Kmsraj51 की कलम से…..
Kudrat Ka Kahar Tho Barapega | कुदरत का कहर तो बरपेगा।
उजड़ रही है देखो बस्तियां आज,
उजड़ रहे हैं सब खेत – खलियान।
वह दिन भी शायद दूर नहीं अब,
जब बन जाएगी धरती ही श्मशान।
न कार रहेगी, न कोठियां तब,
न घर रहेंगे और न ही तो मकान।
नदी नालों में बहती लाशें दिखेगी,
पहाड़ बनेंगे सब सपाट मैदान।
विकास के नाम पर लूट मचाई है,
भ्रष्टाचार की अब खुल गई दुकान।
जर्रा जर्रा कुदरत का ताण्डव करेगा,
क्या तब समझेगा ये पागल इंसान?
हां बात और भी काम की है एक,
बताना जरूरी सनातन वो विधान।
नए दौर के नए लोगों में बिल्कुल भी,
दिखता न जिसका है नामों – निशान।
देवी पूजी न देवता, साधु – सन्त माना न,
वाहेगुरु न गॉड, खुदा न ही तो भगवान।
खनन माफिया और वन माफिया मिलकर,
कर रहे हैं अवैध खनन और अवैध कटान।
सरकारें सोई है कुंभकर्णी नींद में,
उनका न इधर है तनिक भी ध्यान।
अधिकारी मिले हैं माफियाओं से,
जनता बेचारी होती है परेशान।
न्याय मांगे भी तो वह किससे मांगे?
नीचे से ऊपर तक हेलो का घमासान।
शिकायत करें तो वह भी किससे करें?
मिलता ही नहीं कहीं कोई समाधान।
सत्ताधीश सब सत्ता में चूर, क़ानून की,
महकमें उड़ाते धज्जियां शहर ए आम।
खुल्लमखुल्ला लूट पड़ी है चहुं ओर को,
मूकधर्मी जनता की भी है बन्द ज़ुबान।
कुदरत का कहर तो बरपेगा ही,
और क्या करेगा फिर भगवान?
अभी वक्त है, सम्भल ओ लोलुप !
जरा आँखें खोल ले पागल इन्सान।
♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦
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- “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — यह कविता प्रकृति के विनाश और मानवीय लालच पर करारा प्रहार करती है। कवि कहता है कि इंसान ने विकास के नाम पर बस्तियां, खेत-खलिहान और पहाड़ तक उजाड़ दिए हैं। यदि यही स्थिति रही तो एक दिन पूरी धरती श्मशान बन जाएगी। कविता में भ्रष्टाचार, खनन माफिया और वन माफिया द्वारा प्रकृति के दोहन को उजागर किया गया है। सरकारें और अधिकारी माफियाओं से मिलीभगत करके मौन हैं, और आम जनता असहाय है। न्याय की कोई उम्मीद नहीं, क्योंकि हर स्तर पर भ्रष्टाचार फैला हुआ है। कवि इस पतनशील समाज को यह याद दिलाता है कि सनातन धर्म, आस्था, और आध्यात्मिकता से भी लोग दूर हो गए हैं — ना देवी-देवता पूजे जाते हैं, न साधु-संतों को सम्मान दिया जाता है। अंततः यह कविता एक जागरूकता का संदेश है — कि अगर अब भी इंसान नहीं संभला, तो प्रकृति का कहर निश्चित है। इसलिए कवि चेतावनी देता है: ”
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यह कविता (कुदरत का कहर तो बरपेगा।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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