Kmsraj51 की कलम से…..
♦ होली आगे भी आएगी। ♦
होली आगे भी आएगी,
गीत नये रचते जाएं।
दुश्मन से नहीं डरना,
जय घोष करते आएं।
अजी गुलामी की जंजीरें,
काटकर बाहर हम आए!
मलेक्षों को पूर्वजों ने सहा,
कैसे – कैसे तुम्हें बताएं।
बदनसीब बस्तियां सारी,
आजादी पर गुलामी भारी।
कच्ची मांस पे मारा मारी,
अस्मत बचाने की दुश्वारी।
जय घोष की करो तैयारी,
होली आई वा की दिवाली।
राह बबूल के कांटो के खारे,
नंगे पांव में गडते सब सारे।
बात-बात पर ठंड गन ठानी,
आशी पर भीस ही थे भारी।
किसका घर अब छूटेगा,
हौसला किसका टूटेगा।
कॉल मुहूर्तं कोसों दूर,
जय घोष पर नहीं छूट।
जय घोष की करो तैयारी,
होली आई वा दीवाली।
हत्या अपहरण और फूट,
भोला झोला पर भी लूट।
दरबार में ही होली मनाते,
खूंटी खुशियां टांगे जाते।
जीवन की बगिया में खड़ी,
च्छोभा अवसादों से भरी।
शासन अंग्रेजों का आया,
कचहरी व सड़क सजाया।
जय घोष की करो तैयारी,
होली आई पड़े ना भारी।
न्याय की उम्मीद जगाया,
मंदिरों पर छापा डलवाया।
राजा ऊपर कस दी नकेल,
चली जनता में फूट के खेल।
हम पर हमी से खेला कीना,
जगिया टैक्स आगे भी लीना।
मलिन घूम के फूट डलवाया,
राजावों के महलों तक आया।
जय घोष की करो तैयारी,
होली में कल्याण की बारी।
जाति पांति का जहर पिलाया,
हीरा मोती अपने घर पहुंचाया।
तब पूर्वजों ने बिगुल बजाया,
आजादी के लिए जान गंवाया।
हम सब सोचे मिली आजादी,
उस पर उसकी पारी – भारी।
वह अपना एजेंट यहां छोड़ा,
लूटा घर और तोड़ा मरोड़ा।
जय घोष की करो तैयारी,
होली आई अब की बारी।
उनके रास्तों को है बदलना,
समझ लो लोग हमें सुधारना।
ये सब हमको हैं भर माते,
शिक्षा के नाम पर लूट मचाते।
यह अपनी झोली भरते जाते,
सब जगह पेट्रोल पंप खुलवाते।
खेत में बबूल की कोशिश करते,
शब्द वाणी में गुलामी समझाते।
जय घोष की करो तैयारी,
होली हो या दिवाली प्यारी।
पिज्जा – बर्गर हमें खिलाते,
बीमारी हमारे घर दे जाते।
कदाचित फैक्ट्री वही चलाते,
मरीज बनाकर लूटते जाते।
फैशन शो के शहर बस आते,
रंग बिरंगी दृश्य दिखाती।
आतंकियों से भी हाथ मिलाते,
अपनी अपनी में हमें लड़वाते।
जय घोष की करो तैयारी,
होली आई सब कोई है भाई।
ऊर्जा अपनी बचा के रखना,
तिलक – आजाद नहीं भूलना।
जय घोष में आगे भी करना,
शरीर निरोगी हमको रखना।
चारु तरफ से सनक सवार,
कोरोना वायरस का प्रचार।
मास्क लगाकर चल ना यार,
दो गज की दूरी में ही प्यार।
जय घोष का भी करूं प्रचार,
होली आई है पावन त्यौहार।
♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦
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— Conclusion —
- “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — पहले मलेक्षों को पूर्वजों ने सहा, फिर अंग्रेजो को भी सहा, आज भी कुछ गद्दार है जिन्हें सह रहे है सभी आखिर क्यों ? कब तक समझ आएगा सभी को ? कवि कहते है जय घोष की करो तैयारी, चाहे होली आई या दीवाली। 2000 वर्षों से लुटते आ रहे है सभी। अब भी समय है संभल जाओ नहीं तो ना ही होली/दीवाली मना पाओगे। पिज्जा – बर्गर जैसे गन्दी चीजे हमें खिलाते, बीमारी हमारे घर दे जाते। कदाचित फैक्ट्री वही चलाते फिर मरीज बनाकर हमे लूटते जाते। फैशन शो के शहर बस आते, फैशन के नाम पर भी हमे लूट ले जाते रंग बिरंगी दृश्य दिखाती ये फैशन शो। आतंकियों से भी हाथ मिलाते है ये अपनी अपनी में हमें लड़वाते। अब भी समय है संभल जाओ नहीं तो अपने घर व देश से भगाया जाएगा हमें। जय घोष का भी करूं प्रचार, होली आई है पावन त्यौहार।
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यह कविता (होली आगे भी आएगी।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।
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