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हमारा क्या कसूर।

Kmsraj51 की कलम से…..

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    • Hamara Kya Kasoor | हमारा क्या कसूर।
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Hamara Kya Kasoor | हमारा क्या कसूर।

खुशी खुशी घूमने पहुंचे पहलगाम,
क्या पता था कि यहाँ हो जाएगा काम तमाम।
कोई विदेश से आया तो कोई अपने ही देश से,
हसीन वादियों का आनंद ले रहे थे बड़े शौक से।

एकाएक सन्नाटा सा छा है जाता,
किसी को कुछ भी समझ नहीं आ पाता।
गोलियों की आवाज़ जोर से है आती,
किसी से धर्म की तो किसी से कलमा पढ़ने की बात पूछी जाती।

हिन्दू शब्द जैसे ही सुनाई देता,
सीने में गोली दाग जान ले लेता।
कलमा पढ़ने में जो नहीं हुआ पास,
उसे भी जीने की नहीं रही थी आस।

हाथों से अभी मेहंदी का रंग भी नहीं था उतरा,
सुहाग उजाड़ कर जिन्दगी कर दी कतरा – कतरा।
आखिर कसूर क्या था जो गोलियों से उड़ाए,
अपने ही देश के तो थे हम कहाँ थे पराए।

♦ विनोद वर्मा जी / (मझियाठ बलदवाड़ा) जिला – मंडी – हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “विनोद वर्मा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — यह कविता पहलगाम जैसी सुंदर और शांत जगह पर हुई एक दर्दनाक घटना को दर्शाती है। कवि बताता है कि लोग खुशी-खुशी वहाँ घूमने आए थे, कोई विदेश से तो कोई देश के अन्य हिस्सों से, पर उन्हें क्या पता था कि यह यात्रा उनकी आखिरी बन जाएगी। अचानक वहाँ अफरा-तफरी मच जाती है, गोलियों की आवाजें गूंजने लगती हैं। कुछ लोग धर्म पूछकर जान लेने लगते हैं — अगर कोई हिन्दू निकले तो उसे गोली मार दी जाती है, और जो कलमा नहीं पढ़ पाते, उनकी भी जान नहीं बख्शी जाती। कविता उस दर्द को भी दर्शाती है जब नवविवाहित दुल्हनों की हाथों से मेहंदी का रंग भी नहीं उतरा था, और उनका सुहाग उजड़ गया। सवाल उठाया गया है कि आखिर उनका कसूर क्या था? वे तो अपने ही देश के नागरिक थे, फिर भी उन्हें पराया समझकर मारा गया। कुल मिलाकर, यह कविता धार्मिक असहिष्णुता और आतंक की भयावहता को उजागर करती है, साथ ही यह सवाल उठाती है कि जब अपने ही देश में लोग सुरक्षित नहीं हैं, तो इंसानियत कहाँ बची है?

—————

यह कविता (हमारा क्या कसूर।) “विनोद वर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम विनोद कुमार है, रचनाकार के रुप में विनोद वर्मा। माता का नाम श्री मती सत्या देवी और पिता का नाम श्री माघु राम है। पत्नी श्री मती प्रवीना कुमारी, बेटे सुशांत वर्मा, आयुष वर्मा। शिक्षा – बी. एस. सी., बी.एड., एम.काम., व्यवसाय – प्राध्यापक वाणिज्य, लेखन भाषाएँ – हिंदी, पहाड़ी तथा अंग्रेजी। लिखित रचनाएँ – कविता 20, लेख 08, पदभार – सहायक सचिव हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ मंडी हिमाचल प्रदेश।

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“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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