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♦ आषाढ़ – गुरु पूर्णिमा का महत्व। ♦
‘पूर्णिमा’ शब्द सुनते ही मनाकाश पर रात्रि का अंधकार पूर्ण आकाश और उसमें अपनी समस्त कलाओं के साथ खिला हुआ पूर्ण चन्द्र की कल्पना साकार हो जाती है। रात्रि और सम्पूर्ण धरा पर धवल प्रकाश बिखेरती पूर्ण चाँद की चंद्रिकाएँ, पूर्णिमा का यही अर्थ है।
तो फिर आषाढ़ की पूर्णिमा का इतना महत्त्व क्यों ? इस माह की पूर्णिमा को देश भर में गुरु-पूर्णिमा के रूप में क्यों मनाते हैं ? आषाढ़ से तो आकाश में बादल घिरने शुरु हो जाते हैं। आषाढ़, सावन, भादों ये सब ऐसे महीने हैं जिनके आते ही लोग मेघ, वर्षा, मिलन-विरह इत्यादि के गीत गाते हैं या बातें करते हैं। फिर आषाढ़ की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा क्यों कहा जाता है ? जबकि इस पूर्णिमा को चन्द्र – दर्शन होंगे भी या नहीं ये भी निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता।
इस गूढ़ रहस्य को समझने का प्रयास करें तो एक अर्थ ये स्पष्ट होता है …
‘गुरु’ स्वयं प्रकाशमान पूर्ण चन्द्र के समान हैं और शिष्य – गण आकाश में घिरे उन बादलों के समान हैं जो चन्द्रमा के प्रकाश से श्याम – वर्ण से श्वेत – वर्ण में परिवर्तित हो जाते हैं। ठीक इसी प्रकार गुरु रूपी चन्द्र के प्रकाश से शिष्यों के अज्ञान रुपी काले बादल ज्ञान के प्रकाश से जगमगा उठते हैं। इस तरह प्रतीकात्मक रूप से अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा का आभास होता है। गुरु शब्द का अर्थ ही है अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाना।
मान्यता ये भी है की आदि गुरु वेद व्यास जी का जन्म इसी आषाढ़ी पूर्णिमा को हुआ था अतः उनके सम्मान में इस पूर्णिमा को गुरु – पर्व के रूप में मनाया जाता है और इसी कारण इसे ‘व्यास पूर्णिमा’ भी कहा जाता है।
माता – पिता और गुरु का आशीर्वाद सदा कल्याणकारी तथा पथ – प्रदर्शक होता है। जीवन में गुरु और शिष्य की परम्परा के महत्त्व को अगली पीढ़ी समझे, इस दृष्टि से भी इस पर्व को मनाये जाने की स्वस्थ परम्परा भारत में है। इसमें अंध – विश्वास जैसी कोई बात नहीं है।
यदि गहराई से चिंतन करके देखेंगे और किसी भी परंपरा की जड़ों तक जाने के लिए हम अध्ययन करेंगे तो हम पाएंगे कि भारत की कोई भी परंपरा और कोई भी पर्व अंधविश्वास नहीं है; हर पर्व का कोई ना कोई वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। इसे श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाया जाना चाहिए।
♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦
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- “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख में समझाने की कोशिश की है — गुरु ही अपने शिष्य का मार्गदर्शन करते हैं और वे ही जीवन को ऊर्जामय बनाते हैं। जीवन विकास के लिए हमारे भारतीय संस्कृति में गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका मानी गई है। गुरु की सन्निधि, प्रवचन, आशीर्वाद और अनुग्रह जिसे भी भाग्य से मिल जाए उसका तो जीवन कृतार्थता से भर उठता है। क्योंकि गुरु बिना न तो आत्म-दर्शन होता और न परमात्म-दर्शन। माता – पिता और गुरु का आशीर्वाद सदा कल्याणकारी तथा पथ – प्रदर्शक होता है। जीवन में गुरु और शिष्य की परम्परा के महत्त्व को अगली पीढ़ी समझे, इस दृष्टि से भी इस पर्व को मनाये जाने की स्वस्थ परम्परा भारत में है। इसमें अंध – विश्वास जैसी कोई बात नहीं है। भारत की कोई भी परंपरा और कोई भी पर्व अंधविश्वास नहीं है; हर पर्व का कोई ना कोई वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। इसे श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाया जाना चाहिए। गुरु रूपी चन्द्र के प्रकाश से शिष्यों के अज्ञान रुपी काले बादल ज्ञान के प्रकाश से जगमगा उठते हैं। इस तरह प्रतीकात्मक रूप से अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा का आभास होता है। गुरु शब्द का अर्थ ही है अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाना।
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यह लेख (आषाढ़ – गुरु पूर्णिमा का महत्व।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी मुक्तक/कवितायें/गीत/दोहे/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।
साहित्यिक नाम : वेदस्मृति ‘कृती’
शिक्षा : एम. ए. ( अँग्रेजी साहित्य )
बी.एड. ( फ़िज़िकल )
आई आई टी . शिक्षिका ( प्राइवेट कोचिंग क्लासेज़)
लेखिका, कहानीकार, कवियित्री, समीक्षक, ( सभी विधाओं में लेखन ) अनुवादक समाज सेविका।
अध्यक्ष : “सिद्धि एक उम्मीद महिला साहित्यिक समूह”
प्रदेश अध्यक्ष : अखिल भारतीय साहित्य सदन ( महाराष्ट्र इकाई )
राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान बिहार प्रान्त की महिला प्रकोष्ठ,
श्री संस्था चैरिटेबल ट्रस्ट : प्रदेश प्रतिनिधि ( महाराष्ट्र )
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद में – सह संगठन मंत्री, मुंबई ज़िला, महाराष्ट्र
हिन्दी और अँग्रेजी दोनों विधाओं में स्वतंत्र लेखन।
अनेक प्रतिष्ठित हिन्दी/अँग्रेजी पत्र – पत्रिकाओं में नियमित रचनाएँ प्रकाशित।
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