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Pt. Mahamana Madan Mohan Malviya Ji a Man of the Era | पं. महामना मदन मोहन मालवीय जी एक युगपुरुष।
भारत विचारवान महापुरूषों की जन्म भूमि है। यहां समय-समय पर महापुरूषों की भूमिका निभाने वालों का जन्म धरती माँ की गोंद में होता रहा हैं जिससे धरती धन्य होती रही है। उन्हीं महापुरूषों में मदन मोहन मालवीय जी का नाम भी प्रमुख रूप में लिया जाता हैं उन्होंने हिन्दू संगठनों का शक्तिशाली आन्दोलन चलाया जबकि इसके लिए उन्हें सहधर्मियों की उलाहना सहन करना पड़ा उलाहना का परवाह किए बिना कलकत्ता, काशी, प्रयाग नासिक आदि प्रमुख जगहों पर उन्होंने भंगियों को उपदेश दिया और मन्त्र दीक्षा भी दिया।
मालवीय जी व्यायाम और त्याग में अद्वितीय पुरूष थे। उन दिनों जब वाइस चांसलर का० हिं० विश्वविद्यालय के थे, तो भी वे सबेरे नियमित रूप से शरीर की मालिश कराया करते थे। वह सत्य ब्रह्मचर्य और देश भक्त उत्तम गुणों वाले महा मानव थें उनके कथनी और करनी में कोई अन्तर नहीं होता था। जो वे कहते उनको जीवन में पालन भी करते थे।
वह मृदृ भाषा पुरूष थे उनमें रोष तो मानों लेशमास भी छू न सका था। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पं0 मदन मोहन मालवीय जी की शताब्दी के अवसर पर दिसम्बर 25, सन 1961 को पन्दह पैसे का डाक टिकट जारी हुआ। वहीं आयरिश महिला एनीवेसेंट जो भारतीय सवतंत्रता आन्दोलन की समर्थक, सेनानी सामाजिक कार्यकर्ता शिक्षाविद् कोल रूल लीग की संस्थापक सन् 1917 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष के ऊपर अक्टूबर 01, सन् 1963 को डाक विभाग 15 पैसे का टिकट जारी किया। मालवीय जी की 150 वीं जयन्ती पर 05 रू0 का डाक टिकट दिसम्बर 27 सन् 2011 में जारी हुआ।
का० हि० वि० विद्यालय के प्रथम वाइस चांसलर पं० मालवीय जी
का० हि०वि० विद्यालय के प्रथम वाइस चांसलर पं० मालवीय जी बनाए गये। उन्होंने वि० विo के लिए शिक्षाभियान चलाया। जिसमें पं० जी सफल रहे। धर्म संस्कृति की उन्होंने रक्षा की, संस्कृति को संजोया। वह सादा जीवन उच्च विचारवान महामानव पुरूष थे। का० हि०वि० विद्यालय में मिलने देश-विदेश के लोग और मेहमान भी आते रहते थे। मेहमान नवाजी में विद्यालय पीछे नहीं हटता था।
