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राजा पृथु को मुनिश्वरों का उपदेश।

Kmsraj51 की कलम से…..

Table of Contents

  • Kmsraj51 की कलम से…..
    • ♦ राजा पृथु को मुनिश्वरों का उपदेश। ♦
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♦ राजा पृथु को मुनिश्वरों का उपदेश। ♦

पृथ्वी पालक पृथु महाराज का,
प्रजा जब स्तुत गान करती रही।
उसी समय चार तेजस्वी मुनीश्वर,
तेज पुंज, आकाश मार्ग से आए।

आकाश और से उतरते हुए उन्हें,
राजा पृथु – अनुचर पहचान गए।
आगे बढ़ महाराज किए सम्मान,
उचित संस्कार से मुनियों का मान।

राजा निवेदन सनकादी ने माना,
आपस में बातचीत से पहचाना।
मुनि के चरणों दक सीष लगाया।
सत्य पुरुषों सा व्यवहार दिखाया।

सोने के सिंहासन पर उन्हें बिठाया।
विधिवत पूजा पाठ उनका कराया।
अग्नि देवता सदृष्य तेज था उनका।
मुनियों के तेज से आह्लादित जनता।

विनम्रता पूर्वक राजा पृथु जी बोले,
आपका दर्शन योगियों को दुर्लभ।
यद्यपि आप सर्वव्यापी और सर्वत्र,
फिर भी सर्वसाक्षी आत्मा ना सुलभ।

जिस घर आप कुछ ग्रहण करते हैं,
धनहीन भी ध्यान कर धन्य हो जाता।
हम सभी इंद्रिय संबंधी भोगों को,
अपना पुरुषार्थ मान लिया करते हैं।

आप एकाग्र चित्त ब्रह्म चारी महान।
श्रद्धा भक्ति आचरण पालक विद्वान।
जिस पर आपकी कृपा दृष्टि बरसती,
वह इस संसार में हो जाता है महान।

इन कर्मों के निस्तार का कोई उपाय,
जो भी हो मुनिवर हमको बताइए।
सांसारिक मनुष्य का कैसे होता है,
कल्याण, उसको हमें समझाइए।

यह भी सच है कि उपासक धीर,
पुरुषों के ऊपर वह कृपा करते हैं।
अजन्मा नारायण भगवान जी,
भक्तों का अपने कल्याण करते हैं।

राजा के गंभीर मधुर वाणी सुनकर,
मुनीश्वर प्रशन्नता से कहने लगे?
आप सबकुछ जानते हैं फिर भी,
जन कल्याण हेतु अच्छी बातें पूछी।

साधु पुरुषों की ऐसी बुद्धि होती।
प्रश्न से उनके कल्याण होता है।
मधुसूदन के चरणों में आपकी प्रीत,
अविरल सुंदर है आप की नीति।

ईश्वर में अविरल प्रेम जाग जाता।
वासनायें उसकी सभी नष्ट हो जाती।
आत्म स्वरूप निर्गुण का मुनि ने,
राजा पृथु जी को ब्रह्म ज्ञान बताया।

मुनीश्वर ने राजा पृथु को पावन,
पुनीत प्रीति युक्त भजन सुनाए।
ब्रह्म में लीन हो जाने पर पुरुष,
सतगुरु की शरण में जाता बताए।

विषय इंद्रिय संबंधी भोगों से बचाएं।
विचार शक्ति को बढ़ाते ही जाएं।
विचार शक्ति नष्ट हो जाने पर,
पूर्व स्मृतियां भी नष्ट हो जाती हैं।

और स्मृतियों के नष्ट हो जाने पर,
ध्यान – ज्ञान नष्ट होने लगता है।
अपने द्वारा आत्मा नाश होने पर,
जीवन का सब हानि हो जाता है।

भगवान के चरण, चरण कमल ही,
दुस्तर समुद्र को पार कर देते हैं।
कुमार से आत्मीय उपदेश सुनकर,
राजा पृथु उनकी प्रशंसा करने लगे।

आप लोग बड़े ही दयालु कृपालु हैं।
श्रीहरि भेजी, मुझ पर कृपा की है।
जिस कार्य के लिए आप पधारे थे,
आपने अच्छी तरह उसे संपन्न किया।

इस उपकार के बदले आपको क्या दूं ?
मेरा जो वह महापुरुषों का प्रसाद है।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – इस कविता में कवि ने बताया है कि महाराजा पृथु ने कैसे मुनिश्वरों का स्वागत किया। आत्म स्वरूप निर्गुण मुनिश्वरों ने बहुत ही सरल शब्दों में राजा पृथु जी को ब्रह्म ज्ञान बताया।

—————

sukhmangal-singh-ji-kmsraj51.png

यह कविता (राजा पृथु को मुनिश्वरों का उपदेश।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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