Kmsraj51 की कलम से…..
♦ नायक – नायिका। ♦
भारत में युगों से महिलाओं का गौरव गान किया जाता है।
“यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता।”
अर्थात:— जहां नारी का पूजन और सम्मान होता है वहां देवता निवास करते हैं।
महा राष्ट्रीय में कहा गया है कि —
‘नारी जनमांची पुण्याई ‘!
श्री हरि चरित्रामृत सागर, में आधारानंद स्वामी लिखते हैं कि सत्संग में महिलाएं भी बहुत उच्च स्तर की थीं।
स्वामीनारायण संप्रदाय में भक्ति धर्म बैरागी एवं ज्ञान से युक्त बहुत सी ऐसी स्त्री – भक्त थीं, जिनकी तुलना पौराणिक युग की स्त्री भक्तों से किया जा सकता है। अत्यंत ही प्रेम पूर्वक मानसी – पूजा करतीं और मार्ग में चलते समय किसी पुरुष के सामने दृष्टि नहीं करी थीं। (भक्त रत्न महिलाएं पृ १३ भाग ४)!
महिला शब्द का प्रयोग वयस्क स्त्रियों के लिए किया जाता है।
वेदों – पुराणों में कहा गया है कि —
“यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्रफला क्रिया।।”
जिस कुल में स्त्री की पूजा होती है उस कुल पर देवता प्रसन्न रहते हैं और जहां स्त्रियों की पूजा, वस्त्र भूषण, तथा मधुर वचन आदि से सत्कार नहीं किया जाता उस कुल का सभी कर्म विफल हो जाता है।
पुरुषों में आठ गुण ख्याति बढ़ाते हैं —
बुद्धि, कुशलता, इंद्रिय निग्रह, शास्त्र ज्ञान, पराक्रम, आधिक नहीं बोलना, शक्ति के अनुसार दान और कृतज्ञता।
‘अष्टौ गुणा: पुरुषं दीपयन्ति,
प्रज्ञा च कौल्यं च दम: श्रुतं च।
पराक्रम श्चाबहुभाषिता च,
दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च।।(विदुर नीति पृ २८)
वेद काल में नारी — वेद काल में नारियों की सभी कार्यों में भूमिका, पत्नी को सम्मान मिलता था। समान अधिकार प्राप्त था नारियों को।
ऋग्वेद काल में नारियों की दशा — ऋग्वेद काल में स्त्रियों को सर्वोच्च शिक्षा दी जाती थी। नारियां शास्त्र और कला के क्षेत्र में निपुणता की परिचायक होती थी।
प्रकांड विद्वान स्त्रियां — वैदिक काल में भारतीय नारियों में विदुषी लोप मुद्रा – जो अगस्त की पत्नी थीं।
विदुषी प्रीति येयी — जो महर्षि दाधीच की धर्मपत्नी थीं।
विदुषी सुलभा — यह जनक राज की विदुषी थीं। जिसने जनक को ही शास्त्रार्थ में हरा दिया था।
ब्रह्मवाहिनी रोमशा — बृहस्पति की पुत्री और भाव भव्य की धर्मपत्नी थीं। इन्होंने ज्ञान का व्यापक प्रचार किया।
ब्रह्म वादिनीं गार्गी — इन्होंने महान विद्वान ज्ञागबल्क को शास्त्रार्थ में हरा दिया।
ब्रह्म वादिनी वाक् — अमृण ऋषि कन्या थी जिन्होंने अंत में अनुसंधान किया और समाज को खेती करने के लिए अन्न दिया।
विदुषी तपती — आदित्य की पुत्री और सावित्री की छोटी बहन थीं। यह अति सुंदरी और प्रकांड विद्वान थी। इनका अयोध्या में संवरण जी से विवाह हुआ था।
शत रुपा, सांगली, मैं ना, स्वाहा, संज्ञा, अपाला आज महिलाओं के साथ-साथ अनुसुइया, सावित्री, तारामती, द्रोपदी जैसी सती जी के गुणों से आज भी विश्व जगत में प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं।
तुलसीदास जी ने लिखा है कि —
‘मूढ तो हिं अतिशय अभिमाना,
नारि सिखावन करसि काना।
तुलसीदास जी का इस दोहे में कहने का तात्पर्य है कि यदि कोई आपके फायदे की बात करें तो उसे स्वीकार कर लेना चाहिए।
कबीर दास की दृष्टि में नारी — इन्होंने नारियों को दो प्रकार का बताया है।
- एक प्रकार की नारी साधना में बाधा नहीं पहुंचाती हैं और पतिव्रता होती हैं।
- दूसरी तरह की नारी साधना में अवरोध पैदा करती हैं ऐसी नारियों का कबीर ने विरोध नहीं किया है परंतु उनका तिरस्कार कर दिया है।
सूरदास की दृष्टि में नारी — यमन ऋषि की कथा राम बिलावल में, नवम स्कन्द में…
‘सुखदेव कह्यो, सुनौ हो राव!
