Kmsraj51 की कलम से…..
♦ सफल जीवन। ♦
इस संसार में कहीं भी, कोई भी, कभी भी किसी के भी साथ हमेशा नहीं रह सकता। यह एक कटु सत्य है। जो भी आपस में जुड़े हुए हैं, आज न कल उन्हें एक-दूसरे से बिछड़ना ही पड़ेगा। रिश्ता चाहे पत्नी का हो, पुत्र का हो, पुत्री का हो, धन का हो, मकान का हो, अपने शरीर का हो, एक दिन छोड़कर जाना ही पड़ेगा। माया, मोह, भ्रम में इन्सान सत्य से भटक जाता है।
एक ही अन्न खाकर बच्चा जवान होता है, वही अन्न खाकर जवान बूढ़ा होता होता है, और बूढ़ा व्यक्ति धीरे-धीरे मौत के मुँह में चला जाता है— आखिर क्यों ?
• पाप-पुण्य का फल •
हर इन्सान अकेले पैदा होता है, अकेले दर्द का एहसास करता है और अकेले ही मरता भी है। पाप-पुण्य का फल अकेले ही भोगता है। अधर्म की कमाई से परिवार का पालन-पोषण करने वाले अकेले ही पाप की गठरी सिर पर लादकर घोर नरक में जाते है। दर्द में कोई दवा दे सकता है लेकिन अनुभव स्वंय ही करनी पड़ती है।
सदगुणों की शुरुआत स्वंय से ही करनी होती है। जब तक खुद की उंगली पर कुमकुम नहीं लगेगा तब तक दूसरे के ललाट पर तिलक नहीं लगा सकते। सारे सुख एंव दुःख का कारण मन है। मन की बात न सुनकर आत्मा की आवाज सुनने पर, दुःख और सुख का अनुभव स्वतः समाप्त हो जायेगा। यदि खेत में बीज न डाला जाए तो घास-फूस अपने आप निकल जाते हैं।
• अच्छे व बुरे विचार •
दिमाग में अगर अच्छे विचार न भरे जाऍं तो बुरे विचार अपने आप जगह बनाकर इन्सान की जिन्दगी को बर्बाद कर देगें, भोजन, न पचने पर रोग बढ़ता है, पैसा न पचने पर व्यभिचार और दिखावा बढ़ता है, बात न पचने पर चुगली बढ़ती है, प्रशंसा न पचने पर, अहंकार बढ़ता है, निंदा न पचने पर, दुश्मनी बढ़ती है, दुःख न पचने पर निराशा बढ़ती है, सुख न पचने पर, पाप बढ़ता है, दौलत न पचने पर, खतरा बढ़ता है।
जवानी, धन-संम्पत्ति, सत्ता, मूर्खता, अहंकार, शक्ति, व्यक्ति को मार्ग से भटका देती है। व्यक्ति बुराइयों में फॅंसकर, डूब जाता है और अपने साथ-साथ दूसरे का भी जीवन नष्ट कर देता है। अच्छे कर्म ही इन्सान को बुराइयों से दूर रख सकता है।
• हर कर्म धर्मानुसार •
भगवान शिव, भोला, शंकर, औघर दानी की आराधना के पवित्र सावन महीने में शिव जी की सवारी नंदी बैल जो हमेशा साथ रहता है, आखिर क्यों ? यह धर्म का स्वरुप है। बैल की सवारी का मतलब हर कर्म धर्मानुसार करना। जिस मानव के जीवन में धर्म ही नहीं हो वह साधन सम्पन्न होने के बावजूद भी उसका जीवन दुःखों से भरा रहेगा।
प्रसन्नता भीतर की स्थिति है। धर्म के मार्ग पर चलने से नव संकल्पों का सृजन होता है और आत्मा तृप्त रहती है। शिव को देवों के देव महादेव कहते हैं उनके पास धर्म रुपी साधना है, सुख धन से नहीं धर्म से प्राप्त होता है। विष पीने के बाद भी, औघर दानी है, वो राजा नहीं है लेकिन सर्वप्रिय और पूज्य है त्याग की मूर्ति हैं। आदि काल से भगवान शिव की पूजा होती आ रही है।
• ढाई अक्षर में ही सारी दुनिया निहित है —
ढाई अक्षर की महिमा जो समझ लिया, वो वास्तव में झानी और महापुरुष हो गया…
ढाई अक्षर के ब्रहमा, ढाई अक्षर की सृष्टि,
ढाई अक्षर के विष्णु, ढाई अक्षर की कान्ता (राधा),
ढाई अक्षर की दुर्गा, ढाई अक्षर की शक्ति,
ढाई अक्षर की श्रध्दा, ढाई अक्षर की भक्ति
ढाई अक्षर का ध्यान, ढाई अक्षर का त्याग,
ढाई अक्षर का धर्म, ढाई अक्षर का कर्म,
ढाई अक्षर का ग्रन्थ, ढाई अक्षर का सन्त,
ढाई अक्षर का मन्त्र, ढाई अक्षर का यन्त्र,
ढाई अक्षर का जन्म, ढाई अक्षर की अस्थि,
ढाई अक्षर की अर्थी,
ढाई अक्षर में ही सारी दुनिया निहित है, जो समझ लिया वो स्वामी विवेकानन्द।
महर्षि महेश योगी, महर्षि में ही, परमहंस योगानन्द, महर्षि दयानंद, गुरु नानक, श्री अरविन्दो धोष हो गये, ‘राम’ में दो अर्थ व्यंजित हैं- दुःख में हे राम, पीड़ा में अरे राम, लज्जा में हाय राम, अशुभ में अरे राम-शम, अभिवादन में राम-राम, शपथ में राम दुहाई, अझानता में राम जाने, अनिश्चितता में राम भरोसे, अचूकता के लिए रामबाण, मृत्यु के लिए राम नाम सत्य, सुशासन के लिए राम राज्य, निर्बल के बल राम। हमारे अन्दर जो कुछ अनुकरणिय है वह राम है, शाश्वत है।
⇒ ज्ञानी कौन ?
