनों की चाल से कोई लाल रंग न दिखे डगरों की।

ये इंसान का जीवन तो बहुत ही कीमती बहुत अनमोल,
धीरे – धीरे कदम बढ़ाकर मंजिल की ओर राहें खोल।

वक्त के संग प्रकृति का ये रूप भी बदल ही जायेगा,
गर जल्दबाजी में कुछ खोया तो वो कभी नही पाएगा।

माना कि इस कोहरे ने अपना जम कर पाला है बरसाया,
इसके बरसने से ही तो फसलों ने अपने यौवन को पाया।

जब दूर तलक निगाह न देख पाए तो देखे केवल पास का,
निराशा की किसी भी स्थिति में दामन न छोड़े आस का।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — उत्तर भारत में सर्दी से मुख ऐसा मोड़ा सुनहरी धूप ने की अब ठंडक में ढल गया है पूरा दिन और रात सिर्फ एक ही रूप में महसूस हो रहा। अभी बस कुछ ही दिन से ही ठंडक ने अपना अहसास कराया व आसमां से लेकर धरा तक सफेद धुंध की चादर को फैलाया है। सर्दी ने अपना वो रंग कुछ झटके में ही दिखा डाला, जिससे नब्जों में खून ही जमा दिया पड़ा जो धुंध से अचानक से पाला। कोहरे में सभी वाहन चलाने वालों को रोड़ पर बहुत ही सावधानी से धीमी गति से वाहन चलाना चाहिए, जिससे कोई दुर्घटना न हो। कुछ दिनों तक ज्यादा ठंडक पड़ना भी जरूरी है, कुछ फसलों के अच्छे पैदावार के लिए जैसे – गेहूं की फसल। जब जीवन में दूर-दूर तक नज़र ना आये कुछ तो, भी कभी आस ना छोड़े धीरे-धीरे ही कदम बढ़ाते चले, आगे रास्ता मिलता जायेगा।

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यह कविता (कोहरे का प्रकोप।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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रंग बदलता इंसान।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ रंग बदलता इंसान। ♦

समय देख न जाने कितने रंग बदले इंसान,
फिर इस जहान में गिरगिट ही क्यों बदनाम।

कभी इश्क कभी विरह कभी प्रेम कभी नफरत में डूब जाए,
कुछ भी नजर न आए जब अहम के रंग में ये रंग जाए।

कभी साहिल बनता तो कभी खुद ही किश्ती को डुबोए,
अपनी खुशी की खातिर किसी को आसुओं के सैलाब में भिगोए।

एक उंगली के सहारे से देता कभी किसी का साथ,
जब मंजिल करीब हो तो छिटक देता अपनों का हाथ।

पर्दे के पीछे के उन कलाकारों को क्यूं भूल जाए,
जिनकी मेहनत से वो मंच पर सिर ऊंचा उठाए।

इंसान कदम-कदम पर इस कदर बदले रंग हजार,
कुदरत के रंग बदलना भी कर देता बिल्कुल पार।

भांति-भांति के रंग चढ़ा कर असली रंग की खो दी पहचान,
मस्तक ऊंचा कर बैठा इतना भर लिया अभिमान।

इस जमीं से जुड़े रहने को ही सार्थक रहने दे इंसान,
गुणों को ही समाहित कर केवल रख इंसानियत का मान।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — जब आप किसी से नाराज हो जाते हैं तो उसे कोसते हुए बोलते है कि ये गिरगिट की तरह रंग बदलता है। आखिर आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है। अचानक से गिरगिट हरा रंग से लाल और पीला से सफेद हो जाता है। लेकिन आजकल का इंसान गिरगिट से भी ज्यादा रंग बदलता है, स्वार्थी हो गया है आज का इंसान, हर कर्म उसका स्वार्थ से भरा है। अपने स्वार्थ के लिए किसी को भी हानि पहुंचने से हिचकिचाता नहीं आज का इंसान। अपने सनातन भारतीय संस्कृति, संस्कार और सभ्यता को क्यों भूलता जा रहा है इंसान?