नारी नागिन एक स्वभाव।
नागिन के कांटै विष होई,
नारी चितवन नर रहै भोई।
नारी सो नर प्रीति लगावै,
पै नारी तिहिं मन नहिं ल्यावै।
नारी संग प्रीति जो करै,
नारी ताहि तुरंत पंरिहरै॥
चाणक्य ने नारी के लिए कहा —
नारी में दया और विनम्रता होती है।
नारी धैर्य का पालन करती है।
समाज के निर्माण में नारी की विशेष भूमिका है।
नारी समाज की निर्माणकर्ता होती हैं।
नारी शरीर से दुर्बल होते हुए भी,
प्राण से वह पुरुष से भी अधिक शक्तिशाली होती है।
‘ जिनी सुंतत्र भए बिगरहिं ‘
जिस समय विरहणी स्वतंत्र हो जाती है। फिर उसके अलग-अलग रूप और कर्म देखे जाते हैं।
नायक कहता है कि —
गोरो गाल तिल तापे काला,
मोहन ‘मंगल’ कैसो जादू डाला।
वदन चंद्र सम मृगनयनी गोरी।
नैना चंचल दिखे चकोरी॥
अपने पति से प्रेमातुर स्त्री दुखी होकर कहती है —
मोसों ना बात बना चातुरी,
गोर सांवरिया माटी जब खोटो!
नायिका प्रीतम से रूठ कर लंदन चली जाती है।
नायक कहता है कि —
मेरी मालन खेलन जात बलैया,
मुंह मोड़ चली लंदन मा गोरी।
कैसो बनि गयो देखो कठोरी,
मान तज्यो अरमान लियो गोरी,
राधा रिसानी मनाय लायो कोई!
रितु की मार सहन नहीं होई॥
प्रेमातुर नायिका का भाव —
प्रिय प्रेम से बावरी,
सांवरो नाच नचायो।
उठि उठि जात पहर में,
भोरहरी ना उसे दिखाय।
सांवतिया काहें को जरि जाय,
सजनवा आपनो देख मुस्कात।
हमारी ओर देखा करो सांवरो,
नाहीं तो हम पीहर जाब॥
चंद्रमा को नहीं पता होता है कि उसकी चाहत में चकोरी अपना प्राण त्याग देगी। नायिका प्रेम में इतना विहवल हो, गयो है जानने और पहचानने की आवश्यकता नायक को करना चाहिए।
नई नवेली नायिका ससुराल में कहती है कि —
कुआं पानी भरन ना जैहों,
काला जादू नजर लगी तैहों।
रंगरेजवा रची रची रच्यो,
गरबीली बनो मोरिया अंगिया?
मोती मढायो पीहर चुनरिया,
बार-बार निखत दर्पण गोरिया।
गुण गर्विता होकर गुजरिया कहती है कि —
पिया तोरा पानी हम से भरा न जाए,
वह काया यह इसलिए नहीं बनायो!
पति पर भरोसा कर नायिका कहती है कि —
अपने राजा में हमरो भरोसो,
बसे पिया आंख में आंजन भयो!
मोरा बिनु सांवरो जिया न जाय,
पास पड़ोस घूमि घरवा आवै।
प्रेम से मिल कर गले लगा ले,
निक निक बतिया से दुलरावै॥
‘जेष्ठा और स्त्री कनिष्ठा ‘—
जिसे पिया चाहे वही सुहागिन,
जाहि स्त्री अधिक चाहे सो जेष्ठा।
कम चाहे जेहि नारी वही कनिष्ठा॥
दोउ लड़ी लड़ी बात बनायो,
पिए को रहि रहि दोऊ समझावैं।
मोहिं काहे को ब्याहे है लायो,
हमरौ आंचल में आगि लगायों॥
मुग्धा भाव —
भौंरा लुभाय रह्रियों कलियन संग,
गगरी ना छलके गोरिया धीरे चलो।
सारी बहोर लहरियों तारों डगरिया,
मारो मन मारि रह्यो संग संवरिया॥
यौवन से अनजान नायिका —
सरकत जाती कहां हे मोर घाघरो,
हुलसित तन मन ओर सांवरो॥
यौवना नायिका —
सतायो जनि सैया,
भरी लेहु मोंहिं बहियां!
सवतन संग जाई रह्यो,
बोलहु नहीं मोसो सैयां।
जाए मनायो सौतन को,
बात बनायो ना हमसो॥
मध्य धीरा नायिका —
मोरा सैयां बेदर्दी,
दर्द ना ही जानै!
