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ज्ञान अहमियत रखता है ना की अंक।

Kmsraj51 की कलम से…..

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    • ♦ ज्ञान अहमियत रखता है ना की अंक। ♦
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♦ ज्ञान अहमियत रखता है ना की अंक। ♦

आजकल परीक्षा में ज्यादा अंक लाने की प्रवृत्ति दिन – प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अभिभावक चाहते हैं कि मेरे बच्चे पूरे के पूरे परीक्षा में अंक लाएं। चारों तरफ बस होड़ लगी हुई है एक – दूसरे से ज्यादा अंक लाने की। इस बात पर जोर क्यों नहीं दिया जाता कि अंको की अहमियत तभी है जब हमें पूरे पाठ्यक्रम का ज्ञान होगा। कई बार ऐसा होता है, आप लोगों ने सुना भी होगा और देखा भी है, कम अंक लाने वाला विद्यार्थी जीवन में सफल हो जाता है और हमेशा कक्षा में अव्वल रहने वाला विद्यार्थी कई बार पीछे छूट जाता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि दोनों ने पढ़ाई नहीं की दोनों ने पढ़ाई की होती है परंतु कई बार बच्चे सिर्फ किताबों तक ही सीमित रह जाते हैं। वास्तविकता से उन्हें कोई लेना – देना नहीं होता।

बच्चों को किताबी कीड़ा बनाने की बजाए शिक्षा के साथ-साथ उन्हें खेलकूद के क्षेत्र में भी योगदान देने की कहे। ताकि बच्चे हर क्षेत्र में अपने हाथ आजमा ले और जीवन में तनाव की स्थिति पैदा ना हो क्योंकि ज्यादा अंक प्राप्त करने की स्थिति में बच्चे चिड़चिड़े और हठी हो जाते हैं। कई बार बच्चे अवसाद से ग्रसित होकर छोटी सी उम्र में ही परेशान रहने लगते हैं।

किसी का कहना नहीं मानते और कई बार तो बच्चे मौत को भी गले लगा रहे हैं, क्योंकि ज्यादा अंक लाने की प्रवृत्ति उनके अंदर इतना घर कर चुकी होती है कि उनको ज्यादा अंकों के सिवा कुछ नहीं दिखाई देता। अगर कई बार परीक्षा में बच्चे का पेपर अच्छा नहीं होता तो बच्चा सोचता है अब मेरे अभिभावक क्या बोलेंगे? हमारे पड़ोसी क्या बोलेंगे?

जिससे वह तनाव में आकर यह कदम उठा लेता है। बच्चों को सिर्फ ज्यादा अंक लाने के लिए दबाव न डालें उन्हें अपनी मर्जी से अपने विषय लेने दे और उन्हें ज्यादा अंक लाने की बजाय यह समझाएं कि आपको अच्छे से पढ़ना है अंक चाहे जितने भी आ जाए। पहले हमारे समय में बच्चे के ऊपर इतना दबाव नहीं होता था। पहले पढ़ाई के साथ – साथ बच्चे खेलकूद, घरेलू कार्यों में अपना योगदान देते थे। दादा – दादी, नाना – नानी के पास बैठते थे। जो आज बिल्कुल खत्म होता जा रहा है।

बचपन अच्छे से जीते थे, आजकल तो बच्चों ने पढ़ना शुरू किया नहीं कि मां-बाप खींचना शुरू कर देते हैं कि तुझे अच्छे नंबर लाने हैं सबसे ज्यादा नंबर लाने है। बस इसी की दौड़ में लगे रहते हैं। कई बार तो ऐसा होता है सोसाइटी के दूसरे बच्चे और उनके दोस्त के बच्चे अच्छे नंबर ला रहे। तो अभिभावक चाहते हैं उनके बच्चे भी ऐसे ही नंबर लाए। अपना नाम ऊपर करने के लिए या दिखावा करने के लिए लोगों के सामने यह बोलते हैं हमारे बच्चे के कितने नंबर आए।

एक बच्चे का दूसरे बच्चे के साथ तुलना करते हैं जो बिल्कुल गलत है। क्योंकि सब बच्चों में अलग-अलग प्रतिभाएं होती हैं। क्या हमारे अभिभावकों ने कभी ऐसा किया था? जो आज हम अपने बच्चों के साथ कर रहे हैं।