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यह कविता (रंग बदलता इंसान।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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माँ जब तू हो जाए मेहरबान।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ माँ जब तू हो जाए मेहरबान। ♦

माँं जिस पर तू मेहरबान हो जाए,
उसका हर काम आसान हो जाए।

पहुंचाया है तूने उसको फर्श से अर्श तक,
बस निगाह रहे तेरे चरण से दर्श तक।
माँ जिस पर तू मेहरबान हो जाए,
उसका हर काम आसान हो जाए।

उस राहगीर की मंजिल,
खुद उस तक चल कर आए।
जिसकी राहें तेरे रहमो,
करम से इख्तियार हो जाए।
माँ जिस पर तू मेहरबान हो जाए,
उसका हर काम आसान हो जाए।

जिसने भी किया खुद को तेरे हवाले,
उसकी किश्ती हर तूफान से तू निकाले।
माँ जिस पर तू मेहरबान हो जाए,
उसका हर काम आसान हो जाए।

तेरी रहमतों का बरसे सुरूर इस कदर,
कुछ न बिगाड़ पाए दुनिया की बुरी नजर।
माँ जिस पर तू मेहरबान हो जाए,
उसका हर काम आसान हो जाए।

दाती तेरा देने का,
हर अंदाज होता निराला।
पाए वही जो तेरी,
धुन में खोकर बना मतवाला।
माँ जिस पर तू मेहरबान हो जाए,
उसका हर काम आसान हो जाए।

कुछ कहना सुनना,
क्यूं इस बेदर्द जमाने से।
हर खुशी मिल जाती,
एक तुझे अपनाने से।
माँ जिस पर तू मेहरबान हो जाए,
उसका हर काम आसान हो जाए।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — मातारानी के चरणों में जो अपने आपको सम्पूर्ण समर्पण कर दे, उसके जीवन की सभी बाधाएं स्वतः ही हट जाती है। मातारानी की कृपा से उसके सर्व कार्य सिद्ध होने लगते है। माँ बहुत ही कृपालु है, ममता की मूर्ति माँ सदैव ही अपने बच्चों का ख़्याल रखती है। मातारानी आपकी सर्व मनोकामना पूर्ण करे। प्रेम से बोलो – जय माता दी!

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आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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माँ तेरी प्रीत निराली।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ माँ तेरी प्रीत निराली। ♦

अम्बे माँ, सदैव तेरी ही प्रीत की डोरी से बँधी रहूँ।
तेरे दिव्य अनुपम दर्शनों के अथाह सागर में बहूँ॥

तेरे आशीष के अमृतधारा से, ये प्यास बुझती रहे।
नैनों को तृप्त करने वाली, तेरी सलोनी सूरत सजती रहे॥

माँ, सदैव तेरा ही रूप सजा रहे, मेरे दिल के दर्पण में।
जिन्दगी में सर्वस्व तूही है, परम् आनंद है, तेरा तुझें समर्पण में॥

माँ तुझे और तेरे साकार रूप के चरणों में सब कुछ न्यौछावर।
अर्ज बस यही, ताउम्र इस नाचीज़ को लगाये रखना अपने दर॥

माँ, तेरा दुलार हमें इस कदर दीवाना कर गया।
तेरा प्रेम हमें बस इतना ही मस्ताना कर गया॥

कोई क्या कहेगा, नही होती अब इस बात की फिक्र।
अब हर कर्म में होता, बस एक तेरे नाम का जिक्र॥

जैसे मदमस्त हो, शमां के पास आकर परवाना।
कदम-कदम पर तेरे आशीष के शुकराने में, झूमें दिल मस्ताना॥

तेरी पावन वाणी से आशीष निकले, वो पूरा हो जाता है।
तेरे वरहस्त के वरों से ये जीवन सफल हो जाता है॥

हे जगदाती माँ!
तेरी कृपादृष्टि की छत्रछाया में सदैव हमारा बसेरा हो।
हे जगदाती तेरे नाम की ज्योति से, मेरा हर सवेरा हो॥

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — आज हम बात कर रहे हैं हमारे देश के सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) द्वारा मनाये जाने वाले नवरात्रि त्यौहार की, इस त्यौहार को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। नवरात्रि में लोग 9 दिन व्रत रखते हैं और आखिरी दिन मां की पूजा करके नौ कन्याओं को भोजन कराते हैं। यह त्यौहार अलग-अलग जगह पर अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। काफी जगह इस दिन लोग गरबा और डांडिया भी खेलते हैं। यह त्यौहार असत्य पर सत्य की जीत को दर्शाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि साल में दो बार मनाया जाता है। नवरात्रि नौ दिनों के लिए निरंतर चलता है जिसमे देवी माँ के अलग-अलग स्वरूपों की लोग भक्ति और निष्ठा के साथ पूजा करते है। भारत में नवरात्रि अलग-अलग राज्यों में विभिन्न तरीको और विधियों के संग मनाई जाती है।

