Kmsraj51 की कलम से…..
ϒ नव वर्ष 2014 ϒ
नया साल आते ही हमसब स्वंय से कुछ न कुछ वादा करते हैं। अपने-अपने कार्य क्षेत्र में सफलता की कामना लिए बेहतर प्रयास करते है, किन्तु सब लक्ष्य तक नही पहुँच पाते क्योंकि सफलता उन्ही को मिलती है जो हर बाधाओं को दृण संकल्प के साथ पूरी ईमानदारी से पार करते हैं।
कहते हैं, गहरी इच्छा हर उपलब्धी का शुरुआती बिन्दु होती है। जिस तरह आग की छोटी लपटें अधिक गर्मी नही दे सकती उसी तरह कमजोर इच्छा भी बङे नतीजे नही दे सकती। जीवन में सफल होने के लिए अपने लक्ष्य के प्रति जुनून होना भी बहुत जरूरी है। दूसरों पर निर्भर रह कर कामयाबी हासिल नही की जा सकती। कामयाबी के लिए थोङी बहुत रिस्क भी लेनी चाहिए। कहावत भी हैः- No Risk No Gain.
लाला लाजपत राय ने कहा था कि “मनुष्य अपने गुणों से आगे बढता है न की दूसरों की कृपा से।“ कहने का आशय ये है कि, सिर्फ सफल होने का प्रयास न करें बल्कि मुल्य आधारित जीवन जीने वाला इंसान बनने का भी प्रयास करें क्योंकि वास्तविक सफलता की ये प्रमुख ईकाइ है।
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुलकलाम कहते हैं कि, “असफलता को भूलकर अपनी स्थिती और ऊर्जा को पहचानो। उसी पथ का निर्माण करो, जिसके लिए तुम बने हो, मंजिल तुम्हे जरूर मिलेगी। सपने जरूर देखो और उन सपनों को साकार करने की तीव्र चाह अपने मन में पैदा करो।“
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ यही कामना करते हैं कि, सभी के सपने साकार हों, 2014 की सुबह नई रौशनी का प्रकाश करे, जिसकी धूप से भारत में इंसानियत खिल उठे, बेटीयां सुरक्षित हों तथा वसुधैव कुटुम्बकम का शंखनाद हो।
नया साल सभी के लिए मंगलमय हो…..
दासता की श्रृंखलाओं में बंधे रहने और अपना आत्म सम्मान खो देने के कारण आज भी हमारे देश में सभी व्यवस्थाएं अंग्रेजी केलेंडर के अनुसार ही चल रही हैं.वर्ष २०१३ विदाई ले रहा है और २०१४ अपने आगमन की तैयारी में हैं.जनवरी से प्रारम्भ होकर दिसम्बर तक चलने वाले सभी महीनों का नामकरण कैसे हुआ,इंटरनेट और पुस्तकों से प्राप्त जानकारी के अनुसार उपलब्ध कुछ विवरण पढ़ें देखिये विरोधाभास ………
महीने के नामों को तो हम सभी जानते हैं, लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि महीनों के यह नाम कैसे पड़े एवं किसने इनका नामकरण किया। नहीं न! तो जानिए……
जनवरी : रोमन देवता ‘जेनस’ के नाम पर वर्ष के पहले महीने जनवरी का नामकरण हुआ। मान्यता है कि जेनस के दो चेहरे हैं। एक से वह आगे तथा दूसरे से पीछे देखता है। इसी तरह जनवरी के भी दो चेहरे हैं। एक से वह बीते हुए वर्ष को देखता है तथा दूसरे से अगले वर्ष को। जेनस को लैटिन में जैनअरिस कहा गया। जेनस जो बाद में जेनुअरी बना जो हिन्दी में जनवरी हो गया।
