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Hindu and Hindutva – हिन्दू और हिंदुत्व।
हिन्दू और हिंदुत्व – एक समीक्षा।
हिंदुस्तान में हिन्दू और हिन्दुत्व की बात न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। आज पूरी दुनियां में भारत एक ऐसा देश है, जिसमें हिन्दू और हिन्दुत्व के ऊपर एक जंग सी छिड़ गई है। सोशल मीडिया हो या प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया हो या सामान्य जन वार्ता। राजनैतिक दल हो या फिर सामाजिक – धार्मिक संगठन। सभी की टिप्पणियां और मुहिमें हिन्दू और हिन्दुत्व के पक्ष और विपक्ष में निरन्तर चलती रहती है।
ऐसा नहीं है कि हिन्दू और हिन्दुत्व के विपक्ष में मात्र गैर हिन्दू समुदाय ही खड़े नजर आते हैं। बल्कि खुद को कट्टर हिन्दू कहने वाले लोग भी हिन्दू और हिन्दुत्व के खिलाफ मुक्त स्वर में बोलते हुए नजर आते हैं। खैर विचारधारा अपनी – अपनी।
पर यहां कई सवाल खड़े होते हैं कि जो ये लोग हिन्दू और हिन्दुत्व के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं और जो ये हिन्दू और हिन्दुत्व के पक्ष में आंदोलित लोग नजर आ रहे हैं; ये सभी असल में हिन्दू और हिन्दुत्व के अर्थ को जानते भी है या नहीं। या फिर मात्र पक्ष के लिए पक्ष और विरोध के लिए विरोध करते रहते हैं। कहीं ये राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक संगठनात्मक विचारधारा से बंध कर तो यह सब करते हुए नजर नहीं आ रहे हैं? कहीं ये सामाजिक सरोकारों को ठोकर मारकर अपने संगठनात्मक सरोकारों को साधने की कोशिश करते हुए तो ऐसी हरकत करने की जरूरत नहीं कर रहे हैं, जो समाज के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।
• हिन्दू शब्द का अर्थ •
उससे पूर्व की हम आगे की बात करें। हिन्दू शब्द के अर्थ को समझना जरूरी है। यूं तो भारत में हिन्दू कहलाने वाले लोग स्वयं को सनातनी कहते हैं, जो सनातन धर्म की “वसुधैव कुटुंबकम्” की अवधारणा के धरातल पर खड़ी एक मानवीय सरोकारों की इमारत है। पर फिर भी हिन्दू शब्द के अर्थ को समझना जरूरी है। मेरे मत के अनुसार यदि हिन्दू शब्द को भाषिक संरचना के आधार पर परिभाषित किया जाए तो हिन्दू शब्द “हिं + दू” के मेल से बना है। इसमें “हिं” का अर्थ हिंसा और “दू” का अर्थ दूर होता है। अर्थात ऐसा व्यक्ति/समुदाय/समाज जो हिंसा से दूर रहता हो, वह हिन्दू है।
हिंसा मानसिक, तानसिक या फिर कोई भी हो सकती है। इसी प्रकार अहिंसात्मक भावना से ओतप्रोत मानस ही हिन्दुत्व है। इस सन्दर्भ में यह भी समझने की कोशिश करनी चाहिए कि सत्य और अहिंसा के पथ पर चलने वाला हर व्यक्ति हिन्दू है, वह चाहे किसी भी धर्म या संप्रदाय का क्यों न हो। वह हिन्दू हो या मुस्लिम, सिख हो या इसाई या फिर पारसी। जो सत्य और अहिंसा परमो धर्म का मार्ग नहीं अपनाता, वह हिन्दू धर्म का होकर भी हिन्दू नहीं है। यदि मैं गलत हूं तो फिर हिन्दू धर्म की पवित्र पुस्तकों के प्रमाण भी गलत है। महर्षि वाल्मिकी और तुलसी कृत रामायण में महा पण्डित रावण को राक्षस और कविलाई समाज के नायक गुह को तथा पशु समुदाय यानी वानर तथा रिक्ष समुदाय के हनुमान, सुग्रीव, अंगद तथा जामवंत आदि को साधु व सज्जन सिद्ध करना इसी हिंदूवादी सोच का उदाहरण है।
