Kmsraj51 की कलम से…..
♦ दुनिया हिंदी को राष्ट्रभाषा जानती। ♦
हिंदी भाषी राज्यों की आबादी,
46 करोड़ से अधिक बताई जाती।
जनगणना के हिसाब से भारत में,
1.2 अरब (2011) की है पूरी आबादी।
जिसमें 48.3 फीसदी मातृभाषा,
हिंदी ही माध्यम से बोली जाती।
80 करोड़ से अधिक लोग दुनिया में,
25 देशों में हिंदी बोली जाती।
विश्व में हिंदी भाषा धाक जमाई,
तीसरी ज्यादा बोली भाषा कहलाती।
हिंदी भाषा की पूरी शक्ति संपन्न सूची,
1298617995 गूगल हमें बताइए।
सन 1900 ई. में हिंदी को मिला,
कचहरियों में भी सफल स्थान।
सन 1905 ई. में बंग विच्छेद विरोध,
में स्वदेशी आंदोलन छिड़ गया।
धीरे धीरे यह आंदोलन बड़ा शक्तिशाली,
अखिल भारतीय रूप लेता गया।
स्वदेशी आंदोलन के फलस्वरुप,
हिंदी की ओर लोगों का ध्यान गया।
आगे चलकर काशी में ही 1910 में,
आखिर भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना हुई।
हिंदी के भावी विकास में मददगार,
इस संस्था का सबसे बड़ा हाथ रहा।
विभिन्न क्षेत्र में विभिन्न भाषा फिर भी,
रूचि के लोगों ने हिंदी को अपनाया।
जिसने भी चाहा, हिंदी को उसने अपने,
ढंग से बोलना और लिखना आरंभ किया।
शब्दों की मनमानी के साथ वाक्य रचना,
और शैली भी भिन्न – भिन्न प्रयुक्त होने लगी।
इस विविधता में भाषा की आंतरिक,
शक्ति को बढ़ाने में क्षति नहीं पहुंची।
मातृभाषा के लिए अनुराग और सेवा का,
कर्तव्य बोध अवश्य लोगों में जागा।
हिंदी की पुस्तकें ज्यादा आने लगी,
हिंदी पत्रों के पढ़ने वाले ग्राहक बढ़ने लगे।
स्कूल कालेजों में हिंदी पढ़ने वाले छात्रों,
की संख्या बढ़ने और पढ़ने लगी।
सन 1891 ई. हिंदी पत्रों की संख्या,
कुल ग्राहक संख्या 8000 ही थी।
और सन 1936 में हिंदी पत्रों की संख्या,
324880 तक की लोगों में पहुंच गई।
तत्कालीन मुसलमानों ने अस्तित्व की ,
उनमें बड़ी आशंका होनी लगी।
धर्म की दुहाई देकर भाषा का,
खुल्लम खुल्ला विरोध करने लगे।
कुछ ने कहा हिंदी नाम की कोई भाषा ही नहीं,
इस विवाद के कारण हिंदी और आगे बढ़ी।
जीवंत भाषा का सबसे बड़ा लक्षण,
उसकी ग्राहीका शक्ति होती।
जीवंत भाषा का लक्षण हिंदी में,
बौद्धिक मानसिक स्तर को उठाता।
विश्व मानता हिंदी को राष्ट्रभाषा,
साहित्यकारों बतलाओ अपनी आशा।
( साभार हिं. साहित्य का वृ. इतिहास, गूगल वर्तमान )
♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦
नोट: इस कविता/लेख में जनसंख्या का आंकड़ा भारतीय जनगणना 2011 के अनुसार है। भारत की वर्तमान जनसंख्या 136.64 crores (2019) है। बहु भाषी भारत के हिन्दी भाषी राज्यों की आबादी 46 करोड़ से अधिक है। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की 1.2 अरब आबादी में से 41.03 फीसदी की मातृभाषा हिंदी है। हिन्दी को दूसरी भाषा के तौर पर इस्तेमाल करने वाले अन्य भारतीयों को मिला लिया जाए तो देश के लगभग 75 प्रतिशत लोग हिन्दी बोल सकते हैं।
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- “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — अंग्रेजो से आजादी के इतने वर्षों बाद भी हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा की मान्यता आधिकारिक रूप से क्यों दर्ज नही हुआ, हिंदी को उसका सम्मान क्यों नहीं मिला? हिन्दी राष्ट्रभाषा के महत्व, गुणों और प्रभाव को बताया है। हिन्दी हर भारतीय के दिल से निकलने वाली भाषा हैं। हिन्दी भाषा दिल को दिल से जोड़ने का कार्य करती है। एकलौती हिन्दी भाषा ही है जिसमे अपनापन है दुनिया की किसी भी अन्य भाषा अपनापन का स्थान नहीं।
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यह कविता (दुनिया हिंदी को राष्ट्रभाषा जानती।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।
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