कहा जाता है कि मालवीय जी का आदेश था कि “विश्वविद्यालय के धन का उनके (स्वयं) ऊपर एक पैसा भी व्यय न किया जायं” उनकी यात्रा आदि का खर्च कुछ धनी मित्र अपनी स्वेच्छा से श्रद्धा से करते थे। माना जाता है कि संस्कृत-संस्कृति के संवाहक मालवीय जी पुत्री के रूप में विद्यालय को माना होगा कारण पुत्री का धन खाना हिंदू धर्म शास्त्र में महा पातक कर्म माना गया है। वहीं उन दिनों वि0 वि0 के पास मोटर वाहन नहीं था जबकि रेलवे स्टेशन, बस अड्डा 8–9 किमी0 लगभग पर था। मालवीय जी प्रायः ‘इक्के’ से आते-जाते रहते थे।
एक बार लम्बी यात्रा के बाद …
एक बार लम्बी यात्रा के बाद इक्के की सवारी से आते लत-पथ हालत में देखकर कुंअर सुरेश सिंह एवं सुदरम् जो कि विद्यालय के ही छात्र थे ने वयोबृद्ध तपस्वी वाइसचांसलर की सेवा और वि० विद्यालय के लिए उनके समर्पण भाव को देखकर ‘व्यूक’ गाड़ी भेंट करने की जिज्ञासा संजोकर संकल्प कर होस्टलों में जाकर विद्यार्थियों से चंदा मांगा। मध्यम एवं निम्न मध्यम वर्गी छात्रों द्वारा चंदा सायं काल तक मात्र दो हजार रूपया ही मिल सका।
दोनों संकल्पित छात्र भूखे प्यासे हताशा की हालत में अंत में दानबीर बाबू शिव प्रसाद गुप्त जी के शरण में पहुंचे। उन्होंने इस सर्त पर किसी से मेरे रूपये देने की बात नहीं कहोगे! और वे शेष गाड़ी ‘व्यूक’ खरीदने के लिए पाँच हजार का चेक काट कर दे दिया। उन दिनों व्यूक सात हजार में मिलती थी। दोनों छात्र खुशी – ख़ुशी छात्रावास चले गये। उधर मालवीय जी दोनों विद्यार्थियों को पास आने का बुलावा छात्रावास भेजते रहे, उधर छात्र चंदा इकट्ठा करने में लगे रहे। उन तक सूचना नहीं पहुच सकी।
सायंकाल छात्र सुन्दरम् हास्टल पहुचा तो वह मालवीय जी से जा मिला। जो बातें हुई मोबाइल उन दिनों न होने से कु० सुरेश सिंह से नहीं बता सका। उधर कु० सुरेश सिंह सुबह वाइसचांसलर जी से मिलने पहुँचे। मालवीय जी नित्य की तरह नितकर्मानुसार मालिस करवा रहे थें कुवर सुरेश सिंह को देख कर मालवीय जी बोल- ‘कल-तुम दिन भर मेरे लिए एक मोटर खरीदने को चंदा इकट्ठा करते रहे । विश्वविद्यालय में सारे देश से गरीब लोगों के लड़के पढ़ने आते हैं । वे जब लौट कर अपने-अपने गाँव में जायेंगे और कहेंगे कि वहां तो मेरे सुख सुविधा के लिए उन गरीब विद्यार्थियों से पैसा वसूल किया जाता है। तब देशवासी मेरे बारे में क्या सोचेंगे?
कलंक नहीं लगा रहे …
और आगे सुरेश सिंह से कहा- “तुम तो ताल्लुकेदार के लड़के हो! ताल्लुके दारों को जब मोटर खरीदनी होती है तो वे अपनी रैयत से मोहरवारन वसूल करते हैं। प्रजा इससे कितनी त्रस्त होती होगी। और देश में इस प्रथा से उनकी कितनी भर्त्सना होती है? क्या तुम मेरे लिए भी ‘मोहरवारन’ की प्रथा यहाँ चलाकर मेरे नाम पर भी कलंक नहीं लगा रहे मेरे लिए अपयश से बढ़कर कौन सा दण्ड है? तुमने यह सब क्यों किया?”
