Kmsraj51 की कलम से…..
♦ दिवस मनाने की होड़। ♦
आज कल भारत में भी दिवसों को मनाने की होड़ लगी हुई है। एक विशेष दिवस को मनाने की बात समझ में आती थी जैसे शिक्षक दिवस, चिकित्सक दिवस। लेकिन ये क्या अब ये दिवस मनाने में रिश्तें भी पीछे नही रहे। जैसे मातृ-पितृ दिवस।
ये रिश्ता तो इस पृथ्वी पर इतना अहमियत रखता है जिसके आगे देव भी नमन करते हैं। आओं विचार करे कि इन दिवसों को मनाने की जरूरत है या नही। क्योंकि हमारी भारतीय संस्कृति में तो पुराने जमाने में सबसे पहले घर में बने भोजन का भी घर के बड़ों को ही परोसा जाता था। तो ये उनको पूजने जैसा ही तो था, क्योंकि इस कार्य में उनका आदर-मान होता था।
फिर ये दिवस मनाने की जरूरत क्यों आई?
क्या एक ही दिन ही हमें इनको खुश रखना हैं?
पहले हमारे भारत में अनाथ आश्रम तो थे। लेकिन वृद्धाश्रम नही थे। आज वृद्धाश्रम की अधिकता हो गयी। क्योंकि आधुनिकता की दौड़ में घरों के बुजुर्गों का मान सम्मान केवल दिवसों में सिमट कर रह गया है।
मात-पिता का तो हर दिन होता है क्योंकि इनके बिना हम सबका कोई अस्तित्व नही है, तो बस एक ही बात इस दिनों को मनाने को सार्थक कर सकती है जब हम हर अपने मात-पिता का आदर करे।
हमारे माता-पिता हमारे घरों के अंदर हम सब के मध्य ही मुस्कराए। अपने बच्चों को भी हम भारतीय संस्कृति के गुणों को आत्मसात कर बड़ों का दिल से आदर करना सिखाए, क्योंकि बच्चें बड़ों को देखकर ही ज्यादा सीखते है।
तो आओं हम सब अपने माता-पिता का दिलों से सम्मान कर भावी पीढ़ी में भी ये गुण भर दे। ताकि किसी के घर का कोई भी बुज़ुर्ग सड़क पर या वृद्धाश्रम में न हो।
दिवस मनाने की सार्थकता तो तभी है जब…
जब अपनों के मध्य ही इनके चेहरे खिले रहे।
जब तक जीये ये हमारे घरों की ढाल बने रहे॥
♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦
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- “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — स्त्री ईश्वर की वह सुन्दर रचना है जिसमें त्याग, स्नेह, भावनाओं और समर्पण भरपूर होता है। स्त्री अनेक भूमिकाओं को बखूबी निभाती है। वैसे – माता और पिता दिवस ताे हर मनुष्य काे अपने अंतिम श्वास तक मनाना चाहिये। एक सच्चा पिता सदैव ही अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिये दिन-रात अनवरत (continuously) कार्य करता हैं। जहा माता अपने बच्चों के स्वास्थ्य का ध्यान रखती हैं ताे वही पिता उन्हे सही ज्ञान और समझ देते हैं। जहा प्रथम गुरु माँ हैं ताे वही पिता गुरु हाेने के साथ-साथ सच्चा संरक्षक भी हाेता हैं।
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यह लेख (दिवस मनाने की होड़।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।
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