Kmsraj51 की कलम से…..
♦ तृतीय विश्व युद्ध सिरहाने? ♦
एक जिद्दी सिरहाने आया,
अपनी गाथा फुल ही गाया।
नींद से जागो यही बताया,
दुनिया को नया सीख सिखाया।
एक युद्ध सिरहाने आया,
पहले युद्ध का याद दिलाया।
दूसरे युद्ध में तबाही बताया,
दुनिया को नई दिशा दिखाया।
एक तबाही फिर सिर उठाई,
भागी जनता पर देश दिखाई।
रीफूजियों का बढ़ रहा रेला,
दुनिया देख रही सब खेला?
बिखरी लाशें मौन माहौल,
बेसुध जख्मी दुनिया झोल।
भूल गया बड़े बड़ों का बोल,
कोई बोला विश्वयुद्ध का बोल।
हृदय में उसने नफरत पाली,
क्यों जीनियस से पंगा ले ली।
घमंड में तबाही गोली – बोली,
दुनिया बड़ा पिटारा खोली?
आसमान के बीच आरती पक्षी,
परदेस में जाकर शरण ले ली।
घरों में सहमे हीय में बूढ़े – बच्चे,
दुनिया मीटिंग करती रही दिखी।
गुड्डे की विभीषिका युद्ध में फंसा,
बिखर रही जिंदगी वह तो हंसा!
बड़बोली बोलकर वह तो फंसा,
दुनिया की दृष्टि कैसी, कैसे दशा।
राक्षस राज रावण से राक्षस बोले,
पास पर्याप्त हथियार विश्वास करें।
युद्ध में आप नागों को परास्त किया,
आप अपने आप में विशाद ना करें।
बहुसंख्यक कैलाश शिखर निवासी,
कुबेर को युद्ध में अपने बस में किया।
यक्षों से गिरे कुबेर को भी आपने,
मारकाट मचा कर बस में कर लिया।
यक्ष सेना विचलित कर बंदी बनाया,
कैलाश शिखर से विमान छीन लाए।
वर पाकर शक्तिशाली हो गए दानव,
उनका मान मर्दन आपने ही किया।
दानवों को अपने अधीन करके आपने
प्राप्त माया भी आपने प्राप्त कर ली।
आप ने वरुण के बलवान पुत्रों को भी,
चतुरंगिणि सेना युद्ध में परास्त किया।
आपने बहुत बड़े-बड़े वीरों को मारा,
राम पर विजय पाना कौन बड़ी बात।
रावण के घमंड का राम किए विनाश,
लंका पर विजय घमंड का सर्वनाश।
♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦
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— Conclusion —
- “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — अत्यधिक घमंड चाहे व्यक्तिगत हो या राष्ट्रीय सदैव ही सर्वनाश का कारण बनता है। अभी जो माहौल रूस यूक्रेन संघर्ष युद्ध का चल रहा है, यह युद्ध पूरी दुनिया के लिए हानिकारक है। संस्कृत का बहुत प्रसिद्ध लघु सूत्र है “अति सर्वत्र वर्जयेत्” जिसका हिंदी शब्दार्थ है कि “अति करने से हमेशा बचना चाहिए”, अति का परिणाम हमेशा हानिकारक होता है। वास्तव में अति किसी भी चीज की अच्छी नही होती। इस सूत्र की जांच-परख हम स्वयं अपने घरों में बैठकर कर सकते हैं, कहीं दूर जाने की आवश्यकता नही। गुड़ की एक छोटी सी ढेली का स्वाद सबको अच्छा लगता है लेकिन उसी गुड़ के एक छोटे से टुकड़े को बड़े टुकड़े में बदल कर उसका रस-पान किया जाय तो वही शरीर में विकार उत्पन करता है। एक गुब्बारे में अगर हम उसकी क्षमता से ज्यादा हवा भरने की कोशिश करेंगे तो परिणाम कोई सुखद नही मिलेगा बल्कि दुःख देने वाला ही मिलेगा। यूक्रेन भी आज इसी “अति” का शिकार हो रहा है।
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यह कविता (तृतीय विश्व युद्ध सिरहाने?) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।
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