Kmsraj51 की कलम से…..
♦ हस्तिनापुर नरेश परीक्षित। ♦
युधिष्ठिर द्रोपदी आदि से अनुमति लेकर,
श्री कृष्ण ने द्वारिका पुरी का किया प्रस्थान।
आंखों से ओझल हो जाने पर श्री कृष्ण के,
प्रेम जनित उत्कंठा के पर बस अर्जुन गुणवान॥
अभिन्न निर्दयता और प्रेम व्यवहार लिए,
याद पर याद आती रही वहीं बारंबार उन्हें।
शरीर प्राण से रहित होती तो मृत्यु होती सुने,
परंतु श्री कृष्ण वियोग में संसार अप्रिय दिखता उन्हें॥
उन्हीं के सानिध्य में देवताओं और इंद्र को भी,
जीत कर अग्नि देव को खांडव वन दान किया।
अनु जय भीम सेना ने उन्हें की शक्ति सेवा कर,
अभिमानी जरासंध का भी वध था किया॥
जिन राजाओं को जरासंध ने बंदी था बनाया,
उन्हीं बहुत राजाओं को भगवान ने मुक्त कराया।
जिन – जिन दुष्टों ने भरी सभा में महारानी,
द्रोपदी को छूने का साहस रहा किया॥
आंखों में बिखरे आंसू भरकर तब द्रोपदी,
श्री कृष्ण के चरणों में जा गिरी पड़ी।
उस घोर अपमान का बदला लेने को,
भगवान श्री कृष्ण ने प्रण तब था ठाना॥
मन खडयंती दुर्योधन में आकर वन वास में,
ऋषि दुर्वासा ने हमें दुष्कर संकट में डाला था।
बचे पात्र की शाक की एक पत्ती के भोग,
लगाकर श्री कृष्ण ने हम सबको पता उबारा॥
भगवान के प्रताप से युद्ध में भी हमने आकर,
पार्वती सहित शंकर को आश्चर्य में डाला।
युद्धभूमि खुश होकर शंकर ने अस्त्र पशुपति प्रदान किया,
तरह-तरह के अस्त्र-शस्त्र लोक पालों ने हमें दिया॥
श्रेष्ठ पुरुष मुक्ति पाने को जिन चरणों का सेवन करते!
उन्होंने दुर्लभ और दुस्तर कार्यों को भी सरल बना डाला॥
युद्ध क्षेत्र में वही हमारे रथी बने रहे,
गांडीव धनुष और बाण बहुतेरे पर,
जबकि अस्त्र – शस्त्र सब सधे हैं मेरे,
फिर भी आज रथी मैं अर्जुन हूं॥
बड़े-बड़े राजा कल तक जो सिर झुकाते थे,
श्री कृष्ण के बिना वही सब सार शून्य हो गये।
युद्ध क्षेत्र में उनकी दी गई शिक्षाएं सभी हमको,
तब – तक शांति करने वाली होती थी॥
श्री कृष्ण के चरण कमलों का चिंतन करने से,
अर्जुन की चित्तवृत्ति जब निर्मल होने लगी,
भक्ति में गण के प्रवाह, प्रबल प्रवाह मंथन ने,
अर्जुन के सारे विकारों को बाहर कर डाला॥
बुद्ध क्षेत्र के भगवान श्री कृष्ण का उपदेश,
गीता – ज्ञान पुण्यस्मरण के साथ आया पाले।
जन्म मृत्यु रूपी संसार से मुख्य मुड़ता गया,
अपने को श्रीकृष्ण में लगाते हुए चला, लगाते हुए चला॥
लोक सृष्टि के भगवान श्री कृष्ण ने,
यादव शरीर से पृथ्वी का भार उतारा।
उसी मनुष्य के शरीर का उन्होंने,
पृथ्वी से परित्याग कर डाला॥
इधर पृथ्वी पर कलयुग ने आकर पांव पसारा,
देख महाराज युधिष्ठिर ने महाप्रस्थान का निश्चय कर डाला।
सहित समान गुणों से युक्त पौत्र परीक्षित को,
समुद्री से गिरी हस्तिनापुर का राजा बना डाला॥
♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦
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- “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में बताया हैं की — किस तरह सभी देवी देवताओं ने महाराजा परीक्षित को तरह-तरह के अस्त्र-शस्त्र प्रदान किया। हस्तिनापुर नरेश परीक्षित के जीवन पर सटीक प्रकाश डाला है। अर्जुन का श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति और प्रेम को दर्शाया हैं।
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यह कविता (हस्तिनापुर नरेश परीक्षित।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।
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