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Nari Shakti | नारी शक्ति।
हे शक्ति स्वरूपा नारी,
तुम हो जग- जन हितकारी।
हो क्षीर – नीर की दानी,
वात्सल्यमयी कल्याणी।
हो सका उश्रृण ना कोई,
आंखों में लहरें पानी।
तेरे इस त्याग तपोमय,
आचरण का जग आभारी।
हे शक्ति स्वरुपा नारी,
तुम हो जग-जन हितकारी।
अधरों से अमन्द पिलाती,
लज्जा का भूषण धारी।
करती सतीत्व का पालन,
बन व्रती एक पति-नारी।
ध्रुव हुये अमर नमः मण्डल,
उग जननी – जीवन -क्यारी।
हे शक्ति स्वरुपा नारी,
तुम हो जग-जन हितकारी।
♦ सुख मंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦
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— Conclusion —
- “सुख मंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — वह संघर्ष नहीं, त्याग और ममता की एक प्रतिमा है। वह शक्ति भी है, जो समय आने पर दानवों का विनाश भी करती है। भारतीय नारी ने अपने महत्वपूर्ण भूमिका का पालन हर एक युग में किया है। भारतीय नारी अपने विशेष गुणों के कारण आज के आधुनिक युग में भी पुरुषों से कंधे से कंधा मिला कर हर क्षेत्र में कार्य कर रही है।
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यह कविता (नारी शक्ति।) “सुख मंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।
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