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यह कविता (माँ तेरी प्रीत निराली।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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बारिश का वो हमारा जमाना।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ बारिश का वो हमारा जमाना। ♦

बरसाती को पहले ही अपने बस्ते में सजा के रखना।
अपने भीगने से ज्यादा उन कॉपी-किताबों का ध्यान धरना।
बारिश का वो हमारा जमाना॥

छत के पानी के पतनाल के नीचे सिर भिगोना।
खुले आसमाँ के नीचे बारिश में खोना।
बारिश का वो हमारा जमाना॥

मंद-मंद बारिश आते ही कॉपी के कागजों का फाड़ना।
फिर कागज की नाव का दूसरों की नाव से टकराना।
बारिश का वो हमारा जमाना॥

बाजार में वो नई-नई बरसाती चप्पलों का आना।
उसमें से अपनी मनपसंद चप्पलों का ढूंढ लाना।
बारिश का वो हमारा जमाना॥

बारिश के भरे पानी से कभी नही डरा हमारा बचपन।
तब उसमें कितना आनंदमय होता था वो बालमन।
बारिश का वो हमारा जमाना॥

बारिश आते ही गीले कपड़ों की पंक्तियां लगती।
ऐसे लगता घर में ही जैसे कपड़ों की हॉट सजती।
बारिश का वो हमारा जमाना॥

बारिश की बूंदों में बहते पानी के बीच ऐसे निकलते।
स्थान पर सुरक्षित पहुँचते ही किला फतह जैसे भाव निकलते।
बारिश का वो हमारा जमाना॥

ओले के आने की प्रार्थना भी करते बर्फ देखने की चाह में।
नादान थे भोले थे नही जानते थे कितना दर्द देते ये आह में।
बारिश का वो हमारा जमाना॥

छप-छप करके उस आसमान की फुहारों का आनंद लेते।
बिजली कड़कते ही माँ के आंचल की छाया में खुद को छुपा देते।
बारिश का वो हमारा जमाना॥

डरते नही थे बारिश के कीचड़ से न इसके छम-छम बरसते पानी से।
प्रकृति के उन सुखद पलों को जिया हमने तभी सहेज रखा उनको जिंदगानी में।
बारिश का वो हमारा जमाना॥

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — बारिश का वो हमारा जमाना उसका क्या कहना? बरसात के आने से पहले ही, अपने भीगने से ज्यादा उन कॉपी-किताबों का ध्यान धरना, बरसाती को पहले ही अपने बस्ते में सजा के रखना। वर्षा का वो पानी जो छत के पानी के पतनाल के नीचे खड़े होकर सिर भिगोना, खुले आसमाँ के नीचे बारिश में खो जाना। मंद-मंद बारिश आते ही कॉपी के कागजों का फाड़ना और फिर उस कागज की नाव का दूसरों की नाव से टकराना, इस आनंद का लुफ्त उठाना मन को तरोताज़ा कर देता था। छप-छप करके उस आसमान की फुहारों का भरपूर आनंद लेते, जब भी बिजली कड़कते तुरंत ही माँ के आंचल की छाया में खुद को छुपा देते, माँ के आंचल में अपने आपको सदैव ही सुरक्षित महसूस (Feel safe) करते। कभी भी डरते नही थे बारिश के उन कीचड़ से न इसके छम-छम बरसते पानी से, प्रकृति के उन सुखद पलों को जिया हमने तभी सहेज रखा उनको जिंदगानी (यादों) में। बारिश का वो हमारा जमाना।

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यह कविता (बारिश का वो हमारा जमाना।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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तुझे वंदन।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ तुझे वंदन। ♦

एक शिक्षक तो होता है, पुंज-प्रकाश का।
जो खुद तप कर, जग में रोशनी फैलाता है।

ये आसमाँ का वो बादल, जो गुणों की बारिश बरसाता है।
अपने ज्ञान की रोशनी से, शिष्य-पथ को चमकाता है।