शबरी जैसी निम्न जाति की वृद्ध औरत के जूठे बेर प्रभु राम द्वारा खाना तथा केवट जैसे सामान्य जन के गले लगना आदि सभी प्रमाण हिंदूवादी सोच को पुष्ट करते हैं। और भी न जाने कितने-कितने प्रमाण कई शास्त्रों में भरे पड़े हैं। पर नहीं आज ये बाते किसी को न ही तो सुननी है और न ही समझनी है।
आज तो बस एक ही भूत सबके सिर पर सवार है कि मैं हिन्दू माता-पिता की संतान हूं तो मैं हिन्दू हूं। अधिकांश भाई बहन ऐसे हैं जिन्हें हिन्दू धर्म का क ख ग तक मालूम नहीं है पर है हम हिन्दू। मेरी बात झूठ है तो करें सर्वे। पूछिए जरा हिन्दू कहलाने वाले लोगों से कि वेद कितने हैं? पुराण कितने हैं? क्रमबद्ध उनकी सूची बनाने को कहे।इतनी सी बात से ही सारी हेकड़ी निकल जाएगी। उन ग्रंथों में लिखा ज्ञान तो दूर की कौड़ी है।
मेरा मक़सद किसी को जलील करना और किसी की पैरवी करना नहीं है। सोशल मीडिया में कई मुस्लिम भाई भी राम को अपना पूर्वज बताते हुए नजर आते हैं और वे ये मानते हैं कि हमारे पूर्वज हिन्दू थे। उनकी कवरगाहों में उर्फ कर के उनके हिन्दू होने का प्रमाण लिखा हुआ मिलता है। खैर मैं इस बात की पुष्टि नहीं कर रहा हूं। पर उन्हे बोलते मैने जरूर सुना है।
मेरा मतलब है कि फिर इस हिन्दू और हिन्दुत्व के मुद्दे पर इतनी जुमानी जंग क्यों? विशेष तौर पर इस मुद्दे पर भाजपा और आर एस एस से समर्थित लोगों को निशाने पर गैर भाजपाई और गैर आर एस एस संगठनों के हिन्दू कहलाने वाले लोग ही रखते हैं।खैर गैर हिंदूवादी संगठनों और समुदाय की बात तो अलग है। इस सन्दर्भ में मुझे तो इतना सा ही कहना है कि वह चाहे किसी भी दल या विचारधारा से जुड़ा हुआ व्यक्ति क्यों न हो। यदि वह किसी जीव की बलि चढ़ाता है, मांस खाता है, मदिरा पीता है, नशा करता है, अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करके दूसरे के मन को ठेस पहुंचाता है, भ्रष्टाचार, अनाचार, दुर्व्यवहार, बलात्कार और कोई अन्य असामाजिक कृत्य करता है तो वह हिन्दू हो ही नहीं सकता। शायद इस बात से बहुतों को बुरा भी लगे, क्योंकि आज का अधिकांश हिन्दू समाज इन्ही बुराइयों से बुरी तरह से घिरा हुआ है। “पर हित सरिस धर्म न भाई” की लोक मंगल भावना बहुतायत गायब सी हो रही है।
• संपूर्ण हिंदुत्व को प्रतिस्थापित करना? •
