Kmsraj51 की कलम से…..
Mulaakat | मुलाकात।
एकटक निहारता शान्त निरव तन से,
गूँजती गर्जन रह-रहकर निभृत संसार में।
अचानक उठती लहरों ने आकर,
चरण-रज लेकर चले गये हलचल मन आगार में,
दे-देकर हँसते हुए फिर खुद में समा गये।
कल्लोल कर आये अडिग पड़े कदमों तले,
मेरे हस्त-कमल में धरा गये।
रत्न कहें या प्रीति कहें सागर की फुलझड़ियां,
अपनी कोख से निकाल मुझ निर्बुद्ध को दे,
कोलाहल करते समेट आँचल चले गये।
था मैं चमत्कृत-सा ये मुझे क्या थमा गये,
कौतुहल भरा अंतस् में बार-बार पंखुड़ी रद की।
बुदबुदाये आखिर अधिरथी क्या दे गये,
इस बेगानी दुनियां में छली पग-पग पर मिले,
बेचैन हृदय को शक्ति स्वरूप क्या दे गये।
इस पहली मुलाकात में सिंधु-सुदामन ने,
दृढ़ निश्चय का रूप-संयोजन बता गये।
अकेला कलयुग में तू ही नहीं पगले,
विराट् मैं भी; नील-झील भी तन्हां है,
मुझ जैसा तू भी बन; छोड़ निशान चले गये।
♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦
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यह कविता (मुलाकात।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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