Kmsraj51 की कलम से…..
♦ माँ का श्रृंगार। ♦
नव रूपों में सजती है माँ,
करके सोलह श्रृंगार।
आँखों मे है अंजन,
सोहे माथे पर बिंदी।
ललाट पर है सिंदूर,
बालों में मोगरे का फूल।
जिसे देख हुआ मन प्रफुल्लित,
गले में सोने का हार।
लाली साजे उनके अधर पर,
कान में सोहे कर्ण फ़ूल।
लाल लाल चूड़ी हाथों में,
हाथ की उंगली में मुंदरी साजे।
मेंहदी लगे दोनों हाथों में,
जिसे देखकर मन होय विभोर।
कमरबंद है उनकी कमर में,
महावर लगे पैरों में बिछिया पायल।
लाल चुनरी ओढे माता रानी,
रूप ही निखरा जाए।
♦ पूनम गुप्ता जी – भोपाल, मध्य प्रदेश ♦
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- “पूनम गुप्ता जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — नव रूपों में सजती है माँ, करके सोलह श्रृंगार। सम्पूर्ण दिव्य रूप माँ का न्यारा। सर्व शक्ति संपन्न माता रानी सदैव ही अपने भक्तों को सुख समृद्धि देती हैं। माँ का स्वरूप निराला दिव्य अलौकिक। माता के 9 रूपों को देवताओं ने अपने-अपने शस्त्र देकर महिषासुर को वध करने का निवेदन किया। शस्त्र धारण करके माता शक्ति संपन्न हो गई। कहते हैं कि नौ रूपों को प्रकट करने का क्रम चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होकर नवमी तक चला। इसीलिए इन 9 दिनों को चैत्र नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। हे विश्व विनोदिनी माँ! सारा ब्रह्माण्ड झुकें तुझकों कोटिशः वन्दन मेरा।
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यह कविता (माँ का श्रृंगार।) “पूनम गुप्ता जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
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