Kmsraj51 की कलम से…..
♦ समय का सदुपयोग। ♦
पुनः प्रभातं पुनरेव शर्वरी पुनः
शशांकः पुनरुद्यते रविः।
कालस्य किं गच्छति याति यौवनं
तथापि लोकः कथितं न बुध्यते॥
फिर से प्रभात, फिर से रात्रि, फिर से चंद्र, और फिर से सूरज का उगना ! काल का क्या जाता है ? कुछ नहीं; यह तो यौवन जाता है, फिर भी लोग कहाँ समझते हैं? आज हम सभी यांत्रिक युग में जी रहे हैं।
आज हमारे पास ऐसे ऐसे यंत्र हैं जो वे सभी काम कुछ ही पलों में कर देते हैं जिन्हें करने में हमारी पूर्व पीढ़ी को लम्बा समय लगता था। आश्चर्य तो इस बात का है कि तब लोगों के पास व्यायाम से लेकर त्योहारों, रिश्तेदारों, परंपराओं इत्यादि के लिए पर्याप्त समय था।
आज जब यंत्रों की सहायता से चुटकियों में काम हो जाते हैं फिर भी लोग कहते हैं कि उनके पास किसी भी बात तक करने के लिये समय नहीं है।
किन्तु मुझे ऐसा कहना उचित नहीं प्रतीत होता। मैं इस बात को इस तरह कहूँगी कि आज लोगों के पास समय ही समय है किन्तु समय का सदुपयोग करने का विवेक नहीं है।
कहा जाता है कि कुदरत किसी के साथ पक्षपात नहीं करती। सबको कुदरत के उपहार समान रूप से मिले हैं जैसे कि जल, वायु, धूप इत्यादि। परन्तु हमारी पारिवारिक, सामाजिक एवं भौगोलिक परिस्थितियों के चलते हमें ये प्राकृतिक उपहार भी कम या अधिक मात्रा में उपलब्ध हो सकते हैं।
इस जगत में केवल #समय ही एक ऐसा अनमोल उपहार है जिसमें कोई पक्षपात नहीं। राजा हो या रंक सबके पास अपने निजी २४ घंटे।
ये भी सही है कि समय एक ऐसा विमान है जो बिना ईंधन के लगातार उड़ता है परन्तु अच्छी बात ये है कि इस विमान के पायलट हम हैं। पायलट जितना कुशल होगा उड़ान उतनी अच्छी होगी।
काल कोई सा भी हो प्राचीन या वर्तमान, जब-जब जिसने समय खोया वो अन्त में पछताया ही है। प्राचीन काल की कहानियों में प्रायः निकम्मे – परिश्रमी, शेखचिल्ली – आलसी पात्र होते थे वे उस समय के लोगों को समय का महत्व बताने के लिये ही रचे गये होंगे।
पुरातन काल से लेकर अब तक के किसी भी व्यक्तित्व के बारे में यदि नज़दीक से जानेंगे तो हर एक सार्थक, प्रेरक व्यक्तित्व में यह एक विशेष गुण अवश्य मिलेगा कि उनकी सफलता और ओज का कारण उनका समय प्रबंधन रहा है।
जिसने समय साध लिया उसने लोक, परलोक अपना जीवन, अपने सम्पर्क में आने वाले अन्य लोगों का जीवन भी साध लिया।
इस विषय पर असीमित लिखा जा सकता है किन्तु अन्त में बस यही निवेदन करना चाहूँगी कि मित्रों ‘#समय अनमोल है’ ये किताबी बात नहीं है। आज़माया हुआ सत्य है। इसे व्यर्थ न गँवायें।
अपना समय क्रोध, पछतावा, चिंता तथा ईर्ष्या में मत ज़ाया करें। दुखी रहने के लिए ज़िन्दगी बहुत छोटी है। पल – पल का उपयोग करें ताकि पछताना न पड़े।
♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦
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- “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए समझाने की कोशिश की हैं — अपना समय क्रोध, पछतावा, चिंता तथा ईर्ष्या में मत ज़ाया करें। दुखी: रहने के लिए ज़िन्दगी बहुत छोटी है। पल – पल का उपयोग करें ताकि पछताना न पड़े।
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यह आलेख (समय का सदुपयोग।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/गीत/दोहे/लेख/आलेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।
साहित्यिक नाम : वेदस्मृति ‘कृती’
शिक्षा : एम. ए. ( अँग्रेजी साहित्य )
बी.एड. ( फ़िज़िकल )
आई आई टी . शिक्षिका ( प्राइवेट कोचिंग क्लासेज़)
लेखिका, कहानीकार, कवियित्री, समीक्षक, ( सभी विधाओं में लेखन ) अनुवादक. समाज सेविका।
अध्यक्ष : “सिद्धि एक उम्मीद महिला साहित्यिक समूह”
प्रदेश अध्यक्ष : अखिल भारतीय साहित्य सदन ( महाराष्ट्र इकाई )
राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान बिहार प्रान्त की महिला प्रकोष्ठ,
श्री संस्था चैरिटेबल ट्रस्ट : प्रदेश प्रतिनिधि ( महाराष्ट्र )
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद में – सह संगठन मंत्री, मुंबई ज़िला, महाराष्ट्र
हिन्दी और अँग्रेजी दोनों विधाओं में स्वतंत्र लेखन।
अनेक प्रतिष्ठित हिन्दी/अँग्रेजी पत्र – पत्रिकाओं में नियमित रचनाएँ प्रकाशित।
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