Kmsraj51 की कलम से…..
…लॉक डाउन की वजह से कई लोग माँ से दूर है । इस मदर्स डे पर यह कविता और भी प्रासंगिक हो गयी
. “ज्यादा दिन रुकना अब की बार “
माँ तुम फोन पर हर बार
एक यही बात कहती हो
मैं गिनाने लगती हूँ तब
अपनी मजबूरियाँ हजार
समझाती हूँ तुमको कि यहाँ मुझ बिन
कितने काम अटक जाते है ।
तुम तक आने से पहले
करने पड़ते है मुझे इस घर के
माकूल इंतज़ाम ,
झुंझलाती हूँ इतनी
सारी जिम्मेदारियों से
उबने लगती हूँ
लंबे सफ़र की बोझिलता से …….
मैं उस आँगन से ओढ़ चुनर
विदा हुई थी कभी
महावर कदम , मेहंदी रचे हाथ लिए
एक और दुनिया सजाने ……
रम चुकी हूँ जीवन को सिरे से बुनने में ,
मशरूफ़ हूँ कुछ दिलों में अपने लिए
एक कोने की गुंजाइश में
लेकिन तुम खड़ी रह गयी
वही उस घर में प्रतीक्षारत ,
जहाँ मैं तुम्हे अकेला छोड़कर
चली आयी थी नए आशियाने में
मेरे लिए तुम्हारी “आकुलता” जैसे
तुमने अपना सम्पूर्ण अस्तित्व, बदन
और इंद्रियों को निचोड़ कर
बैठा रखा है बाट जोहने …
तुम्हारे ठहरे पानी से जीवन में
मेरे आगमन के पदचाप का एक कंकर
और तुममें लहराने लगे
जैसे कोई दरिया ,
मेरी आमद की आँच में
तुम्हारे घुटने का दर्द
उड़ता हवा में कपूर बन
तुम्हारा जोश नया हो रसोई की
कड़ाही में डूबता
मई की गर्म दोपहर
जायके की चाशनी में भीगती
तुम्हारे पास शामें सिंदूरी
शहर भर की तफ़री से
देर रात रिश्तेदारी की
किस्सागोई इस उम्र की लोरियाँ
हर सुबह रसोई में तुम्हारे
नित नए इंतज़ाम ……….
लौटने वाले दिन मेरी “कोछ” भरती
मायूस हो बोलती
“दिन कैसे गुजरे पता ही नही चला “
तुमको फिर अकेला छोड़ लौटते वक्त
अपराधी मन सोचता है
अपनी जरा सी असुविधा देख
यहाँ आना टाल रही थी
एक हिल स्टेशन में छुट्टियाँ गुजारने ,
खुद के आराम , अवकाश सम्हाल रही थी ।
तुमको छोड़ कर आते हुए
खुद को गुंजित खोखला पाती हूँ
पूरे साल रौशनी बिखेरने
“लौ” जेहन में वहाँ से
सुलगा कर लाती हूँ………
तुमसे बिछोह का ज़ख्म हरहराती ,
दो फाड़ जीवन की टीस
सालती पूरे साल ख़ंजर सी ,
भारी मन अपनी पहली-पहली
विदाई को दुहरा कर मैं
जड़ से हिली हुई
हर छुट्टियों से लौट खुद को
सम्हाला है फिर फिर मैंने….
🌼🌼 हैप्पी मदर्स डे🌼🌼
Madhu -writer at film writer ‘s association Mumbai
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