Kmsraj51 की कलम से…..
♦ पायल। ♦
मैं पायल मेरा बजना काम।
कभी इस पग कभी उस पग।
राम राम धाम बैजनाथ धाम।
चाहे 11 मंजिला हो मकान।
जहां हम मिलें बजना है काम।
चाहे मंदिर हो गुरुद्वारा गुरुद्वारा।
धर्म क्षेत्र वा अधर्म कर्म का झाम।
नन्द बाबा दरबार वा अन्य मुकाम।
सभी सुधी सुनते लगाकर कान।
जहां रहूं मेरा पैर में ही है मुकाम।
श्याम संग राधा बनी रहती।
सीता स्वयंवर में भी संग देती।
मीरा – गीत मीरा का स्वागत।
वीणा वाणी नित नूतन करती।
यात्रा जहां पैरों में ही बजती।
छम छम लहरें उठने वाली।
रुन झुन मधुर मुखर मतवाली।
धुन गुनगुनाएंगे बप्पी लहरी।
मंगल ले आया सुबह भोरहरी।
मै अपनी धुनि सुर में रहती।
इंद्र परी की रचना बन जाती।
उत्पत्ति समय में साथ निभाती।
हरी घर गीत बन सामने आती।
जहां जाते रुन झुन गीत गाते।
समर्पण भाव नारी प्रति लाती।
देवलोक में जब – जब जाती,
परियों की पायल बन जाती।
सभा मध्य में संगीत सुनाती।
देवताओं को खूब रिझाती।
पैरों की पायल बन कर आती।
श्याम सुंदर की मंजूरी पाती।
मंदिर – मंदिर धूम मचा दी।
राधा बनकर, वह रास रचाती।
ऋषियों के मन में बस जाती।
पैरों की पायल बन कर आती।
पायल की धुनि घायल कर देती।
विद्वानों को भी बस में कर लेती।
लोग धर्म में रहती पालन सहती।
लोक लोक सुमधुर भजन सुनाती।
पर पैरों से पायल बन कर गाती।
♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦
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- “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है – पायल व पायल की धुनि के गुणों और खूबियों को बहुत सारे उदहारण देकर समझाया हैं। एक ही कविता में बहुत कुछ समझाया हैं।
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यह कविता “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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Sukhmangal Singh says
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