ये गर हाथ पकड़ ले, तो मंजिल पाना आसान हो जाये।
न घबराना तू फिर, जब तुझें तेरा गुरु राह दिखाये।

गुणों की माला में हरेक मोती, अपने विश्वास के धागे में पिरो जाए।
जब ये खुशबू देने पर आए, हर फूल को महकाये।

सत्य-पथ में गुरु तो, मिलते अनेक है।
शिष्य के व्यक्तित्व में निखार लाना, सबका ध्येय एक है।

तपते इस जीवन में, ठंडक पहुँचाये संस्कारों की।
जो चमके आसमाँ में, ख्वाइश बन जाये उन तारों की।

इनके हुनर को दिल में, समाहित करते है जो।
जिंदगी के हर दुख को, सहजता से हरते है वो।

ये अपने आदर्शों से,गागर में सागर भर जाए।
कोटि-कोटि वंदन गुरु को,बस इससे आगे कलम कुछ लिख न पाए।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — एक शिक्षक ही होते है जो हमे अच्छी और बुरी आदतों का पहचान करवाते है और वो हमारी बुरी आदतों को छोड़वाने का दिल से पूर्ण प्रयास भी करते हैं। हमें अच्छी आदतों को अपनाने के लिए प्रेरित करते है, सदैव ही आगे बढ़ने का सही ज्ञान देते है। वो शिक्षक ही होते है जो हमें ईर्ष्या, हिंसा, अधर्म, चोरी जैसी बुरी आदतों से दूर रखते है। शिक्षक ही, सही आचरण, नैतिकता का पाठ पढ़ाते है, कर्तव्य, संयम और धैर्य से सही पथ पर चलना सिखाते है। भारत में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्ण के जन्म दिवस अर्थात 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। उन्होंने अपने छात्रों से अपने जन्म दिवस पर शिक्षक दिवस मनाने की इच्छा जताई थी। पूर्व राष्‍ट्रपति डॉ राधाकृष्‍णन का जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुमनी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

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यह कविता (तुझे वंदन।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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वीर-गाथा।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ वीर-गाथा। ♦

भारत के वीरों की गाथा आज सुनाऊँ।
इस जिव्हा को वीर-रस से पावन बनाऊँ॥

माता-पिता यहाँ लोरियाँ ऐसे सुनाए।
जिसमें बहादुरी के किस्से समाए॥

यहाँ की मिट्टी से वतन की खुशबू आये।
बेटियाँ समय आने पर वीरांगना कहलायें॥

माँ अपने कलेजे के टुकड़े को फौजी बनाये।
पिता उसकी शान पर फिर फूला नही समाये॥

भारत का शौर्य अद्भुत व बहुत ही अनुपम।
दुश्मन का संस्कार भी करें अदब से गर तोड़े दम॥

पीठ पर कभी न करें वार यहाँ के वीर जवान।
धरती है उन वीरों की जो देश पर होते कुर्बान॥

यहाँ की धरा को पावन कर गए न जाने कितने अवतार।
मूलमंत्र विश्व को दिया जिन्होंने भाईचारा, अमन, प्यार॥

तभी तो इसकी पावन मिट्टी से भी खुशबू आए।
सभ्यता, संस्कृति भारत की विदेशों में डंका बजवाये॥

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — यहां के बच्चों के अंदर जन्म से ही वीर रस भरा होता है, जिसे बस निखारने की जरूरत होती हैं। भारत का शौर्य अद्भुत व बहुत ही अनुपम हैं, दुश्मन का संस्कार भी करें अदब से गर तोड़े दम। पीठ पर कभी भी न करें वार यहाँ के वीर जवान। यह धरती है उन वीरों की जो देश पर होते है सदैव ही कुर्बान। तहे दिल से नमन है माँ भारती के हर उन शूरवीर सपूतों को जिनके बलिदान के बदले हमे आज़ादी मिली। जो आये थे यहां व्यापार करने, व्यापार के बहाने हमे अपना गुलाम बनाकर खूब मनमानी किया। उन्होंने हम पर बहुत ही निर्दयता पूर्वक अत्याचार किया, और हमें खूब लुटा। हमें कभी भी नहीं भूलना चाहिए उन शूरवीर सपूतों के बलिदान को, जिनके बलिदान के बदले हमे आज़ादी मिली। शत-शत नमन है उन वीर सपूतों की जननी को जिन्होंने अपने लाल को माँ भारती की रक्षा के लिए ख़ुशी – ख़ुशी समर्पित किया। जय हिन्द – जय भारत।