इन्सान मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, इत्यादि में जाता है। तीर्थ स्थल में जाकर सदबुध्दि के लिए प्रार्थना करता है। जब भगवान के दरबार में सर्प, मोर, चूहा, शेर, बैल एक साथ रह सकते हैं तो अपने को सबसे उत्तम और ज्ञानी कहने वाला मनुष्य क्यों नहीं ? अज्ञानी सर्प, मोर, चूहा, बैल, शेर, एक जगह शांति पूर्वक महादेव की शरण में रहते हैं, लेकिन मनुष्य अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष, जलन के कारण विनाश का कारण बन
जाता है। सुख-शांति से दूर दर्द भरी जिन्दगी जीने के लिए मजबूर हो जाता है।
सही ज्ञान धर्म के मार्ग पर चलकर ही सच्चा सुख व शांति मिलता है। सही ज्ञान ही “सफल-जीवन” की कुन्जी है।
“न जीवन न मृत्यु, क्या है तेरे हाथ,
गले से गले लगाओ, जीलो कुछ दिन साथ”
⇒ अमरत्व प्राप्त करने के लिए धर्म के मार्ग पर चले…
भगवान शिव, राम, कृष्ण, चित्रगुप्त, ब्रह्मा, विष्णु ने अपने नाम के आगे सिंह, शर्मा, दुबे, प्रसाद नहीं लगाया, भगवान महावीर ने जैन नहीं लगाया क्योंकि वो किसी जाति के नहीं है, वो सर्वव्यापी, सर्वप्रिय, सर्वज्ञानी हैं वो कण-कण में हैं, सभी उनकी पूजा करते हैं। जब तक इन्सान अपने-आप को पूरे मानव समाज के लिए समर्पित नहीं करेगा, त्यागी नहीं बनेगा, जीवन सुखमय एंव सफल नहीं बनेगा। अपनी पहचान बनाते-बनाते धरती छोड़ देता है फिर भी पहचान खुद-ब-खुद मिट जाती है। अमरत्व प्राप्त करने के लिए धर्म के मार्ग पर ही चलना होगा।
♦ भोला शरण प्रसाद जी – सेक्टर – 150/नोएडा – उत्तर प्रदेश ♦
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- “भोला शरण प्रसाद जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — प्रसन्नता भीतर की स्थिति है। धर्म के मार्ग पर चलने से नव संकल्पों का सृजन होता है और आत्मा तृप्त रहती है। शिव को देवों के देव महादेव कहते हैं उनके पास धर्म रुपी साधना है, सुख धन से नहीं धर्म से प्राप्त होता है। विष पीने के बाद भी, औघर दानी है, वो राजा नहीं है लेकिन सर्वप्रिय और पूज्य है त्याग की मूर्ति हैं। दिमाग में अगर अच्छे विचार न भरे जाऍं तो बुरे विचार अपने आप जगह बनाकर इन्सान की जिन्दगी को बर्बाद कर देगें। हर इन्सान अकेले पैदा होता है, अकेले दर्द का एहसास करता है और अकेले ही मरता भी है। पाप-पुण्य का फल अकेले ही भोगता है। इस संसार में कहीं भी, कोई भी, कभी भी किसी के भी साथ हमेशा नहीं रह सकता। यह एक कटु सत्य है।
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यह लेख (सफल जीवन।) “भोला शरण प्रसाद जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
मैं भोला शरण प्रसाद बी. एस. सी. (बायो), एम. ए. अंग्रेजी, एम. एड. हूं। पहले केन्द्रीय विघालय में कार्यरत था। मेरी कई रचनाऍं विघालय पत्रिका एंव बाहर की भी पत्रिका में छप चूकी है। मैं अंग्रेजी एंव हिन्दी दोनों में अपनी रचनाऍं एंव कविताऍं लिखना पसन्द करता हूं। देश भक्ति की कविताऍं अधिक लिखता हूं। मैं कोलकाता संतजेवियर कालेज से बी. एड. किया एंव महर्षि दयानन्द विश्वविघालय रोहतक से एम. एड. किया। मैं उर्दू भी जानता हूं। मैं मैट्रीकुलेशन मुजफ्फरपुर से, आई. एस. सी. एंव बी. एस. सी. हाजीपुर (बिहार विश्वविघालय) बी. ए. (अंग्रेजी), एम. ए. (अंग्रेजी) बिहार विश्वविघालय मुजफ्फरपुर से किया। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।
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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)
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