फरवरी : इस महीने का संबंध लेटिन के फैबरा से है। इसका अर्थ है ‘शुद्धि की दावत।’ पहले इसी माह में 15 तारीख को लोग शुद्धि की दावत दिया करते थे। कुछ लोग फरवरी नाम का संबंध रोम की एक देवी फेबरुएरिया से भी मानते हैं। जो संतानोत्पत्ति की देवी मानी गई है इसलिए महिलाएं इस महीने इस देवी की पूजा करती थीं ताकि वे प्रसन्न होकर उन्हें संतान होने का आशीर्वाद दें।
मार्च : रोमन देवता ‘मार्स’ के नाम पर मार्च महीने का नामकरण हुआ। रोमन वर्ष का प्रारंभ इसी महीने से होता था। मार्स मार्टिअस का अपभ्रंश है जो आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। सर्दियां समाप्त होने पर लोग शत्रु देश पर आक्रमण करते थे इसलिए इस महीने को मार्च नाम से पुकारा गया।
अप्रैल : इस महीने की उत्पत्ति लैटिन शब्द ‘एस्पेरायर’ से हुई। इसका अर्थ है खुलना। रोम में इसी माह कलियां खिलकर फूल बनती थीं अर्थात बसंत का आगमन होता था इसलिए प्रारंभ में इस माह का नाम एप्रिलिस रखा गया। इसके पश्चात वर्ष के केवल दस माह होने के कारण यह बसंत से काफी दूर होता चला गया। वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के सही भ्रमण की जानकारी से दुनिया को अवगत कराया तब वर्ष में दो महीने और जोड़कर एप्रिलिस का नाम पुनः सार्थक किया गया।
मई : रोमन देवता मरकरी की माता ‘मइया’ के नाम पर मई नामकरण हुआ। मई का तात्पर्य ‘बड़े-बुजुर्ग रईस’ हैं। मई नाम की उत्पत्ति लैटिन के मेजोरेस से भी मानी जाती है।
जून : इस महीने लोग शादी करके घर बसाते थे। इसलिए परिवार के लिए उपयोग होने वाले लैटिन शब्द जेन्स के आधार पर जून का नामकरण हुआ। एक अन्य मतानुसार जिस प्रकार हमारे यहां इंद्र को देवताओं का स्वामी माना गया है उसी प्रकार रोम में भी सबसे बड़े देवता जीयस हैं एवं उनकी पत्नी का नाम है जूनो। इसी देवी के नाम पर जून का नामकरण हुआ।
जुलाई : राजा जूलियस सीजर का जन्म एवं मृत्यु दोनों जुलाई में हुई। इसलिए इस महीने का नाम जुलाई कर दिया गया।
अगस्त : जूलियस सीजर के भतीजे आगस्टस सीजर ने अपने नाम को अमर बनाने के लिए सेक्सटिलिस का नाम बदलकर अगस्टस कर दिया जो बाद में केवल अगस्त रह गया।
सितंबर : रोम में सितंबर सैप्टेंबर कहा जाता था। सेप्टैंबर में सेप्टै लेटिन शब्द है जिसका अर्थ है सात एवं बर का अर्थ है वां यानी सेप्टैंबर का अर्थ सातवां किन्तु बाद में यह नौवां महीना बन गया।
अक्टूबर : इसे लैटिन ‘आक्ट’ (आठ) के आधार पर अक्टूबर या आठवां कहते थे किंतु दसवां महीना होने पर भी इसका नाम अक्टूबर ही चलता रहा।
नवंबर : नवंबर को लैटिन में पहले ‘नोवेम्बर’ यानी नौवां कहा गया। ग्यारहवां महीना बनने पर भी इसका नाम नहीं बदला एवं इसे नोवेम्बर से नवंबर कहा जाने लगा।
दिसंबर : इसी प्रकार लैटिन डेसेम के आधार पर दिसंबर महीने को डेसेंबर कहा गया। वर्ष का 12वां महीना बनने पर भी इसका नाम नहीं बदला।
आज साल के आखिरी महीने का आखिरी दिन … लेकिन सब उदास होने के बदले खुश होते हैं ,क्यूँ कि कल से एक नई शुरुआत होगी …..
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