Kmsraj51 की कलम से…..
Current Education and Learners | वर्तमान शिक्षा और शिक्षार्थी।
शिक्षा – शिक्षा वह है जिसके द्वारा मानव के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास होता है। वह पूर्ण रूपेण विनम्र और संसार के लिए स्वयं को उपयोगी बना पाता है। शिक्षा मानवीय गरिमा, स्वाभिमान और बंधुत्व में वृद्धि कर विश्वबंधुत्व में रूपांतरित होती है। वास्तव में शिक्षा का उद्देश्य सत्य की खोज करना है। एक ऐसा सत्य जो अपने आप में उदाहरण बन कर किसी भी व्यक्ति में इंसानियत और सादगी लाकर उसे आगे बढ़ने में सहायता करे। यह एक ऐसी खोज है जिसकी धूरी यदि अध्यापक को माना जाये तो गलत न होगा, क्योंकि यदि वह योग्य हुआ तो इसमें संदेह नहीं किया जा सकता कि वह आज की युवा पीढ़ी को सबल और काबिल बना सकता है। और इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु एक उचित शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता सदैव बनी रहती है।
शिक्षा प्रणाली – शिक्षा प्रणाली एक ऐसी व्यवस्था का नाम है जिसके द्वारा विद्यार्थी को उचित ज्ञान प्रदान करते हुए स्वयं तथा समाज के लिए उपयोगी बनाने हेतु मार्गदर्शन किया जाता है। हमारी शिक्षा प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जो कि विद्यार्थी या शिक्षार्थी के निरंतर खोजी मन और सृजनात्मकता या सृजनशीलता को सबल बनाने के साथ – साथ समाज में रहने हेतु विभिन्न पहलुओं पर आवश्यकता के अनुसार चुनौती प्रस्तुत कर उसका सामना करने योग्य बनाया जा सके।
आज की शिक्षा और विद्यार्थी – वास्तव में देखा जाये तो शिक्षा और विद्यार्थी को एक दूसरे का पूरक कहा जा सकता है या फिर यदि इन्हे एक ही सिक्के के दो पहलू कहा जाये तो भी गलत नहीं होगा क्योंकि एक के अभाव में दुसरा निसंदेह अधूरा ही माना जायेगा। अतः वर्तमान शिक्षा का स्वरूप कुछ इस प्रकार निर्धारित किया जाना चाहिए जो विद्यार्थी की ज्ञान प्राप्ति की तीव्र जिज्ञासा को शांत कर पाने की योग्यता अपने अंदर समाहित कर सके। इसी शिक्षा में वर्तमान विद्यार्थियों के लिए शैक्षणिक संस्थानों में ऐसे पाठ्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए जो विकसित भारत की सामजिक और प्रौद्योगिकी से सम्बंधित आवश्यकताओ के प्रति सदैव संवेदनशील बनी रहे। शिक्षा के केंद्र में गतिविधयों और कार्यकलापों को आवश्यक अथवा अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए। न केवल इतना ही बल्कि विद्यार्थियों को अधिक योग्य बनाने के लिए विज्ञान और तर्क पर आधारित बातों को सम्मिलित करना भी आवश्यक होगा। ऐसे में गणित और विज्ञान का संयोग हो तो सोने पर सुहागा वाली कहावत चरितार्थ हो सकती है।
वर्त्तमान विद्यार्थी चाहे विज्ञान, प्रौद्योगिकी,राजनीति,नीतिनिर्माण,धर्मशास्त्र,न्याय आदि किसी भी विषय या क्षेत्र में शिक्षा प्राप्त करे परन्तु उसका मुख्य धर्म और कर्म लोगो की सेवा करना ही हो तो अपने आप में सर्वश्रेष्ठ कहलायेगा।
इसी प्रकार भारत को विज्ञान और अनुसन्धान के क्षेत्र में श्रम की गहरी ज़रूरत होती है। भारत का लक्ष्य है कि सन २०२० तक भारत एक विकसित राष्ट्र के रूप में उभरकर सामने आये। इस महान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए शिक्षा प्रणाली को चाहिए कि २५ वर्ष से कम उम्र के विद्यार्थियों को (लगभग ५४ करोड़ के आसपास नौजवानों )को सही मार्गदर्शन मिल सके। इन विभिन्न उद्द्श्यों की प्राप्ति के लिए ई शिक्षा का नाम सर्वोपरि आता है। इसका अर्थ मात्र सूचना प्रदान करना ही नहीं अपितु उन सभी चीज़ों और प्रक्रियाओं को अपने अंदर शामिल कर देना है जो कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के अंतर्गत आती हैं। इसका उपयोग करके व्यावसायिक शिक्षा को सुचारू रूप से प्रस्तुत किया जा सकता है। ई शिक्षा को महत्व प्रदान करके विद्यार्थियों की क्षमता यहां तक कि शिक्षक की क्षमता में भी आवश्कयानुसार सुधार हो सकता है।