आज हिन्दू समाज को जाति प्रथा, बलि प्रथा, धर्मवाद और आरक्षण व्यवस्था जैसी मुसीबतों से दो-दो हाथ होना बहुत जरूरी है। जातिवाद के नाम पर हिन्दू धर्म को मानने वाले वर्गों में ही संघर्ष है। इस लड़ाई में कई राजनैतिक दल भी आमने सामने है। भीम आर्मी के लोग जहां जाति प्रथा को मनु स्मृति का फैलाया भ्रम समझते हैं तो वहीं अपने आपको उच्च वर्ग समझने वाला हिंदू समाज इस बात को मानने को कतई राजी नहीं है। उच्च वर्गीय कहलाने वाले हिंदू समाज का मानना है कि मनुस्मृति में कहीं भी ऐसा उल्लेख नहीं मिलता कि शुद्र का बेटा शूद्र और ब्राह्मण का बेटा ब्राम्हण ही कहलाएगा। अर्थात वहां कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था का नियम प्रतिपादित किया गया है न कि जातिगत दासता का। उनके अनुसार यह वंशानुगत जातिगत परंपरा हमारे भारतीय संविधान की देन है, जिसमें ब्राह्मण का बेटा ब्राम्हण और शूद्र का बेटा शूद्र कहलाने की संवैधानिक मंजूरी प्रदान करके रखी है। इस सन्दर्भ में वे आरक्षण का भी हवाला देते हैं। इधर जातिगत आधार पर आरक्षण पाने वाले समुदायों के लोग अपना आरक्षण छोड़ने को किसी भी हद तक मंजूर नहीं है। ऐसे में भारतीय समाज से जातिगत भावना को दूर किए बिना संपूर्ण हिंदुत्व को प्रतिस्थापित करना कहीं से भी संभव होता हुआ नजर नहीं आता।
• जातिगत भेदभाव और छुआछूत •
आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी हमारे भारतीय समाज में जातिगत भेदभाव और छुआछूत उतने ही मजबूत और दृढ़ है जितने कि वे स्वतंत्रता से पहले थे। इसमें भी अगर गौर से देखें उच्च वर्गीय कहलाने वाले समाज में इस प्रथा में कुछ सुधार जरूर हुए हैं। यहां ब्राह्मण, राजपूत, ठाकुर, राणा, कनैत, राठी, कुम्हार, तरखान आदि जातियों का आपस में एक साथ उठना बैठना और एक दूसरे के साथ मिलकर के खाना-पीना तथा आपस में अपने बेटे – बेटियों के रिश्ते तय करना लगभग शुरू हो चुका है; जो सामाजिक उत्थान की दिशा में एक अच्छा कदम है।
परंतु दूसरी ओर आरक्षण का लाभ लेने वाले निम्न वर्गीय कहलाने वाली जातियों के लोग आपस में यह क्रिया करते हुए नजर नहीं आते। लोहार और कोली, चर्मकार तथा अन्य निम्न जाति के लोग आपस में न ही तो सामाजिक तौर पर इकट्ठे बैठकर के खाना खाते हैं और न ही सामाजिक रिश्तो को निभाने में आपस में रिश्तेदारी करते हैं। सबसे पहले हिंदू और हिंदूवादी संगठनों को भारत से इस जातिवाद के भूत को बाहर फेंकना होगा। उसके साथ – साथ दूसरी सबसे बड़ी चुनौती भारतीय देवी-देवताओं को खुश करने के लिए निरीह पशु – पक्षियों की बलि चढ़ाने की प्रथा को समाप्त करने की है।
क्या यह हिंसात्मक घटनाएं नहीं है? सब जानते हैं कि ये कुप्रथाएं हैं और ये बंद होनी चाहिए। पर बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौन? हिंदू धर्म के गैर भाजपाई और गैर स्वयं सेवक संगठन के लोग इन विचारधाराओं से जुड़े हुए हिंदुत्व का पक्षधर बनने वाले लोगों को साफ नसीहत देते हुए नजर आते हैं कि खुद ये लोग सभी प्रकार की हिंसाएं करते हैं और दूसरों को हिंदू बनने की नसीहत देते हैं। आखिरकार इस दोहरे चरित्र से ये लोग कब बाहर आएंगे, जिससे इनकी कथनी और करनी में एकरूपता नजर आए और हिन्दू समाज इनकी विचारधारा पर विश्वाश कर सके ? सवाल यह भी जायज है। यह तो नहीं चलेगा कि औरों को उपदेश और खुद को गोहटे।