फूल से मासूम है,
जी लेने दो उन्हें बचपन।
हंसने दो, खेलने दो, मुस्कुराने दो,
खुली हवा में सांस लेने दो।
एक बार आता है बचपन,
चला गया, लौट कर कभी नहीं आएगा।

♦ सीमा रंगा इन्द्रा जी – हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — आप कोई भी कार्य करे, हर कार्य में प्रैक्टिकल ज्ञान ही मुख्य होता, अगर आपको प्रैक्टिकल कार्य की जानकारी नहीं है तो आप कभी भी उस कार्य को अच्छे से नहीं कर पाएंगे। इसलिए ज्ञान अहमियत रखता है ना की अंक। फंडामेंटल प्रैक्टिकल ज्ञान पर फोकस करे और जितना हो सके अपने आपको उतना अच्छा व्यावहारिक प्रैक्टिकल ज्ञान पर ध्यान दे तभी आप कोई भी कार्य अच्छे से कर पाएंगे। इस संसार में आप जिधर भी नज़र घुमाएं आपको बहुत सारे ऐसे लोग मिल जायेंगे जिनके पास अच्छा नंबर और डिग्री नहीं है लेकिन वो आज के समय में अच्छा पैसा कमा रहे है, लेकिन जिनके पास अच्छा नंबर भी था और अच्छा डिग्री भी लेकिन आज भी बहुत मुश्किल से अपना जीवन यापन कर रहे हैं। इसलिए अपने बच्चो पर कभी भी ये दबाव ना बनाये की अच्छा नंबर लाओ, इसकी जगह अपने बच्चो को समझाए की अच्छे से फंडामेंटल प्रैक्टिकल ज्ञान पर फोकस करे, और किसी भी विषय को प्रैक्टिकल रूप से अच्छे से समझे, जो उसे जीवन पर्यन्त लाभ पहुँचाये।

—————

यह लेख (ज्ञान अहमियत रखता है ना की अंक।) “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें व कहानी सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं, कहानी और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम सीमा रंगा इंद्रा है। मेरी शिक्षा बी एड, एम. हिंदी। व्यवसाय – लेखिका, प्रेरक वक्ता व कवयित्री। प्रकाशन – सतरंगी कविताएं, देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं व लेख, दैनिक भास्कर, दैनिक भास्कर बाल पत्रिका, अमर उजाला, संडे रिपोर्टर, दिव्य शक्ति टाइम्स ऑफ़ डेजर्ट, कोल्डफीरर, प्रवासी संदेश, वूमेन एक्सप्रेस, इंदौर समाचार लोकांतर, वूमेन एक्सप्रेस सीमांत रक्षक युगपक्ष, रेड हैंडेड, मालवा हेराल्ड, टीम मंथन, उत्कर्ष मेल काव्य संगम पत्रिका, मातृत्व पत्रिका, कोलकाता से प्रकाशित दैनिक पत्रिका, सुभाषित पत्रिका शब्दों की आत्मा पत्रिका, अकोदिया सम्राट दिव्या पंचायत, खबर वाहिनी, समतावादी मासिक पत्रिका, सर्वण दर्पण पत्रिका, मेरी कलम पूजा पत्रिका, सुवासित पत्रिका, 249 कविता के लेखक कहानियां प्रकाशित देश के अलग-अलग समाचार पत्रों में समय-समय पर।

सम्मान पत्र -180 ऑनलाइन सम्मान पत्र, चार बार BSF से सम्मानित, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सोसायटी से सम्मानित, नेहरू युवा केंद्र बाड़मेर से सम्मानित, शुभम संस्थान और विश्वास सेवा संस्थान द्वारा सम्मानित, प्रज्ञा क्लासेस बाड़मेर द्वारा, आकाशवाणी से लगातार काव्य पाठ, सम्मानित, बीएसएफ में वेलफेयर के कार्यों को सुचारु रुप से चलाने हेतु सम्मानित। गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड, प्रेसिडेंट ग्लोबल चेकर अवार्ड।

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