यदि कार्य सुचारु रूप से चलता रहे तो ई शिक्षा आवश्यक लक्ष्य को प्राप्त कर पाने में सक्षम होती है। यह शिक्षा पाठ की गुणवत्ता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। यह विद्यार्थी में सीखने और शिक्षक में सिख।ने की रुचि में वृद्धि कर ज्ञान को भी बढाती है। इसके साथ- साथ यह तकनीक के माध्यमों और उनके उपयोग पर ध्यान देते हुए मूल्यांकन तथा प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने में कारगर साबित हो सकती है।
शिक्षार्थी के लिए शिक्षा का वर्तमान समय में औचित्य – बच्चे या विद्यार्थी किसी भी समाज या देश का भविष्य होते हैं ,इसी आधार पर इन बच्चों में कल के नेता,डॉक्टर ,इंजीनियर ,अफसर आदि की कल्पना की जाती है जो कि आगे चलकर वास्तविकता में परिवर्तित हो जाती है।
अतः शिक्षा का औचित्य शत प्रतिशत है। ऐसी अवस्था में शिक्षा का उद्देश्य बच्चों को परिपक्व इंसान बनाना होता है। शिक्षा का औचित्य तब और अधिक माना जा सकता है जब उसके द्वारा कल्पनाशील और वैचारिक रूप से स्वतंत्र देश के भावी कर्णधारों का निर्माण हो सकेगा।
वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर एक नज़र – उपरोक्त सभी बातों के अतरिक्त बहुत सी बातें हैं जो हमारी शिक्षा प्रणाली में है अथवा होनी चाहिए परन्तु यदि परिक्षण किया जाये तो पता चलता है कि यह शिक्षा पद्यति उपरोक्त सभी उद्द्श्यों को प्राप्त करने में पूर्ण रूप से सफलता प्राप्त नहीं कर सकी। इसके कारणों पर यदि गौर किया जाये तो मुख्य बात उभर कर सामने आती है कि कम पढ़े लिखे लोग यह निर्णय लेने लगते हैं कि क्या पढ़ाया जाए अथवा क्या पढ़ाना चाहिए। इसके विपरीत जो ज्ञान से भरे शिक्षविद हैं ,वो अपने दायरे और विचारधाराओं से बंधे हुए हैं जो बाहर निकलना ही नहीं चाहते,ऐसी दिशा में वे कुछ नया करने से भी डरते हैं। इसके अतिरिक्त शिक्षा पद्यति को राजनीति से दूर रखा जाए तो अपेक्षाकृत अच्छे परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।
श्रेष्ठ शिक्षा पद्धति के लिए सुझाव – शिक्षा को न केवल किताबी ज्ञान न बनाकर व्यवाहरिक शास्त्र के रूप में स्थान मिलना वर्तमान शिक्षा की आववश्यकता है। परीक्षा का प्रारूप और शिक्षा का स्वरूप कुछ इस प्रकार का होना चाहिए कि उसमे आमूल परिवर्तन की गुंजाइश शेष रह पाए। कंप्यूटर के महत्व को ध्यान में रखते हुए कंप्यूटर शिक्षा को अनिवार्य कर दिया जाना बहुत ज़रूरी हो गया है। उनके तार्किक विकास को बल देते हुए व्यावसायिक ज्ञान देना बहुत अच्छा कदम हो सकता है। शिक्षार्थी को नयी नयी खोजे करने के अवसर प्रदान किए जाये और इसके लिए उन्हें उचित मार्गदर्शन और सुविधाएं प्रदान की जाए। उनके आवश्यकता से अधिक तनाव को कम करते हुए शिक्षार्थी की मानसिक उन्नति के लिए प्रयास होने चाहिए।
पहले बच्चे से यदि बड़े होकर क्या बनने का प्रश्न किया जाता था तो वह यह कहता था कि वह बड़ा होकर डॉक्टर या इंजीनीयर बनकर लोगों के सेवा करना चाहता है जबकि आज का बच्चा अक्सर पैसे की और भागता है चाहे वह कोई भी क्षेत्र हो। इस तरह की सोच को पहले वाली सोच में बदलना होगा क्योंकि इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि पैसा एक आवश्यकता है परन्तु परसेवा व्यक्ति का सबसे बड़ा गुण और धर्म है। इसलिए इस गुण और धर्म को बनाये रखा जाना चाहिए। इसके अत्रिरिक्त वर्तमान शिक्षा प्रणाली को अंगूठा छाप लोगों से दूर रखा जाए और अपरिपक्व सोच को नज़रअंदाज़ करना भी श्रेष्ठ शिक्षा