⇒ भारत में हिंदुत्व कायम करना है तो…
हिंदूवादी संगठनों को यदि सचमुच भारत में हिंदुत्व कायम करना है तो उन्हें अपनी विचारधारा के साथ-साथ अपने सामाजिक व्यवहार को भी हिंदुत्व के आधार पर ही ढालना होगा। रही बात धर्मवाद की; उसमें तो भारत में असंख्य चुनौतियां हैं। यह ठीक है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है परंतु फिर भी हिंदुत्व की भावना सभी धर्मों से ऊपर उठकर धर्मनिरपेक्ष ही है। यह सच है कि सिख धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म आदि कई धर्म हिंदू धर्म के ही घटक है परंतु यहां भारतीय धार्मिक परंपरा के अनुसार मुस्लिम धर्म को हिंदू धर्म का कट्टर विरोधी धर्म भी माना जाता है। इसके समकक्ष ईसाई धर्म का प्रारूप भी खड़ा कर दिया जाता है। परंतु मैं इस बारे में अपनी राय ऊपर ही स्पष्ट कर चुका हूं कि अहिंसा की भावना से ओतप्रोत हर व्यक्ति मेरी नजर में हिंदू है।
उपरोक्त सभी कारण इस बात की पुष्टि करते हैं कि कुछ लोग मात्र विरोध के लिए विरोध और मात्र पक्ष के लिए पक्ष करते हुए नजर आते हैं, जबकि उन्हें हिंदू और हिंदुत्व की सही-सही समझ है ही नहीं। हालात यहां तक हो गए है कि हिंदू धर्म के ही मानने वाले कुछ राजनैतिक दलों के उच्च पदस्थ नेता हिंदू समाज के ही बीच में शहर ए आम हिंदुत्व को हराने की बात तक कह डालते हैं। आज भारत के लिए सचमुच एक बहुत बड़ी विडंबना है कि जिन पूर्वजों ने हिंदुत्व की भावना को पुष्ट करने के लिए अपनी अस्थियां तक गला दी, उनको आज यह कहकर श्रद्धांजलि दी जा रही है कि हमने हिंदुस्तान में हिंदू बहुल क्षेत्र में हिंदुत्व को परास्त कर दिया है।
• मानव धर्म •
शारीरिक संरचना के आधार पर देखें तो समूचे विश्व के लोग एक जैसी संरचना के आधार पर बने हुए हैं। उनके रंग जरूर अलग-अलग हो सकते हैं परंतु शरीर की बनावट एक जैसी है। उनके जन्मने और मरने का तरीका एक जैसा है। भले ही अंत्येष्टि की क्रिया अलग-अलग हो। उनके रक्त का रंग सबका एक जैसा है, भले ही उनके ग्रुप अलग – अलग हो। इस आधार पर अगर धर्म को परिभाषित करने की कोशिश करें तो कहना न होगा कि कुदरत ने मनुष्य जाति के लिए धरती पर एक ही धर्म प्रतिस्थापित किया है जिसका नाम है मानव धर्म।
• हिंदुत्व का मूल मंत्र •
संरचनात्मक ढांचे के अनुसार कुदरत ने जातियां भी दो ही बनाई हैं, जिनका नाम है नर और नारी। फिर ये बाकी के विवाद क्यों और किस लिए? संसार को सुंदर बनाने के लिए और अधिक सुखदाई बनाने के लिए हमें अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करके दूसरे की सुख – शांति में कभी बाधा नहीं पहुंचानी चाहिए। यही हिंदुत्व का मूल मंत्र है।
• चन्द पैसों के लालच में अपना जमीर नहीं बेचना •