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यह कविता (वीर-गाथा।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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धागे का प्रेम।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ धागे का प्रेम। ♦

ऐसे पावन देश में जन्में हम, करते हैं इस पर गर्व।
देवों की भूमि ये, जहाँ हर माह आते हैं हर्ष भरें पर्व॥

बारह मासों में पावन श्रावण मास तो सदैव ही, हर आयु-वर्ग को हर्षाता रहा।
शिव-स्तुति, हरियाली तीज व रक्षाबंधन जैसा पर्व जीवन को आनंदित बनाता रहा॥

रक्षा-सूत्र का ये पावन पर्व, श्रावण माह की पूर्णिमा को अपना संकल्पभाव ले आएँ।
निश्छल प्रेम, रक्षा-कवच, मर्यादा-बंधन दो आत्माओं को दे जाएँ॥

प्राचीनकाल की ओर मुड़कर देखें, तो एक बात समझ में आये।
जीवनदायिनी वृक्ष भी, बहनों के प्रेम के कच्चे धागे में बंध जाएँ॥

जब इंद्राणी ने अपने सुहाग इंद्र की विजय की झोली फैलाई, भगवान विष्णु के आगे।
दिया आशीष उन्होंने विजयी भव का, कहा, जाकर उनकी कलाई पर बांधे धागें॥

तदोपरांत युद्धक्षेत्र के लिए कोई नरेश जाता, महल के द्वार खोल।
उससे पहले ही रानी तिलक कर, विजय-सूत्र का धागा बांधे अनमोल॥

जब से आँचल का कोना, रक्तरंजित श्रीकृष्ण की उँगली पर बांधा था।
तब से ही इस कर्ज को सूद समेत चुकाने, द्रोपदी को बहन माना था॥

इतिहास गवाह है कि श्रीकृष्ण ने कृष्णा को सूद समेत, चुकाया था ये कर्ज।
वसन का अंबार लगा, रोका चीर-हरण को, निभाया एक धर्म भाई का फर्ज॥

ऐसा ही होता है ये मांगलिक पल, जो सबको घने नेह से भर जायें।
अक्षत-रोली से तिलक कर, कच्चे धागे से स्नेह की उम्र दराज कर जायें॥

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — रक्षाबंधन का त्योहार भाई बहन के पवित्र प्यार का प्रतिक है, जिसे राखी का त्योहार भी कहा जाता है। रक्षा बंधन पर बहन, भाई की कलाई पर राखी बांधती है और उसके दीर्घायु व सुखी जीवन की प्रार्थना करती है। इसके साथ ही बहन अपने भाई से अपनी सुरक्षा का वचन लेती है, की जीवन में जब भी उस पर कोई मुसीबत आएगा उसका भाई उसकी मदद के ली आ जायेगा। रक्षाबंधन हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार है, जिसे पूरे भारत समेत अन्य देशों में भी मनाया जाता है।

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पावन बेला।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ पावन बेला। ♦

सोमवार की आज ये अति शुभ बेला आई।
हर्षित हो आई आज सूरज की तरुणाई॥

जल-दूध अभिषेक ने शिवलिंग की गाथा सुनाई।
श्रावण माह के सोमवार को हर-हर महादेव की गूंज आई॥

यंत्र और मंत्र दोनो ने मिलकर भोलेबाबा को पुकार लगाई।
सब मंगलमय कर दो जन-जन के ह्रदय ने आवाज लगाई॥

इस श्रावण माह में सबकी झोली खुशियों से भर देना।
अवगुणों का विष पी अमृतमयी गुणों का वर देना॥

हे शम्भू, पधारों इस धरा पर स्वागत करें हम तेरा।
इस माह में तेरी ही धुन में बीतेगा तेरे भक्तों का साँझ-सवेरा॥

