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Mrityulok Ke Naate | मृत्युलोक के नाते।
सदा प्यार अनुराग लुटाने वाले,
आज हमसे क्यों रूठे हैं।
यह दौर हमसे कहता है,
मृत्युलोक के सारे नाते झूठे हैं।
नेत्र की गहराई में झांका तो,
दृष्टिगत हुआ पानी गहरा।
उतार – चढ़ाव से जीवन चलता,
बतलाता हर इक की गाथा हहरा।
वेदना छुपी है मुस्कानों में,
सबके सपने टूटे हैं,
मृत्युलोक के सारे नाते झूठे हैं।
कदमों-कदमों पर खिंचीं रेखायें,
अश्रु – अश्रु पर बंधन है।
बेजुबान बेबसी के होंठों पर,
विहँसता रहता क्रंदन है।
हास्य-व्यंग्य आस मुक्त मधुर क्षण,
जाने किसने लूटे हैं,
मृत्युलोक के सारे नाते झूठे हैं।
मंजुल मनोरम गीत भ्रमर ने गाये,
मुकुलों ने अपने पराग लुटाये हैं।
देकर इक-दूसरे के प्राणों को,
भावात्मक तृप्ति दे संतुष्ट बनाये हैं।
वो सुधा बरसाने वाले,
ये रिश्ते-नाते अनूठे हैं,
मृत्युलोक के सारे नाते झूठे हैं।
♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦
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यह कविता (मृत्युलोक के नाते।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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