पर न जाने आज समाज के हर बुद्धिजीवी वर्ग को और समाज के हर प्रतिष्ठित व्यक्ति को कौन सा नशा लग गया है कि वे अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हवाला दे रहे हैं और जनमानस के एक बड़े भाग की भावना को अपनी आर्थिक समृद्धि या सांस्कृतिक उठापटक के चलते आहत कर रहे हैं। उन्हे यह ध्यान रखना चाहिए कि वे समाज के आदर्श होते हैं। वे यदि समाज में फुहड़ता परोसेंगे तो समाज उनकी नकल करके फुहड़ता का शिकार बनता जाएगा। वे यदि शालीनता पेश करेंगे तो समाज भी शालीन होगा। इसलिए उन्हें बड़ी जिम्मेवारियों के साथ हर भूमिका अदा करनी चाहिए। चन्द पैसों के लालच में अपना जमीर नहीं बेचना चाहिए।
हर नेता – अभिनेता को बड़ी जिम्मेवारी के साथ अपना बयान देना चाहिए। हिंदुस्तान में हिंदुत्व की भावना को हराने की बात करना अपने आप में बहुत बड़ी विडंबना है। इसका सीधा सा अर्थ है हिंदुस्तान में अहिंसात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देना और असामाजिक व्यवस्थाओं को बढ़ावा देना। आज प्रत्येक भारतीय को जाति, धर्म और सम्प्रदाय के झगड़ों से ऊपर उठ कर पूर्ण हिंदुत्व को समझना होगा तथा उपनिवेशवाद की विकृत मानसिकता से बाहर आना होगा। अन्यथा वह दिन दूर नहीं जिस दिन हम पूरे भारत को मानसिक रूप से विदेशी संस्कृति और सभ्यता का गुलाम बना देंगे।
• शारीरिक गुलामी से कहीं ज्यादा खतरनाक मानसिक गुलामी •
यह विषय भी विचारणीय है कि शारीरिक गुलामी से कहीं ज्यादा खतरनाक मानसिक गुलामी होती है। इस बात के प्रमाण इतिहास में भरे पड़े हैं कि संस्कृति और सभ्यताएं कई बार विकृत मानसिकता की शिकार हो चुकी है। उदाहरण के लिए पारसी धर्म है, जो आज लगभग अपने ही जन्म स्थल देश में समाप्त सा हो चुका है। हां भारत ही एक ऐसा देश है, जहां उसके भी कुछ अंश शेष है। यही है हिंदुत्व के समर्थक हिन्दुस्तान का हिन्दू जनमानस। जो सब धर्मों का सम्मान करता है पर शर्त यह है कि वे दूसरे धर्मों के मतावलंबी भी किसी दूसरे धर्म के भाव बोध को जाने – अनजाने में ठेस पहुंचाने की कोशिश न करें।
जबकि आज के दौर में यही सब जान बूझ कर हो रहा है। भारत में दक्षिण और वाम पंथ की लड़ाई अधिकतर इन्ही वैचारिक संघर्षों के धरातल पर निरन्तर जारी है। आज लोग अपनी मानवीय संवेदनाओं को खोते जा रहे हैं। हमे निर्भया हत्या काण्ड के दौरान हुए राष्ट्रव्यापी आंदोलनों का दृश्य और भाव भी याद है तथा आज श्रद्धा और उसके जैसी कई और निर्मम हत्याओं के मामले भी याद है। पर यह साफ – साफ देखा जा सकता है कि धीरे – धीरे देश के लोगों की मानसिक भावनाएं व संवेदनाएं निरन्तर पतन की ओर जा रही है।
निर्भया के दौर का जन भाव आज श्रद्धा के मामले तक फीका पड़ गया। ऐसा नहीं है कि सब कुछ खत्म ही हो गया है। पर यह सत्य है कि लोग व्यवस्था की चक्की में पिस कर ज्यादा चिकने हो गए हैं। या शायद उन्हे यह ज्ञान हो गया हो कि व्यवस्था का विरोध करने से कुछ नहीं होगा क्योंकि यहां सुनता ही कोई नहीं है। यहां तो हकीकत यह हो गई है कि जिसकी चलती है तो उसकी क्या गलती है?
