Kmsraj51 की कलम से…..
♦ दीपक संग इतिहास। ♦
दिवाली का पर्व आया है धूमधाम से मनाना है।
धनतेरस से भैया दूज, इन पांच दिनों का इतिहास पुराना है॥
दिवाली के दिन श्री राम जी अयोध्या लौटकर आए थे।
इस खुशी में सब लोगों ने अपने घरों में घी के दीप जलाए थे॥
इसी दिन मां दुर्गा ने काली का रुप भी धारा था।
कितने पापी असुरों को मौत के घाट उतारा था॥
इसी दिन भगवान महावीर को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।
दिवाली के दिन ही पांडव भी अज्ञातवास काटकर आए थे॥
कार्तिक मास की अमावस्या को क्षीरसागर से हुई लक्ष्मी माँ प्रकट थी।
सुना है लक्ष्मी और विष्णु जी इसी दिन प्रणय सूत्र में बंधे थे॥
जब इन्द्र देव कुपित हुए बारिश करके तबाही मचाई थी।
श्री कृष्ण भगवान ने गोवर्धन पर्वत उठा इन्द्र के गर्व को तोड़ा था॥
कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा की रीत चलाई थी।
सभी गोकुलवासियों ने मिलकर संध्या समय गोवर्धन पर्वत की आरती उतारी थी॥
एकबार कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वादशी को यमराज यमुना के घर पधारे थे।
भाई दूज नाम पड़ा इस दिन का यमुना ने यमराज से हर साल आने का प्रण लिया था॥
कठोपनिषद में कहा है नचिकेता के पिता ने यमराज को दान देने की बात कही थी।
पिता की बात मानी नचिकेता ने, कार्तिक अमावस्या को यमलोक पहुंचा गए थे॥
यह देख यमदेव खुश हुए फिर तीन वर मांगने को कहा था।
नचिकेता ने पिता का स्नेह, अग्नि विद्या और मृत्यु का ज्ञान मांगा था॥
दैत्यों के राजा बलि के राज्य में दया, दान, अहिंसा और सत्य व्याप्त था।
दैत्यों के राजा बलि के यहां विष्णु जी ने द्वारपाल का पद संभाला था॥
धर्मनिष्ठता स्मृति के साथ तीन दिन तक अहोरात्रि महोत्सव किया था।
यही महोत्सव दीपमालिका के नाम से दुनिया में प्रसिद्ध हुआ था॥
विजयलक्ष्मी कलम रोककर है कहती, आओ भेदभाव को दूर कर स्नेह का दीप जलाए।
जो शहीद हुए हैं देश के लिए उनके स्वप्नों को हम साकार कर दिखाएं॥
॥ आप सभी को दीपावली प्रकाश पर्व पर — हार्दिक शुभकामनाएं ॥
♦ विजयलक्ष्मी जी – झज्जर, हरियाणा ♦
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- “विजयलक्ष्मी जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए समझाने की कोशिश की हैं — धनतेरस से भैया दूज तक इन पांच दिनों का इतिहास बहुत ही पुराना है। दीपावली प्रकाश पर्व के इतिहास का विस्तार से वर्णन किया है, जैसे – श्री राम जी का अयोध्या लौटकर आना, मां दुर्गा ने काली का रुप धरकर कितने पापी असुरों को मौत के घाट उतारा। इसी दिन भगवान महावीर जी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। दिवाली के दिन ही पांडव भी अज्ञातवास काटकर वापस आए थे। कार्तिक मास की अमावस्या को क्षीरसागर से हुई लक्ष्मी माँ प्रकट, सुना है लक्ष्मी और विष्णु जी इसी दिन प्रणय सूत्र में बंधे थे, और भी बहुत कुछ हुआ था इस दिन।
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यह कविता (दीपक संग इतिहास।) “विजयलक्ष्मी जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
मेरा नाम विजयलक्ष्मी है। मैं राजकीय प्राथमिक कन्या विद्यालय, छारा – 2, ब्लॉक – बहादुरगढ़, जिला – झज्जर, हरियाणा में मुख्य शिक्षिका पद पर कार्यरत हूँ। मैं पढ़ाने के साथ-साथ समाज सेवा, व समय-समय पर “बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ” और भ्रूण हत्या पर Parents मीटिंग लेकर उनको समझाती हूँ। स्कूल शिक्षा में सुधार करते हुए बच्चों में मानसिक मजबूती को बढ़ावा देना। कोविड – 19 महामारी में भी बच्चों को व्हाट्सएप ग्रुप से पढ़ाना, वीडियो और वर्क शीट बनाकर भेजना, प्रश्नोत्तरी कराना, बच्चों को साप्ताहिक प्रतियोगिता कराकर सर्टिफिकेट देना। Dance Classes प्रतियोगिता का Online आयोजन कराना। स्वच्छ भारत अभियान के तहत विद्यालय स्तर पर कार्य करना। इन सभी कार्यों के लिए शिक्षा विभाग और प्रशासनिक अधिकारी द्वारा और कई Society द्वारा बार-बार सम्मानित किया गया।
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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)
Thanks
For Published my poetry KMSRAJ51.
Also thanks to you Ji.