Kmsraj51 की कलम से…..
♦ हाय — वो मंजर। ♦
पक्की सड़क के दोनों तरफ वो लहलहाते हरे-भरे खेत।
बीच-बीच में कहीं ईंटे बिछी तो कहीं उड़ती रेत॥
आँखें आनंद से देख रही थी प्रकृति का सुंदर नजारा।
वो लहलहाती फसल वो खुशी से झूमता पेड़ प्यारा॥
खेतों की मेड़ के छोटे-बड़े पेड़ सभी मदमस्त हो मस्ता रहे।
पर वो दो पेड़ कुछ विचित्र ही कहानी दर्शा रहें थे॥
पर एक जगह का दृश्य देख आँखों में आँसू आए।
दिल को झकझोर देने वाला क्यूँ मानवता खो जाए॥
दिखाते है तुम सबको वो चित्रण जिसे देख ऐसा हुआ आभास।
खेत की आग ने हरे-भरे पेड़ो की छीन ली थी जीने की आस॥
पेड़ की विशाल शाखाएँ हरी पर उसका तना बुरी तरह गया जल।
ऐसे लगे जैसे पूछ रही उसकी टहनियां क्या ये मंजर नही जाता टल॥
मानों वो पेड़ कह रहा कि सुनो कभी मेरे दिल की करुण पुकार।
तुम्हें जीवन देने वाले तुम्हीं से लगाये एक रूदन भरी गुहार॥
रोपण ही काफी नही हमें बचाने के लिए कोई तो उठाओ कदम।
जीवनदान देने वालों की ही आज स्वार्थ ने कर दी आँखें इतनी नम॥
मन में उठे सवाल पूछें क्यूँ हमारे काम मानवता को करते शर्मसार।
आधुनिकता के नाम पर हर वर्ष लाखों पेड़ चढ़ते बलि बारम्बार॥
सुंदर जीवन के लिए खूब पेड़ लगाओ पर इनकी सुरक्षा में न पीछे रहो।
जिसके लिए ह्रदय तड़पे उस बात को सबसे बेबाक होकर कहो॥
♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦
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- “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — कब तक अपने ऐशो आराम के लिए यूँ ही पेड़ काटते रहोगे इंसान। अगर अब भी न सुधरे तुम तो पृथ्वी का वातावरण बिलकुल ही गर्म हो जाएगा, तुम्हारे जीने के लाले पड़ जायेंगे; फिर रोते रहना। प्रत्येक वर्ष बहुत सारे पेड़ आग लगने से जल जाते है, और इंसान कम थोड़े ही है ये भी अपने ऐशो आराम के लिए यूँ ही पेड़ काटते रहते है। अभी जब गर्मी पड़ रही है तो इन्हें पेड़ की कमी खल रही हैं। जब हरे भरे पेड़ और पौधे होते है तो कितना खूबसूरत मौसम व वातावरण होता है, सभी ऋतुएँ अपने चक्र के अनुसार चलती है, और सभी फसल समय पर होते हैं। अब भी समय हैं सुधर जा तू इंसान। आओ हमसब मिलकर ये संकल्प ले की प्रत्येक वर्ष दो पेड़ जरूर लगाएंगे, और उनका अच्छे से देख रेख करेंगे तब तक; जब तक वो पेड़ अपना खुराक खुद न लेने लगे पृथ्वी से।
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यह कविता (हाय — वो मंजर।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।
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Kusum Gaur says
Nice 👌 and true 👍 Poem ⚘⚘⚘⚘
Aashima says
Nice… Really true words