रहें हमेशा गले में तेरे सर्पों की माला।
सावन में तेरा पूजन करें जीवन में उजाला॥

हर दिशा में गूंजेंगे बम-बम भोले के जयकारे।
सच्चे ह्रदय से तुझें याद करने वाले सबकाज संवारे॥

भोलेनाथ तू तो है दया, करुणा का सागर।
असुर भी तेरी पूजा करें तो उसको भी दे वर॥

इंद्रदेव भी नतमस्तक होकर जो जल बरसाए।
तेरी जटाओं में बसी गंगा मैया उसको शीतलता दे जाए॥

हे! शिवशंभु हे! शंकर हे! जटाधारी, हे त्रिनेत्रधारी।
श्रावण मास में सुन लेना अपने भक्तों की पुकार सारी॥

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — सावन के महीने में अत्यधिक वर्षा होती है, इसीलिए यह समय भगवान शंकर का प्रिय महीना होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस महीने में जो भी भक्त सच्चे मन से व पूरी लगन के साथ भगवान शंकर की पूजा करता है, उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है। इस महीने में सबसे अधिक त्यौहार आते हैं और हिंदुओं के हिसाब से उन त्योहारों को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। जावालोप निषद में उल्लिखित है कि रुद्राक्ष शिव के आंसू हैं। इनका तृतीय उ‌र्ध्व नेत्र व बाईं आंखों की संयुक्त शक्ति का प्रतीक है। डमरू ज्ञान का उद्गाता है। शिव का एक नाम त्रिलोचन भी है। शिवजी मृत्युन्जय हैं। इनकी पूजा मृत्यु और काल को पराजित करती है। अयोध्या में सरयूतट पर नागेश्वरनाथ मंदिर सावन मास में भक्तों से परिपूर्ण रहता है। सोमवार के दिन शिव आराधना करने पर चंद्रमा से आने वाली तरंगें मन को शांत बनाती हैं। कांवड़ शिव पूजा का एक स्वरूप है। गंगा या पवित्र नदियों सरयू आदि से जल भरकर शिव पर अभिषेक करने से परात्पर शिव के साथ विहार होता है। कांवड़ से ज्ञान की उच्चता का प्रतिपादन होता है।

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यह कविता (पावन बेला।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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सावन का महीना।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ सावन का महीना। ♦

प्रथम दिन है श्रावण माह का आज।
देवों के देव महादेव पूर्ण करें सब काज।

सावन की ऋतु चहुँ ओर बिखरायेगी हरियाली।
धरा के सब जीवों के मध्य होगी खुशहाली।

आषाढ़ की उमस भरी गर्मी से मिल जाएगी निजात।
नव कोपलें उभर-उभर कर आएगी हर डाल-पात।

मेघराज इंद्र भी खुश हो छम-छम बूँदें बरसाए।
उदासी से भरा जीवन प्रफुल्लित हो जाये।

प्रकृति अब तो धानी चुनर पहन इतरायेगी।
इसकी हर अदा अब हसीन हो जाएगी।

वातावरण में अब होगा संगम सुर-ताल का।
दीवाने होंगे सब प्रकृति की मतवाली चाल का।

त्यौहारों के आगमन की रुत का होगा आगाज।
खुशियों का हर ओर बजेगा सुंदर साज।

माना जाए बहुत ही पाक महीना ये सावन का।
हर पल ही दर्शाए अम्बर-धरा अपनेपन का।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — सावन के महीने को भगवान शिव की भक्ति का भी महीना कहते है, शिव भक्त इस माह कांवर लेकर ज्योतिलिंग पर अर्पण करते है। यह ग्रीष्म ऋतु के बाद आता है और लोगों को गर्मी के कहर से राहत भी दे जाता है। सावन के महीने में बहुत ही ज्यादा बरसात होती है जिससे मौसम बहुत सुहावना हो जाता है। इस समय लोग अपने परिवार के साथ बाहर घूमने जाते हैं और सावन के खुशनुमा मौसम का आनंद लेते हैं। चारों तरफ हरियाली और ऊपर से बारिश की मंद-मंद बुँदे अंदर से तन मन को प्रफुल्लित कर जाता हैं। माना जाए बहुत ही पाक महीना ये सावन का। हर पल ही दर्शाए अम्बर-धरा अपनेपन का।

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मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

———– © Best of Luck ®———–

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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