उदाहरण के लिए हाल ही में विवादों में घिरी पठान फिल्म के गाने को ही ले लो। एक पक्ष उसे ठीक ठहरा रहा है और दूसरा गलत। जबकि दोनों पक्षों में वाद विवाद करने वाले अधिकतर हिन्दू ही है। जबकि असलियत तो यह है कि इस तरह के अश्लील चलचित्रों को स्क्रीन पर प्रदर्शित करने से रोकने के लिए तो सभी धर्मों के लोगों को एक जुट होकर सामने आना चाहिए। इस प्रकार की अर्धनग्नता भरी सभ्यता समाज में परोसना नीरी पाश्विकता परोसना है। यह पाश्विकता न ही तो हिन्दू धर्म वालों की सामाजिकता के लिए ठीक है और न ही तो मुस्लिम धर्म के लोगों की सामाजिकता के लिए।
इतना ही नहीं किसी भी धर्म की सामाजिकता के लिए ऐसी पाश्विकता बिल्कुल भी सुसभ्य नहीं है। ऐसी घटनाएं चाहे जान बूझ कर कोई करे चाहे अनजाने में। उसका सार्वजनिक विरोध होना चाहिए। फिर वह किसी भी धर्म का हो या फिर किसी भी समुदाय का। यह फूहड़ मानसिकता समाज के लिए किसी भी सूरत में ठीक नहीं है। ऐसे उचाटन भरे फिल्मी दृश्य तथा नशीले पदार्थों के सेवन समाज को मानसिक तौर पर अपाहिज बना कर छोड़ेंगे।
शायद इससे बड़ी कोई और हिंसा, मानसिक हानि हो ही नहीं सकती। फिर भी किसी को अपनी ही बात को सही ठहराना हो तथा अपनी रोजी के चक्कर में समाज के पतन को नजरंदाज करना हो, तो उसका कोई इलाज नहीं है।
♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦
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- “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — मेरे मत के अनुसार यदि हिन्दू शब्द को भाषिक संरचना के आधार पर परिभाषित किया जाए तो हिन्दू शब्द “हिं + दू” के मेल से बना है। इसमें “हिं” का अर्थ हिंसा और “दू” का अर्थ दूर होता है। अर्थात ऐसा व्यक्ति/समुदाय/समाज जो हिंसा से दूर रहता हो, वह हिन्दू है। अगर धर्म को परिभाषित करने की कोशिश करें तो कहना न होगा कि कुदरत ने मनुष्य जाति के लिए धरती पर एक ही धर्म प्रतिस्थापित किया है जिसका नाम है मानव धर्म। संरचनात्मक ढांचे के अनुसार कुदरत ने जातियां भी दो ही बनाई हैं, जिनका नाम है नर और नारी। फिर ये बाकी के विवाद क्यों और किस लिए? संसार को सुंदर बनाने के लिए और अधिक सुखदाई बनाने के लिए हमें अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करके दूसरे की सुख – शांति में कभी बाधा नहीं पहुंचानी चाहिए। यही हिंदुत्व का मूल मंत्र है। अश्लील चलचित्रों को स्क्रीन पर प्रदर्शित करने से रोकने के लिए तो सभी धर्मों के लोगों को एक जुट होकर सामने आना चाहिए। इस प्रकार की अर्धनग्नता भरी सभ्यता समाज में परोसना नीरी पाश्विकता परोसना है। यह पाश्विकता न ही तो हिन्दू धर्म वालों की सामाजिकता के लिए ठीक है और न ही तो मुस्लिम धर्म के लोगों की सामाजिकता के लिए।
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यह लेख (हिन्दू और हिंदुत्व – एक समीक्षा।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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