हिंदी – अंग्रेजी दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ का सम्पादन
मालवीय जी ने हिंदी अंग्रेजी दैनिक’ हिन्दुस्तान’ का सम्पादन सन् 1887 में शुरू किया, उन्होंने देश भक्त राजा रामपाल सिंह जी के अनुरोध को आत्मसात कर लगभग तीस माह तक जनता को हिन्दुस्तान के माध्यम से जगाया। महामोपाध्याय पं० आदित्य राम भट्टाचार्य के साथ जो म्यामार कालेज (वर्तमान इलाहाबाद वि०वि०) के मनस्वी गुरू थे, के द्वारा 1880 ई0 में स्थापित ‘हिंदू समाज’ में मालवीय जी भाग ले रहे थे। मदन जी पं० अयाध्यानाथ जो कि कांग्रेस नेता थे उनके भी इंडियन ओपीनियन के सम्पादन में भी कार्य किया। और उन्होंने दैनिक लीडर को निकाल कर महान कार्य किया। वह लीडर सरकार समर्थक ‘पायोनियर’ के समकक्ष का था। जो सन् 1909 ई0 में सम्पादित हो रहा था। हिन्दुस्तान टाइम्स को सन् 1924 ई0 में सुव्यवस्थित किया और लाहौर से ‘विश्वबंध’ काशी से ‘सनातन धर्म’ के प्रचारार्थ प्रकाशित कराया। मालवीय जी खुद एक अच्छे सम्पादक थे।
मैं अन्न-जल न ग्रहण करूंगा
उधर वि० विद्यालय के छात्र सुरेश सिंह मालवीय जी के चंदे को लेकर हुई बात सुनकर हतप्रध हो बोले- “महाराज, लम्बी यात्रा से थके थकाये इक्के पर स्टेशन से आपको इस वृद्धावस्था में आते देख हमें दुःख हुआ। हमने सोचा वि०वि० के वाइस चांसलर के पास भी गाड़ी होनी चाहिए।” सो हमने ऐसा निर्णय किया। सादगी पूर्ण जीवन यापन करने वाले महात्मा जी ने यह सुनकर कहा- “कल तुमने चंदा पूरा होने तक उपवास रखा था अब तुम जाकर जिस-जिस से जितना पैसा लाये हो उसे लौटा दो और जब तक तुम आकर मुझे सूचित नहीं करते हो मैं अन्न-जल न ग्रहण करूंगा।
“यह सुनकर गुरू आज्ञा को शिरोधार्य कर दोनों विद्यालय के छात्र लोगों का पैसा लौटाने में लग गये। और जब पैसा लौटा कर दोनों छात्र मालवीय जी से फिर मिले तो कुंअर सुरेश सिंह व सुन्दरम् को वाइसचांसलर जी ने शाबाशी दी तथा अपना किया गया व्रत तोड़ा। लोगों द्वारा प्रायः नरमदल का कार्य कांग्रेस में छोड़ते रहने के वावजूद म० मो० मालवीय जी उसमे डटकर कार्य करते रहे। अतएव कांग्रेस ने उन्हें चार बार सभापति निर्वाचित किया। क्रम से सन् 1909 में लाहौर सन् 1918, 1931 ई0 में दिल्ली एवं सन् 1933 में कलकत्ता में उन्हें सम्मान मिला। दो बार वे सत्याग्रह के कारण गिरफ्तार भी हुए। मालवीय जी आज हमारे बीच न रह कर भी हमेशा-हमेशा अमर रहेंगे उनकी बीरगाथा, देश प्रेम, साहस, शौर्य, धर्मप्रचार एवं बलिदान का संदेश देश को नई ऊर्जा प्रदान करने में सहायक सिद्ध होगी।
♦ सुख मंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦
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— Conclusion —
- “सुख मंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख में समझाने की कोशिश की है — मदन मोहन मालवीय शिक्षा को मानव मात्र का अधिकार मानते थे तथा इसका समुचित प्रबन्ध करना राज्य का कर्त्तव्य मानते थे। वे शिक्षा की एक ऐसी राष्ट्रीय प्रणाली विकसित होते देखना चाहते थे जिसमें प्रारम्भिक और माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षा निःशुल्क हो। अध्यापकों एवं छात्रों के कर्तव्य, व्यायाम करके शरीर को बलशाली बनायें। पहले स्वास्थ्य सुधारें फिर विद्या पढ़ें। शाम को खेलें, मैदान में विचरें। पंडित मदन मोहन मालवीय ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेकर 35 साल तक कांग्रेस की सेवा की। उन्हें सन् 1909, 1918, 1930 और 1932 में कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। मालवीयजी एक प्रख्यात वकील भी थे। एक वकील के रूप में उनकी सबसे बड़ी सफलता चौरीचौरा कांड के अभियुक्तों को फांसी से बचा लेने की थी। मदन मोहन मालवीय एक भारतीय विद्वान, शिक्षा सुधारक और राजनीतिज्ञ थे जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भूमिका के लिए उल्लेखनीय थे। वह चार बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष और अखिल भारत हिंदू महासभा के संस्थापक थे।
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यह लेख (पं. महामना मदन मोहन मालवीय जी एक युगपुरुष।) “सुख मंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।
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