तीज त्योहार मा भी,
परदेसवा मां बितावै।
कहा जाता है कि मछली की तड़प का पता समुद्र को नहीं होता है।
मुग्धा नायिका —
भय और लाज से रति न चाहने वाली नायिका मुग्धा नायिका कहलाती है।
कहती –
मोरी बहिया ना पकड़ो,
श्याम गिरधारी!
गल बहिंया ने डारो रे,
ओ बेदर्दी बालमा।
मध्या नायिका —
जिस नारी के तन में मर्यादा और लाज दोनों समान होते हैं वह मध्या नारी कहीं जाती है!
नैना लजाय दिल नहीं मानै,
मोहिं त धीरे जगाए लेना।
हाउ तोहरा ओसारी रे,
जरा अखियां पानी लगा लेना।
विश्रब्धनवोड़ा मुग्धा नायिका —
वह नायिका, जो किंचित भय और लज्जा से रति नहीं चाहने वाली होती है।
मोरा छोड़ दो अचरवा,
मैं प्यार मां झूलूंगी!
आसपास में मेरे लोगवा,
हरि संग प्रीति में खेलूंगी॥
मध्या धीरा नायिका —
अपने पति से आदर युक्त व्यंग कोप जताने वाली।
आयो हमरी अंखियां,
बोलो ना हमसे पिया!
उनको
हमसे ना बोलो पिया?
रात रात निंदिया न आवै!
हरि आज ऊं घी में आवै,
निंदिया गवांय डाली,
भोर भयो आयो अंगना॥
मध्या अधीरा नायिका —
वह नायिका जो पति से अनादर युक्त क्रोध जाने वाली हो, मध्या अधीरता होती हैं।
का हौ करते, कैसो करवावत।
पानी यों कर्यो छिप ना पावर॥
प्रौढ़ धीरा —
अपने पति को डर दिखाकर रति से उदास रहा मानवती स्त्री।
ज्यों पति कुछ बोल्यो,
ललाई बाबा नैना।
मुंह फेरि चल्यो मचल,
36 अंक सो आगे बढ़॥
परकीया नायिका —
वह नायिका जो पराई (पराय) पुरुष से प्रेम करती है।
घर बालम छोड़ी आयो,
बितायिब इहवां रसिया!
मुह हमारा यौहिं ओकरा,
ललचाई नजरों में रतिया॥
प्रौढ़ा नायिका —
वह नायिका दो अत्यंत काम रखती है परंतु कुछ कुछ लज्जा लिए।
प्यारे बलम तोहैं जाने ना दूंगी,
श्याम मोरे नैना का तारा रे !
रतिप्रीका नायिका —
विशेष रति की चाह वाली प्रौढ़ा नायिका।
मोहिं डर लागे अकेला रे,
रात पिया जागत रहियो!
प्रीतम नूपुर मोर ना उतारो,
सांग में अखिल विचार्यौ॥
प्रौढ़ा अधीरता नायिका —
पति त्याग – ताड़ना, कोप जनाने वाली नारी प्रौढ़ा अधीरा कही जाती है।
मैं नहीं जाती पास सैंया के पैंया,
मछरियां बिंदिया लै गई मोर!
मुझ पर डार गयो सारे रंग गागर।
नोट: यहां नायक और नायिका के रूप में वर्णन किया गया। इससे किसी को भी, किसी भी प्रकार का आघात पहुंचाने का कोई मकसद नहीं है। यह एक शोधकर्ता की भाति शोध है। जिसका सूत्र पुस्तकों में अलग-अलग तरह से मिल सकता है।
♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦
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— Conclusion —
- “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख में समझाने की कोशिश की है — स्त्रियां कई रूप में होती है ज्ञान व गुणों, लोक-लज्जा तथा व्यवहार के आधार पर। इस लेख में नायक व नायिका के माध्यम से लेखक ने विस्तार से बताया है की कैसे व किस-किस प्रकार की स्त्रियां इस संसार में होती है। जैसे – मुग्धा भाव वाली नायिका, यौवन से अनजान नायिका, यौवना नायिका, मध्य धीरा नायिका, मुग्धा नायिका, मध्या नायिका, विश्रब्धनवोड़ा मुग्धा नायिका, मध्या धीरा नायिका, मध्या अधीरा नायिका, प्रौढ़ धीरा, परकीया नायिका, प्रौढ़ा नायिका, रतिप्रीका नायिका, प्रौढ़ा अधीरता नायिका, इत्यादि प्रकार के नायिका के माध्यम से समझाया हैं। यह एक शोधकर्ता की भाति शोध है। इस लेख के माध्यम से किसी को भी किसी बी तरह का आघात पहुंचाने का कोई इरादा नही हैं।
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यह लेख (नायक – नायिका।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।
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ज़रूर पढ़ें — प्रातः उठ हरि हर को भज।
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