पद्यति के लिए श्रेयस्कर है। शिक्षार्थी को इस प्रकार का ज्ञान देना ज़रूरी है कि उसके अंदर संस्कृति और उसके सम्मान के लिए एक निश्चित स्थान बन जाए। ग्रामीण शिक्षा के स्तर में आवश्यकता के अनुसार समय समय पर सुधार करने की नितांत आवश्यकता है। इन सबके अलावा प्रौढ़ शिक्षा को भी महत्व दिया जाए और इसके लिए स्वयं सेवी संगठनों को प्रोत्साहन एवं सहायता देकर सफलता प्राप्त कर सकते हैं। और इस प्रकार की शिक्षा हम सभी को सर्श्रेष्ठ इंसान के रूप में बदलती है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
शिक्षा प्रणाली की यात्रा-शिक्षा – किसी भी राष्ट्र या समाज में सामजिक नियंत्रण, व्यक्तित्व निर्माण तथा सामाजिक व आर्थिक प्रगति और विकास का मापदंड होती है। भारत में यह शिक्षा किन अवस्थाओं से होकर गुजरी है,यह एक यात्रा के सामान है। देखा जाये तो भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली ब्रिटिश प्रतिरूप पर आधारित है जिसे १८३५ में लागू किया गया था। सन १८३५ में लार्ड मैकाले ने अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य भारत में प्रशासन के लिए बिचौलियों की भूमिका निभाने तथा सरकारी कार्य के लिए भारत के विशिष्ठ लोगों को तैयार करना था। इस समय भारत की साक्षरता का प्रतिशत केवल १३ था। इस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था ने उच्च वर्गों को भारत के शेष समाज में पृथक रखने की भूमिका निभाई। यदि पिछले २०० वर्षों का आंकलन और विश्लेषण किया जाये तो पता चलता है कि यह शिक्षा उच्च वर्ग केंद्रित, श्रम तथा बौद्धिक कार्यों से रहित थी। इसकी बुराइयों को गांधी जी ने सन १९१७ में गुजरात एजुकेशन सोसाइटी के सम्मलेन में सबके समक्ष प्रस्तुत किया तथा शिक्षा में मातृभाषा के स्थान और हिंदी के पक्ष को बढ़ावा देकर राष्ट्रीय स्तर पर बहुत ही अच्छे ढंग से पेश किया।
जबकि सं १९४४ में देश में शिक्षा कानून पारित किया गया। इसके अंतर्गत भारतीय संविधान ने अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए शिक्षण संस्थाओं व विभिन्न सरकारी अनुष्ठानों आदि में आरक्षण की व्यवस्था कर दी। पिछड़ी जातियों को भी इसी प्रकार की अनेक सुविधाएं दी गयी और इस तरह स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात साक्षरता तो बढ़ी है परन्तु फिर भी आज लगभग ३५-४० प्रतिशत लोग निरक्षर ही हैं।
आज शिक्षा का लक्ष्य प्रायः राष्ट्रिय, चरित्र निर्माण, मानव संसाधन विकास काम होकर बल्कि मशीनीकरण से जुड़ा अधिक हो गया है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के नए चेहरे, निजीकरण और उदारीकरण की विचारधारा से शिक्षा को भी उत्पाद की नज़रों से देखा जाता है जिसके अंतर्गत बाज़ार में खरीदना और बेचना शामिल है। अतः शिक्षा को राष्ट्र निर्माण और चरित्र निर्माण से जोड़ने की नितांत आवश्यकता है तभी श्रेष्ठतम शिक्षा पद्यति और योग्य विद्यार्थी हमारे समक्ष होंगे।
©- नंदिता शर्मा जी। (नोएडा, उत्तर प्रदेश) ®
हम दिल से आभारी हैं नंदिता शर्मा जी के “वर्तमान शिक्षा और शिक्षार्थी।” विषय पर हिन्दी में Article साझा करने के लिए।
नंदिता शर्मा जी के लिए मेरे विचार:
♣ “नंदिता शर्मा जी” ने “वर्तमान शिक्षा और शिक्षार्थी।” विषय पर कितना सुंदर-शिक्षाप्रद व अनुकरणीय वर्णन किया हैं। जिसके हर एक शब्दों में शिक्षा के वास्तविक महत्व का सकारात्मक ऊर्जा रूपी अलाैकिक सार भरा हैं। जाे हर एक शब्द पर विचार सागर-मंथन कर हृदयसात करने योग्य हैं। सरल शब्दाे में हाेते हुँये भी हृदयसात करने योग्य हैं। हर एक शिक्षक और शिक्षार्थी को इस विषय में गंभीरता से साेचने कि जरुरत हैं।
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